________________________________
गदहा रावण
राक्षसो रावणो मूर्खो। खर अर्थात गदहे से रावण का सम्बन्ध है। काश्मीर तन्त्र के विद्वान रावण को नाम व लक्षण साम्यता के आधार पर राक्षस रावण बना दिया गया प्रतीत होता है - लगे हाथ खरानना देवी कुलदेवी भी हो गयीं उसकी, ससुराल भी, वहीं बसते उसके श्रीमाली वंशज भी।
भारत कथा प्रधान देश है और उत्तर भारत मनोरञ्जन प्रधान, कोढ़ में खाज। नाम साम्यता के आधार पर ही पुराणियों ने शान्ता को राम की बहन घोषित कर दिया।
पाणिनि खर/खारी जाति का उल्लेख किये हैं। खर और आनणा जाटों के गोत्र हैं। खर+आनणा का भी खरानना हुआ हो सकता है। योद्धा जातियाँ थी हीं।
राक्षस रावण के यहाँ अश्व उतने सुलभ नहीं थे। सीताहरण व युद्ध में भी उसने खर जुते रथ का प्रयोग किया। युद्ध गहन होने पर अश्व भी जोते गये। (मार्क्सवादी जन अश्व को ass बनाने में विशेष प्रवीण होते हैं, राक्षस रावण भी वाममार्गी ही था। वाम अर्थात सामान्य से विपरीत रीति। )
वाल्मीकि जी राक्षस रावण के रथ हेतु बताते हैं कि चीपों चीपों करते गधे तो जुते ही थे, पहियों की ध्वनि भी गधों की ही भाँति थी - खरश्वन!
मय का दामाद बना दिये गये राक्षस रावण हेतु अब कोई यह स्वीकार नहीं करेगा कि उसकी तकनीकी बहुत आदिम थी जो लकड़ी के पहियों व धुरों की रगड़ की ध्वनि पर भी विराम नहीं लगा सकती थी। उच्च तकनीकी का पुष्पक तो उसने कुबेर से छीना था।
आज जिस प्रकार पाकिस्तान परमाणु आयुध सम्पन्न है, वैसे ही तब लंका रही होगी। लाहौर, कराँची आदि के समृद्ध क्षेत्रों में जिस प्रकार आज भी खच्चर जुते रथ दौड़ते हैं, उसी प्रकार त्रिकूट से सुन्दर पहाड़ी तक खररथ दौड़ते रहे होंगे। कुल मिला कर हर प्रकार से लंका आज के पाकिस्तान समान ही रही होगी, रावण इमरान समान व राक्षस मोहमदी जनता समान।
सावधानीपूर्वक पढ़ने पर सकल रूप में लंका वह देश लगती है जिसे आजकल rogue state कहते हैं, जबर की जबरी खूब चलती रही होगी।
लंका में मुर्गी-पालन भी होता रहा होगा। भैंसा भात के साथ रावण ऑमलेट भी खाता रहा हो तो आश्चर्य नहीं। ऐसा मनई वेद तो पढ़ने से रहा। वह वेदपारग नहीं था, वेदपाठी ब्रह्मराक्षस अवश्य उसके यहाँ रहते रहे होंगे। बिना ज्ञान के विधान थोड़े चलता है! पाकिस्तान में भी ज्ञानी होते ही होंगे।
कुल मिला कर भौकाल ही बचा था उसका, जब परायी नार हर लाया। सहमा भी हुआ था। उसके विरुद्ध सब ने राम को सहयोग दिया, समुद्र तटनायक, इन्द्र, वैनतेय, गीध, वानरादि जातियाँ सभी। सभी के भीतर इतनी पीड़ा सञ्चित थी कि अवसर मिलते ही....
हाँ, रावण ब्राह्मण नहीं था।
॥हरिः ॐ॥
_______________
भारत कथा प्रधान देश है और उत्तर भारत मनोरञ्जन प्रधान, कोढ़ में खाज। नाम साम्यता के आधार पर ही पुराणियों ने शान्ता को राम की बहन घोषित कर दिया।
पाणिनि खर/खारी जाति का उल्लेख किये हैं। खर और आनणा जाटों के गोत्र हैं। खर+आनणा का भी खरानना हुआ हो सकता है। योद्धा जातियाँ थी हीं।
राक्षस रावण के यहाँ अश्व उतने सुलभ नहीं थे। सीताहरण व युद्ध में भी उसने खर जुते रथ का प्रयोग किया। युद्ध गहन होने पर अश्व भी जोते गये। (मार्क्सवादी जन अश्व को ass बनाने में विशेष प्रवीण होते हैं, राक्षस रावण भी वाममार्गी ही था। वाम अर्थात सामान्य से विपरीत रीति। )
वाल्मीकि जी राक्षस रावण के रथ हेतु बताते हैं कि चीपों चीपों करते गधे तो जुते ही थे, पहियों की ध्वनि भी गधों की ही भाँति थी - खरश्वन!
मय का दामाद बना दिये गये राक्षस रावण हेतु अब कोई यह स्वीकार नहीं करेगा कि उसकी तकनीकी बहुत आदिम थी जो लकड़ी के पहियों व धुरों की रगड़ की ध्वनि पर भी विराम नहीं लगा सकती थी। उच्च तकनीकी का पुष्पक तो उसने कुबेर से छीना था।
आज जिस प्रकार पाकिस्तान परमाणु आयुध सम्पन्न है, वैसे ही तब लंका रही होगी। लाहौर, कराँची आदि के समृद्ध क्षेत्रों में जिस प्रकार आज भी खच्चर जुते रथ दौड़ते हैं, उसी प्रकार त्रिकूट से सुन्दर पहाड़ी तक खररथ दौड़ते रहे होंगे। कुल मिला कर हर प्रकार से लंका आज के पाकिस्तान समान ही रही होगी, रावण इमरान समान व राक्षस मोहमदी जनता समान।
सावधानीपूर्वक पढ़ने पर सकल रूप में लंका वह देश लगती है जिसे आजकल rogue state कहते हैं, जबर की जबरी खूब चलती रही होगी।
लंका में मुर्गी-पालन भी होता रहा होगा। भैंसा भात के साथ रावण ऑमलेट भी खाता रहा हो तो आश्चर्य नहीं। ऐसा मनई वेद तो पढ़ने से रहा। वह वेदपारग नहीं था, वेदपाठी ब्रह्मराक्षस अवश्य उसके यहाँ रहते रहे होंगे। बिना ज्ञान के विधान थोड़े चलता है! पाकिस्तान में भी ज्ञानी होते ही होंगे।
कुल मिला कर भौकाल ही बचा था उसका, जब परायी नार हर लाया। सहमा भी हुआ था। उसके विरुद्ध सब ने राम को सहयोग दिया, समुद्र तटनायक, इन्द्र, वैनतेय, गीध, वानरादि जातियाँ सभी। सभी के भीतर इतनी पीड़ा सञ्चित थी कि अवसर मिलते ही....
हाँ, रावण ब्राह्मण नहीं था।
॥हरिः ॐ॥
_______________
परिष्पन्द
इस शब्द का अर्थ होता है, समूह में नियम व व्यूहबद्ध हो एक साथ वाहनों पर चलना। ट्रेन हेतु भी इसका प्रयोग हो सकता है।
सार्थवाह (वैश्य यात्रायें) व युद्ध में (अङ्गरक्षक टुकड़ी के साथ मुख्य योद्धा) में परिष्पन्द का प्रयोग होता रहा है। कुबेर बहुत धनी, यक्ष दिक्पाल थे। युद्ध कर के तो धनी होने से रहे तथा मोहमदी लूटमार का कोई प्रमाण नहीं। वे मूल्यवान वस्तुओं के व्यापारी गण के प्रमुख रहे होंगे जो परिष्पन्द में चलते होंगे। मरुस्थली मोहमदियों की भाँति ही उन पर आक्रमण कर कर रावण ने लूटा होगा तथा अन्ततः दुर्गम कैलास क्षेत्र में सिमटने को विवश कर दिया होगा। कुबेर की परिष्पन्द तकनीक ही उसने अपना ली होगी, परिष्पन्द से पुष्पक हुआ होगा। अनुमान ही है।
नितान्त भौतिक स्तर पर विचारने पर लगता है कि रावण वध पश्चात राम वानर भालुओं की परिष्पन्द सुरक्षा में अयोध्या लौटे होंगे। रावण का एक पूरा लूट व भोग का तन्त्र था, वैसी सुरक्षा आवश्यक रही होगी। विचारने पर यह भी ठीक लगता है कि विजयादशमी के दिन रावण मरा होगा, आश्विन में तथा थल मार्ग से राम चैत्र में अयोध्या पहुँचे होंगे। द्रुतगति वाले आञ्जनेय को किञ्चित पहले राम भेज दिये होंगे।
दीपावली राम से भी बहुत पुरातन पर्व है। महान मर्यादा पुरुषोत्तम के सम्मान में उस वर्ष अनूठे व नवोन्मेषी ढंग से मनाई गई हो तो आश्चर्य नहीं!
~~~~~~
श्रीराम अयोध्या में नौ हजार वानरों के परिष्पन्द, व्यूह संरक्षण में लौटे थे, पुष्पक विमान अनुमान। वे सभी वानर राज्याभिषेक पूर्व श्रीराम की शोभायात्रा में नौ हजार हाथियों पर आरूढ़ हो सम्मिलित हुये थे। विष्णु के चक्र से जो चक्रव्यूह है, वही उनके करस्थ पद्म से पद्मव्यूह के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुष्प से पुष्पक व्यूह रहा होगा जिसका ज्ञान यक्षों को था तथा जिनसे राक्षसों ने वह विद्या छीन ली रही होगी। रामायण काल में पद्मव्यूह में नौ हजार योद्धा लगते होंगे। पुष्पक विमान को सात स्तरों वाला बताया गया है, पुष्पव्यूह में भी सात द्वार होते हैं। सात स्तरीय भवन भी विमान कहलाता है। ... नवनागसहस्राणि ययुरास्थाय वानराः मानुषन् विग्रहन् कृत्वा सर्वाभरणभूषिताः
...
रामायण आख्यान अति प्राचीन है तथा रामायण काव्य में अनेक भाषिक स्तर हैं। इस कारण ही भाषिक या अन्य आधुनिक विधियोंं से मैं राम के काल निर्धारण को शक्य नहीं मानता। महाभारत का कर लें तो कर लें, रामायण का असम्भव है।
पतङ्ग शब्द को लें, जिसका अर्थ उड़ने से है। आकाश में सूर्य उड़ता हुआ प्रतीत होता है अत: पक्षियों की भाँति ही पतङ्ग कहलाता है। इस शब्द की धातु से ही पतन शब्द बना है, गिरना या डूबते जाना। कहाँ उड़ना, कहाँ गिरना, मूल धातु एक।
रामायण में सागरसन्तरण व आकाशचारण को एक ही भाँति दर्शाया गया है। वाल्मीकि की काव्य कला के इस पक्ष पर सम्भवत: लोगों का ध्यान ही नहीं गया है कि किस प्रकार आञ्जनेय के अभियान में दोनोंं एक हो गये हैं!
उड़ना वेग से सम्बंधित है, निर्बाध गति से। पुरातन काल में जलमार्ग से यात्रा की गति थल मार्ग की तुलना में अति तीव्र होती थी। व्यापार व सैन्य अभियान जहाँ शक्य हो, जलमार्ग से ही होते थे।
दक्षिण से किष्किन्धा होते हुये अयोध्या तक नदियों के जाल को देखें। श्रीराम ने लौटते समय अधिकतर जल पर तैरते व्यूह पुष्पक विमान का ही प्रयोग किया होगा, ऐसी सैन्य व्यूह रचना जो पानी पर पुष्प की भाँति तैरती दिखे। विमान का तीव्र गति से तैरना उसका उड़ना था जिस प्रकार मारुति का सागर सन्तरण चट्टानों से उछलते मानो आकाश में उड़ते एवंं तैरते पूरा हुआ था।
इस भाषिक अनूठेपन के कारण भी रामायण बहुत प्राचीन रचना सिद्ध होती है, भले उसका परिष्कार आगामी शताब्दियों में किया जाता रहा हो।
~~~~~~~
युद्धकाण्ड में ही राज्याभिषेक पश्चात श्रीराम द्वारा पुत्रों एवं बंधुओं के साथ दस हजार वर्षदिन राज्य करना बताया गया है -
राघवश्चापि धर्मात्मा प्राप्य राज्यमनुत्तमम्
ईजे बहुविधैर्यज्ञैः ससुतभ्रातृबान्धवः
सीतात्याग का कहींं उल्लेख नहीं, समापन तक। यदि ऐसा कुछ हुआ होता तो इतनी महत्वपूर्ण बात को पुत्रों सहित राज्य करना बताने से पूर्व अवश्य लिखा जाता।
राम नाम/कथा की महिमा भी है -
निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति
रामो रामो राम इति प्रजानामभवन् कथाः
नित्यपुष्पा नित्यफलास्तरवः स्कन्धविस्तृताः
कालवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शश्च मारुतः
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा लोभविवर्जिताः
॥इति॥
~~~~~~~
सार्थवाह (वैश्य यात्रायें) व युद्ध में (अङ्गरक्षक टुकड़ी के साथ मुख्य योद्धा) में परिष्पन्द का प्रयोग होता रहा है। कुबेर बहुत धनी, यक्ष दिक्पाल थे। युद्ध कर के तो धनी होने से रहे तथा मोहमदी लूटमार का कोई प्रमाण नहीं। वे मूल्यवान वस्तुओं के व्यापारी गण के प्रमुख रहे होंगे जो परिष्पन्द में चलते होंगे। मरुस्थली मोहमदियों की भाँति ही उन पर आक्रमण कर कर रावण ने लूटा होगा तथा अन्ततः दुर्गम कैलास क्षेत्र में सिमटने को विवश कर दिया होगा। कुबेर की परिष्पन्द तकनीक ही उसने अपना ली होगी, परिष्पन्द से पुष्पक हुआ होगा। अनुमान ही है।
नितान्त भौतिक स्तर पर विचारने पर लगता है कि रावण वध पश्चात राम वानर भालुओं की परिष्पन्द सुरक्षा में अयोध्या लौटे होंगे। रावण का एक पूरा लूट व भोग का तन्त्र था, वैसी सुरक्षा आवश्यक रही होगी। विचारने पर यह भी ठीक लगता है कि विजयादशमी के दिन रावण मरा होगा, आश्विन में तथा थल मार्ग से राम चैत्र में अयोध्या पहुँचे होंगे। द्रुतगति वाले आञ्जनेय को किञ्चित पहले राम भेज दिये होंगे।
दीपावली राम से भी बहुत पुरातन पर्व है। महान मर्यादा पुरुषोत्तम के सम्मान में उस वर्ष अनूठे व नवोन्मेषी ढंग से मनाई गई हो तो आश्चर्य नहीं!
~~~~~~
श्रीराम अयोध्या में नौ हजार वानरों के परिष्पन्द, व्यूह संरक्षण में लौटे थे, पुष्पक विमान अनुमान। वे सभी वानर राज्याभिषेक पूर्व श्रीराम की शोभायात्रा में नौ हजार हाथियों पर आरूढ़ हो सम्मिलित हुये थे। विष्णु के चक्र से जो चक्रव्यूह है, वही उनके करस्थ पद्म से पद्मव्यूह के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुष्प से पुष्पक व्यूह रहा होगा जिसका ज्ञान यक्षों को था तथा जिनसे राक्षसों ने वह विद्या छीन ली रही होगी। रामायण काल में पद्मव्यूह में नौ हजार योद्धा लगते होंगे। पुष्पक विमान को सात स्तरों वाला बताया गया है, पुष्पव्यूह में भी सात द्वार होते हैं। सात स्तरीय भवन भी विमान कहलाता है। ... नवनागसहस्राणि ययुरास्थाय वानराः मानुषन् विग्रहन् कृत्वा सर्वाभरणभूषिताः
...
रामायण आख्यान अति प्राचीन है तथा रामायण काव्य में अनेक भाषिक स्तर हैं। इस कारण ही भाषिक या अन्य आधुनिक विधियोंं से मैं राम के काल निर्धारण को शक्य नहीं मानता। महाभारत का कर लें तो कर लें, रामायण का असम्भव है।
पतङ्ग शब्द को लें, जिसका अर्थ उड़ने से है। आकाश में सूर्य उड़ता हुआ प्रतीत होता है अत: पक्षियों की भाँति ही पतङ्ग कहलाता है। इस शब्द की धातु से ही पतन शब्द बना है, गिरना या डूबते जाना। कहाँ उड़ना, कहाँ गिरना, मूल धातु एक।
रामायण में सागरसन्तरण व आकाशचारण को एक ही भाँति दर्शाया गया है। वाल्मीकि की काव्य कला के इस पक्ष पर सम्भवत: लोगों का ध्यान ही नहीं गया है कि किस प्रकार आञ्जनेय के अभियान में दोनोंं एक हो गये हैं!
उड़ना वेग से सम्बंधित है, निर्बाध गति से। पुरातन काल में जलमार्ग से यात्रा की गति थल मार्ग की तुलना में अति तीव्र होती थी। व्यापार व सैन्य अभियान जहाँ शक्य हो, जलमार्ग से ही होते थे।
दक्षिण से किष्किन्धा होते हुये अयोध्या तक नदियों के जाल को देखें। श्रीराम ने लौटते समय अधिकतर जल पर तैरते व्यूह पुष्पक विमान का ही प्रयोग किया होगा, ऐसी सैन्य व्यूह रचना जो पानी पर पुष्प की भाँति तैरती दिखे। विमान का तीव्र गति से तैरना उसका उड़ना था जिस प्रकार मारुति का सागर सन्तरण चट्टानों से उछलते मानो आकाश में उड़ते एवंं तैरते पूरा हुआ था।
इस भाषिक अनूठेपन के कारण भी रामायण बहुत प्राचीन रचना सिद्ध होती है, भले उसका परिष्कार आगामी शताब्दियों में किया जाता रहा हो।
~~~~~~~
युद्धकाण्ड में ही राज्याभिषेक पश्चात श्रीराम द्वारा पुत्रों एवं बंधुओं के साथ दस हजार वर्षदिन राज्य करना बताया गया है -
राघवश्चापि धर्मात्मा प्राप्य राज्यमनुत्तमम्
ईजे बहुविधैर्यज्ञैः ससुतभ्रातृबान्धवः
सीतात्याग का कहींं उल्लेख नहीं, समापन तक। यदि ऐसा कुछ हुआ होता तो इतनी महत्वपूर्ण बात को पुत्रों सहित राज्य करना बताने से पूर्व अवश्य लिखा जाता।
राम नाम/कथा की महिमा भी है -
निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति
रामो रामो राम इति प्रजानामभवन् कथाः
नित्यपुष्पा नित्यफलास्तरवः स्कन्धविस्तृताः
कालवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शश्च मारुतः
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा लोभविवर्जिताः
॥इति॥
~~~~~~~
आप हमेशा की तरह बहुत ही अद्भुत हैं इस पोस्ट में भी। आपका ज्ञान आपकी शैली आपकी व्याख्या सब कुछ ऐसी की मैं पोस्ट पढ़ते पढ़ते ही नतमस्तक हो जाता हूँ। जीवन में यदि आपसे कभी मुलाक़ात हुई तो वो दिन मेरे जीवन के अनमोल दिनों में से एक होगा। सादर प्रणाम आपको गुरुदेव।
जवाब देंहटाएं