बसंत माने जिसमें संत भी बौरा जायँ। बसंतपंचमी आई और गई। अधेड़ और बूढ़ों ने गुजरे जमाने याद कर आह भरे। पीले कपड़ों में उन गालों की ललाई याद की जिन पर अब वक्त की झुर्रियाँ हैं और शाम को ब्लड प्रेशर की दवा खा खाँसते सो गये। जवानों को पता ही नहीं चला हालाँकि फेसबुक पर आहें भरते अंकल टाइप के जवान बसंत बसंत चिल्लाये भी। उधार खाते का वैलेंटाइन डे आने वाला है, जवानों को और मार्केटिंग कम्पनियों को उसका इंतज़ार है। धुँआधार तैयारियाँ चालू हैं। वैलेंटाइन बाबा भी संत थे। बौराने का भरपूर मसाला दे गये। दूरदर्शी थे। उन्हें पता था कि सुदूर इंडिया में जब जवान लाइफ के टेंशन में बसंत काल की फसंत विद्या भूलने लगेंगे तो उनका डे ही काम आयेगा। जमाना गवाह है, बड़े बौरान टाइप के संत थे।
जवानों को बसंत या किसी संत से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें तो बस फँसने फँसाने का बहाना चाहिये। सारी फसंत विद्या लिये मोबाइल जो साथ में है! भाँति भाँति के एस एम एस और टाक स्कीम – अगर आप फँसानू जोड़े हैं तो आपसी बातचीत मुफ्त और छ्त्तीस घंटे बतिया लिये तो उसे तिरसठ करने के लिये पास के कॉफी हाउस में कॉफी मुफ्त।
दाँत चियारने, आँख मारने, ताली बजाने, लजाने, रूठने, मनाने, चुम्मा लेने आदि आदि सबके तो इमोटिकॉन चैट बॉक्स में बने ही हुये हैं। कितनी सहूलियत रहती है! गॉड नोज पुराने जमाने में इनकी ऐक्टिंग करने के लिये कितनी मेहनत करनी पड़ती होगी! ओल्ड फैशन्ड यू नो! फूल तक चैट बॉक्स में बन जाते हैं, असली फूलों के फूलने का मौसम जानने, निहारने, चुनने में बड़ी ट्रबल है। शियर नॉनसेंस! आइ ऐम एलर्जिक टू पॉलेन, यू नो! वैसे भी फूल एक्जीविशन में ही अच्छे लगते हैं। देखो दूर से, छुओ मत। छूने के लिये तो ... ही ही ही।
यू आर ग्रेट डैड!
चिपक कर पीछे बिठा के घूमने घुमाने का मज़ा आप लोग क्या जानो? पता है इससे गल्स को गिफ्ट करने का ग्रेट तरीका भी आ जाता है। वो ढली चाँदनी आंटियाँ हैं न! चेन पहन कर शाम को सब्जी लेने जाती हैं। बस एक झटका और गिफ्ट मनी हाथ में। हाउ कूल!
हम तो हरदम बसंत के स्प्रिंग मोड में रहते हैं। उसके आने जाने को जानने से क्या होगा? घंटा!
ये देखो ये आर्टिकल भी किसी अंकल टाइप ने ही लिखा है। बोर! महाबोर!! थम्स डाउन किधर है?
जब तरक्की होती है तो ऐसे ही होती है।
जवाब देंहटाएंबाबा चरस बो गये, अब इतना नशा सवार है कि १४ साल की शादी के बाद भी गिफ्ट चाहिये, क्या कीजियेगा, काटिये चरस का फसल..
जवाब देंहटाएंtoo good
जवाब देंहटाएंmanjari
manjarisblog.blogspot.com
हम तो हरदम बसंत के स्प्रिंग मोड में रहते हैं। उसके आने जाने को जानने से क्या हो
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_06.html
जवाब देंहटाएंथम्स अप! आचार्य जी!!
जवाब देंहटाएंबोर करने वाले अब्कल को नमस्कार !
जवाब देंहटाएं*अब्कल=अंकल
हटाएंहोश ठिकाने लगे बसंत के.
जवाब देंहटाएंबसंत सदियों से फसंत ही रहा है ..बचे के रहना रे बाबा !मकारों से दूर रहना इन दिनों....मतलब मीन ,मीनाक्षी ,मुद्राएँ मैथुन आदि आदि ...
जवाब देंहटाएं.. और मक्कार मक्कारियों,मक्कारिनों से भी ....मक्का नाम ऐसे ही थोड़े पडा ... :)
जवाब देंहटाएंअब का कहूँ .... पुराने चावल मे माड़ भले न हो खुदबुदाना नहीं न भूलते
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंमस्त बसंती रवानी:)
जवाब देंहटाएंआपने तो वो emoticons वाला डिब्बा भी नहीं रखा नीचे, वरना बजाते ताली :)
जवाब देंहटाएंसंत भी बौरा जाए :) तभी कहूं...
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