यह बंदिश राग यमन को सुनते हुए रची गई:
जागो जागो देश महादेव
बन्द आँख कैसा ये ध्यान
जपते जो उद्दाम काम
कामारि तुम भूले उदात्त भाव
खोलो त्रिनेत्र नंग भस्म, अनंग
जागो जागो देश महादेव।
जटाजूट सँभारो अधोमुख गंगा
पतित न हो पावनी ज्ञानगंगा
सँभारो हे देश तुम शंकर
शमन करो दुर्वह वेग
जागो जागो देश महादेव ।
शंकर भारत के प्रतीक पुरुष हैं। बचपन से ही उनकी परिकल्पना मुझे मुग्ध करती रही है। . ..
सरस्वती के किनारे का पशुपति, वैदिक बलियूप विकसित लिंग, देवासुर रुद्र और गाँव गाँव हिमालय सुता गौरा पार्वती के साथ भटकता लोककथाओं का महादेव - खेतों में बैल की पीठ पर श्रमसीकर बहाता, जंगलों के साँप बिच्छू धारण करता सबका शमन करता भोगी विलासी महात्यागी महायोगी महादेव ।
काम को अपने उपर सवारी नहीं करने देने वाला शंकर, कामदेव को भस्म करने वाला शंकर लेकिन लोकहित शक्ति के साथ हजारो वर्षों तक संभोगरत रहने वाला महादेव क्या कुछ संकेत नहीं देता!
यौन उच्छृंखलता और मध्ययुगीन/विक्टोरियन नैतिकता के पाखंड के दो अतिवादी किनारों के बीच ज्ञान गंगा का प्रबल प्रवाह है। उसके वेग, उसकी उद्दामता को थाम नई दिशा देने को यह देश उठ क्यों नहीं पा रहा?
किसकी प्रतीक्षा है ?
शंकर जी के बारे में बहुत कन्फ्यूज हूँ...एक ओर शिवलिंग पूजन....एक ओर तप, संयम, नियम....।
जवाब देंहटाएंयूँ तो शिवलिंग पर मैं जल चढा देता हूँ...हाथ भी जोड लेता हूँ, प्रार्थना भी कर लेता हूँ लेकिन कहीं न कहीं कुछ भाव छूट जाता है ... कुछ कंपन / भ्रम आदि लिए रहता है, जबकि गणेश जी, सरस्वती जी, राम या कृष्ण को पूजते हुए जो भाव उत्पन्न होता है वह अलग ही परिपूर्णता का भाव लिये रहता है।
शिव जी के बारे में कुछ तो मिसिंग लग रहा है मेरी ओर से....ज्ञान में कमी या समझने में गलती.... कुछ भी..।
शंकर चिंतन फुर्सत से कभी ...सर्वं लिंग्मयम जगत ...बंदिश अच्छी है .....
जवाब देंहटाएंजो भी हो यह रचना लाजवाब बन गयी है ,बहुत जोशीली रचना है.
जवाब देंहटाएंचिन्तनशील पोस्ट । जटाजूट मे वे गंगा सम्हालें, नेता उसे मैली करें । कुछ और सीखना बचा ।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले टीप :
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी है क्या इसकी गेयता भी वैसी ही है जैसी आप सुन रहे थे ?
( ईश के प्रति यह कैसी अनुरक्ति ...कैसा कृतज्ञता ज्ञाप और कैसी अपेक्षायें हैं ...आखिर को उसे अपने ही अन्दर क्यों नहीं खोजते हम ? )
गिरिजेश सर,
जवाब देंहटाएंमुझ कर्मकांड हीन लेकिन आस्तिक जीव को भी औघड़ शिव की परिकल्पना सम्मोहित करती रही है। सरल, निर्विकार, सहज और उतनी ही विपरीतता लिये हुये। आपकी रचना पढ़ते हुये मुदित हुये जा रहा था।
आखिरी पंक्ति में प्रश्न बहुत उद्वेलित करता है, जवाब नहीं सूझते हैं अपन को भी। प्रश्न जरूर कोंचते हैं।
मिलेंगे जवाब भी कभी, आशा जरूर है।
आभार।
बाऊ , बस एक छोटा सा सवाल है --- 'यमन' जैसे भाव-संवेद्य राग को सुनते हुए आप इतनी बौद्धिक - तार्किक उपस्थिति को कैसे बनाए रखते हैं ! आप अलग कोटि के भावक लगते है ! वैसे जो भी लिखा है आपने उससे मेरा भी इत्तफाक है ! आभार !
जवाब देंहटाएंजागो जागो देश महादेव।
जवाब देंहटाएंआपके गायन-चिंतन में हमारी प्रार्थना भी साथ है.
@ सतीश जी,
जवाब देंहटाएंशंकर की गढ़न जितनी अच्छी तरह से इस देश की विविधता और विरोधाभासों को समझाती है, उस तरह कोई और प्रतीक नहीं कर पाता।
@ अली जी,
उमराव ज़ान की बन्दिश दरशन दो शंकर महादेव को रिपीट मोड में लगा कर सुनते हुए इसे रचा गया। उस छोटी बन्दिश में आलाप विस्तार नहीं है। मुझे लगा कि इसे वैसे गाया जा सकता है। संगीत में निरक्षर हूँ। ब्लॉगरी का फायदा ही क्या जो ऐसे 'लगने' को भी सबके सामने न रखा जा सके ? :)
आप के लिए होमवर्क - उस बन्दिश को सुन कर बताइए कि क्या इसे उस तरह विस्तार देते गाना सम्भव है ?
शंकर भगवान पर आमिष त्रिपाठी का नया उपन्यास (http://shivatrilogy.com/) हाल ही में पढ़ा है मैंने. कुछ बातें बड़ी रोचक है. आप इससे अच्छी किताब लिख सकते हैं... कम से कम
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर ही लिखिए. इन विरोधाभासों को ऐतिहासिक रूप में. अब ऐसे चरित्र और बातों को छेड़ा है तो इस अनुरोध को तो मानना ही पड़ेगा.
संगीत में आपकी भी रूचि है ये जानकर बहुत अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंकविता तो आपसे सीख ही रहे हैं जी.. वैसे एक बात कहूं 'आप और आपके अलावा कुछ ही ऐसे लोग हैं जिनकी सलाह मेरे लिए, मेरे मार्गदर्शन के लिए महत्त्वपूर्ण है. पहले भी कह चुका हूँ. फिर क्यों स्नेह से वंचित रखते हैं, मेरे साथ तो मजबूरी है कि लैब में व्यस्तता के चलते नहीं पढ़ पता पर आप भी क्या??'
अभिषेक ओझा की बात पर ध्यान दिया जाये और अमल में लाया जाये।
जवाब देंहटाएंसँभारो हे देश तुम शंकर
जवाब देंहटाएंशमन करो दुर्वह वेग
जागो जागो देश महादेव ।..........
bahut sundar bhav
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