शनिवार, 17 अक्टूबर 2009

दिवाली की पाती- अम्माँ के नाम


. . . अम्माँ, आज जब तुम दिया जलाओगी तो मुझे पता है कि आंसुओं को रोके रखोगी। दो बेटे, बहुएँ, नतिनियाँ और पोते लेकिन बरम बाबा के बगल का गँवारू मकान सूना रहेगा। अकेले पिताजी से इधर उधर की बातें कर अपना और उनका मन बहलाओगी। मुझे पता है अम्माँ कि त्यौहार के दिन रोना अच्छा नहीं होता - तुमसे ही सीखा है। इसीलिए आज तुम आँख नम नहीं करोगी।
 मुझे पता है अम्माँ कि कल दलिद्दर खेदते वक्त तुमने जब सूपा खटकाया होगा तो मन ही मन गाजियाबाद और लखनऊ के घरों से भी दु:ख दलिद्दर खेद दिया होगा। नए जमाने की बहुएँ और बीबियों के गुलाम बेटों को इन रस्मो रिवाजों से क्या मतलब? एक क्षण के लिए तुम्हारे मन में ये बात आई होगी लेकिन झट तुमने खुद को धिक्कारा होगा और धर्मसमधा की दुर्गा माई से लेकर गाँव की हठ्ठी माई तक उन घरों की मंगल कामना के लिए कपूर और जेवनार भाखा होगा। मुझे पता है अम्माँ।
 अम्माँ  दियों को धोने के बाद सुखाते समय तुम सोच रही होगी कि रोशनी के इस त्यौहार में डूबते सूरज सरीखे बूढ़ों का क्या काम ? लेकिन फिर मन मार कर तुम पाँच कच्चे दियों में गंगा, यमुना और जाने कितनों के लिए शुभ के घी दीपक बारोगी।
 मुझे याद है अम्माँ दिए में तेल भरते तुम सिखाती रहती थी जाने कितनी बातें जो तुम्हारे हिसाब से लड़कियों को जानना जरूरी था। तुम्हारी कोई बेटी न थी सो बेटों को ही यह सब सिखा कर संतोष कर लेती थी। तुम्हारे बेटे नालायक निकले अम्माँ क्या करोगी ? उन्हें कुछ याद नहीं रहा।
 अम्माँ, तुम्हारी एक बात याद है कि दिये की लौ पूरब की तरफ होनी चाहिए। मैंने अपनी बीबी को बता दिया है, बच्चे भी जानते हैं – बस उन्हें बताना पड़ता है अम्माँ कि पूरब किधर है !
 अम्माँ, मुझे याद है घर की हर महत्त्वपूर्ण चीज पर दिया रखना – जाँता, ढेंका, चूल्हा, बखार, नाद, खूँटा, घूरा, इनार, नीम .... अम्माँ ! मुझे पता है कि कितनी सहजता से तुमने बदलावों को अपनाया है। जाँता की जगह मिक्सी, चूल्हे की जगह गैस स्टोव, बखार की जगह टिन का ड्रम ....
ढेंका, नाद, खूँटा, इनार ..सब अगल बगल रहते हुए भी खो गए अम्माँ! आज इन्हें कोई नहीं पूछता लेकिन मिक्सी, गैस स्टोव और ड्रम के साथ खो चुके निशानों पर भी आज तुम दिया जरूर बारोगी। अम्माँ मुझे पता है।
 बगल के बरम बाबा का अस्थान टूट चुका है। गढ्ढा हो गया है वहाँ। मुझे पता है कि तुम्हें ‘नरेगा’ नाम नहीं मालूम लेकिन ये पता है कि गाँव में खूब पैसा आ रहा है और लूट खसोट मची है। आज बरम बाबा के अस्थान दिया बारते तुम एक क्षण नासपीटों को कोसोगी कि मुए यहाँ तो मिट्टी पटवा देते, फिर राम राम कहोगी। त्यौहार के दिन बद् दुआ? अरे सभी फलें फूलें! अम्माँ एक बार फिर तुम गाँव के सारे देवी देवताओं को गोहराओगी। मुझे मालूम है अम्माँ।
 काली माई के अस्थान पानी भरा है। नवेलियाँ नहीं जाएँगी वहाँ लेकिन कोसते हुए भी तुम किसी लौण्डे को पकड़ कर वहाँ दिया जरूर रखवाओगी। अम्माँ, मुझे पता है।
 परम्परा से ही हठ्ठी माई का अस्थान पट्टीदार के घर में है। आज वहाँ तुम जब दिया जलाने जाओगी तो वह दिन याद करोगी जब बहुरिया बन उस घर में उतरी थी। तब बंटवारा नहीं हुआ था और सात सात भाइयों वाला आँगन कितना गुलजार रहता था ! अम्माँ तुम याद करोगी कि हठ्ठी माई वाले कोठार में तुम कितनी सफाई रखती थी ! आज उस घर की औरतों के फूहड़पने को कोसोगी, और एकाध को खाने भर को झाड़ दोगी, फिर जुट जाओगी सलाना सफाई में – जल्दी जल्दी।
 दिया बार कर चुप चाप अपने घर जब वापस आओगी तो पिताजी को ओसारे में उदास बैठा पाओगी – मेरा इतना बड़ा परिवार और आज कोई नहीं यहाँ ! पिताजी भावुक हो कहेंगे और तुम समझाओगी कि नये बसे घरों में दिवाली के दिन घर की लक्ष्मी को वहीं रहना होता है नहीं तो दिवाला पिट जाता है। दशहरे में ही तो आए थे सभी!  और फिर बच्चों की पढ़ाई, आने जाने का खर्च, छुट्टी . . . जाने कितनी बातें तुम ऐसे बताओगी जैसे उन्हें मालूम ही नहीं ! मुझे पता है अम्माँ !
और फिर घर के भीतर चली जाओगी क्यों कि तुम्हारी सिखावन को भुला कर आँसू ढलक आए होंगे और तुम्हें उन्हें एकांत में पोंछना होगा !
 अम्माँ! मुझे पता है कि घर से बाहर तुम पूजा का प्रसाद और दिया वाली थाली लेकर ही निकलोगी। पूरे दुआर पर पिताजी से जगह जगह दिये रखवाओगी। उन्हें काम में उलझाए रखोगी। दिल के मरीज का बहुत खयाल रखना पड़ता है। अम्माँ, मुझे पता है।
 सबके घर परदेसी बेटे बहुएँ कमा कर आए होंगे। गाँव गुलजार होगा और तुम्हारा घर उदास होगा। अम्माँ कहीं मन के किसी कोने में तुम सोचोगी कि बच्चे अब दशहरे में गाँव क्यों नहीं आते? तुम्हें समझ भले न आए अम्माँ लेकिन इस पाती में मैं समझाता हूँ।
अम्माँ अब गाँव बदल गया है। बताओ अम्माँ अष्टमी के दिन अब कीर्तन क्यों नहीं होता? होली के दिन लोग फगुआ क्यों नहीं गाते ? लोगों में अब प्रेम नहीं रहा सो दशहरे का मिलना जुलना बस दिखावा और लीक पीटना रह गया है। दिवाली में आना तो बस बहाना है अम्माँ, उन्हें अपना नया कमाया धन चमकाना है, लुटाना है और फिर चले जाना है एक साल के लिए ...
अम्माँ ! तुम्हारे राम लक्ष्मी मइया से हार गए। अब दशहरे के दिन जवान गाँव नहीं आएँगे। . . . .
   

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।
    जाते जाते यह पूछे बिना रहा नहीं जा रहा कि यार, आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी है कि आप लोगों में से कोई भी आज के दिन उन के पास नहीं है.....मैं भी दोस्त बहुत बार सोचा करता हूं कि पेड़ को हम ने पकड़ रखा है या इस ने हमें जकड़ रखा है।
    वैसे कहते हैं ना किसी की पाती पढ़नी तो नहीं चाहिये और वह भी तब जब किसी लाचार बेटे ने अपनी अम्मा के साथ अपना दिल खोला हो, लेकिन आप की यह चिट्ठी पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा----बहुत ही अच्छा लगा कि आपने तो अपने लड़कपन की सब छोटी छोटी मासूम यादें अपनी अम्मा से बांट लीं।
    वैसे लखनऊ से आप की माताश्री का घर कितनी दूरी है ? --- क्या आज के दिन वे सचमुच अकेले होंगे?
    मुझे आप की चिट्ठी पढ़ कर यह ध्यान भी आया कि यह कमबख्त टैक्नोलॉजी भी क्या चीज़ है--- आप ने इतना बढ़िया खत अपनी अम्मा को लिखा---जिन्हें नहीं पढ़ना चाहिये था, मेरे जैसे उन सब ने तो पढ़ लिया --- लेकिन जिस देवी के लिये यह था, वह ही इसे पढ़ने से वंचित रह गई होंगी.
    एक निवेदन ---या तो इस सुंदर पाती का एक प्रिंटआउट लेकर उन्हें डाक से भेजें और जब भी गांव जायें तो भी इस की एक हार्ड-कापी उन के हाथ में थमाईयेगा।
    आप को एवं आप के समस्त परिवार को दीपाली की बहुत बहुत शुभकामनायें ----अपने अम्मा-बाबा को भी मिलने पर हमारी ढ़ेरों शुभकामनायें भेंट करियेगा।
    बस, अब यहीं पर आपसे क्षमा चाहूंगा ---वरना आप कहने लगेंगे कि यार, तुम तो पीछे ही पढ़ गये हो।

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  2. रुला गये भाई !
    दुःखती रग पर हांथ रख दिया ।
    हां अब अम्मा दादी अम्मा हो गयी ।
    मेरी मां जब आयी बहू बन कर
    तब से अब तक कायम हैं परंपराये
    और आज कि बहुएं इसे कैसे निभायें
    रोकता हूं मै भी उसे रोने से
    जब से दिवाली बिना पिता के मनी है
    हां पिता जी के न होने पर
    दीपावली के दिन शेयर करती है
    अर्द्धरात्रि के बाद
    अपनी यादों को
    रूंधे गले के साथ
    कोशिश होती है
    ऐसे समय में जरूर
    साथ रहूं उसके ।

    हां ! बधाई देना भूल गया
    शुभ दीपावली !

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  3. बधाई, तुमने तो घर-घर की आती लिख डाली इस एक पाती में.
    ============================================
    साल की सबसे अंधेरी रात में
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    झटकें सभी तकरार ज्यों आयी-गयी

    =======================
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    =======================

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  4. भावुक करती अभिव्यक्ति!!

    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    सादर

    -समीर लाल 'समीर'

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  5. आपने तो वाकई भावुक कर दिया। आँखें बरबस पगहा तुड़ा रही हैं। अपने गाँव पहुँच गया मैं भी। परुआ-परुई जागने के बाद दलिद्दर खेद कर जब सभी गृहिणियाँ घर लौटती हैं तो मेरे आँगन में इकठ्ठा होकर कोई खास पूजा होती है। आस पड़ोस की चाची, ताई, फूआ, काकी आदि भी आती हैं और अन्त में अम्मा पाँच कथाएं सुनाती हैं। बचपन में उन कथाओं को सुनने की लालच में मैं भी भोर में जग जाता था।

    अब तो सब सपना हो गया। वो कथाएं अब भी होती हैं मेरे घर। हम सुन नहीं पाते।

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  6. मैं तो पहले ही तय कर चुका था कि आपकी ये पाती नहीं पढूंगा क्योंकि आप आज रुलाए बिना मानेंगे नहीं..मेरी स्थिति तो अधिक कष्टकारक है माता जी इसी वर्ष छोड कर चली गयी..गांव की दीवाली से तो जैसे नाता टूट ही गया। यहां शहरों में जो मनाया जाता है ..वो पर्व सा नहीं लगता। । मन भारी है सो ज्यादा नहीं कहूंगा जब भी अपनी माता जी के पांव छुएं तो मेरी तरफ़ से भी चरण स्पर्श कर लिजीयेगा।

    शेष फ़िर कभी..दीपावली की शुभकामना।

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  7. भइया, दीपावली पर जितना ब्लॉग में अभी तक पढ़ा, ई बेस्ट लगा। हम सब त मॉडर्न हो गए हैं न, तो अम्मां, त गांवे में है, और हम इहां, महानगर में हैं, दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन करेंगे न। सो मां को तो फोने, एसएमएस होगा। हां, छठ में चले जाएंगे, मिलने, पर ई लक्ष्मी के पर्व पर कौन रिस्क ले। अगर लक्ष्मी मैया नाराज़ हो गइन, त बंटाधार न हो जाएगा। अब मां की तो उमर बीतती जा रही है, उसको लक्ष्मी से उतना का मतलब। हमारा तो बहुते बाकी है। इसीलिए
    ... जय लछमी मैया की!!!

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  8. इस दीपावली में प्यार के ऐसे दीए जलाए

    जिसमें सारे बैर-पूर्वाग्रह मिट जाए

    हिन्दी ब्लाग जगत इतना ऊपर जाए

    सारी दुनिया उसके लिए छोटी पड़ जाए

    चलो आज प्यार से जीने की कसम खाए

    और सारे गिले-शिकवे भूल जाए

    सभी को दीप पर्व की मीठी-मीठी बधाई

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  9. अत्यन्त मार्मिक

    हृदयस्पर्शी आलेख...........

    ख़ूब लिखा जी

    आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की

    हार्दिक बधाइयां

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  10. नि:शब्द है


    वो सुकून
    जो मिलता है माँ की गोद मे
    सर रख कर सोने मे
    वो अश्रु जो बहते है
    माँ के सीने से चिपक कर रोने मे
    वो भाव जो बह जाते है
    अपने ही आप
    वो शान्ति जब होता है ममता से मिलाप
    वो सुख जो हर लेता है
    सारी पीडा और उलझन
    वो आनन्द जिसमे स्वच्छ हो जाता है मन ....................................................... ...................................माँ रास्तो की दूरियाँ
    फिर भी तुम हरदम पास
    जब भी मै कभी हुआ उदास
    न जाने कैसे?
    समझे तुमने मेरे जजबात
    करवाया हर पल अपना अहसास
    और याद हर वो बात दिलाई
    जब मुझे दी थी घर से विदाई
    तेरा हर शब्द गूँजता है कानो मे
    सन्गीत बनकर
    जब हुई जरा सी भी दुविधा
    दिया साथ तुमने मीत बनकर
    दुनिया तो बहुत देखी
    पर तुम जैसा कोई न देखा
    तुम माँ हो मेरी कितनी अच्छी
    मेरी भाग्य-रेखा
    पर तरस गया हूँ
    तेरी उँगलिओ के स्पर्श को
    जो चलती थी मेरे बालो मे
    तेरा वो चुम्बन
    जो अकसर करती थी तुम मेरे गालो पे
    वो स्वादिष्ट पकवान
    जिसका स्वाद
    नही पहचाना मैने इतने सालो मे
    वो दूध का गिलास जो लेकर आती तुम मेरे पास मैने पिया कभी आँखे बन्द कर
    कभी गिराया तेरी आँखे चुराकर
    आज कोई नही पूछता ऐसे ???????????????????
    तुम मुझे कभी प्यार से कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे!!!!!!


    धिक्कार है.....हमारे नाकारेपन पर!!!!!!!!!
    चंद पंक्तियां मेरी भी-

    झरना जो बह रहा है
    आज आंखों से,
    मां....तुम भी कभी
    शायद न देख सको........


    बहुत ही भावप्रवण लिखा है..........

    साधुवाद!

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  11. गिरिजेश जी ,
    भाग्य ही है की इस दीवाली में माँ के साथ हूँ . वर्ना यह दर्द तो हम आप जैसों की किस्मत ही बन गया है .आँखें नम हैं पढ़ कर . और क्या कहूं .
    दीप पर्व की बधाई .

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  12. यार ये इतनी आसान पोस्ट नहीं है कि भावुकता भरी लिख दिया और काम चल गया.
    सोचा था आज दिवाली के दिन टिप्पणी वगैरह नहीं हो पाएगी पर यहाँ रोकना ज़रा मुश्किल है.एक मां को चिट्ठी के बहाने आपने सब कुछ -हमारे लौकिक प्रतीक,परम्पराएं जो शास्त्रीय से हर बार भारी पड़ती है- सबको जिंदा कर दिया है.मां तो आखिर मां है.उदास ज़रूर रहेगी पर आकुल उतनी ही,चाहे आप पास रहें या थोड़े दूर.
    कायदे सरीखा लिख नहीं पा रहा हूँ पर बात आपकी पोस्ट वाली ही है.

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  13. यूँ तो वे हमारे मन से दूर नहीं होते पर माँ पिताजी की जोर याद आई, ऐसी कि मन किया उड कर पहँच जांऊ और माँ थाली में दीपक लिये चलें और मैं उठा उठा कर रखता चलूं, वैसे ही जैसे बचपन में रखता था.

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  14. अत्यंत भावमय और भावुक कर देने वाली रचना.

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  15. बहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।

    dher sari subh kamnaye
    happy diwali

    from sanjay bhaskar
    haryana
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  16. सुन्दर। डाक्टर प्रवीन की सलाह पर अमल हुआ कि नहीं।

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  17. mujhe meri amma yaad aa gayeen ......

    deepawali kitni suni hai unke bina

    aapki mataji aur babuji ko charan sparsh ........aapke parivaar ko shubhkaamna

    sa sneh,
    - lavanya

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  18. Belated Happy deewali Bhaiya..

    Aapne to Rula hi diya..

    Mere Paas Shabd nahi hai kuch bhi likhne ko....

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  19. अम्मा कि पाती दो चार बार पढ़ चुके हैं नवम्बर में अम्मा को भी पढाई जायेगी.

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