शुक्रवार, 31 मार्च 2017

पैप्पलाद शाखा और अर्थशास्त्र - कुछ प्रश्न

http://www.planetayurveda.com/media/wysiwyg/planet/saussurea-lappa.jpg

Atharva-Veda samhita page 471 illustration1905 ई. के आसपास दो बहुत ही महत्त्वपूर्ण खोजें घटित हुईं। बैरेट ने शारदा लिपि में लिखा अथर्वण संहिता (पैप्पलाद शाखा) का बहुत ही जीर्ण शीर्ण रूप ढूँढ़ निकाला।
[छठे दशक में उड़ीसा में दुर्गामोहन भट्टाचार्य महाशय द्वारा न केवल पैप्पलाद शाखा की जीवित परम्परा ढूँढ़ ली गयी वरन लगभग पूर्णत: सुरक्षित पाठ भी (एक शारदा लिपि में और दूसरी उड़िया लिपि में)। वे लोग बलाघात के साथ नहीं बल्कि संस्कृत श्लोकों की तरह पाठ करते हैं। अस्तु।]

शामशास्त्री ने कौटल्य का लुप्त अर्थशास्त्र ढूँढ़ निकाला और संसार को भारत के राजनीति शास्त्र का पता चला। इसका अर्थ यह भी है कि उससे कम से कम एक दो सदी पहले ही संस्कृत शिक्षा पद्धति से अर्थशास्त्र का पठन पाठन लुप्त हो गया होगा। क्या अब संस्कृत पाठशालाओं में अर्थशास्त्र पढ़ाया जाता है?

पैप्पलाद शाखा पर 1905 के पश्चात लगभग पाँच दशकों तक अंग्रेज, जर्मनादि विद्वानों ने जो काम किया, वह श्रद्धा जगाता है।
अब आते हैं उस बिन्दु पर जिस पर बहुत दिनों से ढूँढ़ रहा हूँ। पैप्पलाद शाखा की यात्रा, विराम और विलोपन इतिहास की जाने कितनी गुत्थियों को अपने में समेटे हुये है। बता दूँ कि सायण के समय में भी वे 'विलुप्त' थे। अथर्वण का पुराना आधिकारिक पाठ पैप्पलाद ही है और अपने पहला मंत्र 'शं नो देवी... ' दर्शाता है जो कि वैदिक मातृपूजा का संकेतक है।

उज्जैन क्षेत्र से उत्तर और कश्मीर से दक्षिण क्या अथर्ववेदीय परम्परा कहीं मिलती है? यजुर्वेदियों के अतिरिक्त क्या ऋग्वेदी और सामवेदी भी हैं?
कोई हिमाचली बतायेगा कि कुथा नाम की यह वनस्पति Saussurea lappa उसके यहाँ पाई जाती है? इसका सम्बन्ध अथर्वण परम्परा से है। मूलत: हिमालय में 2500 मीटर से ऊपर पाई जाने वाली यह औषधि अथर्ववेदियों द्वारा कभी पूरे भारत में फैला दी गयी थी।

तीव्र ज्वर 'तक्मन या तक्मा' के क्षेत्र कीकट में भी यह वनस्पति मिलेगी जहाँ वही जन उपचार के लिये इसे ले गये थे। कीकट को बहुत लोग आधुनिक बिहार मानते हैं किंतु मुझे शंका है।   
 

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