सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

लोक : भोजपुरी -3: लोकसुर में सूर - सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।

पिछली कड़ियाँ: 
(1) साहेब राउर भेदवा 
(2) कवने ठगवा 


 महाशिवरात्रि। आकस्मिक कारण से गाँव आना पड़ा। सोचा कि अनाम गायक की खोज भी कर लूँ  और आखिरकार मिल ही गये इलाके के अनाम गायक यानि शंभू पाण्डेय
shambhooआयु - 35 वर्ष
मौजा – खुर्द मठिया
टोला – जोगी छपरा
पोस्ट – सिंगहा
जिला – कुशीनगर
मोबाइल - 0-9936203868
(बिजली रहेगी तो चार्ज होने पर ऑन वरना ....)
इनके मिलने की कहानी फिर कभी। इसलिये कि महापर्व पर उपेक्षा और भयावह ग़रीबी के बीच जीवन जीने की त्रासदी को बयाँ करना कठिन होगा।
अभी सुनिये इनके स्वर में शिव स्तुति। परम वैष्णव सूरदास द्वारा भोजपुरी में शंकर का आश्रय ले बनवारी की स्तुति! यह लोक में ही सम्भव है।
संत कवियों की लोक में पैठ इतनी व्यापक है कि बिना भाषा, क्षेत्र, बोली आदि की परवाह किये सीधे सादे शब्दों में रची गई रचनायें उनके नाम हो जाती हैं। भोजपुरी इलाके में कबीर और अवधिया तुलसी के लिये यों समर्पण तो समझ में आता है, लेकिन सूरदास? यह लोक में ही सम्भव है:
बड़ऽ लहरी ए , बड़ऽ लहरी
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
बसहा बएलवा साथ में लेहलें, हाथ में लेहलें डमरूऽ 
बगला में मिरछाल के दाबें, जटवा में गंगा लहरीऽ।
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
 
खोआ मलाई के हाल न जानें, भँगिया पीसि के पीयेलें
भाँग पिसत में गउरा रोवें, गउरा रानी धइले बाड़ी नइहर के डगरीऽ।
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
  
कोठा मारी के हाल न जानें, खोजें टुटही पलानीऽ
हाथ कवंडल, गल में सरप, पारबती धइले बाड़ीऽ बसहा के डोरीऽ।
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
 
भस्मासुर जब किया तपेस्सा, बर दिहलें तिमुरारीऽ
जिनके  सर पे हाथ धरो तो, जरि के होय जयछारीऽ।
सिव भोला हउवें दानी, बड़ऽ लहरीऽ।
 
सिव के सर पे हाथ धरन को, मन में दुस्ट बिचारीऽ
तीन लोक में भगें महादेव, कहिं ना मिललें मुरारीऽ।
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।

पारबती के रूप बना के, आ गइलें बनवारीऽ
जो तू मुझको नाच देखावो, चलबे साथ तुम्हारीऽ।
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।

नाच करन के भस्मासुर जब कइ दिहलें तइयारीऽ
अपने सिर पर हाथ धरें तो, जर के होंय जयछारीऽ।
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
भस्मासुर के भस्म के कइलें, संकर के दुख टारीऽ
सूर स्याम प्रभु आस चरन के,  हरि चरन हितकारीऽ।
सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
 
‘त्रिपुरारी' को मुरारी से जोड़ 'तिमुरारी' कर देना रोचक है। सुनिये इस महापर्व के अवसर पर शम्भू जी के स्वर में शंकर चरित:



अगले अंक में: सिव गउरा के बियाह  

13 टिप्‍पणियां:

  1. शिव रात्रि पर इस से बेहतर प्रस्तुति नही हो सकती!
    साधुवाद!

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  2. अनाम कहाँ, गायक खुद शंभू हैं!लोक गायकी में कितने ही ऐसे हीरे जवाहरात उपेक्षित पड़े हैं - उनकी यह नियति दुखी करती रही है....
    कितनी पुरजोर आवाज़ है! शंभू का एक लोकगम्य रूप सब सुख सुविधाओं से प्रवंचित ,घोर विपन्नता में भी मस्त व्यक्ति की है और यह असंख्य प्रवंचितों को जीने की शक्ति देता है !

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  3. जी जुड़ा गया ....ग्राम्य परिवेश जेहन में अब तक झनकार रहा है।

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  4. बढि़या हो गई हमारी महाशिवरात्रि.

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  5. गजब स्वर, मदमस्त गायकी, लगा भोलेनाथ के सामने यह अर्पण हो रहा है।

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  6. बम बम भोले! मन प्रसन्न हो गया…. दिल से गया गया….!

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  7. बुलंद आवाज है। सीधे कलेजे से निकलकर श्रोता के दिल में समा जाती है। सुनकर शब्द सम्राट भी चकरा गये! पूछ रहे हैं..गदगद होने पर क्या कहा जाता है?

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  8. आनन्द आ गया गिरिजेश, यह शृंखला कभी न रुके ऐसा मन कर रहा है। आभार!

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  9. वाह भयवा, खोजिउ लाया! बहुत सुंदर! हार्दिक तौर पै खुस अही, और का कही!!

    अनाम से मिलै वाला परसंग लिखा, जल्दियै!

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  10. बहुत ही सुन्दर .....!!!!! ऐसी आवाज़ आज-कल के दौर में बहुत कम सुनने को मिलती है...

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