क्षमा करिए,सुबह मुझे आँसू भरी लग रही है।
क्षमा करिए मैं क्षोभग्रस्त हूँ।
क्षमा करिए मुझे निरपेक्ष प्रशांत बौद्धिकता से घृणा हो रही है।
क्षमा करिए अपनी सुविधाजीवी नपुंसक मनोवृत्ति के तले मैं स्यापा कर रहा हूँ।
क्षमा करिए मैं साम्प्रदायिक हूँ।
क्षमा करिए मुझे मानवाधिकार सिर्फ जुमला लग रहा है।
क्षमा करिए मैं यह मान बैठा हूँ कि आप को अंग्रेजी आती ही है।
क्षमा करिए आज अंग्रेजी ब्लॉग का यह लिंक दे रहा हूँ।
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Roots In Kashmir
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आप जैसे भी हैं कथित मानवाधिकारवादियों और सेक्यूलर लोगों से हज़ार नही लाख,नही नही करोड़ो गुना अच्छे हैं।हम जैसे सैकड़ो लोग आपके साथ हैं और आप जैसे ही हैं।आभार कश्मीर की हक़ीक़त बयां करती रिपोर्ट पढने का मौका देने का।यासीन और उस जैसो को बुलाने और बोलने का मौका देने वालो पर सिर्फ़ तरस ही खाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंइन बिचौलियों की वजह से ही बहुत सी समस्याएं सुधरने की जगह नासूर बन गई हैं।
जवाब देंहटाएंहालात और बिगाडे जायेंगे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
क्षमा करिये, मुझे शर्म आती है कि कैसे हैं मेरे देश के विद्वतजन और कैसी है तुष्टीकरण की राजनीति।
जवाब देंहटाएंअच्छी नियत से किया गया कोई भी काम बुरा नहीं होता गिरिजेश जी, फिर इसमें क्षमा की क्या बात है।
जवाब देंहटाएंवैसे अच्छा होता कि आप क्षमा मांगने के बजाए इस पर खुले मन से अपने विचार भी रखते।
आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सेक्यूलर का अर्थ हो गया है उनका समर्थन जो देश के विरोधी हैं. इसके पीछे विचारों का खोखलापन तो होता ही है, प्रचार पाने की इच्छा भी होती है. जो जितना नोटोरियस होगा उसके साथ रहने में उतना ही प्रचार होगा.
जवाब देंहटाएंअगर आप साम्प्रदायिक हैं तो मुझे साम्प्रदायिकता अच्छी लगती है ।
जवाब देंहटाएंलिंक का आभार ।
पर्युषन दिवस की बधाई:) इस दिन ही जैन लोग क्षमा दान मांगते है॥....पर आज तो ऐसा पर्व होने की सूचना तो नहीं है!!!!!
जवाब देंहटाएंक्षमा कर देते. पर क्या अपराधी को उसी अपराध के लिए किसी और को क्षमा करने का अधिकार है?
जवाब देंहटाएंक्षमा योग्य सचमुच नहीं हैं हम -जो कुछ हो रहा है सभी तो आँखें मूंदे बैठे हैं !
जवाब देंहटाएंपचास साल बाद देश की तस्वीर का खाका खीचने की कोशिश करे तो ...भय सा लगता है
जवाब देंहटाएंहमारी हालत उस कबूतर जैसी हो गई है जो बिल्ली को आता देख अपनी आँखें मूँद लेता है.
जवाब देंहटाएंआज हमारी हालत वैसी ही है जैसे ईस्ट इंडिया कम्पनी एक एक कदम बढा रही थी और हमारे नवाब उन्हे तोहफ़े पर तोहफ़े बक्श रहे थे, जागीर बाँट रहे थे...नतीजा क्या हुआ?
हालात अच्छे नही हैं.कब तक झूठी सेक्यूलरिज़्म के बहकावे में आते रहेंगे? क्या अगला पक्ष भी सेक्यूलरिज़्म को मानता है ? नही, कभी नही. तो हम क्या करें? कब तक झूठ के सहारे जिएँ? अब तो ज़रूर हमें जागना होगा. एक जुट होना होगा वर्ना एक और पाकिस्तान ?????
आप द्वारा दिए गए लिंक पर उपलब्ध अँग्रेज़ी पोस्टर अपने ब्लॉग पर दे रही हूँ जिसे पढ कर आँसू आ गए.
यहां पर हारने वाले की जानिब कौन देखेगा
जवाब देंहटाएंसिकन्दर का इलाका है यहां पोरस नहीं चलता।
दरिन्दे ही दरिन्दे हो तो किसको कौन देखेगा
जहां जंगल ही जंगल हो वहां सरकस नहीं चलता।
अफसोसजनक/ दुखद!!
जवाब देंहटाएंक्षमा किया....................क्या लिंक दे दिया,
जवाब देंहटाएंपढ्कर आ गया हूँ और सच्चाई भी पता है । कश्मीर मे मेरे एक कवि मित्र है ..अग्निशेखर जो खुद शरणार्थी है और लगातार इन सब पर लिख रहे है .. उन्ही के संग्रह " जवाहर टनल" से उनकी एक कविता का यह अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएं.खुला था आसमान सुरंग से बाहर
और
हम उतरे पर्वतों से शरणार्थी कैम्पों में
फैल गये सम्विधान के फफोले तम्बुओं मे
बिलबिलाये कीड़ो की तरह
जुलूसो में
धरनो में
हम उछले नारों में
दब गये अत्याचारों में ....
गिरिजेश जी ,
जवाब देंहटाएंआज कहने को कुछ नहीं है......सोचने को बहुत कुछ है ...और करने को उससे भी ज्यादा ..
कुछ कहें इससे पहले ही हम साम्प्रदायिक होने को तैयार हैं?
जवाब देंहटाएंकैसी है तुष्टीकरण की राजनीति??
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी ये तो दृश्य है बाकि तो दर्द अभी और भी है।
जवाब देंहटाएंदेश मे सेक्यूलर की परिभाषा कब तक ऐसी दी जाती रहेगी ?