जब तुम्हें लिखता हूँ, स्वेद नहीं, झरते हैं अंगुलियों से अश्रु।
सीलता है कागज और सब कुछ रह जाता है कोरा
(वैसे ही कि पुन: लिखना हो जैसे)। जब तुम्हें लिखता हूँ।
नहीं, कुछ भी स्याह नहीं, अक्षर प्रकाश तंतु होते हैं
(स्याही को रोशनाई यूँ कहते हैं)।
श्वेत पर श्वेत। बस मुझे दिखते हैं।
भीतर भीगता हूँ, त्वचा पर रोम रोम उछ्लती है ऊष्मा यूँ कि मैं सीझता हूँ।
फिर भी कच्चा रहता हूँ
(सहना फिर फिर अगन अदहन)।
जब तुम्हें लिखता हूँ।
डबडबाई आँखों तले दृश्य जी उठते हैं।
बनते हैं लैंडस्केप तमाम। तुम्हारे धुँधलके से मैं चित्रकार।
फेरता हूँ कोरेपन पर हाथ। प्रार्थनायें सँवरती हैं।
उकेर जाती हैं अक्षत आशीर्वादों के चन्द्रहार।
शीतलता उफनती है। उड़ते हैं गह्वर कपूर।
मैं सिहरता हूँ। जब तुम्हें लिखता हूँ।
हाँ, काँपते हैं छ्न्द। अक्षर शब्दों से निकल छूट जाते हैं गोधूलि के बच्चों से।
गदबेर धूल उड़ती है, सन जाते हैं केश। देखता हूँ तुम्हें उतरते।
गेह नेह भरता है। रात रात चमकता हूँ। जब तुम्हें लिखता हूँ।
जानता हूँ कि उच्छवासों में आह बहुत।
पहुँचती है आँच द्युलोक पार।
तुम धरा धरोहर कैसे बच सकोगी?
खिलखिलाती हैं अभिशप्त लहरियाँ। पवन करता है अट्टहास।
उड़ जाते हैं अक्षर, शब्द, वाक्य, अनुच्छेद, कवितायें। बस मैं बचता हूँ।
स्वयं से ईर्ष्या करता हूँ। जब तुम्हें लिखता हूँ।
न आना, न मिलना। दूर रहना। हर बात अधूरी रहे कि जैसे तब थी और रहती है हर पन्ने के चुकने तक।
थी और है नियति यह कि हमारी बातें हम तक न पहुँचें। फिर भी कसकता हूँ।
अधूरा रहता हूँ। जब तुम्हें लिखता हूँ।
तुम्हें चाहा कि स्वयं को? जीवित हूँ। खंड खंड मरता हूँ।
साँस साँस जीवन भरता हूँ। मैं तुम्हें लिखता हूँ।
साँस साँस जीवन भरता हूँ। मैं तुम्हें लिखता हूँ।
इसे अर्चना जी ने अपने ब्लॉग पर स्थान दिया है। लिंक यह है: आलसी का काम
कवि को उसके अपने स्वर में सुनना एक अलग ही अनुभूति है। बहुत सुन्दर बना है। ये दिल मांगे मोर ...
जवाब देंहटाएंमस्त लिखा है भाई ...बिलकुल दिल की कलम से !
जवाब देंहटाएंघनीभूत प्राणेर व्यथा बह जाने को अकुलाई!
जवाब देंहटाएंह्रदय को झंकृत कर देने वाला पॉडकास्ट। आनंद आ गया ..बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंachha likha hai
जवाब देंहटाएंसमझ नहीं पा रहा हूँ कि शब्द गहरे हैं या स्वर..
जवाब देंहटाएंvaah ....
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी !
जवाब देंहटाएंसुंदर ☺
जवाब देंहटाएंबहुते ऊरेब प्रस्तुति है
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी कहाँ कैद हो गयी!!
जवाब देंहटाएंमहराज! आप की टीप कैद करने की गुस्ताखी कैसे कर सकता हूँ। देखिये, कहीं दूसरी जगह बिलवा आये आप और यहाँ ढूँढ़ रहे हैं। मेरा तो नुकसान हो गया न?
हटाएंओफ्फोह! फिर तो महाराज यह इस सदी की बेहतरीन टीप हो गयी.. आपकी आवाज़ में हम ऐसा बिलाये कि टीप एकदम मने में रह गया.. मगर अभियो बुझा रहा है कि हम लिखे थे.. मन नहीं मान रहा..
हटाएंहम लिखे थे कि रचनाकार के स्वर में रचना को सुनना एक अद्भुत अनुभव होता है, रचनाकार सिर्फ शब्दों को ही नहीं पढ़ता बल्कि उन भावों को भी अभिव्यक्त करता है जिसके द्वारा कविता सर्जित हुई, विराम चिह्नों के प्रयोग, आरोह अवरोह.. सब स्पष्ट हो जाता है!!
एक अद्भुत अनुभव!!
आप नहीं पढ़ते तो कुछ कम सा रह जाता, अधूरा सा।
जवाब देंहटाएंसच है जो सलिल जी कह गए हैं।
आज आभार स्वीकारें।
प्रत्यक्ष भी आपको सूना हूँ पर यहाँ आपकी आवाज को सुनना जैसे दूसरे अनुभव को प्रस्तुत करता हो! शायद कला के क्षणों का हस्तक्षेप हो! बाकी पर ऊपर वालों ने कहा ही है, सत्यूक्तं !
जवाब देंहटाएंयत्र तत्र उच्चारण दोषों के बाद भी आप सबने सराहा इसके लिये आप सबका आभार। पहले प्रयास में ही इतना प्रोत्साहन मिले तो क्या कहने! अर्चना चाव जी ने इसे अपने ब्लॉग पर स्थान दिया जब कि इसके पहले मैं उन्हें जानता तक नहीं था। उन्हें भी धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउत्साह में इस चैत्र नवरात्रि राम की शक्तिपूजा को पढ़ने का मन बनाया हूँ। आप को कोई सलाह, मार्गदर्शन देने हों तो कृपया बतायें।
अजब हक़ीक़त है इस हाल-ए-वीरानी की
जवाब देंहटाएंसाँस भी भरता हूँ तो तेरी गूँज होती है।
अद्भुत -बस अनुभवगम्य!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत दिल को छू लेने वाली रचना है यह.. वटवृक्ष से आपके ब्लॉग का लिंक मिला..रश्मि जी का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत सारे भाव देखने को मिले इस एक रचना में.....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंमनोहारी!!!!!!!!!!!!!!!
bahut hi umda aur manbhavan rachna,bdhai aap ko
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...बिलकुल अलग सी रचना
जवाब देंहटाएंपढ़ा-सुना था... फेसबुक के लिंक से ही. आज यूँ ही कहने आ गया. फुर्सत में पढने के लिए आपकी पोस्टें अनरेड रखी जाती है. पढने के बाद भी. यकीं है मुझे कि आपको भी नहीं पता.. आपके कितने बड़े बड़े फैन हैं :)
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