...क्यों नहीं पढ़ता , यह जानने के लिये कि उपादान (मैटर) रचना की आत्मा नहीं हो सकता। ...यह मैटर तो ’मूल्य’धारण ही करता है तब, जब रचनाकार की आत्मशक्ति उसमें संयुक्त होती है।
सर्वप्रिय ब्लॉग आयोजन में पुरस्कार स्वरूप जो घोषणायें की थीं, उनमें प्रथम कड़ी उस ब्लॉग पर जिसे 'चन्द्रहार का सुमेरु' कहा था यानि ब्लॉगर ज्ञानदत्त पांडेय की मानसिक हलचल। सुमेरु समान ही ऊँचाई लिये यह ब्लॉग केन्द्र रत्न की तरह है और अपने पाठकों के लिये गंगा सुमिरनी की तरह - एक ऐसा ब्लॉग जिसमें ब्लॉगर की आत्मा इस तरह से व्याप्त है कि ब्लॉग और ब्लॉगर का विभेद कर कुछ कह पाना अत्यंत कठिन हो जाता है। सम्भवत: यही तथ्य उसकी प्रियता का सबसे बड़ा कारण है जिसे ऊपर एक 'कारण' के तौर पर पाठक ने बताया था।
यह एक ऐसा ब्लॉग है जिसमें लेखक के स्व का विषय पर प्रक्षेपण बहुत ही सहज, स्वाभाविक, तरल और अनावृत्त रूप में होता है, इतना अनावृत्त कि लेखक की सीमायें, पूर्वग्रह और सूक्ष्म 'शरारतें' भी चेतन मन के सामने आ जाती हैं और 'खीझ कम , आदर एवं मुग्धता अधिक' का सृजन करती हैं।
पूरा तो नहीं लेकिन जितना पढ़ा है उसमें एक बात आश्चर्यजनकरूप में सामने आती है - कविता, कहानी, गीत, संगीत आदि की अनुपस्थिति और कड़ी दर कड़ी विषय को खींचने की प्रवृत्ति का एकदम अभाव। पाठक अतृप्त नहीं होता और न झुँझलाता है कि अब दूसरी बार भी आ कर देखना होगा लेकिन अपने परिवेश और उसके कुछ उपेक्षित चरित्रों जैसे जवाहरलाल से सरल वार्तालापी जुड़ाव की निरंतरता और आत्मीयता अपने प्रभाव में धारावाहिक संतृप्ति का सृजन भी करती है यानि नेटसैवी आम जन की नितांत व्यावहारिक चाहना या आवश्यकता ही कह लीजिये, की पूर्ति यह ब्लॉग करता है।
शादी गवने में 'गाँव वालों के हरामीपने' के कारण कर्जदार हो गये अपने भृत्य पर सहानुभूति भी है इस ब्लॉग में जो सहज ही तमाम कुरीतियों और कठमगजी के विरुद्ध एक 'स्टेटमेंट' बन जाती है।
इस ब्लॉग पर चन्द चुटकियों द्वारा उफान भी सृजित किये गये जिनके कारण 'अफसरी रुआब' और मठाधीशी जैसे आरोप भी लगे माने कि मीठा, नमकीन के साथ थोड़े से तीखे का भी आस्वाद यहाँ उपलब्ध है। इस ब्लॉग का सबसे बड़ा आकर्षण है –आमफहम भाषा में गहन अंतर्दृष्टि ली हुई जन जीवन से जुड़ती बातें। यह अंतर्दृष्टि गम्भीर प्रेक्षण और अनुभव के मेल से ही आ सकती है। सबसे बड़ी बात कि नब्ज़ की समझ भी होनी चाहिये, जो कि यहाँ पर्याप्त है।
साहित्य के पारम्परिक रूपों की अनुपस्थिति नेट पर 'आम जन की वैकल्पिक अभिव्यक्ति' विधा की उपस्थिति को सान्द्र करती है। गोलबन्दी, वादवादी साधारणीकरण और पॉलिटिकल करेक्टनेस के चक्कर में आम जन से दूर होता गया हिन्दी साहित्य जगत लेखक के लिये बहुत आदरणीय नहीं प्रतीत होता जिस पर वे 'साहित्त' कह कर समय समय चुटकी लेते रहे हैं।
ब्लॉग का फलक बहुत विस्तृत है। विदेशी और प्रबन्धन साहित्य, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय घटनायें, परिवेश के पर्यावरणीय प्रसंग, उपेक्षित परंतु उत्सुकता जगाते 'कैरेक्टरों' की जाँच पड़ताल, अपने कार्यक्षेत्र की 'बिनायन' जानकारियाँ, ब्लॉगरी के टूल किट, ब्लॉग जगत की टकराहटें आदि आदि बहुत कुछ।
जो जन अभियंत्रण में प्रशिक्षित हैं, वे बहुत आसानी से यह समझ सकते हैं कि इस ब्लॉग के अधिकांश लेखों में इंजीनियरिंग पढ़े एक युवा का वही टिपिकल अप्रोच झलकता है - अलहदा, बेपरवा सा लेकिन विजन के साथ ‘टू द प्वाइंट’ चोट करता हुआ।
कहीं इस ब्लॉग में वानप्रस्थ की ओर बढ़ते व्यक्ति का बैरागी भाव भी लक्षित होता है। मुझे पता नहीं कि ब्लॉग लेखक इस बात पर क्या प्रतिक्रिया करेंगे लेकिन मुझे यह प्रतीत होता है। ब्लॉग के मास्ट पर जो चन्द पंक्तियाँ हैं वे ऐसा आभास देती हैं। सादी दार्शनिकता के साथ 'होने का दस्तावेजी प्रमाण' शब्द समूह बहुत कुछ कह जाता है:
देखते हैं इस ब्लॉग की पहली पोस्ट (पहले यह ब्लॉगर प्लेटफॉर्म पर था):
(बड़ा देखने के लिये चित्रों पर क्लिक करें)
अवसाद-सल्फास-शॉर्टकट-मंत्र-विज्ञान-ऑटो सजेशन-अर्जुन-गीता श्लोक-टंग ट्विस्टर-तुलसी-दीनदयाल बिरद संभारी।
कुछ समझ में आया? :) एक बहुत ही सामान्य लेकिन अनकही समस्या की जटिलता को चन्द पंक्तियों में ही आमफहम समझ और समाधान के लेवल पर ला पटकती इस पोस्ट में 'इंजीनियरिंग की सही पढ़ाई किये' एक मेधावी युवक का पूरा व्यक्तित्त्व झलकता है। यह युवक परिवेश से जुड़ा तो है ही, साथ में गीता और तुलसी की पारम्परिक जमीन से भी। गंगातीरी लेखों के कारण समझ में फ्लैश हो जाते हैं। संकलकों के तूफानी दौर में नम्बर एक, दो, तीन ... की लड़ाई सफलता से जीत चुके इस ब्लॉग की पहली पोस्ट पर कुल जमा एक टिप्पणी है जो शत शत नमन कह कर बिदा होती है।
लेकिन असल घनक तो दूसरी पोस्ट में है!
मुस्कुरा रहे हैं न आप? गेस्ट गेदुरा आज सबका चहेता है। पाँच वर्ष पहले जो बातें कहीं गई हैं, आज भी सच हैं और आज भी घुमा फिरा कर कही जाती हैं। इससे पता चलता है कि लेखक 'लिखने के पहले अध्ययनशील' है। टिप्पणियों को देखिये:
ब्लॉगिंग से लगभग लुप्त हो चले मसिजीवी दूसरी पोस्ट में ही विविधता का आभास पा गये हैं। अर्थशास्त्र की बात कर अगली ही पोस्ट में क्या कहा गया है, जरा देखिये:
टिप्पणी करने वाले अनुनाद सिंह हिन्दी विकिपीडिया पर सृजन के महारथी हैं। मुन्ना का टॉनिक पीने वाले को चार वर्षों के बाद पुन: उसी टिप्पणी के साथ जैसे जगाने आये हों - का चुप साधि रहा बलवाना? सम्भवत: वह हर इंजीनियर के भीतर छिपे 'लंठ' को भूल गये हैं! :)
यादृच्छ रूप से लिये गये एक दिनांक 6 जून 2008 के आसपास की प्रविष्टियों को देखिये तो विविधता और पराश का अनुमान लग जाता है:
ऋग्वेद, बन्दर नहीं बनाते घर, जैफ्री आर्चर, ब्लॉगर विवाद, अहिन्दी भाषी विश्वनाथ की अतिथि पोस्ट, रविरतलामी से सिनर्जी, गैजेट, रेल माल यातायात, दलाई लामा, आतंकवाद, छत पर चूने की परत, डोमेन, गरीब सारथी, टिप्पणियाँ, सुलेम सराय, इक्का, बैलगाड़ी, डीजल पेट्रोल, भोर का सपना, ब्लॉग शीर्षक संक्षिप्तीकरण, भगवान की बुढ़िया, हॉफ लाइफ, सांख्यिकी, आडवानी, उल्लू, काक्रोचित अनुकूलन ....
यह एक सचेत ब्लॉग है - विविध, अधुना और अपने 'लेवल' के प्रति समर्पित।
घनघोर दौर में यह 'मानक ब्रांड' की तरह था और अब हृदयस्वीकृत नेट स्वजन जैसा है।
इस दौर के आसपास के लेखों को कथित 'प्रतिद्वन्द्वी या रेटिंग-सम-लेवल या विशिष्ट ब्लॉगरों से संवाद' के सन्दर्भ में देखना रोचक है। टिप्पणियों से सम्बन्धित लेख में आलोक पुराणिक और फुरसतिया से चुहुल है। 5 जून 2008 की पोस्ट में उड़नतश्तरी वाले ब्लॉगर से कवित्तजोड़ है। 8 जून वाली पोस्ट में रवि रतलामी की चर्चा कुछ यूँ है:
मैने डेली एसेंशियल थॉट के विजेट पर एक पोस्ट लिखी थी। मुझे अंदेशा था कि कोई हिन्दी के उत्साही सज्जन यह जरूर कहेंगे कि यह क्या अंग्रेजी में कोटेशन ठेलने की विजेट बनाते हो और उसे अपने हिन्दी ब्लॉग पर प्रचारित करते हो?!
और यह कहने वाले निकले श्री रविशंकर श्रीवास्तव (रविरतलामी)। यही वे सज्जन हैं जिन्होने मुझे हिन्दी ब्लॉगरी के कीट का दंश कराया था। और वह ऐसा दंश था कि अबतक पोस्टें लिखे जा रहे हैं हम "मानसिक हलचल" पर!
11 जून का पूरा बन्दरपाठ पंकज अवधिया की अतिथि पोस्ट है। 3 जून की पोस्ट में आलोक 9-2-11 से प्राप्त सहायता की बात है। आलोक हिन्दी ब्लॉगरी के आदि पुरुष हैं ('आदि पुरुष' पर दो तरह के विवादों की पूरी गुंजाइश बनती है, मेरे ठेंगे से!)।
भोर के सपने अरविन्द मिश्र से जुड़ ही जाते हैं :) इस लेख में ईथोलॉजी के बहाने उनकी चर्चा के साथ ही एक दूसरे मिसिर आर सी मिश्र को भी चेंप दिया गया है।
स्पष्ट है कि यह एक चतुर, सतर्क और सम्वादी ब्लॉग रहा है, विवाद सिवाद तो घलुआ में आते रहे।
अब यह देखते हैं कि एक दूसरे सर्वप्रिय ब्लॉग 'बर्ग वार्ता' के लेखक अनुराग शर्मा उर्फ स्मार्ट इंडियन इस ब्लॉग/र के बारे में क्या कथते हैं। एक ब्लॉग रत्न के लेखक से दूसरे के बारे में जानना और उनके साथ भ्रमण करना रोचक होगा, अपन तो तमाशबीन भर हैं ;) ऊपर जो कुछ लिखा है, बिना इसे पढ़े लिखा है :)
हम जैसे ब्लॉगर की सीमायें हमें खुद को चुभती हैं! जब से मैंने हिन्दी में ब्लॉगिंग शुरू की तब से अब तक बहुत कुछ बदला है। गुणात्मक बदलाव तो आये ही हैं लेकिन संख्यात्मक परिवर्तन बहुत हुए हैं। कितने ऐग्रीगेटर आराम करने लगे, कितने ब्लॉगर भी। लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग के एक महारथी ऐसे भी हैं जो तब भी उतने ही उत्साह से पढे जाते थे जैसे आज पढे जाते हैं। जी हाँ, श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की मानसिक हलचल जैसी शाश्वत है वैसी ही नित नूतन भी। न हिन्दी भाषा की साहित्यिकता का दुराग्रह और न ही अंग्रेज़ी से परहेज़। कभी किसी शब्द में निश्चित मंतव्य की कमी दिखी तो नया शब्द गढ लिया, ऐसी विरल प्रतिभा के धनी ब्लॉगर हृदय से इतने सरल कि गंगातीर पर अपने कुत्तों के साथ नित मुखारी करते जवाहिरलाल को अपने बेटे के विवाह में आतिथ्य प्रदान करने में तनिक भी संकोच नहीं। आदरणीय पाण्डेय जी का लिखा पढकर सहजता से समझ आता है कि सहजता क्या होती है। यदि आपने उन्हें अब तक नहीं पढा तो देखिये बाल पण्डितों का श्रम और रावण गणित में कमजोर होने के कारण हारा था क्या? आज के समय में जब ऊपरी पर्दे इतने अधिक हैं कि जब लगता है कि आपने इंसान को पहचान लिया है तभी कुछ नया खटका हो जाता है ऐसे में पाण्डेय जी के साथ प्रातः भ्रमण पर गंगा मैया के दर्शन करते समय यह बात एक बार भी दिमाग़ में नहीं आती कि हम इंजीनियरिंग के एक चमकते छात्र या भारतीय रेल के एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ हैं। दिखता है तो बस एक सच्चा, ऋजु, भावुक हृदय। पाण्डेय जी खुद तो एक प्रभावकारी ब्लॉगर हैं ही, उनका ब्लॉग एक और मामले में भी अग्रणी है, दूसरों की अभिव्यक्ति को स्थान देना। श्रीमती रीता पाण्डेय, सर्वश्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ, पंकज अवधिया को तो उनके ब्लॉग पर लिखते हुए देखा ही है, अपनी सारगर्भित टिप्पणियों के लिये पहचाने गये युवा ब्लॉगर प्रवीण पाण्डेय के लेखन की शुरुआत भी ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के ब्लॉग से ही हुई है। वैसे शिव कुमार मिश्र के साथ उनका एक साझा ब्लॉग भी है। कीबोर्ड वीरों के लिये ब्लॉगिंग बड़ी मुफ़ीद जगह है। कोई धर्म की रक्षा कर रहा है, कोई देश की, कोई नारी की, कोई भाषा की, तो कोई लोकतंत्र की। नारेबाज़ी, आरोप, आक्षेप, कटुता तो सामान्य बात है। ऐसे में किसी भी विवाद से यथासम्भव दूर रहकर अपनी और अतिथियों की पोस्टों से हिन्दी को चुपचाप समृद्ध करते रहने के अलावा अपनी अफ़सरी, ब्लॉगिंग और इलीटत्व* को गमछे में बांधकर अपने स्तर पर गंगाघाट की सफ़ाई के लिये खुद जुट जाना सचमुच उनके व्यक्तित्व को आदरणीय बनाता है और हमें अपने अंतर में झाँकने को बाध्य करता है। पाण्डेय जी की सहधर्मिणी रीता जी भी गंगातीर का अतिक्रमण हटाने के लिये मुखर हुईं और फिर अतिक्रमण हटा भी। पाठकों को भी सोचना पड़ता है कि जिन विषयों पर हम लिखते नहीं थकते उन पर हमारी ज़मीनी हक़ीक़त क्या है? सिक्के का मूल्य यदि उसकी खनक से निर्धारित होता तो नोट और क्रेडिट कार्ड आदि अपना मूल्य कब का खो चुके होते। "महिला समाज सेवा एवं कल्याण समिति" के माध्यम से रीता जी प्राकृतिक आपदा पीड़ितों की सहायता में तो तत्पर रही ही हैं, वे अन्धविद्यालय के बच्चों के लिये ऑडियो टेप तैयार करने जैसे अभिनव प्रयोग भी कर चुकी हैं। पाण्डेय जी के सरकारी नौकरी में होने के कारण कुछ विषयों पर उनकी कलम भले ही उतनी बेबाक न रही हो जितनी कि होनी चाहिये, उनके ब्लॉग में पढने, समझने और सीखने के लिये इतना है कि इतने वर्षों से उन्हें पढने के बाद भी, आज भी ऐसा होता है कि जब मैं किसी विषय पर लिखने से पहले जब उस विषय पर अन्य लोगों के हिन्दी में व्यक्त विचार ढूंढने जाता हूँ तो मेरा पसन्दीदा सर्च इंजन मुझे अक्सर मानसिक हलचल पर लेकर जाता है। वे एक मननशील दिशा-निर्देशक भी हैं और सम्वेदनात्मक विद्रोही भी। ताज़ा प्रविष्टियों में वे रतलाम में विष्णु बैरागी जी और मंसूर हाशमी जी से मिलकर आये हैं। अपने ब्लॉग पर वे अतिथि ब्लॉगर भी लाते रहे हैं और ब्लॉगर अतिथियों से भी मिलते रहे हैं। नीरज रोहिल्ला द्वारा ज्ञान दत्त पाण्डेय जी से मुलाक़ात की एक पोस्ट से पहली बार उनके बारे में एक अन्य गम्भीर ब्लॉगर के विचार पढने को मिले। वहीं से पाण्डेय जी के अप्रतिम शैक्षणिक रिकॉर्ड की जानकारी हुई। उनकी गम्भीर बीमारी के दौरान अपनी टिप्पणियों का बदला टिप्पणियों द्वारा न चुकाने पर एक ब्लॉगर के उनके साथ हद दर्ज़े की बदतमीज़ी से पेश आने पर जहाँ, अन्य बहुत से लोगों को क्रोध आया, मैंने ज्ञान जी को आपा खोते हुए नहीं देखा। समाज को ऐसे परिपक्व व्यक्तित्व की ज़रूरत तो है ही, हिंदी ब्लॉगिंग में शायद ऐसे अनुकरणीय उदाहरण और भी कम हैं। उनके ब्लॉग से ही उनके व्यक्तिगत जीवन के कुछ ज़ख्मों के बारे में जाना। किसी व्यक्ति के लिये शायद सबसे बड़ी चोट वही होती है जो उसकी संतान को लगी हो। जहाँ लोग अपने हाथ पर बैठे मामूली मच्छर से भी उद्विग्न हो जाते हैं वहाँ अपनी संतति के साथ हुए अतीव कष्टकारी अनुभव को भी उनके सरीखे धैर्य के साथ स्वीकार करके अपनी आस्था को बनाये रखना भारतीय परिप्रेक्ष्य में कम ही दिखता है। इस विषय पर मैं बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ। काफ़ी मनन किया फिर यही लगा कि नहीं लिख सकूंगा। दूसरों के अनुभवों पर बोलना, लिखना, बहसें करना शायद होता है क्योंकि वह दर्द हमें छूता नहीं है। लेकिन स्वयं पीड़ा सहकर भी संयत रहना आसान काम नहीं है। अपनी तकलीफ़ को पीछे छोड़कर साहस के साथ आगे बढना पाण्डेय परिवार से सीखा जा सकता है। श्रीमती रीता पाण्डेय की यह पोस्ट उस कठिन समय की एक झलक दिखलाती है। पण्डित नेहरू का मुख्य मंत्रियों को लिखा एक पत्र पर चला एक विमर्श शायद आपको पसन्द आये। निसर्ग, साहित्य, विज्ञान, समाज, धर्म, यांत्रिकी, शिक्षा, शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिस पर मानसिक हलचल न हुई हो। लेकिन मानसिक हलचल की आत्मा है आम आदमी। राखी सावंत की बात हो या मुरारी, डेढ़ऊ , शराफ़त, हीरालाल और चिरंजीलाल की, आम आदमी को पहचानने का, उससे जुड़ने का जो प्रयास मानसिक हलचल पर दिखता है वह अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। यद्यपि पाण्डेय जी अपनी एक विनम्र टिप्पणी में कहते हैं कि उनमें "वह गुण ही नहीं हैं जो आम आदमी से उस तरह जोड़ते हों" कभी कभी सोचता हूं क्या मैं भी यूं अनजान लोगों से बात कर सकता हूं (मैं आमतौर से अनजान लोगों बात करने से बचता हूं, जब तक सिर पर आ ही न पड़े), क्या मैं भी यूं उनकी फ़ोटो ले सकता हूं? उत्तर ‘ना’ ही मिलता है. फिर सोचता हूं कि शायद आपका रोज़-रोज़ जाना, फ़ोटो खींचना… शायद वहां बसने वाले भी धीरे-धीरे स्वीकार करने लग गए हो… (प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट काजल कुमार) इस आलेख में मैंने कई बार उनके ब्लॉग की सरलता का ज़िक्र किया लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मानसिक हलचल पर गम्भीर विषयों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। यह ब्लॉग आत्मावलोकन और आत्म-विकास की अनेक प्रविष्टियों का घर है। करेंट अफ़ेयर्स की बात हो या पुस्तक समीक्षा, आपको सबकुछ पढने को मिलेगा और वह भी गुणवत्ता के साथ। निरक्षरता का मूल, फाइबर ऑप्टिक्स की चोरी और डा. जेम्स वाटसन की बात पची नहीं कुछ ऐसी प्रविष्टियाँ हैं जो गंगातीर से इतर विषयों पर आधारित हैं। साहित्य पर आधारित अनेक आलेखों के बीच श्रीलाल शुक्ल जी के विषय में एक और पोस्ट का अपना अलग स्थान है। अरहर की दाल और नीलगाय भी एक ऐसी पोस्ट है जो इतिहास, राजनीति और एक निरीह पशु के टकराव को रेखांकित करते हुए अपने पाठक को सोचने को बाध्य करती है। और इतना सब होते हुए भी उनकी विनम्रता इतनी कि उनकी कई प्रविष्टियों में ब्लॉगिंग की ट्यूब खाली हो जाने का ज़िक्र होता है। कहावत है कि इंसान की पहचान उसने मित्रों से होती है। कितने ही अच्छे ब्लॉग्स की पहचान उनके ब्लॉगरोल से हुई। एक बार उनकी किसी पोस्ट के बाद मैंने यूँ ही बैठे ठाले उनके चित्र को एडिट करके उन्हें भेज दिया। सुखद आश्चर्य हुआ जब उस चित्र को उन्होंने अपनी अगली पोस्ट "गांधी टोपी" में सहर्ष स्थान दिया। जब गिरिजेश ने अपने पाठकों से तीन विशिष्ट ब्लॉग्स के नाम मांगे थे तब मैंने अपनी सूची में ज्ञानदत्त जी की मानसिक हलचल का नाम नहीं दिया था क्योंकि 20 नामों की सूची छोटी करते-करते तीन में लाते समय मेरा ध्यान उन ब्लॉग्स पर था जो अच्छे होते हुए भी पॉपुलर नहीं हैं। चूंकि सूची मेरी थी इसलिये उसमें मेरी पसन्द के वे ब्लॉग्स नहीं थे जो मेरे साथ दूसरों की पसन्द भी होते। लेकिन फ़ाइनल रिज़ल्ट आने पर मानसिक हलचल को प्रथम स्थान पर देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरी सूची जैसी थी, वैसी होने के बावजूद भी गिरिजेश ने जब मुझे यह लेख लिखने का अवसर दिया तब मुझे जितनी प्रसन्नता हुई, मैं बता नहीं सकता। मानसिक हलचल एक लम्बे समय से मेरे "श्रद्धेय" ब्लॉगरोल की सीमित सूची में है और आज यह लिखते समय मुझे पहचान की अपनी क्षमता पर गर्व है। गिरिजेश का आभारी हूँ क्योंकि इस आलेख के बहाने मुझे मानसिक हलचल की बहुत सी पोस्ट्स को फिर से पढने का बहाना मिला। * = इलीट होने की स्थिति (नये शब्द की प्रेरणा ज्ञानदत्त पाण्डेय जी से, जो ऐसे न जाने कितने नवीन हाइब्रिड शब्दोंके रचयिता हैं) |
संयोग ही है कि इस प्रस्तुति का समापन 'इलीट' से हो रहा है। कोई बात नहीं, ऐसे उत्सवी आयोजन में ऐसे संयोग सामान्य हैं। अनुराग जी आस्तिक मनई हैं, उनका ईश्वर इस लेख को बदसूरत विवादों से बचाये। स्वस्ति!
ज्ञानदत्तजी से परिचय के १५ वर्ष हो गये हैं, जो तत्व वो जीवन में सहेज कर रखते हैं, उससे ही उन्होंने ब्लॉगजगत को अनुप्राणित किया है। हर पोस्ट एक नयापन लिये आती है, सहजता और सरलता की पर्याय।
जवाब देंहटाएं"एक ऐसा ब्लॉग जिसमें ब्लॉगर की आत्मा इस तरह से व्याप्त है कि ब्लॉग और ब्लॉगर का विभेद कर कुछ कह पाना अत्यंत कठिन हो जाता है" यही सत्य है.
जवाब देंहटाएंइससे बेहतर इस ब्लॉग का विश्लेषण हो ही नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंब्लॉग किसी के होने का प्रमाण बन जाता है तो उसकी महत्ता इतनी हो जाती है कि
उस में लेखक के प्राण बसने लगते हैं.यह भी सिद्ध हुआ.
वाह आपने मानसिक हलचल को निचोड़ कर प्याले में रख दिया, अभी प्याले की शुरूआत की है ।
जवाब देंहटाएंबहुत रेंज लिए हैं पाण्डेय साहब स्वयम भी और उनका ब्लॉग भी|
जवाब देंहटाएंवाह, बेहद सटीक विश्लेषण और विवरण। मानसिक हलचल की पोस्टें कल्ले से आती हैं और मन में एक कोना बनाकर चली जाती हैं हौले-हौले। सनीचरा के बारे में पढकर लगता है कि कभी गंगा के उस ओर निकल जाउंगा तो सनीचरा के दिखते ही बिना किसी प्रत्यक्ष पूर्व-परिचय के बरबस ही पूछ बैठूंगा - पैर का क्या हाल है जवाहिर :)
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त जी से बहुत हाल ही में परिचय हुआ.. जब से हमारा पदार्पण हुआ तब से इनका बहुत नाम सुना और तब हम नामी लोगों से तनिक दूरी बनाकर चलते थे (अब भी हिचकते हैं.. एक तो अपनी अज्ञानता का बोध, दूसरा उनके द्वारा धिक्कार दिए जाने का भय (एकलव्य ने इस संभावना को भी जन्म दिया है).. बस ईमानदारी से यही दो कारण, कई विभूतियों से दूर ले गए मुझे..हानि अपनी ही हुई..
जवाब देंहटाएंमगर जब ज्ञानदत्त जी से जुड़े तो वो सारे पुल जो मैंने पहले से खड़े रखे थे, उस इंजीनियर के समक्ष धराशायी हो गए. इलाहाबाद, रेलवे और गंगा माई यह एक ऐसी त्रिवेणी है जिसे छूकर मैं सद्गति का अनुभव कर सकता हूँ.. और ज्ञानदत्त जी इस त्रिवेणी की प्रतिमूर्ति हैं!!
उनका ब्लॉग पढ़ते हुए कभी नहीं लगा कि एक बुद्धिमान और ज्ञानवान व्यक्ति की पोस्ट पढ़ रहा हूं। एक सामान्य भारतीय भी वैसा ही सोचता और करता है। उसे प्रस्तुत करने का अंदाज कुछ इस तरह का है कि हर एक खुद को वहां जुड़ा हुआ महसूस करता है।
जवाब देंहटाएंमैं रेगिस्तान में रहने वाला हूं, इसलिए खुद को बहुत अधिक अटैच नहीं कर पाता हूं उनसे, लेकिन फिर भी कई पोस्ट ऐसी होती हैं कि सोचने के लिए मजबूर होता हूं। कई बार सामान्य बातों के साथ कई चकित करने वाले उठाव होते हैं। वहीं बंध जाते हैं।
शायद यही उनकी खासियत है... :)
@ विवादों की पूरी गुंजाइश बनती है, मेरे ठेंगे से!
जवाब देंहटाएं@ उनका ईश्वर इस लेख को बदसूरत विवादों से बचाये।
- विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे, जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये, अरण्ये ...
@ अनुराग जी आस्तिक मनई हैं
- घनघोर आशावादी हूँ, यह तो पक्की बात है।
- पाण्डेय जी और उनकी मानसिक हलचल के बारे में पढकर अच्छा लगा, आभार!
अच्छा लिखा है ज्ञानजी के बारे में। मैंने तो उनकी लगभग हर पोस्ट पढ़ी है। शुरु से लेकर आजतक। भाषा में शुरु में अंग्रेजी शब्दों के फ़ुंदने लगे रहते थे। धीरे-धीरे करके अब उनके लेख ललित गद्य नुमा होने लगे। :)
जवाब देंहटाएंविषय वैविध्य कमाल का है ज्ञान जी के ब्लॉग में।
धीरे-धीरे करके अब उनके लेख ललित गद्य नुमा होने लगे। :)
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हटाएंआस पास के साधारण से दृश्य और पात्रों को उनके सामान्य से लेख असाधारण बना देते हैं . अपने विशुद्ध मौलिक विचार और अंग्रेजी -हिंदी मिक्सिंग के नए शब्दों के अविष्कारक के रूप में भी उन्हें जाना जा सकता है.
जवाब देंहटाएंis blog-o-blogger se jur ke hamne ye jana ke 'sadharan bane rahana bari asadharan baat hai'.........
जवाब देंहटाएंabhi is post pe kai gote lagne hai....gahra hai swans phool jata hai....
abhar aacharya evam anurag chachu ko....
pranam.
गजब !
जवाब देंहटाएंइतना ही कहा जा सकता है इस आलेख पर !
बहुत शानदार! वाह!
जवाब देंहटाएंजितना बढ़िया ब्लॉग वैसा ही विश्लेषण और अनुराग जी का लेख तो...गज़ब!
रावण वाली पोस्ट पढ़ी और बहुत पसंद आई मुझे।
आभार स्वीकारें!
गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंउफ़ क्या पुराने दिन याद दिला दिये आपने । लिखना तो कमोबेश कई सालों से बन्द है लेकिन पढने की आदत अभी भी लगी हुयी है। ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के मानवीय़ गुण, विभिन्न स्थितियों पर उनके अनुभवों के आधार पर बने विचार (भले ही वो कभी कभी पालिटिकली करेक्ट न लगें), संयम और सदैव आत्मसुधार में लगे रहना उनके ब्लाग का USP है।
शायद इस पोस्ट के बाद हमारा भी फ़िर से लिखने का मन कर आये।
आप फिर से लिखना शुरू कीजिये। 'अंतर्ध्वनि' पर आप का लेख 'समय बहुत बलवान' तो सहेज कर रखने लायक है।
हटाएंआप के नये लेख की प्रतीक्षा रहेगी।
बढ़िया !
जवाब देंहटाएंशानदार विश्लेषण, बढ़िया पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपके प्रेक्षण के साथ आत्मीय सहमति!!
जवाब देंहटाएंअनुराग जी के विश्ले्षण से भी!!
स्वयं अटल सुमेरु किन्तु पाठक मन हलचल मचाते "मानसिक हलचल" के लिए शुभकामनाएँ!!