"मेरी
सोगवार माँ, भाइयों, बहनों और अजीजों !
यह खत जब तुम्हारे हाथ में पहुँचेगा तब न मालूम तुम्हारा हाल क्या होगा। न मालूम उस वक्त मैं जिन्दा या राही-ए-अदम हो चुका होउँगा। मुझे पूरा इतमिनान है कि जेल के हुक्काम यह खत जरूर रवाना कर देंगे। जबकि यह मरने वाले की ख्वाहिश है। बहरहाल मैं लिख रहा हूँ, अब खुदा आलिम है कि क्या हो।
खैर, आखिरी हुक्म आ गया है, अब दो-एक रोज के मेहमान हैं। इसमें कोई शक नहीं कि मैं तख्त-ए-मौत पर खड़ा हुआ यह खत लिख रहा हूँ, मगर मैं मुतमइन व खुश हूँ कि मालिक की मर्जी इसी में थी।
बड़ा खुशकिस्मत है वह इंसान जो कुर्बान गाहे वतन पर कुर्बान हो जाए। गो कि यह फिकरा जिस स्पिरिट के साथ मैं लिख रहा हूँ वह आप लोगों में नहीं है।
यूँ आप को तकलीफ महसूस होगी।
मेरी गजलियात मकान पर मौजूद होंगी। वह आज से बहुत पहले की लिखी हुई हैं, उनको पेशीनगोई समझिएगा और वैसा ही होना था जो कलम से निकला।
मेरे सुकून की वजह मेरी बेगुनाही है और यकीन रखिए कि अशफाक का दामन इंसानी खून के धब्बों से पाक साफ है। "
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यह खत जब तुम्हारे हाथ में पहुँचेगा तब न मालूम तुम्हारा हाल क्या होगा। न मालूम उस वक्त मैं जिन्दा या राही-ए-अदम हो चुका होउँगा। मुझे पूरा इतमिनान है कि जेल के हुक्काम यह खत जरूर रवाना कर देंगे। जबकि यह मरने वाले की ख्वाहिश है। बहरहाल मैं लिख रहा हूँ, अब खुदा आलिम है कि क्या हो।
खैर, आखिरी हुक्म आ गया है, अब दो-एक रोज के मेहमान हैं। इसमें कोई शक नहीं कि मैं तख्त-ए-मौत पर खड़ा हुआ यह खत लिख रहा हूँ, मगर मैं मुतमइन व खुश हूँ कि मालिक की मर्जी इसी में थी।
बड़ा खुशकिस्मत है वह इंसान जो कुर्बान गाहे वतन पर कुर्बान हो जाए। गो कि यह फिकरा जिस स्पिरिट के साथ मैं लिख रहा हूँ वह आप लोगों में नहीं है।
यूँ आप को तकलीफ महसूस होगी।
मेरी गजलियात मकान पर मौजूद होंगी। वह आज से बहुत पहले की लिखी हुई हैं, उनको पेशीनगोई समझिएगा और वैसा ही होना था जो कलम से निकला।
मेरे सुकून की वजह मेरी बेगुनाही है और यकीन रखिए कि अशफाक का दामन इंसानी खून के धब्बों से पाक साफ है। "
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यह आखिरी खत है भारत भू के अमर सपूत क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खाँ वारसी का जिन्हें 27 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश
साम्राज्यवादी सत्ता ने काकोरी ट्रेन डकैती और हत्या के अभियोग में 19 दिसम्बर 1927 को फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया
था।
आज नमन और श्रद्धांजलि ।
मृत्यु के साये में भी 'अपने शब्दों' से इतना जुड़ाव, उनकी इतनी फिक्र ! सचमुच हममें वह स्पिरिट नहीं है।
जाने क्यों आँखें नम हो रही हैं ...
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मृत्यु के साये में भी 'अपने शब्दों' से इतना जुड़ाव, उनकी इतनी फिक्र ! सचमुच हममें वह स्पिरिट नहीं है।
जाने क्यों आँखें नम हो रही हैं ...
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आभार अमर उजाला उनकी याद दिलाने के लिए।
नमन और श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंसच में मेरी भी आँखें नाम हो रही हैं.... ऐसी स्पिरिट नहीं है...... हम में...
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट ने आँखें खोल दी हैं..... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
नमन और श्रद्धांजलि.......
अशफाक उल्ला खाँ वारसी जी को विनम्र श्रद्धाँजली। धन्यवाद उनकी याद दिलाने के लिये।
जवाब देंहटाएंहां पहले अमर उजाला फ़िर आपकी पोस्ट ने याद दिलाया और साबित कर दिया कि हम सच में क्रत्घ्न हो गए हैं । आपका बहुत बहुत आभार उन्हें याद करने और करवाने के लिए ..
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"बड़ा खुशकिस्मत है वह इंसान जो कुर्बान गाहे वतन पर कुर्बान हो जाए।"
यकीनन बहुत ही खुशकिस्मत थे भारत भू के अमर सपूत क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खाँ वारसी...
उस अमर शहीद और भारत-भाल के तिलक को सादर नमन और श्रद्धांजलि... जाने क्यों खुद-ब-खुद आंसू गिरने लगे हैं... यह टाईप करते करते...
नमन करता हूं। इस महान शख्स के जज्बे को। फिक्रा बिल्कुल दुरुस्त है।
जवाब देंहटाएंकैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'
याद दिलाने का शुक्रिया.और हमारी इस कृतघ्नता की कोई मुआफी नहीं.
जवाब देंहटाएंसच मे वो स्पिरिट हममे नही है।श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं भारत माता के उस सच्चे सपूत को।
जवाब देंहटाएंये स्पिरिट तो हम लैक करते ही हैं...निसचित रूप से...!
जवाब देंहटाएंनमन !
जवाब देंहटाएंदेश के महान सपूत की याद दिलाने का आभार।
जवाब देंहटाएंवाकई वैसी स्पिरिट आजके लोगों में होती, तो फिर क्या बात होती।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
सच ऐसा जज़्बा अब किसी में कहाँ....विनम्र श्रधांजलि इस भारत माँ के सपूत को
जवाब देंहटाएंअशफाक उल्ला खाँ के इस आखिरी खत से परिचय करवाने का बहुत-बहुत शुक्रिया गिरिजेश जी। हम तो वंचित ही रह जाते इस धरोहर से वर्ना।
जवाब देंहटाएंलंठ महाचर्चा पूरी पढ़ ली पिछले लिंक समेत। कुछ समझ में नहीं आया कि क्या लिखूं। आपकी लेखनी, आपका ज्ञान हैरान करता है।
नमन और श्रद्धांजलि......
जवाब देंहटाएंलीक से हट कर लिखे इस लेख के जरिये, अशफाकउल्ला खान की शहादत याद दिलाने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंअशफाक जी पर आपको पढ़ते हुए मुझे जी.आई.सी. फैजाबाद के
जवाब देंहटाएंपास का जेल-परिसर याद आया , जहाँ हम लोग इंटर करते हुए
१९ दिस. को होने वाले कार्यक्रम में शामिल होते थे ..
हाँ , इस पत्र से अपरचित था , इसलिए .......... आभार !
अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ को नमन!
जवाब देंहटाएंनमन और श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंयक़ीनन.कई बार सोचता हूं ऐसा कौन सा ज़ज्बा था उन लोगो में...... ऐसी कौन सी ताकत थी ...जनून था...इस देश के आधे बच्चे वेलेंटाइन दे .फादर्स दे ...मदर्स दे जानते है .पर भगत सिंह का न उन्हें जन्म मालूम होगा न शहीदी दिवस...तो तरक्की के साथ क्या भूलना जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंकिस इमानदारी से स्वीकार करे कि यह स्पिरिट सचमुच अब किसी में नहीं है ...खुद हम में भी नहीं ....
जवाब देंहटाएंउस अमर वीर को श्रद्धांजलि ....!!
शहीद आशफाकुल्लाह को हार्दिक श्रद्धाञ्जलि। आपको इस भावुक कर देने वाली पोस्ट के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रधांजलि इस भारत माँ के सपूत को
जवाब देंहटाएंदुर्लभ पत्र ! उस त्वरा को महसूस रहा हूँ, जो फाँसी के फंदे तक विद्यमान थी, वह आत्मविश्वास देख रहा हूँ, जिसने अपने कर्म को प्रतिष्ठायुत किया है, और वह शान्ति देख रहा हूँ, जो किसी पुनीत कर्म-फल पर मिला करती है ।
जवाब देंहटाएंआभार प्रस्तुति का ।
अमर सपूत क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खाँ वारसी को नमन एवं श्रृद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंपत्र पढ़वाने का आभार. सहेजने योग्य!
नमन और श्रद्धांजलि.......
जवाब देंहटाएंआपके प्रति कृतज्ञ हैं कि आपने इस नायाब खत को हमारे सामने रखा ...... हमें इन शहीदों के जीवन से बहुत कुछ सीखना होगा....वरना अंत निकट है...ईश्वर हमें शक्ति देना.....
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद गिरिजेश, एक आदमी ब्लॉगर पर अशफ़ाक़ को याद कर रहा है,
अच्छा लगा ! इनका ऋण क्या कभी हम चुका भी पायेंगे ?
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंक्षमा करना मित्र, पिछली टिप्पणी में सँबोधन कुछ अनौपचारिक हो गया है ।
बिस्मिल अशफ़ाक़ लाहिड़ी को याद किया जाना भला लग रहा है !
कृत्तज्ञ हूँ कि लोग उन्हें भूलते भूलते भी अचानक याद कर लेते हैं !
अमर शहीद अशफ़ाक उल्ला खान को सलाम .
जवाब देंहटाएंमानता हूं कि वो स्पिरिट तो नहीं है.. लेकिन कुछ बाकी है.. इसी उम्मीद से चलता जा रहा हूं कि बदलाव की सूरत बनेगी...
जवाब देंहटाएंतब तक...
ब्लॉगिंग के सशक्त माध्यम बन जाने के बाद अब ऐसा कभी नहीं होगा कि हम भारत मां के अमर सपूतों को भूल जाएं...अशफ़ाक साहब को सैल्यूट...अमर उजाला और गिरिजेश जी का आभार...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
अशफाक उल्ला खाँ वारसी जी को विनम्र श्रद्धाँजली;
जवाब देंहटाएंsach ham sab unako yad n kar sake naman
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही .. नमन और श्रद्धांजलि !!
जवाब देंहटाएंNaman unko jinhone us waqt jaan de desh ke liye..jis waqt aadha hindsutan so raha thaa....
जवाब देंहटाएंAshfaq ko me kabhi bhoola nahi...Bismil hamri rago me hai...Lahri ke liye desh aage tha....
Agar hum bhoole to yeh humari kamjorri hai....Sharam aani hi chaahiye hume....agar hum apni aanne wali naslo ko inse waqif nahi karate hai..
अमर क्रन्तिकारी अशफाक उल्ला खाँ वारसी को श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंसच मे मनन करने वाला पत्र
शहीद अशफ़ाकउल्ला को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंश्रधांजलि !!!
जवाब देंहटाएंअमर क्रन्तिकारी अशफाक उल्ला खाँ वारसी को श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंयदि किसी फिल्मी हस्ती का जन्म दिन हो या बरसी, टीवी अखबार सब सुबह से शाम तक हमें उनकी महिमा बताते रहते हैं. और सचमुच की महान विभूतियां हमें न याद आती हैं और न कोई याद दिलाता है.
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि!
यदि मैं सही हूं तो फांसी तो बिस्मिल को भी हुयी थी उसी दिन. उनको भी श्रद्धा सुमन.
जवाब देंहटाएंउनकी यही स्पिरिट तो उन्हें औरों से अलग करती है...
जवाब देंहटाएंपर...
‘मृत्यु के साये में भी 'अपने शब्दों' से इतना जुड़ाव, उनकी इतनी फिक्र ! सचमुच हममें वह स्पिरिट नहीं है।’
उस स्पिरिट को यह वाक्य सिर्फ़ ‘अपने’ शब्दों से जुड़ाव और फ़िक्र...तक ही समेट कर...
हल्का तो नहीं कर रहा ना?
ऐसा तो नहीं ही होगा....
आभार!!
@ पंकज जी,
जवाब देंहटाएंहक़ीकत तो यह है कि मुझे इनकी बलिदान तिथि नहीं याद थी। अमर उजाला ने याद दिलाया। हाँ, बिस्मिल और राजेन्द्र लाहिड़ी का बलिदान साथ ही/आसपास हुआ था, यह मालूम था। जिस पंक्ति को मैंने शीर्षक बनाया है, वह बहुत अर्थवान है - आज भी, ब्लॉगरी के सन्दर्भ में भी। मैं डायलूसन नहीं चाहता था इसलिए अशफाक पर ही केन्द्रित रहा। अशफाक पर केन्द्रित रहने का कारण कहीं विश्वास भी था कि बाकी ब्लॉगर बिस्मिल, लाहिड़ी और अन्य बलिदानियों पर लिखेंगे। ऐसा हुआ भी लेकिन काफी बिलंब से। मतलब सब भूले हुए थे। ... हिन्दी अखबारों को धन्यवाद दे रहा हूँ कि उन्हों ने यादें सजोई रखी हैं।
@ रवि कुमार जी
सत्य के कई पक्ष होते हैं। एक पक्ष को ही प्रस्तुत करने का अर्थ दूसरों को हल्का करना नहीं समझा जाना चाहिए।
डॉ अनुराग जी से शत प्रतिशत सहमति।
जवाब देंहटाएंओह! किस मिट्टी के बने थे ये लोग!
जवाब देंहटाएंनमन !!!
जवाब देंहटाएंनमन !
जवाब देंहटाएंदेश के बहादुर सिपाही को नमन करता हूँ .....
जवाब देंहटाएं@ मेरे सुकून की वजह मेरी बेगुनाही है और यकीन रखिए कि अशफाक का दामन इंसानी खून के धब्बों से पाक साफ है।
जवाब देंहटाएं- जान लेने वाले नहीं, देश के लिए सर्वस्व देने वाले थे ये महानुभाव! उस जज़्बे को नमन जिसे पाना तो दूर समझ पाना भी आसान नहीं है! लंबे समय बाद आज फिर यह पोस्ट पढ़ी, गर्व से सीना चौड़ा हो गया!
pranam unhe
जवाब देंहटाएंकैसे लोग थे वे ...........नमन !
जवाब देंहटाएंउस स्पिरिट को जगाये रखना आज भी ज़रूरी है...
जवाब देंहटाएं