रविवार, 27 मई 2018

जातवेद या जावेद ?

या॑वन्तो देवास्त्व॑यि जातवेदः .... आत्मन्नग्निं गृह्णीते चेष्यन्नात्मनो ... 
समस्त जीव जगत उस अनुशासन में बँधा है जिसे ऋत कहा गया। कर्मकाण्ड सृष्टि रूपी यज्ञ की अनुकृति होते हैं, अग्नि से समझ सकते हैं। अग्नि जातवेद हैं, समस्त जीवन को जानने वाले या जिन्हें समस्त जीवधारी जानते हैं, समोये हुये हैं। जीवन के लिये ऊष्मा आवश्यक है, हिमक्षेत्रों में भी। मानव द्वारा प्रयुक्त अग्नि पहले द्विज हैं – जिसका दो बार जन्म हुआ हो। पहली बार अरणि मन्थन से, दूसरी बार जब गार्हपत्य अग्नि के रूप में स्थापना हुई या किसी अन्य याज्ञिक रूप में। प्रकृति की विराट लीला तो पूर्णत: गम्य नहीं है किन्‍तु देखें तो जीवन में यादृच्छ विनाशी दावानल का अनुकरण नहीं किया गया है, सायास उपजाई हुई नियन्‍त्रित अग्नि का किया गया है जो जन्म से ले कर मृत्यु तक समस्त जीवधारियों को चलायमान रखती है। मैथुन द्वारा गर्भ स्थापन पश्चात माँ के उदर से बाहर आना प्रथम जन्म है। संस्कार होने पर दूसरा जन्म है, द्विज, अनुशासन बद्ध, ऋत से स्वयं को जोड़े हुये। पात्रता सुनिश्चित करने के लिये प्रथम जन्म से पूर्व भी गर्भाधान संस्कार की व्यवस्था है, पुंसवन है।
 द्विज से अपेक्षा है, अद्विज से नहीं। संस्कारी से अपेक्षा है, असंस्कारी से नहीं। समाज के मेधावियों से अपेक्षा है, जन सामान्य से नहीं।
अग्नि का गुण है – दोष भस्म करना। अग्नि का गुण है जोड़ना। कृषि पहला यज्ञ है। भास्वित, प्रकाशित 'भ' के साथ शक्तिमान पहली 'र' अग्नि को ले कर भ+र+तों ने अभियान किये। वन प्रान्‍तर जले, कृषि आश्रम व्यवस्था स्थापित हुई, पूर्णत: प्रकृति पर आश्रित वनवासी समाज ने आहार उगाना स्वयं सीखा – आर्य हुये। 
इन्‍द्रम् वर्धन्तो अप्तुर: कृण्वन्तो विश्वमार्यम् । 
अपघ्नन्तो अराव्ण: ॥ 
इस ऋचा के पीछे मानव सभ्यता का इतिहास बोलता है। 
द्विज भ्रष्ट हुआ, जीवन भ्रष्ट हुआ, समाज भ्रष्ट हुआ। आधुनिक वैश्विक चेतना प्रचार के नेपथ्य में देखें तो आप को यही सनातन प्रज्ञा परिवर्तित प्रस्तुति के साथ मिलेगी। नदी को प्रदूषित करना अद्विज कर्म है, सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट करना, प्रदूषण प्रसारित करना, अनियन्‍त्रित भोग, भ्रष्ट धन संग्रह, अ-दान इत्यादि इत्यादि समस्त के पीछे द्विजत्व का क्षीण होना ही है। 
इस क्षीणता से ही भ्रम की स्थिति है जोकि जातवेद की तुलना में जावेद को प्रतिष्ठित करती है, त लुप्त है। भास्वित या प्रकाशित 'भ' को ऊष्म वह्नि 'र' के साथ धारण कर सकने वाला ‘त’ न हो तो न भरत होने, न भारत, अन्य देशों की नियति मैं नहीं जानता।
भ्रम इतना व्यापक है कि हमें पता ही नहीं चलता ! मैट्रिक्स फिल्म की भाँति, अत्यल्प को वास्तविकता का आभास या ज्ञान होता है। हम अंधे हुये भागे जा रहे हैं। भग देवता की एक आँख फूटी थी, हमारी दोनों हैं। 
द्विजत्व के क्षीण होने के कुछ उदाहरण देखें। मुस्लिम राजपूत। वीडियो चलते हैं, साक्षात्कार होते हैं कि हम मुस्लिम राजपूत हैं जी, भगवान राम हमारे पुरखे हैं। कई पीढ़ियों पहले हमारे पूर्वज मियाँ बन गये थे किन्‍तु हैं हम राजपूत ही ! लोग चरमानंद की प्राप्ति के साथ प्रसारित करने लगते हैं। भाई! जब ज्ञान हो ही गया है तो मरुस्थल के लुटेरे को तज लौट क्यों नहीं आते? 
न जी, हमें तो हुजूर प्यारे हैं उनकी शान में उल्टा सीधा न बोलो, तुम्हारे गले पर सल्ला फेर देंगे। आयेंगे तो तुम्हारी बिरादरी में ही, बोलो बेटी दोगे? 
भारी समस्या। पतित हुये, मल पीढ़ियों तक ढोते रहे, लौटना है तो उनकी बेटियों के लिये ही, जिनके पुरखों ने, जिन्होंने सब कुछ सह कर भी अपना सत्व न छोड़ा, धर्म नहीं छोड़ा ! 
जावेद खान राजपूत भाई! आर्यसमाज है, नित्यानन्‍द हैं, अनेक विकल्प उपलब्ध हैं। लौट आओ। 
न जी, रहेंगे तो मुसलमान ही, लौटे तो हमें वही चाहिये। 
... इन्हें आप सिर पर उठाये हुये हैं ! इनकी शान में नातिया कलाम रचे गाये जा रहे हैं। 
यही पतित होना है, भ्रष्ट होना है। 
पढ़ना लिखना कुछ नहीं, शस्त्र के साथ शास्त्र नहीं, समाज को क्षत से बचाने वाले ये क्षत्रिय हैं। जो मार देंगे, काट देंगे का दिन रात जप करते हैं, आवश्यकता पड़े तो लाठी भी न उठे! जीन्स सरकने लगेगी !!  
दूसरा पक्ष है इसाइयत का, पढ़े लिखे हिंदुओं को बहुत सहानुभूति है उनसे जिनमें द्विज श्रेष्ठ ब्राह्मण सबसे आगे हैं। ब्राह्मण? चौंक गये न?? 
अरे! ब्राह्मणों का मतान्‍तरण तो सबसे अल्प है, क्या बक बक कर रहे हो? 
भैया जी‍ ! मैं बपतिस्मा पढ़ कर क्रॉस लटकाये की बात नहीं कर रहा, तिलक लगाये मानसिक इसाई की बात कर रहा हूँ। शिक्षा दीक्षा में परम्परा से ब्राह्मण को आगे रहना है। आजकल भी हैं। आजकल की शिक्षा पद्धति की वास्तविकता क्या है? इसाइयत का प्रसार। पढ़ाई जाने वाली करुणा भी इसाई करुणा है, बचपन से मस्तिष्क प्रक्षालन। प्रक्षालितों में सबसे आगे ब्राह्मण। भारत का वर्तमान तन्‍त्र नीचे से शीर्ष तक बैठे इन मानसिक इसाइयों से लड़ रहा है। इनके कारण ही वह हाजी अली, हाजी अली जपना तज नहीं पा रहा क्योंकि उसे पता है कि चाँद मियाँ उर्फ साईं बाबा को प्रतिष्ठित भी इन्हीं मानसिक इसाइयों ने किया। अब्राहमी भाईचारा ‘त’ विहीन, अग्नि च्युत, संस्कार मुक्त, sterile भारत की समस्त विश्व को देन है। उसके साथ कम्युनिज्म को भी जोड़ दें तो परशु परशु जपते, साथ में मुसलमान पिता की संतान कैथोलिक इसाई को जनेऊ पहना ‘पण्डित’ घोषित करने वाले कौन हैं? कम्युनिज्म के शीर्ष पर सबसे अधिक कौन मिलेंगे? हाँ, ठीक समझे। 
द्विजों, द्विजबंधुओं ! क्षमा करना, इस देश को संस्कारहीन अद्विजों ने नहीं, संस्कार’च्युत’ विप्रों ने, मूँछ मरोड़ते राजन्य वर्ग ने, स्वार्थी तोंदुल वैश्य ने गर्त में पहुँचाया। सोशल मीडिया पर इनके सबसे अधिक जातिवादी 'गोपनीय' समूह हैं, राम जाने वहाँ क्या करते रहते हैं!  
विचित्र विभ्रम की स्थिति है। अनेक युवा तेजस्वी ब्राह्मण भी मूर्खता नहीं तज पा रहे। वे सम्मिलन की बातें करते हैं किन्‍तु यह स्थूल सच देख ही नहीं पाते कि अब्राहमियों ने तुम्हारा कितना अपनाया? कई पूजा घरों में साँई बाबा के साथ इसा मसीह भी मिलेगा, किसी अब्राहमी के घर में राम, कृष्ण, शङ्कर मिलेंगे? सब कचरा करने का ठीका तुमने ही क्यों ले रखा है भाई?
पाश्चात्य फैशन प्रचार जैसे फेमिनिज्म से ये बहुत प्रभावित हैं। मेधावी हैं ही, भारत के संदर्भ में परिवर्तित कर प्रस्तुत करते हैं – आह, उह, वाह तीनों एक साथ पाने के लिये। दर्शायेंगे कि कैसे तंत्र साधना पद्धति स्त्रियों के नेतृत्व में एक अनजान से गाँव में आज भी प्रचलित है, स्थापित है। श्रेय किसे? विदेशों में बसे वहाँ के भारतीयों को। 
लगे हाथ यह भी बताते चलेंगे कि वे स्त्रियाँ इसाई हैं, बपतिस्मा भी लिया हुआ है, चर्च जाती हैं किन्‍तु अपना तंत्र मार्ग नहीं छोड़ा। 
अरे भोंदू! 
इसी प्रवृत्ति का लाभ तो इसाई मतांतरण करने वाले उठा रहे हैं! तुम्हारी अनुकृतियाँ लगा कर मूर्ख बनाते हैं किन्तु अपना मूल कभी नहीं छोड़ते। चर्च में योनिपीठम् की स्थापना करा कर देखो तो ! इसा को तज रुद्र की प्रतिमा लगाने की बात करो तो !! 
वे लोग तंत्रमार्गी नहीं, तुम्हारे ही समान भ्रष्ट शिक्षा व्यवस्था के जने हैं जिन्हें मूल सच ही नहीं दिखता कि जड़ों में दीमक लगे हैं। जिन्हें गले लगाये हैं, वे कर्कोटक नाग से भी अधिक घातक हैं।   
ऐसे विप्रों के साथ सबसे बड़ी समस्या धूर्तता है जोकि कभी कभी बहुत ही भोलेपन के साथ ‘भी’ दिख जाती है। धूर्तता भोलेपन के साथ? इस कारण कि वह अब सहज स्वभाव बन चुकी है, पता ही नहीं चलता रे कि क्या कर रहे हैं! हजार शब्दों का लेख लिखेंगे, एक वाक्य, केवल एक वाक्य दस से बीस शब्दों का, प्रवाह के साथ ही डाल देंगे। 
वह वाक्य ही जामन का, नींबू के रस का काम करता है – अवचेतन के स्तर पर। सारा दूध जम कर, फट कर व्यर्थ ! भ्रष्ट विप्र सबसे घातक होता है क्यों कि वह आप के अवचेतन से खेलता है। कहते हैं न, मन्‍त्र की शक्ति शस्त्र से कई गुनी? आधुनिक समय का मन्‍त्र है – अवचेतन के स्तर पर प्रदूषण एवं प्रहार। ऐसे विप्रों से सावधान रहें, जातिवाद की माला जपते शूरवीरों से सावधान रहें, भ्रष्ट द्विजों से सावधान रहें, सतर्क रहें। 
.... 
बतकूचन बहुत हो गई, वास्तविक काम का समय आ गया है। नीचे लिखे संदेश को ट्विटर पर लगायें ताकि सोई हुई भारत सरकार के जगने की प्रायिकता में वृद्धि हो।

लोकतंत्र में जन दबाव काम करता है। सोती हुई सरकार को जगायें एवं स्वयं भी जागृत हों। समाज एवं परिवेश पर सजग दृष्टि रखें। जो हिंदू भाई वास्तव में संकट में हैं, उनकी सहायता करें। इसाई भेंड़िये ऐसों की ही सहायता कर मतांतरण कराते हैं। 

twitter.com एक माइक्रोब्लॉगिंग साइट है जो विविध सरकारी संगठनों के ध्यानाकर्षण हेतु बहुत प्रभावी है। 
अनुरोध है कि यदि वहाँ खाता न हो तो बनायें एवं नीचे लिखे संदेश को कॉपी कर के पोस्ट करें ताकि प्रधानमंत्री, उनके कार्यालय एवं गृहमंत्री तक संदेश पहुँचे। इसे अधिकाधिक साझा करें तथा अपने मित्रों एवं परिचितों को भी करने के लिये प्रेरित करें। हिंदू धर्म एवं भारत वास्तव में संकट में हैं। 
मैं दक्षिण में देख रहा हूँ, जिसकी पुनरावृत्ति उत्तर में होने वाली है। 

विश्वास करें कि न तो इससे आप की पवित्रता पर आँच आयेगी, न उदारता पर, न आप पर धर्मांधता की चिप्पी लगेगी। आप के आराध्य भी रुष्ट भी नहीं होंगे। मोहनदास वास्तव में प्रसन्न होंगे क्यों कि ‘सामान्य हिंदू कायर होते हैं’, उनकी यह सत्य की खोज असत्य सिद्ध हो जायेगी। आप को कोई घातक रोग भी नहीं पकड़ेगा। भारत सरकार आप के विरुद्ध कोई कार्रवाई भी नहीं करेगी। 

... कहने का अर्थ यह है कि आप को कोई हानि नहीं पहुँचनी, हाँ एक बहुत बड़ी आसन्न आपदा को बाधित करने में आप का यह एक अति लघु योगदान अवश्य होगा। 
Choice is yours! 
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@narendramodi @PMOIndia @rajnathsingh इसाई संगठन जोशुआ प्रोजेक्ट भारत में मतान्‍तरण में लिप्त है।इसके विशाल तन्‍त्र,डाटाबेस से स्पष्ट है कि इसे अकूत अमेरिकी फंडिंग है।राष्ट्रहित में कृपया इसे एवं इसके ये वेबसाइट भी प्रतिबंधित करें https://joshuaproject.net/countries/IN , https://godlovesyadav.org
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1 टिप्पणी:

  1. यह बहुत घृणित प्रयास है। इसको तुरंत प्रतिबंधित किया जाना चाहिए । सभी से निवेदन है कि प्रधानमंत्री को संदेश पहुँचायें


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