इस लेखमाला को लिखने की प्रेरणा एक लंठ ब्लॉगर से चैट के दौरान हुई। भूमिका के तौर पर जो कुछ थोड़ा सा लिखा था, कैरेक्टर एनकोडिंग के चक्कर में स्वाहा हो गया। भारतीय तंत्र, पंथ परम्पराओं और लंठई के आलोक में पश्चिमी विचारधारा को समझने और उसकी विसंगतियों से साक्षात होने का महत आयोजन होगी यह लेखमाला।
हर व्यक्ति के भीतर एक नर तत्व और नारी तत्व, संसार में उनकी अभिव्यक्ति, घूमती सममिति, संतुलन-असंतुलन, तांत्रिक और पगान परम्परायें, शिवा के साथ युगनद्ध शिव, शिवा के वक्ष से दूध पीते शिव, शिवा के चरणों में शिव, शिवा को उपदेश देते शिव, अर्धनारीश्वर, काली कराली के चरणों तले रौंदे जाते शिव, शिवा के मृत शरीर को धारण कर विक्षिप्त घूमते शिव, 64 योगिनी, शक्तिपीठ, ज्योतिर्लिंग, खजुराहो के मन्दिर, स्मृतियों और परवर्ती विचारकों के पूर्वग्रह, संतति केन्द्रित स्त्री के कामभाव का जननी बनने के बाद उदात्तीकरण, पुरुष मानक, पुरुष द्वारा दमन, स्त्री का विद्रोह और पक्षपात, वादों के पूर्वग्रह और स्त्री पुरुष दोनों की विकृत व्याख्याएँ .... ढेर सारी बाते हैं।
आलसी के पास तीन बड़े काम हैं - बाउ, प्रेमपत्र और बोधगया की यात्रा (ओं मणि रक्तपद्मे हुं हृ:)
अधूरे काम हैं - मार्क्सवाद पर डा. केली रॉस के लेख का अनुवाद, यौनांग उच्छेदन, लम्बी कविता 'बताओ तुम्हारा स्वागत कैसे करूँ'
तो मित्रों! प्रतीक्षा कीजिए।
nice वाले को स्पेशल आभार ;)
देवेन्द्र जी ने बहुत अच्छी बात कही है। ललित जी ने दूर की कौड़ी के बहाने मामले की गम्भीरता को समझा है तो राज भाटिया जी, दीपक जी और प्रवीण जी की टिप्पणियाँ मुद्दे की जटिलता की ओर संकेत करती हैं।
इस लंठ आलसी की दृष्टि पड़ गई है तो यह मुद्दा भी विश्लेषित होगा लेकिन पहले अधूरे तो पूरे हों!
तब तक सौन्दर्य लहरी पर सम्भवत: हिमांशु पांडेय जी कुछ ले कर आयें।
लेंठड़े के बहाने नारीवाद पर लिखने का अनुरोध भी किसी ब्लॉगर से किया है जिसकी सैद्धांतिक सहमति मिल चुकी है लेकिन सबके पास और भी ग़म हैं ब्लॉगरी के सिवा।
प्रतीक्षा कीजिए।
nice....
जवाब देंहटाएंक्या अंतर है ?
जवाब देंहटाएंइत्ते भारी भारी अंग्रेजी शब्दों से इ कठमगज कैसे नारी और नारीवादी में अंतर समझेगा.
जवाब देंहटाएंकैसी परीक्षा है आचार्य?
इत्ते भारी भारी अंग्रेजी शब्दों से इ कठमगज कैसे नारी और नारीवादी में अंतर समझेगा.
जवाब देंहटाएंकैसी परीक्षा है आचार्य?
वादी अपनी आधी अस्मिता खो देता है।
जवाब देंहटाएंअरे बाबा क्यो इस पंगे मे फ़सांते हो....
जवाब देंहटाएंभैया जी,
जवाब देंहटाएंउसके लिए नारीवाद को समझना होगा और उससे बढ़ के, नारी को समझना होगा!!!!
गजबे दूर की कौड़ी ले के आयें हैं आप तो......
लोक-शास्त्र, परा-अपरा संदर्भों को ताजा कर फिर से आना होगा यहां.
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा बस इस आस में सही जा रही है कि मन को खुराक-ए-जन्नत मिलेगी।
जवाब देंहटाएंअरे ई कौन से भूलभुलैया में पड़ने जा रहे हैं.........
जवाब देंहटाएंपहिले बाऊ कथा और पिरेम पतरवा को पूरा कीजिये नहीं तो...........बूझ गए न!
ee 'waad' t' apne aap me ekta vivad
जवाब देंहटाएंhoit aich....
aa tahi par apnek klisht bhav aur bhasha.....
jai hind-jai bloging
अगर काम भाव तिरोहित हो जाए, तो पुरुष और नारी में क्या अंतर?
जवाब देंहटाएंवाद, कभी कोई भी, सही नहीं होता |
छोटी पोस्ट लिखने को धन्यवाद। बकिया अपन को नारी/नारीवाद/अंतर से बहुत कुछ लेन-देन नहीं है! अत: स्पष्ट नहीं भी हुआ, तो कोई बात नहीं।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आइयेगा।
भीगी पलकें और टपकते आंसू।
बाप रे!
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षारत्
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी और विचारधारा सशक्त है, अधीरता से प्रतिक्षा रहेगी इस विषय पर!!
जवाब देंहटाएंबौद्धिक संतृप्ति के लिए मैं भी छटपटा रहा हूँ ....शुरू कीजिये !
जवाब देंहटाएंलानत है उस लंठ पर जो आपसे प्रेरणा लेने के बजाये आपको लिखने की प्रेरणा देने लगा !
जवाब देंहटाएंब्लागिंग एक ब्लागर का लैपटाप खा गयी में नारी और नारीवाद का साम्य ज़रूर ढूंढियेगा !