जो आ रही है वह ब्लॉगरी प्रारम्भ करने के बाद की मेरी पहली होली होगी। छोटे समयांतराल में ही मैंने हिन्दी ब्लॉगरी को समृद्ध होते देखा है - एक से बढ़ कर एक नगीने जुड़ते रहे हैं। इस आभासी संसार में उत्सव भी तो होने चाहिए। होली आ रही है, क्यों न यहाँ भी मनाएँ ?
आप को पता ही होगा कि होलिका दहन के दिन शरीर में उबटन लगा कर उसकी झिल्ली (छुड़ाया हुआ भाग) होलिका के साथ जला दी जाती है।मंगल कामना रहती है कि घर के हर सदस्य के सारे दु:ख दर्द भस्म हो जाँय।
आप को पता ही होगा कि होलिका दहन के दिन शरीर में उबटन लगा कर उसकी झिल्ली (छुड़ाया हुआ भाग) होलिका के साथ जला दी जाती है।मंगल कामना रहती है कि घर के हर सदस्य के सारे दु:ख दर्द भस्म हो जाँय।
.. ब्लॉगरी को घर परिवार मानने से कई वस्तुनिष्ठ लोगों को आपत्ति हो सकती है लेकिन फागुन बयार शास्त्रीयता की परवाह ही कहाँ करती है ! जैसे घर के सदस्यों में होता है, मन में ढेर सारा अवसाद का कूड़ा इकठ्ठा हो गया है। कतिपय चर्चाएँ,टिप्पणियाँ और लेख आप के लिए कष्टकारी रहे होंगे। दिख ही रहा है कि बात अब न्यायालय के द्वार पहुँचाने की हो रही है। ऐसे में एक निवेदन है - उन लोगों से जो स्वार्थ वश भद्दी चर्चाएँ, लेख और टिप्पणियाँ करते, लिखते रहे हैं और उनसे भी जो इन सबसे सुलगते रहे हैं, कष्ट पाते रहे हैं - सारे छ्ल, अमंगल, दुर्वाद, कष्ट, क्रोध, आभासी संसार की होलिका में जला दें। उल्लास की नई हवा बह चले।
पुन: आपसी संवाद की बसंती बयार बह चले।
इस पुनीत कर्म के लिए एक ई मेल पता सृजित किया गया है:
स्पैम से बचने के लिए चित्र में दिखाया गया है। आप को टाइप करना पड़ेगा।
अपने सारे छ्ल, अमंगल, दुर्वाद, कष्ट, क्रोध इस पते पर भेज दें। उन्हें भेजने के साथ ही उनसे मुक्त हो जाँय। बढ़िया हो कि जिनसे कष्ट है और जिन्हें कष्ट दिया है, उन्हें मेल, फोन द्वारा - "बुरा न मानो" कह कर हँस हँसा लें।
होलिका दहन के दिन इस आभासी संसार की आभासी होली जलेगी जिसमें सारी नकारात्मक बातों, भावनाओं को भस्म कर दिया जाएगा। कृपया गालियों को होलिका दहन के दिन चौराहे पर गाने के लिए बचा कर रखें, उन्हें मेल न करें।
मेरे कविता ब्लॉग पर फाग महोत्सव जारी है। शुरुआत यहाँ से है, आगे भी रचनाएँ हैं और जारी भी रहेंगीं । आनन्द उठाते रहें - लेख, कविता, फाग गीत, बन्दिशों का भी और टिप्पणियों का भी।
Kash is holi Hindostaan me ho pata...
जवाब देंहटाएंachchha prayas..
Jai Hind...
सैल्यूट इस निर्मल प्रयोग को..!
जवाब देंहटाएंली-हो..ली-हो....हो-ली...!!!
सार्थक रंग चढ़ना स्वाभाविक है...।
जवाब देंहटाएंआभार..।
यह सही और सार्थक कदम है.
जवाब देंहटाएंइस आयोजन पर बहुत साधुवाद -मगर क्या वे मान जायेगें ?
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रयास ...विजयी भव ...!!
जवाब देंहटाएंकाश कि अबगे ....फ़ाग बिठा दे सबके गुस्से की झाग ....अईसन चढे होली का रंग और पानी ,,,बुझ जाई ई आग .........का हो बाबू ...जोगी जी सारारारा ....
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
गिरिजेश बाबू, होली के मौके पर जरा वह फटा शर्ट निकालना तो, झाड झूड कर दिजियेगा न पता चलेगा कि कोई झेंगुर सेंगुर उसमें बैठा बीटी बैंगन खा रहा हो और वो लुंगी किसलिये बचा कर रखे हैं, जरा उसे भी दो भई। फटे लुंगी, फटे शर्ट, झड चुकी पैंट ऐसे वक्त बहुत काम आते हैं :)
जवाब देंहटाएंक्या कहा ? मेरा खुद का शर्ट। अरे मेरा वाला फटा शर्ट तो पाबला जी ले गये और पाबला जी वाली शर्ट पुसदकर जी ने ले लिया है। और सुन रहा हूं कि पुसदकर जी से आप भी फटी शर्ट मागने गये थे लेकिन उसे पहले ही अनूप जी लटकाए घूम रहे हैं :)
तो ?
अब आप कुछ इंतजाम करो भई, मिल बैठ कर एकाध शर्ट का इंतजाम करो।
लो वो देखो, समीर जी तो खुद अनूप जी की लुंगी पहन कर निकल भागे हैं और महफूज जी उनके पीछे पीछे बनियान पहने भाग रहे हैं यह कहते कि मेरा जांघिया तो देते जाओ :)
फगुनाहट की आहट के बीच बुरा न मानो...होली है :)
आपकी इस सोच के लिये बहुत शुभकामनाएं. यशस्वी भव.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ऐसा ही होना चाहिए ..
जवाब देंहटाएंआपकी दिली - ख्वाहिश पूरी हो , ऐसी भगवान् से प्रार्थना है , सर्वाधिक तो मदन-देव से !
इस प्रयास की बहुत जरूरत है । धन्यवाद और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंभारत अनेक विरोधाभासी जातियों और विचारधाराओं का घर बन गया है पिच्छाले २००० वर्षों में. इस कारण सबलो खुश करना संभव नहीं है किसी भी मौलिक विचारक के लिए. यहाँ तो बस संरूपण (कनफॉर्मिज़म) ही पनपा है और पनपाया जा रहा है. यही कारण देश और नागरिकों की समस्याएँ विकराल रूप धारण करती जा रहीं हैं. इस सब के बीच होली का जश्न कितनी शोभा बढ़ा सकेगा.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक सोंच .. शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंwaah....bahut jarurat thi ese holika dahan ki....
जवाब देंहटाएंयह भी खूब रहेगी...
जवाब देंहटाएंक्या विचार है...
sab kuch to aabhasio hi ho gaya hai na to holi kaise bachi rahegi ---achha prayas hai humen bhi pasand hai
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा.
जवाब देंहटाएंदेवसूफी जी,
जवाब देंहटाएंअवसाद से मुक्ति की चाह उल्लास पर्व की ओर ले जाती है और हम बहाने ढूँढ़ कर भी प्रसन्न हो लेते हैं। बसंत पर्व तो प्रकृति का पर्व है, उल्लास स्वाभाविक है।
संभवत: मन हल्का हो तो मस्तिष्क भी वह उड़ान ले सके जो आप ले रहे हैं।
समस्याएँ हैं इसलिए तो पर्व और मनाए जाने चाहिए। शोभा न आए न सही, कुछ देर आह्लादित होने को तो मिल जाता है।
मौलिक क्या नकलची विचारक भी सब को संतुष्ट नहीं कर सकता। लोग अपने अपने ढंग से सोचते हैं। आप की बातें प्रचलित मान्यताओं को तोड़ती हैं लेकिन जब तक आप सप्रमाण नहीं बताएँगे, लोग नहीं खिंचेंगे। इससे आप का उद्देश्य ही बाधित होगा। आशा है आप समझ रहे होंगे।
सादर आभार,
अभी से होलियाना शुरू ?
जवाब देंहटाएं---एक नई शरुआत----
जवाब देंहटाएंइस आभासी होली का कंसेप्ट तो बहुत ही उम्दा है..काश सबलोग अपने गिले-शिकवे इस होलिका दहन में अर्पित कर दें और सौहार्दपूर्ण माहौल कायम हो जाए..
जवाब देंहटाएंमैं तो भीग गया अंदर बाहर सब.
जवाब देंहटाएंबसंत ने तो वैसे ही मन को मोह लिया है आपके इस अनूठे प्रयोग ने अपना स्नेहिल रंग चढ़ा दिया है |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये
देर से ही सही, हम शामिल हो रहे इस फाग महोत्सव में ! पहुँच रहे हैं हर ठौर !
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