लम्मर - 1
"अबे चिरकुट! खुद की प्रशंसा भी न कर सकूँ तो दूसरे की क्या खाक कर पाऊँगा? व्यक्तित्त्व विकास का पहला कदम है - आत्मप्रशंसा और दूसरा है - फेसबुक।"
"उसके आगे कुछ नहीं?"
लोक और देसज प्रभाव के कारण हुये विपर्यय का अपना सौन्दर्य होता है। 'चहुँपने' में जो बात है वह 'पहुँचने' में नहीं! आखिर वर्णमाला में 'च' 'प' के पहले जो आता है। लोक को भले वर्ण क्रम न पता हो लेकिन ऐसे संस्कार कर ही देता है चाहे शब्द बाहर से ही क्यों न आया हो?
" तीसरा कदम लेते ही मनुष्य वामन से अवतार हो जाता है और संसार 'असार' या 'वामन'!"
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लम्मर - 2
आप लोग विपर्यय के कुछ ऐसे उदाहरण बता सकते हैं 'नखलऊ' के अलावा! वह मुझे पता है।
'पहुँच' देसज शब्द है या 'अरबी', 'फारसी', 'तुर्की' आदि मूल का?
'पहुँच' देसज शब्द है या 'अरबी', 'फारसी', 'तुर्की' आदि मूल का?
'मतबल' ?
जवाब देंहटाएंबुस्कैट पहनने में अधिक मजा था बुशर्ट की तुलना में।
जवाब देंहटाएंसब बेफजूल की बातें - लम्मर 3 के लिए.
जवाब देंहटाएं'चहुँपने' में जो बात है वह 'पहुँचने' में नहीं!
जवाब देंहटाएं'चहकने' में जो बात है वह 'चिहुंकने' मे नहीं!
नुस्कान और रिस्का क्रमशः नुकसान और रिक्शा के लिए
जवाब देंहटाएंकुछ कहने में रिक्स है.
जवाब देंहटाएंरउवो एक दम से धउगिये के गाड़ी प चहगब?
जवाब देंहटाएंनालेजगर और हेल्थगर त हमहू बहुते बार बोलले बानी...
सादर
ललित
लम्मर - 3
जवाब देंहटाएंबैठे-ठाले चिंतन बहुत जरूरी है। बोले तो मस्ट। सोशल मीडिया इण्टरेक्शन के लिये।
लम्मर १- ओह! कितना कार्य बाकि है, फेसबुक पर न होने के कारण हम विकास के पहले चरण पर हैं।
जवाब देंहटाएंलम्मर २- आप कितनी "तपलीख" वाला काम दे देते हैं।
आब आब कह मर गये, ढिंगै धर्यो रहो पानी ...
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