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बुधवार, 5 दिसंबर 2012

हिन्दी ब्लॉगरी का दशकोत्सव : बर्ग वार्ता

हिन्दी ब्लॉगरी का दशकोत्सव : सुमेरु उर्फ मानसिक हलचल के बाद एक लम्बा विराम आ गया। चन्द्रहार आयोजन  के वादे वादे ही रहे और दिसम्बर आ गया जो कि अपनी छठी के लिये जग विख्यात है। 
अपने को आलसी क्यों कहता हूँ, इसे आप समझ ही गये होंगे। कोढ़ में खाज जैसा उछ्ल कूद का रोग - इत्तके भये न उत्तके चाले मूल गँवाय  वाला हिसाब है अपना! 
 बहुत पहले कुछ मित्रों से कहा था कि अपनी पसन्द के रत्नों पर कुछ लिख भेजें।
अभिषेक ओझा ने तत्परता दिखाते हुये स्मार्ट इंडियन अनुराग शर्मा के ब्लॉग बर्ग वार्ता पर लिख भेजा जिसे मैं ऐज यूजुअल और अच्छा करने के चक्कर में दबाये रखा - फालतू का दम्भ। 
  
अब क्यों कि बहुत काम नागा है और वर्षांत निकट है और मुझे स्वयं नहीं पता कि किस ओर बह जाऊँगा; ओझा जी की वार्ता प्रस्तुत है (अपनी वाली फिर कभी!): 
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पता नहीं जो मैं लिखने वाला हूँ उसे समीक्षा कहा जा सकता है या नहीं। क्योंकि शायद ये मेरी अपनी सोच भी नहीं है। हो सकता है बर्ग वार्ता (http://pittpat.blogspot.com) की सबसे अच्छी बातें मैं लिख ही न पाऊँ ! या फिर अगर बर्ग वार्ता की सारी पोस्ट एक बार फिर पढ़ आऊँ तो मैं कुछ और ही लिख दूँ।

 पर मेरी नजर में किसी चीज की खूबसूरती भी इसी बात में होती है कि आप जितनी बार पढ़ें हर बार एक नया नजरिया बने उसके बारे में। मेरी पसंदीदा पुस्तकें वही रही हैं जिन्हें हर बार पढ़ने पर कुछ नया सीखने को मिलता है। साधारण तरीके से कही गयी सीधी सरल बात पर उसे ही दुबारा पढ़ने पर एक नयी परत दिखाई दे जाय ! कुछ ऐसा ही है - बर्ग वार्ता !
इस ब्लॉग पर सब कुछ मिलता है। कविता, हास्य, कहानी, स्वतन्त्रता संग्राम की गाथा, नायकों का चरित्र-चित्रण, संस्मरण, फोटो फीचर, समसामयिक मुद्दे, जानकारी और शोध से भरी पोस्ट्स - सबकुछ । पर ऐसा नहीं कि इस ब्लॉग की कोई थीम नहीं। कोई एजेंडा नहीं। है ! मुझे अनुरागजी के ब्लॉग की थीम लगती है – तथ्यों को सबके सामने रखना। दोमुंहेपन का विरोध।

बर्ग वार्ता को लिखने वाले स्मार्ट भारतीय - अनुराग जी  पिट्सबर्ग  में रहते हैं। एक पोस्ट में उनके बारे में जानने वालों के लिए वो खुद ही जवाब देते हैं - मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला, "मैं एक भारतीय।" । अपने दिल में भारत को बसाये अनुराग जी की अमेरिका-भारत वाली बात पर मुझे उनकी एक और पुरानी पोस्ट भी याद आ रही है जिसमें उनकी मुलाक़ात होनहार ऐन-किट ***। से हुई थी।

 पिट्सबर्ग पर उनकी शृंखला इस्पात नगरी से उनके ब्लॉग की सबसे लंबी शृंखला है। जिसमें वो अपने आस पास की बातों को लिखते रहते हैं। आस पास की छोटी बातों में भी कुछ न कुछ जानकारी और रोचकता होती ही है। अब चाहे वो परशु का आधुनिक अवतार हो, क्वेकर विवाह हो या बॉस्टन के पण्डे हों।

मैं उनकी पोस्ट्स देख कर एक बात का अंदाजा लगा सकता हूँ - जब भी उन्हें किसी ब्लॉग पर कोई ऐसी बात दिखती है जिसके बारे में उन्हें लगता है कि लोगों को इसकी सही जानकारी होनी चाहिए। या कोई भी दुष्प्रचार हो - उस पर वो शोधपरक आलेख लिखते हैं। “मैं एक भारतीय” कहने वाले अनुरागजी के ब्लॉग पर भारतीय पर्वों के साथ अमेरिकी पर्व त्योहारों, खबरों और परम्पराओं की भी भरपूर जानकारी होती है। उनके बात रखने का तरीका मुझे पसंद है। उनकी बातें कभी बिन तर्क और तथ्य के नहीं होती। वैसी ही बात को लेकर ब्लॉगजगत में खींच तान चल रही होती है और यहाँ वही बात शोध, तथ्यों और इस गंभीर तरीके से कुछ इस तरह रखी जाती है कि 400 फोलोवरस होते हुए भी कभी विवाद होते नहीं दिखते। किसी भी मुद्दे पर अनर्गल प्रलाप करने वालों को इस ब्लॉग पर आना चाहिए ये देखने कि अपनी बात कहने का एक तरीका होता है।

420 पोस्ट [J] हो चुके इस ब्लॉग के सारे पोस्ट अभी मैंने स्कैन नहीं किया पर कुछ पोस्ट और उसकी कुछ बातें याद रह जाती हैं। उन्हीं याद रह गयी लाइनों को गूगल कर ये नमूने मैं यहाँ लिख रहा हूँ। इसे ब्लॉग का सम्पूर्ण चित्रण तो नहीं ही कहा जा सकता।
शुरू के दिनों में एक पोस्ट में उनकी लिखी ये लाइन मुझे अब भी याद है  “अलबत्ता शराब व कबाब काफ़ी था। कहने को शबाब भी था मगर मेकअप के नीचे छटपटा सा रहा था ।“

वैसे ही ब्राह्मण की रूह वाली पोस्ट – “उन्होंने बताया कि उनके पाकिस्तान में जब कोई बच्चा मांस खाने से बचता है तो उसे मजाक में बाम्भन की रूह का सताया हुआ कहते हैं।“ http://pittpat.blogspot.com/2008/07/blog-post_7350.html

और ये पंक्तियाँ:
 मुझे सताया मेरी लाश को तो सोने दो ,
गुज़र गया हूँ खुराफात का अब क्या मतलब। 

फरिश्ता-जालिम के गड़बड़झाले को वो कुछ यूं कहते हैं -
कोई हर रोज़ मरता है, शहादत कोई पाता है।
मैं ऐसा हूँ या वैसा हूँ, समझ मुझको न आता है।
फरिश्ता कोई कहता था, कोई जालिम बताता है।

और लोगों के दोमुहेंपन की छोटी-छोटी बातों पर वो कहते हैं-  झूठी हमदर्दी के बहाने, आए दिल को जलाने लोग

बीच-बीच में प्रेम की कविता भी होती है। और वो पूछ लेते हैं -  कभी कहो भी इतना क्यों सताती हो? http://pittpat.blogspot.com/2008/08/blog-post_21.html

जब मेरी एक पोस्ट पर टिप्पणी आई – “ऐसा लगा जैसे अनुराग शर्मा की कोई कहानी पढ़ रहे हैं”  तो मुझे एहसास हुआ कि अनुराग शर्मा की कहानी और उनका कहानी लिखने का तरीका ब्लॉग जगत में कितना प्रसिद्ध है। उनकी एक कहानी पर ज्ञानदत्त पांडेयजी की टिप्पणी : 
अच्छा प्लॉट है मित्र। आपमें इण्डियन "गॉडफादर" लिख पाने की प्रबल सम्भावनायें हैं। उन सम्भावनाओं का दोहन करें! 

उनकी कहानीयों को पढ़ते अक्सर संस्मरण है या कहानीका भ्रम बना रहता है। लंबी कहानियों में सस्पेंस और सारी कहानियों के ऐसे अंत जो कई बार पाठक पर ही निर्णय छोड़ देते हैं।

एक छोटी कहानी का अंत देख कर आइये:
 कह के या कर के? http://pittpat.blogspot.com/2008/08/blog-post_25.html

मुझे सबसे अधिक पसंद हैं उनकी कहानियों के पात्रों के नाम जो याद रह जाते हैं। जैसे कुछ उदाहरण- सैय्यद चाभीरमानी, डंबर प्रसाद, मिल्की सिंह (यानी दूधनाथ सिंह), लित्तू भाई और बी. एल. नास्तिक !

भले और सुसंस्कृत लोगों के बारे में एक पोस्ट में ये मिला - हमारे एक सहकर्मी थे। निहायत ही भले और सुसंस्कृत। कभी किसी ने ऊंची आवाज़ में बोलते नहीं सुना। प्रबंधक थे, कार्यालय की सारी खरीद-फरोख्त उनके द्वारा ही होती थी। कभी भी बेईमानी नहीं की। न ही किसी विक्रेता से भेदभाव किया। सबसे बराबर का कमीशन ही लेते थे। कम-ज़्यादा का सवाल ही नहीं। 

पर्व त्योहारों और परम्पराओं की पोस्ट में भी कुछ न कुछ जानकारी होती है। जैसे दीपावली की एक पोस्ट पर उनका सवाल था - अगर लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और दीवाली लक्ष्मी के आह्वान की रात है तो हम इतनी रोशनी की चकाचौंध से क्या उल्लू की आँखें चौंधिया कर लक्ष्मी जी को वापस तो नहीं भेज देते हैं? http://pittpat.blogspot.com/2008/10/blog-post_27.html

ब्लॉग पोस्ट्स की विविधता के कुछ उदाहरण -  चीनी दमन, तिब्बत में हिंसा, आर्थिक मंदी, आतंकवादी घटनाएँ, तानाशाहों की बात, ऐतिहासिक घटनाएँ - तियानंमेन स्कवेर हो या बर्लिन की दीवार ! प्रति टिप्पणी के रूप में किए गए शोध-आधारित लेख हों या हिटलर की आत्मकथा का लोकप्रिय होना या ब्राज़ील में भारत पर आधारित टीवी सीरियल।  बोन्साई हो या पुष्पहार ! 
भगवान परशुराम पर वो लिखते हैं – बुद्ध हैं क्योंकि भगवान परशुराम हैं! http://pittpat.blogspot.com/2010/05/blog-post_15.html

उनकी कुछ यादगार शृंखलाओं/लेखों में  मुझे याद आ रहे हैं - शाकाहार, सपनों पर आधारित शृंखला, देवासुर संग्राम, नायकत्व, मोड़ी लिपि, शहीदों पर लिखी शृंखला, ब्राह्मण कौन और सिंदूर क्यों।
नायकों कि पोस्ट की शुरुआत जहां वो – “कुछ लोगों की महानता छप जाती है, कुछ की छिप जाती है।“ से करते हैं वहीं खलनायकों के नाम लेते समय उनकी सूची देखिये - सहस्रबाहु, हिरण्यकशिपुहिटलर, माओ, लेनिन, स्टालिनसद्दाम हुसैन, मुअम्मर ग़द्दाफ़ी !

ओलंपिक पर हो रहे तमाम बातों के बीच वो अपना मत कुछ इस तरह रखते हैं - एक ऑटो रिक्शा चालक शिव नारायण महतो की बेटी पेड़ों से आम तोड़ने के लिये घर पर बनाये तीर कमान से अपनी यात्रा आरम्भ करके प्रथम सीड तक पहुँच पाती है लेकिन उसका खेल "देखने" के लिये मंत्री जी की विदेश यात्रा से देश की खेल प्राथमिकतायें तो ज़ाहिर होती ही हैं।

ब्लॉगिंग पर हो हल्ले के बीच उनकी दो पोस्ट के टाइटल ही बहुत कुछ कह जाते हैं – “NRI अंतर्राष्ट्रीय निर्गुट अद्रोही सर्व-ब्लोगर संस्था” और अब कुपोस्ट से आगे क्या होगा” !

चलते चलते उनकी एक लाइन –
सुरीला तेरे जैसा या कंटीला मेरे जैसा है,
जाने यह जीवन कैसा है?





और उन्हीं के ब्लॉग से कॉपी-पेस्ट:
  यदि मेरी कोई बात ग़लत हो तो एक अज्ञानी मित्र समझकर क्षमा करें मगर गलती के बारे में मुझे बताएं ज़रूर. !



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यदि आप चन्द्रहार के अन्य रत्नों के बारे में कुछ लिख भेजना चाहते हैं तो अवश्य भेजें। आप इन लिंकों से भूली बिसरी याद कर सकते हैं:
 

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

दिल, नागिन और मूँछें

यह ऐसा आलेख है जिसके लिये टिप्पणी न करने की शपथ भी तोड़ी जा सकती है। परिवेश की बेहूदगियों पर झुँझलाते हुये 'आर्ट ऑफ लिविंग' में सिमटने या 'पॉलिटिकली करेक्ट' हो कर बेहूदगियों का समर्थन करने से अच्छा है कि हो हल्ले में दबा दिये गये, अनदेखे कर दिये गये और किये जा रहे तथ्यों पर लिखा जाय। 
इसे पढ़ते हुये जाने कितनी 'नर्कगामी' सचाइयाँ स्वर्ग की ओर कुलाचें मारने लगती हैं। मजे की बात यह है कि रम्यता भी बनी रहती है। ब्लॉगरी साहित्य को समृद्ध कर रही है, यह आलेख प्रमाण है। 
अधिक नहीं कहूँगा, स्वयं पढ़ कर देखिये: