शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

लोक: भोजपुरी-1: साहेब राउर भेदवा

भोजपुरी लोक की बात आते ही आजकल कतिपय जन मुँह बिचका देते हैं। उनके लिये भोजपुरी माने अश्लीलता होती है। भोजपुरी की वर्तमान गीत गवनई पर बहुत बहसगालियाँ हो चुकी हैं। नेट पर कोस भर भर उपलब्ध हैं। मैं भोजपुरी क्षेत्र का हूँ जो मेरे रग रग में बसा है। अपनी संस्कृति और परम्परा को बहुत पास से देखा, सुना है। भोजपुरी माटी में जन्म हुआ, उसी में मिल जाऊँगा। जब चन्द सिक्कों के लालची कथित कलाकारों के कुकर्मों की धुन्ध फैली हो तो भ्रम स्वाभाविक है लेकिन मुझे कष्ट होता है। बहुत दिनों से सोचे जा रहा था कि उस समृद्ध पुरातन को सामने लाने का छोटा ही सही, प्रयास करूँ लेकिन टलता रहा।
यह धरती कबीर और रैदास की धरती है। भिखारी ठाकुर की धरती है। काव्य हो, संगीत हो, रस हों, वैविध्य हो – क्या नहीं है यहाँ? बस सामने लाने की आवश्यकता है। मैंने घुमंतू जोगियों को गाते देखा सुना है – किशोरावस्था में ही जोगी बन गोपीचन्द माँ से भीख माँगने आये हैं। माँ गुदड़ी देते रो पड़ती है और उसके दुख में जैसे समूची सृष्टि ही जार जार हो उठती है:
धइली हो गुदरिया ए माईऽ, बाबू के समझाई...
गाँव के अगिया सुन हो बेटा, गाँव के लोग बुझाई,
कोखिया के अगिनिया हो बेटाऽ दुनिया में कोइ ना मेटाईऽ। 
 
जोगी तपस्या की ऊँचाई को छूते प्रेम की नासमझी को भी समझाता है:
आगि के महलिया तोहरी, कइसे आईं हो जोगीऽ
लागि जइहें आगि देहियाँ, जरि जाई सारी सगरीऽ। 
 
दूर बिहार से कोई घुमंतू ठाकुर आता है और सबको रुला जाता है:
गवना कराइ सइयाँ घरे बइठवलें हो, अपने बसेलें परदेस रे बिदेसियाऽ
 
नभ से भी ऊपर उठान लेते मुहम्मद खलील वय:सन्धि की रेख को झँझोर जाते हैं:
बन बन ढूँढली, दर दर ढूँढली, ढूँढली नदी के तीरे
साँझ के ढूँढली राति के ढूँढली, ढूँढली होत फजीरे।
... सगरी उमिरिया धकनक जियरा कबले तोहके पाईं ...
कह नहीं सकता कि उस आवाज़ ने मुझे क्या से क्या कर दिया!... 
 
... आज उस सनातन पुरातन परम्परा के स्वर सुनाना चाहता हूँ।
कवितायें और कवि भी... पर शृंखला प्रस्तुत करना चाहता था लेकिन उसकी पहुँच आलसी जितनी नहीं है, इसलिये यहाँ। जनवरी में अनुज गाँव गया तो इलाके से मेरे लिये कुछ लेकर आया। एक देहाती कलाकार के स्वर में निरगुन। नहीं पता कि इसे कबीर ने रचा था या साधो से कहने सुनने की परम्परा को आदर देते गायक ने अपने गीत को उनके नाम कर दिया लेकिन है अद्भुत!
गायक का परिचय है:
नाम – अनाम
आयु – 45 के आसपास
ग्राम – सिंगहा
जिला – कुशीनगर, उत्तरप्रदेश
व्यवसाय – यायावरी
एक बेटा है जो छठी में पढ़ता है। एक बार आकाशवाणी गोरखपुर में भी गाया लेकिन वादे के बावज़ूद मेहनताने का एक पैसा तक नहीं मिला। गायक दुबारा ‘सीकरी’ नहीं गया। काठमांडू पशुपतिनाथ के दरबार में भी यह स्वर गूँज चुका है लेकिन आज उपेक्षित अनाम अज्ञात है।
वादा है कि इस बार गाँव गया तो इनसे अवश्य मिलूँगा और बहुत कुछ ले कर आऊँगा। मुझे सुनना है कि भर भर नयनों में लहरें कैसे उठती हैं:
बोले पिजड़ा में मयनवा, बड़ऽ लहरी
 रोइहें भरि भरि ऊ नयनवा, बड़ऽ लहरी। 
गीत कुछ इस तरह है:
जाने ना कोई कोई ए, साहेब राउर भेदवा हो जाने न कोई कोई।
ये देहिया ले बैल बाध बा निरमल खेतिय होई
राम हि नाम के हरवा जुअठवा, रनल बा मोतिया न बोई।
पानिय ले ल साबुन ले ल, मलि मलि काया धोई
अन्दर अघि के दाग न छूटे, निरमल कहवाँ से होई।
तोया क ल ए माया से, तोर मोर भेंट न होई
जाके प्राण परल बा मटिया, ना जाने मटिया के कवन गति होई।
साधुअ मुनिउँ अ सन्यासी, शेष नाग प धोई
जिन जिन जनम लिये धरती पर, अमर भइल नहिं कोई।
कहे कबीर सुनो भइ साधो, चेत करो मन रोई
अइसन अवसर फिर ना अइहें, मानुस तनवा ए दुरलभ होई।
 
जाने कौन साहेब है यह? और यह भेदिया कौन है? अब सुनिये मोबाइल की रिकॉर्डिंग। बढ़िया प्रभाव के लिये हेडफोन लगा कर सुनिये और समझिये कि लहरी भोजपुरी क्या होती है!यह स्वर प्रशिक्षित स्वर नहीं, सहजिया स्वर है जिसमें खेतिहर लोक का बैरागी रस है: 


13 टिप्‍पणियां:

  1. गिरिजेश जी!
    मूलतः मगध अंचल से आता हूँ, किन्तु ननिहाल भोजपुर क्षेत्र में होने के कारण, मागधी और भोजपुरी दोनों भाषा से परिचय रहा.. बल्कि दोनों ही भाषाएँ लहू में बसी रहीं. भोजपुरी को केवल अश्लील ही नहीं गंवारों की भाषा भी समझा जाता रहा है. जब मैं दुबई में था तो वहाँ काम करने वाले मजदूर मेरे बैंक में आते थे, मगर उन्से कोई सीधे मुँह बात तक नहीं करता था. जब मेरी पोस्टिंग वहाँ हुई, तो वहाँ की भाषा ही भोजपुरी हो गई. गोड लागी से लेकर दुर् मरदे तक का तकिया कलाम धडल्ले से प्रयोग में आने लगा..
    चंद सिक्कों के लालची तथाकथित कलाकारों के अतिरिक्त हमारे प्रमुख नेता ने इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी.. लोग भूल गए कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी भोजपुरिया थे और जयप्रकाश नारायण भी. लोगों को याद रहा सिर्फ लालू. खैर, अच्छा लगा यह परिचय.. और यह लोक गीत तो जैसा कि मैं कहता हूँ बेसुरे कंठ का सबसे सुरीला गीत है. अपनी माटी के प्रति इसे ट्रिब्यूट मानते हुए सलाम् करता हूँ इस जज्बे को. मैंने अपने ब्लॉग की भाषा भी इसी भावना के साथ बनाए रखी है, कई लोगों के अनुरोध, विरोध के बावजूद भी!!
    पुनः धन्यवाद!!

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  2. बिहार ....बिदेसिया.....अ बिरहा ......एक ज़माना मं बिहार के एही पहचान रहे. आज तेज़ रफ़्तार बाहन अ मोबाइल के कारण बिरह कुछ कम भइल बा. हम लालू के परसंसक ना हईं...पर भोजपुरी के दबंगई के साथ प्रसारित करे मं लालू के योगदान स्वीकार करतानी. हमारे ज़माना मं चाईं बाबा के रिकार्ड खूब बजत रहे ....हमहूँ उनकर कुल गाना सुनलीं.
    आज हम रउआ के एह रूप देख के खुस बानी. भोजपुरी अ मगही लोक गीत के संकलन आ इतिहास संकलित कर सकीं त एगो महत्वपूर्ण काम होई . नेट पर ई कुल देख-सुन के बिदेस रहे बाला भोजपुरिया हिरदय के दसा के अनुमान लगाईं रउआ .....आपन माटी के खुसबू मं परान बसल बा...
    आज रउआ भावुक कई देहलीं ....

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  3. वाह्य आवरण आत्मा की मुग्धता स्पष्ट नहीं कर पाता है।

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  4. मजा आई गवा सचहूँ में !
    पहला वाला गीत भी पूरा दें तो और मजा आई जाएगा

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  5. रिकार्डिंग सुनकर आनंद आ गया। वाह!

    राउर, कइला कमा..ल जियरा, जुड़ाय गयल हमरो...

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  6. आश्वस्त हुआ कि अब कुछ हीरे अपनी चमक से परिवेश में फैली दूषित ग्रंथियों को दूर करंगे।

    इसे नये माध्यम का लोकतांत्रिक असर कहूँगा कि उपेक्षित अनाम अज्ञात भी आ जा रहे हैं, क्या पता कलाओं में पनपी सामंतशाही ऐसे ही टूटे।

    खलील की आवाज का वह अमिट प्रभाव मैं अनुमान भर कर रहा हूँ, अनुभूत करूँगा एक न एक दिन, ऐसा आशावाद हुलास मार रहा है।

    भोजपुरी में निर्गुन की समृद्धि ऐसी है कि अन्य भारतीय भाषाएँ शायद कमतर ही दिखें, सही नाम उद्धृत किये हैं आपने, कबीर-रैदास जैसों के निर्गुण-गुण-रस की भूमि यही है।

    इन अनाम महाशय ने मन मोह लिया, झाझर के बीच में यह अमृत-स्वर-लहरियाँ कई बार ‘प्ले’ बटन दबवाने में पूर्ण समर्थ हैं। अब आप इनके अधिकाधिक गीतों से हमें रूबरू करायेंगे, पूर्ण विश्वास है।

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  7. आनन्द आ गया। भाषा के उदाहरण इस ब्लॉग पर पहले भी देख चुका हूँ मगर भोजपुरी को समर्पित एक पूरी शृंखला, क्या कहने! गीत पूरा सुना, अच्छा लगा, अनुज का आभार! यह याद करते हुए अच्छा लग रहा है कि कुछ अच्छे ब्लॉग्स को वर्षों से निर्बाध पढता रहा हूँ, निश्चित रूप से उन उत्कृष्ट ब्लॉग्स में यह ब्लॉग भी एक है। शुभकामनायें!

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  8. आँखि के कोर नम बा. मन के भाव आ माटी में भेद ना होखे.
    सादर बधाई.

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  9. दुर्लभ चीज़ है कम से कम आज के ज़माने में.. हैं ऐसे लोग अभी भी पर मीडिया की चकाचौंध में छिप गए हैं.. और रेकार्डिंग बढ़िया है! :)

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  10. दुर्लभ चीज़ है कम से कम आज के ज़माने में.. हैं ऐसे लोग अभी भी पर मीडिया की चकाचौंध में छिप गए हैं.. और रेकार्डिंग बढ़िया है! :)

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  11. बहुत मीठा गीत सारपूर्ण भी । सच ही कहा है साबुन पानी से अंदर के पाप कैसे मिटे ?

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