पिछले भाग से आगे
(नैरन्तर्य में पढ़ें)
पाण्डु के जन्म के समय ही महाभारतकार सूचित करते हैं - तस्य पुत्रा महेष्वासा जज्ञिरे पञ्च पाण्डवाः। महेष्वासा शब्द का अर्थ है, कुशल धनुर्धारी। जज्ञिरे शब्द का अर्थ है वीर्य से जन्म। पाण्डु के जाये पाँच पाण्डव कुशल धनुर्धारी हुये। जज्ञि शब्द का पुन: प्रयोग हुआ है - स जज्ञे विदुरो नाम कृष्णद्वैपायनात्मजः अर्थात (उक्त दासी) ने कृष्णद्वैपायन के आत्मज विदुर को जन्म दिया।
पाँचो पाण्डव पाण्डु के ही पुत्र थे। आजकल के धारावाहिक देख विशारद बने जन पाण्डु के नपुंसक या निर्बल होने का फतवा दे देते हैं। कोढ़ में खाज का काम पौराणिक वितण्डा व निजी आग्रह करते हैं! पाण्डु वर्ण का अर्थ वही है - त्वचा में रञ्जक की अनुपस्थिति - leucistic or
albinoid शब्दों के अर्थ देखें तो! और पाण्डु में यह सत्यवती के कारण आया रहा होगा। ऐसे लोग नपुंसक नहीं होते, हाँ देखने में विचित्र अवश्य होते हैं। एक सम्राट, वह भी उस कुल का जिसमें भरत व शंतनु जैसे हुये, जिसमें भीष्म जैसा व्यक्ति उपस्थित था, ऐसा दिखे, सत्यवती नहीं चाहती थीं। इस कारण ही तीसरी बार नियोग का अनुरोध की थीं। अस्तु।
तो देवताओं से जन्म का क्या? किंदम का शाप, दुर्वासा द्वारा कुंती को दिये मंत्र का क्या? पाण्डव नियोग संतति थे क्या?
धैर्य रखें, स्तर खुलेंगे, शनै: शनै:।
धृतराष्ट्र, पाण्डु एवं विदुर तीनों के जन्म पर व्यास सूचित करते हैं -
तेषु त्रिषु कुमारेषु जातेषु कुरुजाङ्गलम् । कुरवोऽथ कुरुक्षेत्रं त्रयमेतदवर्धत ॥
तीन क्षेत्र - कुरुजाङ्गल, कुरुक्षेत्र एवंं कौरव गण; इन तीनों में उक्त तीन के जन्म से अभिवृद्धि हुई। जन्मते ही अभिवृद्धि कैसे? यह सङ्केतक है भावी का। कुरुओं का प्रभाव क्षेत्र बहुत विशाल था। कुरुजाङ्गल वह समन्वित भौगोलिक क्षेत्र है जिसमें वे स्थापित थे तथा विस्तार कर रहे थे। कुरुक्षेत्र उनका रूढ़ आदि क्षेत्र है तथा कौरव वह संज्ञा है जो दूर देशों में भी बसे कुरुओं को सम्मिलित करती है। नियति ही है कि कुरुजाङ्गल का जाङ्गल आया पाण्डु व उनके पुत्रों के भाग में, धृतराष्ट्र कुरुक्षेत्र रूपी केंद्र में जमे रहे तथा विदुर कौरव जन की चिंता में घुलते रहे। परन्तु क्या यह संयोग मात्र है? नहीं।
आगे सूचित करते हैं - उत्तरैः कुरुभिः सार्धं दक्षिणाः कुरवस्तदा । विस्पर्धमाना व्यचरंस्तथा सिद्धर्षिचारणैः ॥
दक्षिणकुरु वाले उत्तरकुरु वालों के साथ स्पर्धा में रत हो गये। ये दोनों पारिभाषिक शब्द हैं। उत्तरकुरु काश्मीर व हिमालय क्षेत्रों से भी उत्तर वह क्षेत्र है जहाँ कुरुओं का प्रभाव तो था किंतु प्रभुत्व ढीला था।
पाण्डु यहीं भटकते रहे तथा यहीं पाण्डवों का जन्म हुआ। दक्षिणकुरु उसकी तुलना में मूल कुरुप्रदेश है, Kuru proper । उत्तरकुरु कौरवों (कौरव से समस्त को समझें, कौरव व पाण्डव सञ्ज्ञा भेद धृतराष्ट्र-शकुनि का विग्रही प्रचार था जिसके नेपथ्य में पाण्डवों को वञ्चित करने की लालसा थी) हेतु सदैव प्रतिष्ठा का विषय रहा। यहाँ अर्जुन का भी अभियान हुआ था। यह ऐसा प्रदेश था जहाँ पौरव कौरवों (पुरु की संतान होने से कौरव पौरव भी कहलाते थे, वैसे ही जैसे श्रीराम कभी काकुत्स्थ, कभी इक्ष्वाकु तो कभी राघव कहलाते हैं) को अपनी सबल उपस्थिति सदैव रखनी होती थी।
भीष्मेण शास्त्रतो राजन्सर्वतः परिरक्षिते । बभूव रमणीयश्च चैत्ययूपशताङ्कितः ॥ स देशः परराष्ट्राणि प्रतिगृह्याभिवर्धितः । भीष्मेण विहितं राष्ट्रे धर्मचक्रमवर्तत ॥ क्रियमाणेषु कृत्येषु कुमाराणां महात्मनाम् ॥ पौरजानपदाः सर्वे बभूवुः सततोत्सवाः ॥ गृहेषु कुरुमुख्यानां पौराणां च नराधिप ॥
पौरजानपदा: पर ध्यान दें तथा धर्मचक्र पर भी। पाण्डु का अल्पजीवन हस्तिनापुर के धृतराष्ट्र-शकुनि युति के षड्यंत्रों से किनारा कर कुरुओं की बढ़ी चढ़ी महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने में बीत गया।
पाण्डुर्धनुषि विक्रान्तो नरेभ्योऽभ्यधिकोऽभवत् । अत्यन्यान्बलवानासीद्धृतराष्ट्रो महीपतिः ॥ त्रिषु लोकेषु न त्वासीत्कश्चिद्विदुरसंमितः । धर्मनित्यस्ततो राजन्धर्मे च परमं गतः ॥
शिक्षा दीक्षा समाप्त हुई तो पाण्डु महान धनुर्धारी सिद्ध हुये, धृतराष्ट्र दैहिक बल में बढ़े चढ़े तो विदुर जैसा राजधर्म व नीतिविशारद तीनों लोकों में कोई नहीं था।
हस्तिनापुर को और क्या चाहिये था? किंतु सत्ता की चतुरङ्ग चालें कहाँ सब ठीक रहने देती हैं!
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महाभारत की कहानियाँ मोटा मोटी बहुतों को ज्ञात हैं , विकृतियाँ भी बहुत हैं तथा अभी चल रहे महाभारत के कारण अधकचरे व विकृत अनुमानों की भरमार है। इस कारण यह लेख आवश्यक लगा । अब सम्राट दु:षन्त व भरत से ही आगे बढ़ेंगे।
आर्य आप इसे पूर्ण करें।
जवाब देंहटाएंनियोग पर लेख की प्रतीक्षा रहेगी। पुराणपंथियों ने बहुत भ्रम फैला रखा है।
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