इन शब्दों को ज्ञानी लोगों द्वारा अश्लील, भदेस और निरर्थक माना जाता रहा है। असल में यह उनका अज्ञान है। वे भी इनके अर्थ समझते हैं लेकिन व्याख्या करने में स्वयं को अक्षम पाते हैं। शब्दों के अर्थ समझते हुए और बिना अर्थ अनर्थ की चिंता किए धडल्ले से प्रयोग करने की समृद्ध अज्ञानी सनातन परम्परा श्लील, अश्लील जैसे बेहूदे विमर्शों में नहीं पड़ती। बात में घंटा घहराना हो तो यूजो और भूलो। अर्थ जान कर क्या उखाड़ना?
हुआ यह कि गई 30 सितम्बर को एक चिर उदार और एक चिर ज़िद्दी के बीच सम्पत्ति विवाद का फैसला आने वाला था। आग में मूतने की छूट तो ज़िद्दी को मिली ही हुई है, समस्या यह है कि उदार भी गुस्सा कर अड़ गया है। तो उस दिन जब पूरा देश साँसों को अरगनी पर टाँगे ज़ेहनी हाँफ में व्यस्त था, मैं भी हाँफा डाफा में लगा हुआ था।
बेचैनी में टहलते हुए निषिद्ध स्थान - जहाँ कथित चर्चाएँ की जाती हैं - पर पहुँच गया। एक दिन पुरानी कथित चर्चा में अपनी पोस्ट का लिंक देख कर हैरान हुआ और उसके नीचे की भड़ैती देख झंड हो गया। आप भी देखिए:
यहाँ झंड का झंडू बाम से कोई सम्बन्ध नहीं है, यह भी अज्ञानी परम्परा का शब्द है। झंडू बाम की छोटी सी शीशी पर महान लोग इतने हस्ताक्षर कर चुके हैं कि अपने लिए जगह ही नहीं बची।
पहले मजनू शब्द देख कर परम प्रसन्न हुआ। इतिहास के जिन चन्द लोगों ने अपन को हड़काने के स्तर तक प्रभावित किया है उसमें मजनू नामधन्य क़ैश (उर्दूदाँ लोग वर्तनी ठीक कर लेंगे) भी एक है। दीवानापन हो तो ऐसा! अपन को भी कोई लैला मिली होती तो उद्धार हो गया होता। वाह वाह क्या बात है! किसी के इश्क़ में यूँ मिट जाना कि कायनात हिल दहल उठे! क्या बात है!!
फिलम लैला मजनूँ में जब नमाज़ी कठमुल्ले को बावरा क़ैश इबादत और प्रेम का पाठ पढ़ाता है तो क्या दिव्य बात कहता है:
सजदे-खुदा में रहे आने जाने वालों का खयाल
इससे तो अपनी मुहब्बत ही भली!
और मरण सेज पर पड़ी लैला को होश में लाने को समूची कायनात और खुदा को ललकारता क़ैश
फजाँ ज़ालिम सही ये ज़ुल्म वो भी कर नहीं सकती
जहाँ में क़ैश ज़िन्दा है तो लैला मर नहीं सकती
ये दावा आज दुनिया भर को दिखलाने की खातिर,
ये दीवाने की ज़िद है ज़िद अपने दीवाने की खातिर, हाँ ...
पीपली लाइव और दबंग देख के हैराँ परेशाँ लोगों से अपील है कि यह पुरानी फिलम जरूर देखें। मदन मोहन, साहिर और रफी की तिकड़ी ने कहर बरपा कर दिया है। कहर!
मामला यत्र तत्र और भौंड़े पर सीरियस हो गया। घटिया छ्न्द में गाली (गाली के मायने मेरे यहाँ जुदा से हैं।)!... बात इश्क़ की हो और हीर राझाँ की चर्चा न हो, सम्भव नहीं! फिलम हीर राँझा में कवि क़ैफी आज़मी हर सम्वाद शेरो शायरी में लिखने की कला दिखा चुके हैं। चाहते तो वह भी खल पात्रों के मुँह से छ्न्दभड़ैती करा सकते थे लेकिन वह तो बुद्धिमान थे। जिस क्षेत्र में बुद्धिमान लोग असफल रहते हैं, मूर्ख वहाँ सफलता की कुलाचें मारते हैं।
अपन का हाल ऐसा हुआ कि मारना चाहो और हाथ बँधे हों। ऐसी जगह था कि बस देख सकता था, कुछ कर नहीं सकता था। जिस प्रेमकथा की 31 कड़ियों ने विमर्श, प्रशंसा और स्वस्थ आलोचना के उदाहरण स्थापित किए, उसे भौंड़ा कैसे कहा जा सकता था! जिसे लिखते हुए हर क्षण डूबा हूँ, साँसों को ठहरा कर मरा हूँ, फिर फिर जीवित हुआ हूँ उसे यत्र तत्र सर्वत्र की कुत्तामूतन परम्परा से कौन जोड़ सकता है?
वही न जिसके मन में कलुष का भंडार हो। ऐसे पुजारी जो राधा राधा जपते हों और नज़र राधाओं की गोलाइयों पर रखते हों, प्रेम को नहीं समझ सकते। नहीं, मैं तुक्कड़ महराज के लिए नहीं कह रहा। ऐसे ही दिमाग में क़ोटेशन आया तो सोचा लिखता चलूँ।
सबसे अधिक कष्ट इन टिप्पणियों से हुआ। नाम नहीं लूँगा। स्वयं देख लीजिए।
अपने मित्र अमरेन्द्र जी को मेल किया। और अमरेन्द्र जी ने सारी अच्छाइयों को धता बताते हुए यह टिप्पणी की।
उन्हें आभार नहीं कह सकता। दोस्ती में नो सॉरी नो थैंक यू। और दूसरों की राय की तो परवाह ही नहीं करनी। खुद जो समझ आए वही करना।
अब तुक्कड़ जी स्वयं के लिए नहीं दूसरों के लिए आदर्श स्थापित करने में आस्था रखते हैं। नीचे देखिए।
हम नंगई करेंगे लेकिन तुम्हें पूरे कपड़ों में मेरे पास आना होगा! हम नागा बाबा है!
स्पष्ट था कि टिप्पणी मिटनी थी सो मिटा दी गई। हाँ, फटकार का यह असर हुआ कि मेरी पोस्ट की लिंक और वह छ्न्दछिछोरई भी लुप्त हो गए।
..आप लोग पूछेंगे कि इतने दिन बाद क्यों? सम्पत्ति बँटवारे के अर्थ समझ रहा था और सर्वधन क्रीड़ा की पीड़ा से उबर रहा था। मुक्त सा हुआ तो 32 वाँ भाग लिखा। समय समय की बात है। तो चर्चाकारों! आप से करबद्ध प्रार्थना है कि जब समझ में न आए तो मौन रहें और मेरी किसी भी पोस्ट की लिंक देने के पहले पूर्व अनुमति ले लें। जानता हूँ कि औसत दर्जे का लिखता हूँ लेकिन फिर भी मुझे डूबना पड़ता है। डूब से पीड़ित अपने साथी ब्लॉगर पर इतनी कृपा तो आप लोग करेंगे ही। टिप्पणीकार ब्लॉगरों से अनुरोध है कि आह व्यक्त करते हुए आगा पीछा देख लें। एक बार पोस्ट को पढ़ भी लें। आह का लेबल इतना डाउन न करें। किसी तुक्कड़ ने कहा है न - आह से उपजा होगा गान। मेरा नहीं उस दिवंगत पुरनिए का तो मान रखें। चिलगोंजई न करें।
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सतीश पंचम जी की इस पोस्ट से ध्यान आया कि उन्हें 'चिलगोंजई' शब्द के लिए धन्यवाद देना था, जो मैं भूल गया। देर आयद दुरुस्त आयद।
धन्यवाद सतीश जी! इस शब्द को आप के ब्लॉग लेखों से ही समझा है। :)
मैं भी बीते पचास बावन साल से चोन्हरई शब्द का अर्थबोध करने में लगा हूँ -और यह शब्द स्त्रियों के एक सहज स्वाभाविक हाव भाव एक दिल न्योछावर होने वाली अदा के लिए है ऐसी मेरी मान्यता है -चोन्हराना....भाव लेना /खाना मतलब इतराना,नोचराना,इठलाना -तनिक असामान्य व्यवहार - कोई पुरुष कभी चोन्हरा नहीं सकता अगर चोन्हराता है तो वह स्त्रैण है -चोन्हरा पुरुष कम ही हैं ...
जवाब देंहटाएंऔर वह प्रकरण तो दुर्भाग्यपूर्ण तो था ही ...उस पर जो कमेन्ट आये मजेदार हैं -हम किस तरह लोगों के प्रति टिप्पणी दे देकर प्रत्युपकार कर रहे हैं और महत्वपूर्ण बिन्दुओं की अनदेखी कर देते हैं ..या यह भी हो सकता है बहुत लोग बिना दूसरों की टिप्पणी देखे अपनी टीप छोड़ देते हैं ..मैं भी ऐसा व्यस्तता में कर जाता हूँ अब सजग रहूँगा !
एक और अर्थ प्रबोध हुआ है -चोन्ही लगना का मतलब है प्रकाश का चुभना ...और यह खुद की (आँखों ) के विकारग्रस्त हो जाने से होता है ..प्रकाश का क्या दोष -लगता है इसी अर्थ में आपने चर्चा मंच की चोन्हरई शीर्षक दिया है ...बताईये दोनों में कौन सा सटीक है ?
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की चोन्हरई
इतना गुस्सा!
जवाब देंहटाएंघटना दुखद है। श्रद्धेय शास्त्री जी से गलती हुई है और मुझे पूरा विश्वास है कि वे उसे स्वीकार करने में कोताही नहीं करेंगे।
वैसे अगर आप इन किसम-किसम की नई-पुरानी चर्चाओं में सार ढूंढेंगे तो मैं इसे भोलापन ही कहूंगा। अधिकांश चर्चाओं का उद्देश्य मिल-जुलकर अपनी गोलबन्दी के लोगों के चिट्ठों की रैंकिंग बढाने से अधिक कुछ भी नहीं है। न मानो तो देख लो अधिकांश चिट्ठाकारों की अपनी सूची ही घूमती-फिरती रहती है। जैसे मुल्ला की दौड मस्जिद तक और अन्धे की रेवडी अपने ही हाथ तक पहुंचती है वैसे ही ये चर्चायें भी कोल्हू के बैल की तरह अपने घेरे से शायद ही कभी बाहर आती हैं। मैने तो इन चर्चाओं की दुर्दशा देखकर इन पर अपना समय व्यर्थ करना रोक दिया है।
गिरिजेश जी ,
जवाब देंहटाएंआपसे करबद्ध क्षमा चाहूंगी ...क्षमा इस लिए मांग रही हूँ कि जाने अनजाने में मैं इस दोष की भागीदार बन गयी ....सफाई में बस इतना ही कि लिंक देखा पर उस पर क्या लिखा गया नहीं पढ़ा ..गल्ती मेरी ही है..पढ़ना चाहिए था ...
आइन्दा टिप्पणी करने से पहले और ध्यान से पढूंगी ...आशा है आप क्षमा करेंगे ...
जो भी हुआ उसके लिए मुझे अफ़सोस है ...
मुझे जागरूक करने के लिए और जिम्मेदारी का एहसास कराने के लिए आभार ..
स्मार्ट इंडियन जी ,
जवाब देंहटाएंन मानो तो देख लो अधिकांश चिट्ठाकारों की अपनी सूची ही घूमती-फिरती रहती है।
हो सकता है आपकी बात सही रही हो ....पर नए चर्चाकारों ने इस मिथक को तोडा है ...चाहें तो आप जायजा ले सकते हैं ...अब रेवडियाँ औरों को भी मिलने लगी हैं ...
अच्छी बात है भाई - दिल कि भड़ास निकाल दी. आप अधूरे पात्र को पूर्णता कि और ले जाईये. टिपियाने वाले को टिपियाने दीजिए...... होर क्या कहा जा सकता है. सभी बुद्धिजीवी हैं.
जवाब देंहटाएंजय राम
ओह! बेध्यानी में हमसे भी गलती हो गई है .ज्यादातर लिंक्स पर ही नजर जाती है और उसके साथ लिखे हुए पर ध्यान नहीं जाता .आइन्दा ध्यान से पढेंगे..अनजाने में ही सही, गलती हुई है ..क्षमाप्रार्थी हूँ
जवाब देंहटाएंDekh bhaiyawaa Girijesh, dher ta hamaraa na bujhala baakir bhojpuriya mein ego kahaaout ba ki 'haanthi chale bazaar aa kukkur bhauke hazaar'. aa yaar ego orhan ba tohara se... ee BAU ke kaahein bhula gayeel bada?
जवाब देंहटाएंप्रत्यंचा कुछ ज्यादा चढ़ा दी है आपने ! मैं आपकी वेदना समझता हूँ पर वे लुंठित जीव शब्दों में छिपी सात्विक वेदना को कहाँ देखते हैं !
जवाब देंहटाएंखूब उलटवासी लिखी बाबा कबीर ने , पर कौन समझा ? अंत में कह बैठे ---
'' साधो, देखो जग बौराना
सांच कहूँ तो मारन धाबे
झूठे जग पतियाना ......''
बाकी चर्चा मंचों की हकीकत तो बस गाँव के छोलहट कोटेदार जैसी है , किसी को दस किलो , किसी को एक पाँव , और किसी को ..... '' धत्त तेरी की ! '' आपकी चर्चा इसलिए की गयी क्योंकि बताना था की इतना खराब हैं , नकारात्मक दिखाने के लिए ! यह तो उन्हीं की पराजय है !
ब्लोग्बुड में तो इतनी राजनीति है जितनी शायद राजनीति में भी न हो ! मधाशीश इसी पर जीते हैं ! किसी की रचनाशीलता से डरते क्यों हैं ये लोग ?
भाई गिरिजेश जी!
जवाब देंहटाएंमुझसे जाने-अनजाने में भूल हो गई होगी!
आपको कष्ट हुआ इसके लिए मैं स्वयं को
दोषी मानता हूँ!
--
भाई गिरिजेश जी!
जवाब देंहटाएंमुझसे जाने-अनजाने में भूल हो गई होगी!
आपको कष्ट हुआ इसके लिए मैं स्वयं को
दोषी मानता हूँ!
--
आपने जो कुछ भी पोस्ट में लगाया है! मुझ जैसे शख्श के लिए आपको वो लगाना ही चाहिए था!
क्योंकि चर्चा करने की जल्दी में मैंने आपकी पोस्ट पढ़ी नही थी! बस जल्दी से एक दोहा बनाया और आपकी पोस्ट का लिंक लगाकर चस्पा कर दिया!
इसके लिए मुझे खेद है! इसलिए मुझसे वैर-भाव न रक्खें। हो सके तो माफ कर दें!
--
हमने तो बस आपका नाम देखा और बहुत ख़ुश हो गए...
जवाब देंहटाएंलिंक के साथ ऐसा कुछ होगा ये सोचा भी नहीं....पढ़ा ही नहीं...पढ़ते भी तो यही लगता हम ही कुछ गलत पढ़ रहे हैं....
हाँ नहीं तो..!
"जिस क्षेत्र में बुद्धिमान लोग असफल रहते हैं, मूर्ख वहाँ सफलता की कुलाचें मारते हैं।"
जवाब देंहटाएंक्या बात है!!
और भाषा का तो कहना ही क्या!! भाई आप क्रोध में बने रहा कीजिये.. पढ़ने वालों के आनन्द के लिए.. :)
क़ैस सही है.. पर आप ग़लत नहीं है.. आप में "इक नुक़्ता नहीं बेजा!"
बढ़िया है!
aapne apne kshobh ko pradarshit kar
जवाब देंहटाएंdiya wohi kaphi hai.....pratikriya
bhi aapke liye sakaratmak hai.....
ab aap mangnewalon ke mang poora ek
apne comment se apne andaz me kar de.
pranam.(s k jha, chandigarh, age-40)
om shanti shanti shanti ...:)
जवाब देंहटाएंजिनसे गलती हुई है, उन्हें सुझाना जरूरी था। आप तो फ़िर स्थापित ब्लॉगर हैं, आपकी लोग सुनते भी हैं। आपने सही पोस्ट लिखी है।
जवाब देंहटाएंऐसे ही एक मंच पर एक चर्चा हुई थी नये ब्लॉग्स के नाम पर, इत्तेफ़ाक से हमारे ब्लॉग का नाम भी और कई सारे ब्लॉग्स(अजीबोगरीब नाम वाले) में शामिल था। शायद पहली बार किसी सामूहिक मंच पर जिक्र किया गथा था। चिट्ठाकार महोदय ने तो खैर बहुत संतुलित रूप से चर्चा की थी. लेकिन पुराने ब्लॉगर्स के कमेंट प्रोत्साहन कम और वक्रोक्तियाँ ज्यादा लग रहे थे। एकबारगी तो हैरानी हुई थी कि यही वह जगह है जहाँ नये लोगों को आने के लिये आह्वान किया जाता है? फ़िर यही सोचकर कि न किसी के बुलाये से आये हैं, और जब जाना होगा तो खुद ही यहाँ से जायेंगे, कमेंट भर कर आये थे।
जो आपको पढ़ने वाले हैं,वे अगर ध्यान से पढ़ते तो उन्हें दुख ही होना था। कई बार ब्लॉग या ब्लॉगर की रैप्यूटेशन के आधार पर भी बिना पोस्ट पढ़े कमेंट दे दिया जाता है। सच तो ये है कि चर्चामंच पर अगर कोई देखता है तो सिर्फ़ नये लिंक्स को, बाकी के लिये तो ब्लॉग रोल, फ़ीड और फ़ालोवर जैसे तरीके हैं ही।
अब खेद वगैरह भी व्यक्त हो चुका है,इस वक्त इग्नोर मारिये और अब जरूर लिखिये ये सीरीज़ जिसके लिये मैं खुद आपसे गिला करता था कि बहुत खींच दिया इसे।
मंटो पर उसके लेखन के कारण मुकदमेबाजी झेलनी पड़ी थी। उसके मित्र ने पूछा कि अब क्या करोगे? जवाब था कि अदालत इस शब्द पर रोक लगायेगी तो उसका(पहले से इक्कीस) का इस्तेमाल करूंगा।
आप लिखिये, जिसे पढ़ना है पढ़ेंगे।
चोन्हराना,इतराना ,इठलाना ,नोचराना,नखरा दिखाना
जवाब देंहटाएंरउआ ओरहन प ध्यान दीं. इ कुली प ध्यान दिहला के कौनो फायदा नइखे.
जवाब देंहटाएंकोई बात नहीं साहब, शास्त्री जी ने खेद व्यक्त कर दिया है और मेरे मन के भाव "मो सम कौन जी " ने अच्छे से व्यक्त कर दिए हैं अतः मैं वही कहूँगा जैसा की हम बचपन में कहा करते थे लड़ाई-वडाई माफ़ करो ...........
जवाब देंहटाएंबढ़िया है ( भई इस बार आपका लिखा पूरा बाँचकर कह रहे हैं उस दिन बिना चटका लगाये लिख गए थे सो इस बात पर ध्यान नही गया कि यह आपके लिए लिखा गया था ।
जवाब देंहटाएंबहरहाल अब तो बात साफ हो गई ।
इस प्रकरण को देखने से पता चलता है कि लोग चर्चा फर्चा वाली पोस्टों को कितना ध्यान से पढ़ते हैं..... लोग आते हैं अपना नाम-काम देखते हैं...वाह वाह करते हैं और चल देते हैं।
जवाब देंहटाएंबंदे ने क्या पीं-पां-पूं लिख मारा है किसी को कोई मतलब नहीं।
इस प्रकरण से इस बात का भी पता चलता है कि चर्चाकार की बातों की वैल्यू क्या है....उसकी बातों को लोग किस कदर मान(?) देते हैं :)
कई जगह देखता हूं केवल चर्चा के नाम पर केवल लिंक ही लिंक....न कोई बात न कुछ। जब लिंक ही देखना है तो एग्रीगेटर क्या बुरे हैं।
मेरे विचार से इस तरह की चर्चाएं एक तरह के मिनी एग्रीगेटरात्मक पोस्ट से ज्यादा कुछ नहीं है।
बात तब होती है जब चर्चाकार एक सुलझे हुए ढंग से पोस्ट के प्रति अपना नज़रिया बताते हुए बातों को कहता भी जाय और लिंक भी देता जाय .... न कि दोहा और कवित्त पढ़ते हुए अपनी चिलगोंजई दिखाए।
गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंघटनाक्रम से अवगत हुए और ... आह को ऊंचाई की ओर ले जाते हुए निवेदन है कि डूब की पीड़ा समझ में आई तथा 'टिप्पण सत्य' उदघाटन भी हुआ पर जब सम्बंधित समस्त नें खेद व्यक्त कर दिया है तो गुस्सा घड़ी करके रख दिया जाये !
प्रेम में इतना व्ययीत हो चुकनें के बाद ये पोस्ट अकारथ जाने सी लगती है !
जवाब देंहटाएंआह आह और वाह वाह से हमहूँ उकताये बईठे हैं,
आपको पढ़ लेते हैं और उतान होकर मन में घुलाते हुये कचरते रहते हैं,
पर आज की रात अपनी टिप्पणी ठोंके बिना नहीं टलूँगा ।
हमारे मिथिला-वैशाली क्षेत्र में चोन्हराना का सोझा मतलब किसी स्थितिविशेष से बैठता है ।
एक -Looking London Talking Tokyo ( हम देखा कुछ रहे हैं अउर ई बुरबक देख कुछ रहा है, काहे चोन्हराता है बे ? )
दो -मूर्ख ( ई चोन्हरा से कुच्छौ कहिये, इसका दिमगिये में नहीं ठँसता है )
तीन -जानबूझ कर धुँधला देखना ( सोझे सामने त लउक रहा है, त जबरजस्ती काहे चोन्हरा रहे हैं, जी ? )
चार -नेत्रों का विस्फारित होना ( अईसि जुलुमी कटरिया रही के हम त देखते हि चोन्हरा गये )
पाँच -अचानक दृष्टिभ्रम हो जाना ( ऊ टरकवा अ ईसा न लाइट मार दिहिस कि हम साइकिल लिये दिये चोन्हरा के उसी में घुस गये )
छः -एक और भी है.. का नाम से :)
सात -एक याद नहीं आ रहा है :)
आठ -एक कुछ भूल रहा हूँ :)
नौ -ई वाला भोर में अम्मा के उठने पर पूछ कर बताऊँगा :)
मुला चर्चा के नाम पर अईसी गँडौल मची है, जईसे धरती पर गोड़ टेकते ही बछड़ा उमकने लगता है । हम आपके रँज़ का समर्थन करते हैं जी ।
32 tak to ek jhatke mein padh gaye! aage kaa huaa?
जवाब देंहटाएंसबको आभार - साहस, सकार, सद्भाव और अपनी बात स्पष्ट कहने के लिए. अस्पष्टता में भी 'बात' है.
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरुप जी और शिखा जी! आप लोगों के प्रति सम्मान और बढ़ गया है. इस तरह से कौन? कितने??...
आगे न लिख कर ही अपनी बात संप्रेषित रहा हूँ. ऐसी सहजता नमनीय है. आप लोगों को कहीं कष्ट पहुंचा हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ.
शास्त्री जी, आप बुजुर्ग हैं. ऐसा लिखने का उद्देश्य shock treatment था. अपने माध्यम से उन कई ब्लागरों की बात कहनी थी जो ऐसी बातों से असहज और दुखी होते हैं. आशा है की कुछ दिन लोग याद रखेंगे और आचरण में सुधार लाएंगे. आप के प्रति वैर भाव नहीं है. शंकर धारण कर गरल, न कर विष वमन ही आदर्श है . मैं पूर्वग्रहों से अपने को मुक्त रखने की हरदम कोशिश करता हूँ. मेरे लिए यह अंतहीन यात्रा है. किसी बात का मलाल न रखिएगा.
इलियट के रचना और रचनाकार के अलगाव और कृष्ण की अनासक्ति बहुत बड़े आदर्श हैं। वे धन्य हैं जो इन्हें साध लिए हैं। लेकिन हम जैसे जो कि रचते हुए वही हो जाते हैं, नकारे नहीं जा सकते। यह पोस्ट हम नाकारों की पोस्ट है। बाउ को रचते लंठ हुआ हूँ, क़ुरबानी मियाँ के साथ पहलवान हुआ हूँ, केंकड़े के साथ अन्धेरे कुएँ की टाँग खिचाई का अनुभव किया है, मनु के साथ प्रेम को समूचे परिवेश में ढूँढ़ा है और ऊर्मि! तो बस पूछिए न ...कहा नहीं जाता। ऐसों के साथ जब कुछ ऐसा वैसा होता है तो बहुत पीड़ा होती है, यकीन मानिए।
जवाब देंहटाएंयह तो स्पष्ट ही है कि बिना पोस्ट पढ़े चर्चा/टिप्पणी की जाती है। कृपया यह निरर्थक कार्य न करें क्यों कि यह अनर्थक भी हो सकता है। मो सम कौन की टिप्पणी ध्यान देने योग्य है।
ललित जी और अभिषेक जी - ओरहन नोटेड। :) बहुत जल्दी ही...
अरविन्द जी - शब्द व्याख्या के आप के उत्साह से अभिभूत हो गया हूँ। अभय तिवारी जी ने भी कल ग़जब कर दिया। 'चोन्हरई' को विश्लेषण हेतु शब्द चर्चा पर डाल दिया। अच्छी साइट है। अवश्य देखिए। इससे यह भी सिद्ध हो गया कि भदेस संज्ञा पा चुके लोकवाणी के शब्द कितने अर्थगहन हैं।
डाक्साब! आप ने तो मस्त कर दिया। झुके हुए अक्षरों को गर्दन टेढ़ी कर पढ़ा है :) आप की टिप्पणी लोकभाषा की सशक्त प्रस्तुति है!
जवाब देंहटाएं@ उतान होकर मन में कचरना
हे भगवान!
आभार।
शरद जी! बढ़िया है ;) जो चन्द जन मुझे खुशी खुशी झेल लेते हैं, उनमें आप भी एक हैं। आभार कहने को दिल नहीं करता :)
अमरेन्द्र जी! आप ने गाँव के छोलहट कोटेदार की अच्छी बताई। लगे हाथ छोलहट का अर्थ भी बता दें ;)
राकेश जी! 32+ आते रहेंगे। साथ बने रहिए।
संजय झा जी! 40 वाले। परनाम जी। :)
सतीश जी! पीं पां पूँ... मुम्बई में मेरा एक दोस्त पुलिस वाला है। सोचता हूँ कि आप दोनों को मिला दूँ तो आप दोनों मिल कर मुझे कितना कोसेंगे :)
वाणी जी! ॐ शांति: शांति: शान्ति:
'निंदक नियरे राखिये ......
जवाब देंहटाएंआँगन कुटी छवाय .......'
कई अच्छे देशज शब्दों के बारे में लोगो की राय जान ने को मिली .......
श्री अरविन्द जी और डॉक्टर साहब से "lanthh" शब्द में व्याप्त positivity के बारे में जान ना चाहूँगा........
सादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंविलंब से आया। न वो देखा,न समय पर यही देख पाया। जितना जोरदार प्रतिवाद उतनी शालीनता से शास्त्री जी का भूल सुधार। अब कहने के लिए क्या शेष रह जाता है! हाँ, इस चर्चा से एक ज्ञान तो सभी को मिला कि बिना पढ़े आलोचना तो क्या प्रशंसा भी नहीं करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंकभी मलेरिया के मच्छरों से बचाव के लिए कुनैन का प्रयोग करना पड़ता था। आपने बहुत अच्छी भाषा में समजा दिया है। अच्छी बात यह है कि बात सबकी समझ में भी आ गयी है। प्रभावशाली सफल पोस्ट।
जवाब देंहटाएंब्लॉगर संगोष्ठी की तैयारी में व्यस्त होने के कारण आजकल ब्लॉगरी कम हो पा रही है। यहाँ आना भी अनियमित हो गया है, इससे मन दुखी है।
जिसे लिखते हुए हर क्षण डूबा हूँ, साँसों को ठहरा कर मरा हूँ, फिर फिर जीवित हुआ हूँ उसे यत्र तत्र सर्वत्र की कुत्तामूतन परम्परा से कौन जोड़ सकता है
जवाब देंहटाएंकुछ माह पहले शास्त्री जी ने मेरे पोस्टों को लगातार "बाल-चर्चा" में लगा रहे थे.. जब मेरे वैसे पोस्ट भी वहाँ लगने लगे जिसे लिखते हुए मैं भी हर क्षण डूबा हूँ, साँसों को ठहरा कर मरा हूँ, फिर फिर जीवित हुआ हूँ, तो फिर मुझे उनसे बात करनी पड़ी थी.. मेरे ख्याल से शास्त्री जी को सावधानी पूर्वक चर्चा करनी चाहिए.. हड़बड़ी में नहीं..
फिलहाल तो महाराज, आप अपने राह, अपना गीत गाते चले चलो चलिए टाइप चलते रहिये.. :)
जवाब देंहटाएंगिरजेश भाई,
जवाब देंहटाएं"चोन्हरई" शब्द बढिया ढूंढ कर लाए।
इसे समझने के लिए काफ़ी मुड़ खपाना पड़ा।
टिप्प्णीयां पढी तो कुछ समझ आया।
बहुत खूब! खूब लोगों के खेद प्रकाशित हो गये। :)
जवाब देंहटाएंबाकी चिट्ठा/चर्चा मंच , टिप्पणी प्रक्रिया और अन्य बातों पर क्या लिखें! फ़िर कभी!
यार आप तो मुझे चिलगोजई शब्द के लिए थैक्यू बोलने लगे .... जरूर कोई 'चतुर रामलिंगम' उर्फ 'सायलेंसर' आपको मैनर सिखा रहा है :)
जवाब देंहटाएंada ji ????????????
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