Agnipuran days name order
[इस लेख के अन्त तक आप को स्पष्ट हो जायेगा कि संस्कृत की सम्पदा तथा शक्ति जानने के लिये क्यों मूल को पढ़ना आवश्यक है तथा क्यों अङ्ग्रेजी या कोई भी अनुवाद संस्कृत के शब्दों की अर्थ समृद्धि तथा प्रयोग उद्देश्य की ऐसी तैसी कर देते हैं!]
भां नेत्रं वस्तथार्क्कास्त्रं राज्ञी शक्तिश्च निष्कुभा ।
सोमोऽङ्गारकोथ बुधो जीवः शुक्रः शनिः क्रमात् ॥
भा कहते हैं दीप्ति को (भास्कर नाम से समझें)। पहले उसकी पूजा, तदुपरान्त आँख की जिसके लिये नेत्रं शब्द का प्रयोग है। कभी सोचा है आप ने कि नेत्र तथा नेतृत्त्व एक ही सोते के हैं? नेत्रम् [नयति नीयते वा अनेन नी-ष्ट्रन्]
आँख से ही हम सब देखते हैं, वही हमारा नेतृत्त्व करती है। दीप्ति अर्थात प्रकाश न हो तो आँख किस काम की?
तत्पश्चात सूर्य के अस्त्रों की। सूर्य की अर्क संज्ञा प्रयुक्त हुई है।
अर्क भी अद्भुत शब्द है - अर्चना का बन्धु :) अर्च्-घञ्-कुत्वम्। प्रकाश की किरण। साथ ही अरुण से भी सम्बन्धित - आविष्कृतारुणपुरःसर एकतोऽर्कः। अरुण कौन? जो रात के अँधेरे के विरुद्ध अंतरिक्ष में रुचता पसरता हो - अरुणकररुचायतेऽन्तरीक्षे।
अस्त्र कौन हैं अर्क के? राज्ञी, शक्ति, निष्कुभा। राज्ञी रानी को कहते हैं किन्तु जिस रा+ज+ञ् से यह शब्द आ रहा है, वह रञ्जन से सम्बन्धित है। राजा वह जो प्रजा का रञ्जन करे। अर्क रञ्जक होता है। सूर्योदय कितना लुभावना होता है! एक अन्य रहस्य भी है, पश्चिमी दिशा को भी राज्ञी कहा गया है, वहाँ राज्ञी का अर्थ सूर्य की पत्नी हो जाता है। सूर्य पश्चिम में डूबता है, रात हो जाती है, अपनी पत्नी के साथ विश्राम में चला जाता है।
सूर्य में शक्ति होती है, solar power जानते ही हैं सभी। शक्ति शब्द का उत्स शक् से है। 'सकना', कुछ कर सकना उसी से आ रहा है। सिद्धार्थ गौतम का शाक्य सूर्य वंश भी अपना नाम इसी शब्द से पा रहा है - शक्यते! न शक्यते!! [कहानी पहले बता चुका हूँ]
निष्कुभा पर आइये। पहले कुभा समझिये। काबुल नदी का वैदिक नाम है - कुभा। क्यों भला? इसके लिये भा पर ध्यान दीजिये, कुभा अर्थात जिसकी दीप्ति कु हो, मटमैली हो। कुभा की प्रकृति इस प्रकार की है कि तरङ्गें मिट्टी आदि को सर्वदा विलोड़न में ही रखती हैं।
सूर्य का अस्त्र निष्कुभा, अर्थात जो कुभासित न हो - स्वच्छ हो। चमक भी अस्वच्छ हो सकती है? कभी सूर्यग्रहण के समय देखे हैं चहुँओर का प्रकाश कैसा होता है? अवसादी।
इसके पश्चात जो क्रम है, वह है सोम - चन्द्र, अङ्गारक - अङ्गार की तरह लाल दिखता मङ्गल, बुध, जीव बृहस्पति के चक्र में तीसरे पञ्चवर्षी को कहते हैं तथा स्वयं बृहस्पति को भी। जीव कहने का अर्थ यह हो सकता है तीन दिन बीत चुके, चौथा है बृहस्पति (एक प्रमाण कि वार गिनती सोम से आरम्भ हुई, अनुमान भर है, ज्योतिष जानने वाले ठीक ठीक बता पायेंगे)। पाँचवा शुक्र, छठा शनि।
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वार क्रम पर आज कल बड़े बड़े दुरूह लेख आ रहे हैं, सरल सी बात इतनी है कि पृथ्वी से देखने पर तीव्रतम से मन्दतम गति क्रम में ग्रह पिण्डों को रखा गया तो सोम सबसे पहले तथा शनि सबसे अन्त में आया।
ग्रह से ग्रहण लेना भी है तथा लगना भी, पकड़ कर रखने से है कि गतिमान तो है किंतु गति यादृच्छ नहीं।
शनि का नाम शनैश्चर है ही शनै: चर अर्थात शनै शनै, धीमी गति वाला। सबसे धीमे से सबसे तेज को बढ़ें तो क्रम यह है -
शनि, गुरु, मङ्गल, सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्र।
इसके पश्चात दिन के कुल 24 घण्टों में से दिन आरम्भ के घण्टे को सबसे तेज का स्वामी बताया गया अर्थात चन्द्र। अब हर घण्टे पर एक एक रखते जाइये, इसी क्रम में - 2-शनि, 3-गुरु इत्यादि। 25 वें घण्टे अर्थात दूसरे दिन पर आयेगा मङ्गल, 49वें अर्थात तीसरे दिन पर आयेगा बुध ... हो गया दिनों के नाम का क्रम!