मछलियाँ - सम्भवत: एकमात्र जीव जिनके सान्निध्य में समूचे विश्व में मानव समाज की एक जाति ही बन गई - मछुआरे। दूर देश की यात्राओं में नदियों की भूमिका ने मछुआरों मल्लाहों को गरिमा दी। विश्व सभ्यता, इतिहास और साहित्य के विकास में मछलियों और मछुआरों का बड़ा योगदान रहा है।
आज के दौर में भी करीब रोज ही मन में आ ये पंक्तियाँ उसे जाने कैसा कर जाती हैं:
"एक बार फिर जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बन्धन की चाह हो !"
और फिर बर्मन दा का "ओ रे माझी... मेरे साजन हैं उस पार ..”
आज के दौर में भी करीब रोज ही मन में आ ये पंक्तियाँ उसे जाने कैसा कर जाती हैं:
"एक बार फिर जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बन्धन की चाह हो !"
और फिर बर्मन दा का "ओ रे माझी... मेरे साजन हैं उस पार ..”
... भारतीय सन्दर्भ देखें तो वर्ण और जाति व्यवस्था पर बड़ी रोचक बातें नज़र आती हैं। मत्स्यगन्धा धीवर कन्या के साथ नाव में पराशर का संयोग और जन्म कृष्ण काया, द्वीप के निवासी द्वैपायन का जो व्यास बना। ऋचाओं को संहिताबद्ध किया, अथर्वण परम्परा को त्रयी परम्परा में स्थान दिलाया और रच गया वह महाकाव्य जैसा फिर नहीं रचा जा सका - महाभारत।
... ब्राह्मण पिता और मछुआरिन माता के संयोग का सुफल द्वैपायन कुरुओं और भरतों की गर्वीली क्षत्रिय परम्परा के लिए नियोग द्वारा संतति देता है - पांडु और धृतराष्ट्र। अपने समय का सर्वश्रेष्ठ ऋषि बनता है - मछुआरिन का बेटा।
... ब्राह्मण पिता और मछुआरिन माता के संयोग का सुफल द्वैपायन कुरुओं और भरतों की गर्वीली क्षत्रिय परम्परा के लिए नियोग द्वारा संतति देता है - पांडु और धृतराष्ट्र। अपने समय का सर्वश्रेष्ठ ऋषि बनता है - मछुआरिन का बेटा।
कहाँ हो जाति और वर्ण शुद्धता के धुरन्धरों !
.. आज कृषि की वैश्य परम्परा अपनाए ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार ... सब एक जाति हो गए हैं - खेतिहर।
मिल गए हैं कोइरी, कुर्मी, आभीर परम्परा से - बन गए हैं किसान।
एक दु:ख दर्द, एक खुशी, कमोबेश एक सा जीवन .. लेकिन
.. आज कृषि की वैश्य परम्परा अपनाए ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार ... सब एक जाति हो गए हैं - खेतिहर।
मिल गए हैं कोइरी, कुर्मी, आभीर परम्परा से - बन गए हैं किसान।
एक दु:ख दर्द, एक खुशी, कमोबेश एक सा जीवन .. लेकिन
3,13 की माला जपते हैं पंडित मार्तण्ड शुक्ल 'शास्त्री' ; सूर्य और चन्द्र से नाता जोड़ते हैं ठाकुर जनार्दन सिंह; कृष्ण भगवान के डी एन ए खोजते रहते हैं कन्हैया सिंह यादव और वृषल चन्द्रगुप्त की जन्मपत्री लिए घूमते हैं ज्वाला प्रताप मौर्य...
धन्य भारत भू ! जय हो !!
... बंगाली लोग कहते हैं मछली खाने से दिमाग तेज होता है। उपर की बातें बड़के भैया के निमंत्रण पर उत्तर प्रदेश मीन महोत्सव में खाई गई मछली से उपजी दिमागी तेजी से आई हैं। हमार कउनो कसूर नाहीं । ... हम तो बंगाली दादाओं की बात के कायल हो गए हैं लेकिन दाल में सुम्हा मछली पका कर तो नहिंए खा पाएँगे।
कल डा. अरविन्द मिश्र जी के निमंत्रण पर मोतीमहल लॉन, लखनऊ में आयोजित मीन महोत्सव में मैं सपरिवार गया था। भव्यता, विविधता और व्यवसायिकता देख कर हम लोग दंग रह गए। माया मैम की लाठी का असर हो या साल में एक बार ही सही, जग जाने की परम्परा का पालन हो, लग गया कि राज्य सरकार के अधिकारियों में दम है। ये बात और है कि वहाँ से लौटने के बाद घटित दुर्घटना ने उन्हें गरियाने का मौका दे ही दिया और एक बार फिर मैं अपने पूर्वग्रह के किले में बन्द हो गया – ये सब बस वैसे ही हैं।
धन्य भारत भू ! जय हो !!
... बंगाली लोग कहते हैं मछली खाने से दिमाग तेज होता है। उपर की बातें बड़के भैया के निमंत्रण पर उत्तर प्रदेश मीन महोत्सव में खाई गई मछली से उपजी दिमागी तेजी से आई हैं। हमार कउनो कसूर नाहीं । ... हम तो बंगाली दादाओं की बात के कायल हो गए हैं लेकिन दाल में सुम्हा मछली पका कर तो नहिंए खा पाएँगे।
कल डा. अरविन्द मिश्र जी के निमंत्रण पर मोतीमहल लॉन, लखनऊ में आयोजित मीन महोत्सव में मैं सपरिवार गया था। भव्यता, विविधता और व्यवसायिकता देख कर हम लोग दंग रह गए। माया मैम की लाठी का असर हो या साल में एक बार ही सही, जग जाने की परम्परा का पालन हो, लग गया कि राज्य सरकार के अधिकारियों में दम है। ये बात और है कि वहाँ से लौटने के बाद घटित दुर्घटना ने उन्हें गरियाने का मौका दे ही दिया और एक बार फिर मैं अपने पूर्वग्रह के किले में बन्द हो गया – ये सब बस वैसे ही हैं।
- बस 'जोर लगा के हंइसो हंइसो' कहते रहते हैं जब कि असल में अपने दम को स्वयं और आका के दमदमी टकसाल में सिक्के जमा करने के लिए बचा रखते हैं।
पूर्वांश की अनुभूति बड़के भैया को मंच संचालन करते देख कर हुई। उत्तरांश की अनुभूति उस समय हुई जब हम फिश फ्राई और कबाब भकोस रहे थे। (दाईं ओर के चित्र को देखिए, भैया भी खड़े हैं। न, न... शाकाहारी हैं - कुछ ऐसा वैसा न सोच लीजिएगा। मंच छोड़ कर बीच बीच में यह देखने आ रहे थे कि हम लोग ठीक से काँटा निकाल कर खा रहे हैं कि नहीं ? :)
एक सज्जन टाई धारी ऑफिसर खुलेआम किसी ठीके की बावत दो लाख रुपयों की माँग एहसान जताते कर रहे थे।
मोबाइल पर दूसरी तरफ से क्या कहा जा रहा था, यह तो नहीं पता लेकिन जब उन्हों ने किसी मंत्री जी की बात कर आवाज धीमी की और पेंड़ के नीचे चले गए तो हलाल होते जाने कितनी जानों का खयाल कर मैं बाल्मीकि हो गया और उतर आया उत्तर अंश अनुष्टप।
.. तो आयोजन भव्य था। तरह तरह के स्टाल और शामियाने लगे थे। कृत्रिम लघु झरने, भाँति भाँति के अक़्वेरियम, मछलियों और झिंगों के संरक्षित शरीर, ग्लास, स्फटिक के बने हुए मत्स्य मॉडल, फिश फार्मिंग की जानकारी देते सरकारी और प्राइवेट स्टाल, मछली पालन के विविध आयामों की जानकारी देती हुई संगोष्ठी जिसमें इतर राज्यों से आए वैज्ञानिक भी थे और लखनऊ के आस पास से आए तमाम किसान, मछुआरे भी...पंडालों और तम्बुओं की भव्यता वी आइ पी विवाह सी छटा बिखेर रही थी।
दूर बैठे लोगों को वैज्ञानिकों द्वारा बताई जा रही काम की बातें दिखाई सुनाई दें, इसके लिए दो बड़े आकार के एल सी डी मॉनिटर तक लगे हुए थे मय ध्वनि विस्तारण यंत्र। राज्य सरकार की तरफ से लोगों को फिश फ्राई, फिश कबाब और अस्थिविहीन मत्स्य व्यंजनों का सुस्वादन कराने के लिए स्टाल भी लगा था जिसमें ताजा माल बनते हुए, देखते हुए आप रसास्वादन कर सकते थे।.. तो आयोजन भव्य था। तरह तरह के स्टाल और शामियाने लगे थे। कृत्रिम लघु झरने, भाँति भाँति के अक़्वेरियम, मछलियों और झिंगों के संरक्षित शरीर, ग्लास, स्फटिक के बने हुए मत्स्य मॉडल, फिश फार्मिंग की जानकारी देते सरकारी और प्राइवेट स्टाल, मछली पालन के विविध आयामों की जानकारी देती हुई संगोष्ठी जिसमें इतर राज्यों से आए वैज्ञानिक भी थे और लखनऊ के आस पास से आए तमाम किसान, मछुआरे भी...पंडालों और तम्बुओं की भव्यता वी आइ पी विवाह सी छटा बिखेर रही थी।
ब्लड प्रेशर नापने और मधुमेह की घरेलू मॉनिटरिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक यन्त्र बेंचती फर्म थी तो यूरोपियन स्टाइल की बंशी का प्रदर्शन करते गँवई उद्यमी भी थे। ओझवा को बताना है कि हमरे उसके ऊ पी में यह सब मिलता है। हैट लगा कर केवल फोटो न खिंचवाए बल्कि बलिया की गंगा किनारे बैठ थोड़ी मछली भी मार लिया करे। बहुत हुईं ये गणित और इंवेस्टमेंट बैंकिंग की बातें !
.. खेतिहर लोग अब मछुआरे बन रहे हैं। एक और खामोश क्रांति ? बाभन, ठाकुर, अहिर, चमार ...में मछुआपन भी जुड़ रहा है। .. मूँछ पर ताव देते ठाकुर साहब 5 किलो का रोहू उपजाए हैं। .. सामाजिक तनुता के बढ़ने की प्रक्रिया बहौत धीमी होती है।
हरे देसी टमाटर और आलुका के क्या कहने !
| |
अब आप जरा नीचे के इन फोटुओं को भी देख लें।
(1) | (2) | (3) |
(4) | (5) | (1) मेरे सुपुत्र महोत्सव स्थल पर (2) प्रदर्शनी में दिखाया गया दीवार पर लगाया जा सकने वाला एक झरना (3) इस जाल को आप ने चँवर खेतों में लगा देखा होगा! (4) झींगे ही झींगे (5) बाप रे ! इतनी बड़ी मछली ! |
कठपुतली नृत्य का भी आयोजन था लेकिन उसे छोड़ हम लोग वापस आ गए। कुछ अतिथि आने वाले थे। सम्भवत: किसी ईश्वर ने मेरे लिए यह देखना तय कर रखा था कि गड्ढे में भैंस कैसे गिरती है और तब आपदा से निपटने को मज़दूरों की तरफ से कैसे नेतृत्व सामने आता है !
मीन महोत्सव में प्रदर्शित बहुत सी वस्तुएँ हम गरीबों की जेब से बाहर थीं लेकिन एक छोटा फिश पॉट और चार छोटी गोल्ड फिश हमलोग खरीद लाए। कोई आवश्यक नहीं कि बड़ी खुशियों के लिए बड़े और महँगे आधार ही हों ...छोटी छोटी खुशियों को सहेजती ज़िन्दगी गुनगुनी हो जाती है - आज की खिली धूप की तरह।
मछलियों को अक़्वेरियम के पानी से एकदम घर के पानी में नहीं डाला जाता। तापमान के अंतर से मिनटों में वे मर जाती हैं। विधि यह है कि घर का पानी फिश पॉट में भर कर मछलियों को मय पुराने पानी और पॉलीथीन पॉट में रख दें। दो घंटों में धीरे धीरे जब दोनों ओर का तापमान समान हो जाता है तो मछलियाँ भी अनुकूल हो जाती हैं। फिर पॉलीथीन को निकाल कर उन्हें फिश पॉट में डाल दीजिए। देखिए कैसे तैर रही हैं !
हाँ, हम फिश फ्राई खाते हैं और मछली पालते भी हैं - घर के सदस्य की तरह। दोनों में अंतर है।
.. सोच रहा हूँ कि मन के भावुक अक़्वेरियम से अपने को निकाल कर इस दुनिया की धार में छोड़ दूँ तो तापमान के अंतर से कहीं मेरा वह सब कुछ मर तो नहीं जाएगा जिसकी बदौलत मैं इतना खुश रहता हूँ ?
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबढिया रिपोर्टिंग और बढिया बातें। सुंदर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंडिग बटन कहाँ गया ? बउरा-बउरा कर खोज रहा हूँ डिगियाने के लिये !
जवाब देंहटाएंकौन-सी श्रेणी बखानूँ इस पोस्ट के लिये ?
भइया, ई तो सैकड़ा वाली पोस्ट है। वह भी छक्का मारकर पूरा किए भए हैं। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबड़के भैया पर दया आ रही है। दूसरों का काँटा निकलवा रहे है। लजीज वयञ्जन की महक से मुँह में जो पानी आ रहा होगा उसको कैसे सम्हालते होंगे...! इसपर अब उनकी पोस्ट में कुछ प्रकाश पड़े शायद।
एक बार फ़िर बधाई। बहुत मजा आया पढ़कर और देखकर भी। :)
जवाब देंहटाएंगोभी के नीचे वाले बक्से में एक ही फोटू (Picture 115) दो बार लग गयी है। हेलमेट उतारकर धरती चूमने के चक्कर में हड़बड़ा गये का?:)
गिरिजेश जी मन तो हो रहा है आपको उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास का ब्रैंड अम्बेसडर
जवाब देंहटाएंप्रस्तावित करूं -सहमति दीजिये!
बाकी तो आप मेले में आये और रिपोर्टिंग के अपने टटके शौक को आजमाया -सब बहुत
अच्छा लगा बस वही मैं थोड़ा ज्यादा फ्री हुआ होता .सच बताऊँ आपने मुझसे कहीं
बहुत ज्यादा मेले का आनंद उठाया .हम तो हंटरवाली के फटकार से ही आतंकित रहे ....
और बिना ब्लॉगर भिडंत का आनन्द उठाये लौटना भी पड़ गया ..ये नौकरी जो न कराये !
इस शतकीय संस्करण पर बधायी!
अच्छी जानकारी के साथ संदेश देती रचना! आपसे सहमत कि कोई आवश्यक नहीं कि बड़ी खुशियों के लिए बड़े और महँगे आधार ही हों ...छोटी छोटी खुशियों को सहेजती ज़िन्दगी गुनगुनी हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंजबरदस्त ब्लॉगिंग!
जवाब देंहटाएंफुल फीड!
.. सोच रहा हूँ कि मन के भावुक अक़्वेरियम से अपने को निकाल कर इस दुनिया की धार में छोड़ दूँ तो तापमान के अंतर से कहीं मेरा वह सब कुछ मर तो नहीं जाएगा जिसकी बदौलत मैं इतना खुश रहता हूँ ?..
जवाब देंहटाएंइस भाषाई जाल में कोई क्यों न फसे,बढ़िया पोस्ट.
@ आपको क्या पता कि आपके बड़के भैया मछली के कांटे देखने ही आ रहे थे ...
जवाब देंहटाएंचोर चोरी से जाए हेराफेरी से नहीं ...
वाणी जी, मैं इस टिप्पणी का अर्थ नहीं समझ पा रहा। इसे हास्य मानूँ या यह कि आप अभिव्यक्ति की व्यञ्जना को समझ नहीं पाई हैं ?
काँटे के प्रयोग द्वारा बस यही बताना था कि उतनी व्यस्तता के बाद भी, उन कंटक सरीखे भद्र सुविधाजीवियों को झेलते हुए भी बड़े भैया बार बार आ कर हम लोगों की खोज खबर ले लिया करते थे।
अगर हास्य है तो क्षमा कीजिए, जँचा नहीं। यदि व्यञ्जना नहीं समझ पाई हैं तो आशा है अब समझ गई होंगीं।
हाँ, अगर आप ने भी कोई व्यञ्जनात्मक बात कही है तो समझा दीजिए। शायद जँचे।
@ सिद्धार्थ
अरे भाई, सब लाइव राइटर की गड़बड़ी है। सुधारने की दुबारा कोशिश करता हूँ। एक बार असफल हो चुका हूँ। और भी चित्र हैं।
आपकी एनर्जी को देख कर अचंभित होता हूँ
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के फोटो बहुत बढ़िया है और वो झंडे वाला हीरो भी मस्त लग रहा है, पता नहीं क्यों लगा कि अब बड़ा हो गया है. फोटो बढ़िया कहा तो ये ना समझिये कि जो लिखा वह स्तरीय नहीं है असल बात ये है कि लिखे हुए को एक बार ही देखा है कल इत्मीनान से पढूंगा. वैसे आपके यहाँ मानसिक संतुष्टि तो होती ही है सबसे बड़ी आत्मिक संतुष्टि मिलती है. वैसे बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ कि आप किस तरह अद्भुत हैं मगर फिर कभी. घर में सभी को यथायोग्य अभिवादन.
बहुत बढ़िया रिपोर्ट (इसे मत्स्यभोजन का एंडोर्समेंट न समझा जाए) - बड़ा कमेन्ट छाप नहीं पा रहा है. राम-कृष्ण-बुद्ध की भूमि पर अगर कभी दाल रोटी दूध महोत्सव हो तो कृपया हमें भी बुलाएं!
जवाब देंहटाएंसबसे पहले सेंचुरी ठोंकने की ढेर सारी बधाइयाँ ..
जवाब देंहटाएंमीन का मिथकीय सन्दर्भ रखना खूब जमा ..
बीच - बीच समय और समाज पर विचार - प्रस्फुटन भी
आपकी जागरूकता का 'फुल्ली' परिचायक है .. :)
बाकी तो मठाधीश लोग जो फार्म गए हैं उसी में मेरी भी तान शामिल है ..
राव साहब, बाउ कथा तक तो हम आपके प्रशंसक ही थे, आज तो मजा ही आ गया। और उस पर तुर्रा ये, कि हमें ही निपटाया गया और घर में भी लाया गया। अन्यथा न लीजियेगा, हम मीन राशि के जातक हैं। महिषी उदधार वाली पोस्ट और भी अच्छी लगी और सही मायने में संवेदना तो एक दुर्लभ पदार्थ हो गई है जो थोडी बहुत श्रमिक वर्ग के पास या जिसे लोग निम्न वर्ग कहते हैं, शायद वहीं पाई जाती है। प्राय़: तो समर्थ होने की प्रक्रिया में संवेदना खो जाती है या खो दी जाती है।
जवाब देंहटाएंयह हास्य ही था और आप व्यंजना समझ ले तो भी ठीक ही है ...इस बहाने अभिव्यक्ति की व्यंजना समझा दी आपने ...बहुत आभार ....
जवाब देंहटाएंहास्य आपको जचा नहीं ...खेद है ....
मत्स्य मेले के बहाने सामाजिक व्यवस्था पर दृष्टि ...खेतिहर लोगों के मछुआरे बनने की प्रक्रिया (मजबूरीवश ??) में भी सामाजिक समरसता ढूंढ लाना ...सामाजिक सरोकारों पर आपकी व्यग्रता और नेकनीयती को दिखाता है ....शायद इतनी अच्छी रिपोर्टिंग स्वयम मत्स्य विभाग वाले भी ना कर पायें ...!!
सबसे पाहिले तो अखाड़ा में देरी से उतरने के लिए...हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगते हैं...
जवाब देंहटाएंअब ई बताईये कि आप रिपोर्टिंग का काम कहाँ से सीखे हैं.....पाहिले भैंस ..अब मछली ??
हम हो हयकट हैं..रवानी और नूरानी रिपोर्टिंग पर...
आपका आलेख आपकी खोजी आँख, जागरूक मन और संवेदनशील हृदय की गवाही दे रहा है...
जहाँ तक आपके बड़े भईया का प्रश्न है आपसे बहुत बहुत स्नेह है उनका....तो ऐसा ही करेंगे ना...
तस्वीरें लाजवाब..सपरिवार वाली तास्वीरें बहुत सुन्दर....छोटे गिरिजेश बहुत प्यारे हैं..और बिटिया भी....मेरा स्नेह दोनों को...
अरविन्द जी विशाल व्यक्तित्व के मालिक हैं....:):)
और आपको देख कर नहीं लगा की आप इतने आलसी हैं...
बाकी रही मछलियाँ ...तो वो भी ठीक लगीं..
कुल मिला कर आपको उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास का ब्रैंड अम्बेसडर का पद स्वीकार कर लेना चाहिए...
@अरविन्द जी...प्रस्तावित कर ही दीजिये....
अच्छी लगी रिपोर्टिंग..
जवाब देंहटाएंमजा आया इस तरह की ब्लॉग पोस्टिंग देख..सही जा रहे हैं.
अनुराग भैया की ई मेल से प्राप्त टिप्पणी:
जवाब देंहटाएंबड़ी विस्तृत रपट है. कुछ छिटपुट हलके-फुल्के अवलोकन.
वर्ण और जाति व्यवस्था पर बड़ी रोचक बातें नज़र आती हैं।
सच है, मगर जन्मग'त जातिवादियों (racism?) ने वर्ण व्यवस्था की ऐसी की तैसी कर दी.
अलग-अलग जगह पर यह दो वाक्य पढ़कर हंसी रुकी नहीं. यह
बंगाली लोग कहते हैं मछली खाने से दिमाग तेज होता है।
और यह
न, न... शाकाहारी हैं - कुछ ऐसा वैसा न सोच लीजिएगा।
वैसे मछली और दिमाग की बात पर याद आया कि पिछले दिनों बहुत सी नदियों और समुद्र के जल में प्रदूषण विशेषकर पारा, सीसा जैसी धातुओं के प्रदूषण के दुष्प्रभावों (दिमागी भी) पर काफी चिंता थी. इसी तरह भारत में बंगाल हो या बाहर चीन जापान हो, मत्स्य्भोजी अक्सर चश्मा (या कॉन्टेक्ट लेंस) लगाए दीखते हैं. क्या मछली का आँख से (मीनाक्षी से इतर) कुछ सम्बन्ध है?
उत्तर प्रदेश मीन महोत्सव
राम-कृष्ण की धरती पर कभी दाल रोटी दूध महोत्सव हो तो हमें भी बुलवा लेना भैया - वैसे उम्मीद तो नहीं है.
गंगा किनारे बैठ थोड़ी मछली भी मार लिया करे। बहुत हुईं ये गणित और इंवेस्टमेंट बैंकिंग की बातें!
हूँ, अब आयेगा बैंकर ग्लेशिअर के नीचे.
... जब दोनों ओर का तापमान समान हो जाता है तो मछलियाँ भी अनुकूल हो जाती हैं
यह तो बच्चों को पढ़ाना पडेगा. बहुत से मछलियाँ अकाल मृत्यु से बच जायेंगी.
मज़ाक अलग, रिपोर्ट और चित्र सभी बहुत बढ़िया लगे. आपको और मिश्रा जी को इस सफल आयोजन और उसमें शिरकत के लिए बहुत बहुत बधाई!
यहाँ तो बड़ा व्यवस्थित मामला है पता नहीं क्यों मेरे बॉस ने किसी दिन हमारे प्रकोष्ठ की हालत देखकर लताड़ लगाईं थी कि ये क्या मच्छी बाज़ार बना रखा है!
जवाब देंहटाएंमस्त रिपोर्टिंग.बड़ा कैनवास है इसका.
विचारशील आदमी कहीं भी जाय, कुछ निचोड़ ही लाता है। ख़ूब, बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंइसे रिपोर्ट की बजाय फीचर कहा जाये तो अनुचित न होगा (मीडिया टर्म में)चित्रों की प्रचुरता ने इस फीचर को बहुत ही जीवंत बना दिया है...
जवाब देंहटाएंप्रशासन के कैलिबर पर प्रश्न चिन्ह तो है ही नहीं....बशर्ते कि नीयत ठीक हो......
बाकि ये मंतरी और संतरी ये सब .......छोडिये जाने दीजिए सा....ओ के लिए कुछ लिखने की भी इच्छा नहीं होती.....मनमें वितृष्णा जाग उठती है ......
मन वैसे ही बहुत दुखी था गढ्ढा वाली ब्लॉग पढ़ कर....
शतकवीर को नमन !
ईश्वर आपको ब्रायन लारा से भी बड़ा स्कोर करने की ऊर्जा दे.........
वैसे रिपोर्ट को बहुत ही कुशलता से फीचर का टच दिया है......
साधुवाद
गजब की रिपोर्टिंग की है गिरिजेश भाई, पर आपने मेरे लिए धर्मसंकट पैदा कर दिया। इसपर लिखना तो मुझे भी था, पर अब मैं क्या करूं?
जवाब देंहटाएं--------
उल्टी चाल चले यह बंदा आखिर क्यों?
खाने पीने के शौकीन तो होंगे ही.....?
अरे हाँ, सैकड़ा पूरे होने की बधाई भी तो ले लीजिए, क्योंकि डबल सैकड़ा में तो समय लगेगा न।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया पोस्ट।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रिपोर्टिंग की...जैसे हम भी उस मच्छी मेले (मुंबई में मछली को मच्छी ही कहते हैं)...में घूम आए...आपने रिपोर्ट के शुरू में वर्ण व्यवस्था,जाति व्यवस्था आदि की चर्चा की है....पर महाराष्ट्र की 'कोली जाति' का कोई जिक्र नहीं किया ??..दो शब्द तो उनका भी बनता है....फिल्मो में उनके कपड़े और "कोली नृत्य' देख तो अब सारा भारत ही उनसे परिचित है.
जवाब देंहटाएं'मच्छी मेला' इसलिए कहा कि ज्यादा जंच रहा है...इसे शुद्ध हिंदी और मुम्बईया हिंदी से जोड़ कर ना देखा जाए (महज एक निर्मल हास्य था,:))
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या रिपोर्ट है मजा आ गया...एकदम वहीँ घूमते नजर आये हम खुद को..
जवाब देंहटाएंआप ईमानदारी से धुमा भी दिये...
जवाब देंहटाएंऔर इसे एक बहाना भी बनाए दिये, कई और चीज़ें ठेलने के लिए...
बेहतर...
गजब का निरीक्षण वह भी इतना करीने से ।
जवाब देंहटाएंसच कहूं...
शानदार प्रस्तुति ।
आभार..!
तो आज मत्स्यपुराण का पारायण हो गया ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक है भाई साहब। आपके विचारों से सहमत। उम्मीद करता हूं मेरे ब्लाग पर आप टिप्पणी करते रहेंगे।
जवाब देंहटाएं.......भैये हम तो सपरिवार फोटो देखे के खुश होई गएँ हन !
जवाब देंहटाएंबकिया इत्ता जान गएँ हाँ कि आलसी की परिभाषा बदलें का पडी !
भैये कुछ और बताओ... 'मारने' वाला काम तो ना हो पायेगा अपने से. इ का सलाह दे दिए... गंगा किनारे और काम भी तो होगा अपने लिए.
जवाब देंहटाएं