मंगलवार, 18 मई 2010

सबरन मंजूर मिसरा नामंजूर

मेरे ससुर जी करीब करीब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बेटे बेटियाँ सब अपनी अपनी जगह जीवनयापन में लगे हैं। घर में कुल जमा दो परानी। बड़े शौक से शहरी मॉडल पर आधुनिक घर बनवाए - बेटे , बहुएँ, बेटियाँ  आएँ तो कोई कष्ट न हो। पॉवर बैक अप की चौचक व्यवस्था - दो इनवर्टर, एक जनरेटर और अब सोलर की तैयारी है। मतलब कि गुड़गाँव से भी बेहतर। डिश टीवी, वाशिंग मशीन वगैरह सब लगे हैं। 
बेटों के यहाँ गुड़गाँव में एजेंसी द्वारा रखा गया सेवक शादी में गाँव आया तो प्रस्ताव हुआ कि वहीं रह जाय। गुड़गाँव में तो दूसरे भी मिल जाएँगे। गाँव देहात में तो अब ढूँढ़े नहीं मिलते। टंच व्यवस्था देख कर और वेतन भी उतना ही जारी रखने की बात पर असमिया सेवक 'सबरन' गाँव में ही रह गया। साल भर के भीतर ही अपने व्यवहार और ईमानदारी के कारण घर का सदस्य जैसा हो गया। साले जब आते तो मजाक करते - कुछ दिनों में ही यह हमलोगों को घर में घुसने नहीं देगा ! ... 
दूर देस के ये जवान साल भर में एक बार अपने गाँव जाते हैं। सबरन भी गया और अब लौट कर आने का नाम नहीं ले रहा। पता चला है कि उसकी माँ चाय बगान में काम करती थी। अब सेवानिवृत्त हुई है तो अपनी जगह उसे लगा दिया है। रु.300 प्रति सप्ताह और राशन मिलेगा। सुबह 5 बजे से रात तक की ड्यूटी। यहाँ मिलते थे रु.2500 प्रति माह और रहना, खाना, कपड़ा लत्ता सब मुफ्त। पाँच में से एक यह बेटा भी घर रहेगा, अब शादी भी होगी ...
... स्वाभाविक है कि दूसरे सेवक की खोज हो। गोरखपुर किसी एजेंसी में कहा गया था। बहुत खोज के बाद कोई मिला तो एजेंसी वाले ने फोन किया। ससुर जी ने फोन उठाया ,
" ... ज़रा लड़के से बात कराइए।"
" ए मिसरा! हे आव, बतिया ल sss"
ससुर जी ने सुना और मना कर दिया।
"अरे ! जब उसे कोई समस्या नहीं तो आप को क्या आपत्ति?" 
"नहीं, दूसरा ढूँढ़िए।" 
 सासू जी ने पूछा तो उन्हों ने बताया कि पंडित (ब्राह्मण) था। दोनों सहमत हैं कि जूठा धोना, पोंछा लगाना, झाड़ू देना यह सब काम ब्राह्मण से नहीं कराएँगे। तब तक गाँव से ही ढूँढ़ कर  किसी औरत को  पार्ट टाइम  लगा लेंगे। हालाँकि उसके लिए निहोरा भी करना पड़ेगा। 
सबरन मंजूर है और मिसरा नामंजूर। सोच रहा हूँ ससुर जी से पूछूँ," सबरन की जाति आप पूछे थे? कहीं वह भी तो... "      

27 टिप्‍पणियां:

  1. वर्ण व्यवस्था जाते-जाते जाएगी। अभी कई पीढ़ियाँ इसे ढोने में ही अपनी कर्तव्यपरायणता देखती रहेंगी। उसपर यदि निहित स्वार्थ इसकी ओट में पलते रहे तो शायद बहुत दिन लगें इसे जाने में।

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  2. वाह गिरिजेश सर,
    बहुत सटीक सवाल।
    हम भी बहुत बदनाम हैं अपनों से ही सवाल करने वाली आदत पर।

    आप शायद यकीन नहीं करेंगे अपने दोस्तों की जाति के बारे में हमें तब पता चला था जब मंडल कमीशन का जिन्न बाहर निकला था, और उस साल हम ग्रेज्यूएशन कर चुके थे, यानि अठारह साल तक हमें ये सब सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी। बड़े शहर ऐसे बुरे भी नहीं होते वैसे, खासतौर पर ऐसे मामलों में।

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  3. "All are equal at birth". There are only two castes in the world: those who contribute positively and those who contribute negatively. From these, it can be inferred that the caste system is more of a socio-economic class system.

    Caste based discrimination shall not be appreciated.

    Can we cure the ignorance of educated lot?

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  4. गाँव में मेरे पडोस में पाठक जी के यहां एक युवक कहीं से बहका हुआ आया था। कुछ कुछ मानसिक रूप से आहत। पूछने पर बताया कि बाभन हई।
    यहां रहने दो केवल भोजन-पानी पर, बाकी घर का सारा काम सानी-पानी आदि कर डालूंगा।

    पाठक महाशय को मन हुआ कि चलो इससे बेगार खटाया जाय। लेकिन इधर मेरा अहिरान खिलाफ हो गया। ऐसा कैसे कर सकते हो....किसी का शोषण इस तरह नहीं करना चाहिए। उसे उसके घर भेज दो, जहा से वह आया है।

    दरअसल लोगों के जहन में सात आठ साल पहले अयोध्या की तरफ से आए एक ब्राह्मण की याद हो आई जो इसी तरह घर से लड झगड कर कहीं किसी के यहां आकर ठहरा था और रहते रहते गांव की पॉलिटिक्स में हिस्सा लेने लग गया था। वह वाकया लोगों को याद था और कुछ कुछ इसी की आशंका के चलते लोगों द्वारा इस शख्स का भी विरोध किया गया।
    कुछ का मानना था कि क्या पता चोर चांई हो...रहते रहते ससुरा कोई बड़ा हाथ मारने के चक्कर में हो।

    अब पता नहीं उसे रखा गया कि नहीं, तब तक तो यहां मुबई आ गया हूँ।

    शोषण भी अजब-गजब होते हैं।

    और जातिवाद...उसका तो हाल ही अजब है यूपी बिहार में।

    पुरनिया लोग जल्दी नई राह नहीं पकड़ते....भले ही खेत के बीच से चलेंगे :)

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  5. मतलब ये वाली नौकरी भी अपने को नहीं मिल सकती :(

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  6. माने की ब्रह्मण अब वही पैदा होता है जो महापापी हो...
    न घर के ना घाट के....
    बाकी बढ़िया नौकरी रिजर्वेशन ले गयी....और अब ई काम भी हाथ से गया...
    हाँ नहीं तो...!

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  7. रोचक संस्मरण है. राजा गार्डेन के चौराहे पर रोज़ देखता था उस अधनंगे कर्मकार को जो तपती लू में जनेऊ कान में चढ़ाकर जूते गांठता था.

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  8. @डाक्टर मनोज मिश्र
    :)

    @गिरिजेश
    जड़ें गहरी हैं समय लगेगा !

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  9. @ माने की ब्रह्मण अब वही पैदा होता है जो महापापी हो...
    न घर के ना घाट के....

    हम भी यही मान लेते हैं ...हाँ नहीं तो ...

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  10. ब्राह्मण तो अब बर्तन झाड़ू पोछा लायक भी नही रहा। हाय! कहाँ जायेंगे बेचारे हमारे बच्चे...।

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  11. @ दिव्या जी,
    आप की टिप्पणी उस परिवेश से आई है जहाँ जाति बन्धन नहीं हैं और इस घटना को वर्ग विभेद की तरह देखा जाएगा लेकिन यह उस पीढ़ी की दास्ताँ है जिसे यह संस्कार दिए गए कि ब्राह्मण से इस तरह के काम करवाना महापाप है। शिक्षा संस्कारों की बेड़ी को कम ही तोड़ पाती है। यह पीढ़ी तो अपना जीवन जी चुकी। ये लोग पाखण्डी नहीं थे, जो भीतर था वह सामने था। ये लोग इतने प्रगतिशील भी हो चुके हैं कि अब शहरों में अपने बच्चों के पास जाने पर इन सब बातों का ज़रा भी ध्यान नहीं रखते। पन्द्रह या बीस वर्षों में इनके अवसान की तैयारी है लेकिन हमारी क्या स्थिति है?
    99%, जिनमें मैं भी हूँ, महापाखंडी हैं। स्वेच्छा से कितने अपने बेटे बेटियों का विवाह दूसरी जाति में करेंगे? हाँ, शायद उन लोगों द्वारा स्वनिर्णय से ऐसा कर लेने पर सम्भवत: उस सम्बन्ध के प्रति सहिष्णु होने वालों की संख्या कुछ अधिक होगी लेकिन ऐसे रहेंगे अल्पसंख्यक ही।
    'मो सम कौन' ने एक बहुत महत्त्वपूर्ण विचार दिया है - शहरीकरण जाति व्यवस्था को कहीं तोड़ता है लेकिन जब राज्य सत्ता स्वयं जाति व्यवस्था को मान्यता देने पर तुली हुई है, क्या शहरीकरण से कुछ हासिल होगा?हर जाति के मंच बन रहे हैं। कोई परशुराम जयंती मना रहा है तो कोई महाराणा प्रताप जयंती। कृष्ण अब अहिर अधिक हो गए हैं तो चन्द्रगुप्त पर मौर्य भारी है। परशुराम बस क्षत्रियहंता ही रह गए हैं .... और सबको राजनैतिक समर्थन प्राप्त है। इनसे अच्छे तो ये पुराने लोग ही हैं जिंनका भीतर बाहर साफ है।
    @ अली जी,
    इस जड़ में इतने लोगों ने मठ्ठा डाला - बुद्ध... नानक, अनेक संत ..... दयानन्द, विवेकानन्द, अम्बेडकर....ईसाई, इस्लाम धर्म... मार्क्सवाद...आदि आदि लेकिन जड़ का बाल न बाँका हुआ। उल्टे और गहराती गई। जिन्हें नहीं होना था वे भी इसके रंग रंगते चले गए। क्या है इसकी ऐसी जीवनी शक्ति का राज ?
    मैं आज तक समझ नहीं पाया। क्यों इतनी विभूतियाँ असफल हुईं ? पता नहीं। ..कभी कभी तो मुझे लगता है कि यह व्यवस्था शाश्वत है और हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। वैसे भी हमारे स्वीकार अस्वीकार से क्या उखड़ता है - जड़ तो जड़ है - बनी है और रहेगी।

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  12. शुक्र है! समाज में ब्राह्मण का सम्मान अभी कायम है :-)

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  13. @ Girijesh ji-

    @-आप की टिप्पणी उस परिवेश से आई है जहाँ जाति बन्धन नहीं हैं ....

    Who said that i belong to any other parivesh than yours?

    I belong to cosmopolitan views because of my upbringing, my education and the culture inherited from parents.

    @-शिक्षा संस्कारों की बेड़ी को कम ही तोड़ पाती है। ..

    Do we have better options than education to alleviate the caste bias?

    Time is changing and people are changing with time. I am witnessing it in many spheres. When i was a kid-the Maid was illiterate but now the maids hired are well educated..they talk sensible and are good at bargaining, they are aware, none can use them. Even Shiny Ahuja was shown his place by an aware maid.

    Mother in laws are well-educated. They better understand their Daughter in law's busy schedule due to job and diverse choices. They do not expect their 'bahu' to be in ghunghat always . So Education is indeed changing people up to a great extent.

    @ 'brahmin na-manjoor' as servants--

    On the contrary my friend's mother denied to hire any low caste maid. She wants only brahmin servant to work at her place.

    This difference of opinion lead the two, to part and live separately (shilpi and her mom-in-law ). Shilpi hired a maid, irrespective of caste and the mother ended up working hard like a bull. Shilpi's educated and rational husband indeed was in favour of his wife.

    Gone are the days when people were so much biased about caste system. Educated and sensible lot do not bother about such trivial issues.

    70 % Indian population is living in villages. I truly feel that proper education only can bring positive changes in them.

    I belong to cosmopolitan views and i do not believe in caste system.

    For me, an educated, logical and sensible person is more important than the people stuck with their caste based superiority.

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  14. @--शुक्र है! समाज में ब्राह्मण का सम्मान अभी कायम है :-)

    Sharma ji,
    Do you think a person earns respect by being a Brahmin?

    A person earns respect by his deeds and not by his caste.

    By the way, I am Srivastava Kayastha. Can you help me in telling my caste? I do not fall in Brahmin, shatriya, vaishya and shudra category.

    When Kayasthas do not fall in above mentioned four categories, then where they are placed?

    Any idea?

    Clues--
    1- They are either superior than Brahmins.

    2- Or they are inferior than Shudras.

    3- Kayasthas are offsprings of LOrd Chitragupta. They had the boon of supreme intellect and they do 'Kalam puja' after Diwali.

    The 12 offsprings of lord Chitragupta are-- Srivastava, Mathur, Sinha, Khare, Dusre, Ashthana, Nigam, Saxena, Prasaad, Johri... (Kindly google).

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  15. वे कहते हैं जूठा धोना, पोंछा लगाना, झाड़ू देना यह सब काम ब्राह्मण से नहीं कराएँगे; हमारा कहना है कि ब्राह्मण यह ठीक से करेगा नहीं। :)

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  16. @ Zeal
    आप शहर में वह भी विदेश में रह रही हैं। सामान्य स्थिति में आप की सोच और एक गाँव में रहने वाले की सोच में परिवेशगत अंतर रहेगा ही।
    @Kayastha etc.
    यही तो। जाति व्यवस्था हमारी साइकी में इतनी गहरी है कि एक तरफ तो हम जाति व्यवस्था का विरोध करते हैं, दूसरी तरफ उससे नाता जोड़े रखते हैं। आप ने सहज ही यह बात कह दी। जरा सोचिए यह कायस्थ, चित्रग्रुप्त वगैरह उसी व्यवस्था के अंग नहीं हैं क्या जिसकी हम समाप्ति चाहते हैं? ... सरकार अब स्वयं इस व्यवस्था को मजबूत कर रही है। यह देखना रोचक होगा कि हम लोगों के बूढ़े होने तक क्या स्थिति होगी ! :)

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  17. @-जरा सोचिए यह कायस्थ, चित्रग्रुप्त वगैरह उसी व्यवस्था के अंग नहीं हैं क्या जिसकी हम समाप्ति चाहते हैं? ...

    Girijesh ji,

    I am much above such classifications. I mentioned it just to counter Pt.D K Sharma 'vats' ji's comment who believes that Brahmins must get due respect in society.

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  18. हमारे यहा भी एक सबरन है पूरी व्यवस्था उसके हवाले है यहा तक कि रुपये पैसे की भी . हमारे घर का सी ई ओ . अगर वह भी चला गया तो हम बहुत परेशानी मे आ जायेन्गे . और वह जाति का सरकारी ब्रहामण है

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  19. इसमे हैरानी की कोई बात नहीं है । अभी भी बहुत से पुराने लोग यहाँ मौजूद हैं । हमारे यहाँ हर ब्राह्मण को महाराज कहा जाता है फिर वह पान की दुकान क्यों न चलाता हो । अब वर्णव्यवस्था तो समाप्त हो गई है लेकिन अभी भी उसकी गूंज सुनाई देती है । धीरे धीरे यह भी समाप्त हो जायेगा । जाति और वर्ण धीरे धीरे ही समाप्त होंगे ।

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  20. @शरद कोकास जी:
    हमें नहीं लगता है कि जाति व्यवस्था खत्म हो जायेगी। सरकार ही नहीं होने देगी इसे खत्म। स्वरूप जरूर बदल रहा है। अधिक से अधिक तथाकथित शोषक और शोषित वर्ग की भूमिका इंटरचेंज हो जायेगी, और हो भी रही है। लेकिन ज्यादतियां नहीं खत्म होंगी। ज्यादा कहूंगा तो गिरिजेश सर कहेंगे कि हमारे डेरे में आकर अपने भेड़ तत्व ज्ञान की मशहूरी कर रहे हैं, लेकिन सच है कि हम बराबरी पर रहना नहीं सीख पा रहे हैं, चाहे वह जाति का मामला हो या जेंडर का, हम या तो शोषण करवायेंगे या फ़िर करेंगे, हम नहीं सुधरेंगे।

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  21. हम कोई फ़ंटूस सी बात कहने के लिये आये थे लेकिन जब देखा सबरन लौट आया तो अलसिया गये। :)

    बधाई उसकी घर वापसी पर।

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  22. केवल ज्ञान जी की बात सही है -ब्राहमण अमूमन झाडू पोछा ईमानदारी से नहीं करेगा ! हजारो साल के संस्कार कुछ जीन में भी न आ गए हों !

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