गढ्ढे का यह प्रकार जनता के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है साथ ही आवश्यक मिनरल, लवण वगैरह की पूर्ति करता है। आप ने देखा होगा कि झुग्गियों वाले जो इस प्रकार से एनरिच किए पानी को वैसे ही पीते हैं, बँगलों में रहने वालों की तुलना में कम बीमार होते हैं। असल में अक्वा गॉर्ड वगैरह के कारण पानी से सारे पोषक तत्त्व निकल जाते हैं.।
इस तरह के गढ्ढे की एक और खासियत होती है। इसमें शराबी कभी नहीं गिरते। इसमें केवल शरीफ किस्म के कम या बिल्कुल दारू नहीं पीने वाले इंसान या जानवर ही गिरते हैं। दारू पीकर टल्ली हुआ इंसान हमेशा सड़क के किनारे सुरक्षित रूप से उथली नाली में ही गिरता है। यह रहस्य आज तक मुझे समझ में नहीं आया। बहुत विद्वान लोगों से पूछने पर भी जब इससे पर्दा नहीं उठा तो मैंने एक शराबी से ही इसका राज उस समय पूछा जब वह सुबह सुबह ठर्रे से कुल्ली कर रहा था। उसने सरल शैली में बताया कि जो इंसान दारू नहीं पीता वह जानवर ही होता है. उसकी बुद्धि और चेतना बहुत सीमित होते हैं इसीलिए जानवर और गैरदारूबाज इंसान दोनों इस तरह के गढ्ढे में गिरते हैं। मैं उसका कायल हो गया।
हम शहरियों को गढ्ढों से बहुत प्रेम है। हम उनके साथ अकोमोडेट कर लेते हैं। अब देखिए सड़क पर एक तरफ खुला सीवर हो, दूसरी तरफ पानी सप्लाई का खुला मैन्होल हो और बीच में गौ माता पगुरा रही हों तो भी हमलोग कितनी कुशलता से गाड़ी निकाल ले जाते हैं - बिना गड्ढों और गौ को क्षति पहुँचाए ! कभी कभी चूकवश हम अपना नुकसान कर लेते है, हॉस्पिटल पहुँच जाते हैं| यह हमारे प्रेम की प्रचण्डता को ही दर्शाता है। हमारा खयाल करते हुए सरकार ने महकमें बना रखे हैं जैसे नगर निगम, जल संस्थान, दूरसंचार, बिजली विभाग, जाने कितने ! इन महकमों में ऐसे कर्मचारी हैं जो गढ्ढों को उत्पन्न करने और उनका पोषण करने की क्रिया में एक्सपर्ट हैं। उनको देख कर मुझे सरकारी ट्रेनिंग की सार्थकता और इफेक्टिवनेस पर कई बार गर्व हुआ है।
हम को गढ्ढों पर गुमान भी रहता है। जिसके जितने पास गढ्ढा होता है, वह उतना ही सीना फुलाए रहता है – “अरे! हमारे घर के पास तो ऐसा सीवर खुला हुआ है कि हाथी समा जाय। बदबू की तो पूछो मत !” लोग जब आँखें फाड़े तारीफ के साथ देखते हैं तो कितनी खुशी मिलती है !
मैं भी एक ऐसे ही गढ्ढे का पड़ोसी हूँ। जब नया नया आया तो बहुत क़ोफ्त हुई, हरदम मुँह चिढ़ाता था। लेकिन यह सोच कर कि आप अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते, मैंने उससे प्रेम कर लिया है। बगल से गुजरते लोग जब उस खुले सीवर मैनहोल को हसरत से देखते हैं तो मैं अपनी किस्मत पर बाग बाग हो जाता हूँ।
बुरा हो इस दिवाली का जो श्रीमती जी को चिंता सताने लगी – लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करने के पहले ही सीवर में समा जाएँगी। अब मेरा जीना हराम हो गया। मर्दानगी को चुनौती दी जाने लगी। सीने पर पत्थर रख कर मैंने नगर निगम को ई मेल लिखा। फॉलोअप पर जब श्रीमती जी को बताया तो वह आपे से बाहर हो गईं – अरे, सामने रोता आदमी तो इन्हें दिखता नहीं, आप ई मेल की बात करते हैं। अब दौड़ान शुरू हुई। नगर निगम ने बताया कि इसका महकमा जल संस्थान है। लोकल जल संस्थान गया तो बताया गया कि ऐप्लिकेसन की पावती मुख्य ऑफिस में मिलेगी, हाँ काम यहीं से होगा। रिक्शे से मैनहोल का कवर मंगा लीजिए। यह बताने पर कि ढक्कन तो है लेकिन फेंका हुआ है क्यों कि चैम्बर की जुड़ाई पूरी नहीं हुई है, सामने वाले के चेहरे पर नाग़वारी के आसार नजर आए। उन्हों ने कहा कि बात को ठीक से बताइए और पान खाने चल दिए।
उसी दिन एक गाय उसमें गिर गई। गाय वाले को तो पता ही नहीं चला लेकिन प्रेमी जनता ने गाय को बाहर निकाल पुण्य़ लाभ लिया। मैं भन्नाया, पत्र लिखा जिसमें इस घटना का जिक्र करते हुए बच्चों के गिरने और जान जाने की भी शंका जताई। जल संस्थान ऑफिस फोन किया तो अधिशासी अभियंता महोदय का नम्बर मिला। उन्हों ने तसल्ली से सुना और त्वरित कार्यवाही का आश्वासन दिया।
अगले दिन सरकार द्वारा ट्रेंड एक सज्जन पधारे। बड़े खफा थे, आप ने गाय गिरने और बच्चों के गिरने की आशंका वाली बात क्यों लिखी? इतना किनारे तो है, ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अपने उपर ग्लानि हो आई। जो प्रेमी न हो और अकोमोडेटिव न हो उसे गिल्टी फील तो करना ही चाहिए। श्रीमती जी को लक्ष्मी मैया के सीवर गढ्ढे में गिरने की चिन्ता है, मुझे बच्चों की चिंता है और जल संस्थान को एक असामाजिक और नॉन अकोमोडेटिव शहरी की मानसिकता बदलने की चिंता है। सभी चितित हैं। आप ने सुना ही होगा – चिंता से चतुराई घटे सो काम कैसे हो? खुला सीवर गढ्ढा जस का तस है। अब देखना है कि लक्ष्मी जी से पहले जल संस्थान के कर्मचारी आते हैं या नहीं? मैंने तो रास्ता सोच लिया है। दिवाली के दिन खुले सीवर के चारो ओर दिया जलाएंगे। लक्ष्मी जी को चेतावनी भी मिल जाएगी और हमारा यह पड़ोसी गढ्ढा भी खुश हो जाएगा । किसी ने आज तक ऐसा प्रेम नहीं दिखाया होगा कि पड़ोसी गढ्ढे को दियों से सजाया हो ! कहिए आप का क्या खयाल है ?