यह लेख बहुत सरल तरीके से आम जनता और विशेषकर युवा वर्ग को तेल या गैस डिपो में लगने वाली आग के एक अनछुए से पहलू से अवगत कराने के लिए लिखा गया। कृपया तकनीकी बारीकियों की अपेक्षा न रखें।
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आग जिन्दगी है। कोई जिन्दा है कि नहीं, यह उसके शरीर की गर्मी से जाना जाता है। मनुष्य आग जलाना सीखने के बाद ही सभ्य हुआ। इसीलिए दुनिया के सभी पुराने धर्मों में आग को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ऋग्वेद का पहला सूक्त ही अग्नि को समर्पित है।
आग को जलाने के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं – फ्यूल, ऑक्सीजन और स्पार्क। ये तीन मिलते हैं तो आग पैदा होती है। इन्हें फायर ट्रैंगल भी कहा जाता है। तीनों साइड पूरे हों तो आग लगती है। अगर कोई एक नहीं रहेगा तो आग नहीं जलेगी। इस जानकारी का उपयोग आग को रोकने और उसको बुझाने में किया जाता है।
तेल के डिपो या एक्स्प्लोजिव स्टोरेज में यह प्रयास किया जाता है कि स्पार्क न पैदा हो क्यों कि फ्यूल और ऑक्सीजन तो ऐसी जगहों पर रहते ही हैं। इसीलिए ऐसे स्थानों पर स्मोकिंग, कुकिंग वगैरह वर्जित होते हैं। लाइटिंग और स्विच भी स्पार्करोधी होते हैं और विस्फोटक विभाग के लाइसेंस के बाद ही बनाए जाते हैं। ऐसी जगहों पर यदि किसी कारण से आग लग गई और शुरू के कुछ मिनटों, जी हाँ मिनटों- घंटों नहीं, में नियंत्रित नहीं हुई तो विस्फोटक होने के कारण उसे बुझाया नहीं जा सकता। असल में हवा गर्म होकर उपर उठती है और खाली स्थान भरने को अगल बगल से हवा जोरों से आती है । इस कारण यह पूरा प्रॉसेस दुगुना चौगुना रफ्तार से बढ़ता जाता है। पानी का कोई असर नहीं होता। प्रोडक्ट के पूरी तरह जल जाने पर ही आग बुझती है। कुछ आधुनिक तकनीकें जैसे विस्फोट कर ऑक्सीजन को आग वाले स्थान पर एकदम समाप्त कर देना बहुत महंगी, कठिन और अप्रभावी साबित हुई हैं। बड़ी स्केल की आग को नियंत्रित करना कितना कठिन है यह इससे समझा जा सकता है कि ऑस्ट्रेलिया जैसा विकसित देश भी अपने जंगलों में लगी आग को नियंत्रित नहीं कर पाता है और वहाँ इससे हाल के वर्षों में बहुत नुकसान हुआ है। ऐसी आग की सूरत में आबादी खाली कराने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।
आग से बचाव और नागरिकों की सुरक्षा के लिए ही तेल और एल पी जी डिपो आबादी से बहुत दूर बनाए जाते हैं। लेकिन ऐसी जगहों के चारो ओर रोजगार के अवसर बढने से आबादी बसती जाती है। दुर्भाग्य से भारत में नागरिक जागरूक नही हैं और न ही सरकारें आबादी के बसाव को रोकती हैं। लॉ और ऑर्डर का मामला होने के कारण तेल कम्पनियाँ अपनी बाउंड्री के बाहर आबादी की ऐसी बाढ़ को रोकने के लिए कुछ अधिक नहीं कर पातीं । ऐसी आबादी आग लगने का कारण हो सकती है और आग लगने पर उसका आसान शिकार भी।
डिपो के भीतर सुरक्षा के तमाम इन्तजामात होते हैं। सुरक्षा के उपर खर्च 30 से 35% तक भी हो जाता है। सारे कर्मचारी आग न लगने देने की सावधानियों और आग पर समय रहते काबू पाने के लिए ट्रेंड होते हैं। शेड्यूल के हिसाब से नियमित रूप से मॉक फायर ड्रिलें होती हैं जिनमें प्रशासन और फायर डिपार्टमेंट भी हिस्सा लेता है। आग लगने पर कौन कर्मचारी क्या करेगा, यह सब पूर्व निर्धारित रहता है। मॉक ड्रिल में इसी हिसाब से कर्मचारी ऐक्शन लेते हैं ताकि हादसा होने पर किसी तरह का कंफ्यूजन न हो।
सवाल यह है कि इतनी तैयारी के बाद भी आग लग कैसे जाती है? ऐसे समझिए कि सावधानियों के चलते ही आग की घटनाएँ बहुत कम होती हैं नहीं तो जिस तरह के प्रोडक्ट होते हैं, उनसे बार बार आग लगे ! गैस या पेट्रोल का हवा के साथ मिश्रण बहुत ज्वलनशील होता है। मानवीय चूक या मशीनरी के फेल्योर से अगर इनका लीकेज बहुत देर तक होता रहे तो ये अदृश्य वेपर क्लाउड बनाते हैं। यह क्लाउड हवा में तैरता रहता है। इस क्लाउड में ऑक्सीजन और फ्यूल का एक निश्चित अनुपात होने पर जरा सी चिनगारी कहर मचा सकती है क्यों कि पूरा क्लाउड एकदम से आग पकड़ता है। अब आप कहेंगे कि चिनगारी आएगी कहाँ से? होता यह है कि हवा के साथ यह अदृश्य क्लाउड बहुत दूर तक डिपो की बाउंड्री के पार भी चला जा सकता है। अब यदि आबादी में कहीं किसी ने कुछ सुलगाया तो आग क्लाउड को पकड़ डिपो तक आ जाती है और फिर तबाही पक्की ! इसीलिए डिपो के चारो ओर आबादी का हिस्सा न बनें और दूसरों को भी ऐसी बस्ती न बनाने के लिए चेताएँ।
अब तो आप समझ ही गए होंगें, ये आग नहीं आसाँ ।
इस सूक्ष्म जानकारी के लिए आभारी हूँ.....बेहतरीन आलेख यकीनन..
जवाब देंहटाएंऐसे समझिए कि सावधानियों के चलते ही आग की घटनाएँ बहुत कम होती हैं नहीं तो जिस तरह के प्रोडक्ट होते हैं, उनसे बार बार आग लगे !
जवाब देंहटाएंजहां इंसान है .. वहां ऐसी छोटी मोटी गल्तियां होनी ही है .. और प्रकृति कोई बडी सजा न दें .. तो भला इंसान सावधान क्यूं रहें ??
बहुत अच्छी जानकारी। समाज के सौ लोगों में निन्यानबे द्वारा सावधानी बरते जाने के बावजूद एक की बेवकूफ़ी से भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है और खामियाजा सभी भुगतेंगे। इसलिए जब तक सौंवा व्यक्ति भी सजग न रहे तबतक खतरा मंडराता रहेगा। बल्कि उसके बाद भी कोई गारण्टी नहीं है।
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी आलेख है। शुक्रिया।
अपने पेशे से जुडी जानकारी देने का सबसे बड़ा लाभ है कि पढने वाले को बिलकुल सही और विस्तृत जानकारी मिलती है सरल भाषा में.
जवाब देंहटाएंसार्थक जानकारी. जब तक हम सुरक्षा के प्रति दीवाने नहीं होगे तब तक आग लगती रहेंगी, फैक्टरी, घर, सडक पर हादसे होते रहेंगे. पिछले दिनों अमेरिका में राष्ट्रपति ओबामा के एक निजी सडक पर भी हैल्मेट बिना साइकिल चलाने पर हुये हंगामे और उनकी तीव्र आलोचना का उदाहरण बडा सामयिक है. उसके उलट हमारे यहाँ मोटर साइकिल पर भी हैल्मेट नहीं लगाये जाते और इनफोर्स किये जाने पर विरोध भी होता है.हमें जानकारी के साथ जागरूकता भी चाहिये.
जवाब देंहटाएंव्यवस्थित आलेख । उपयोगी भी ।
जवाब देंहटाएंइस चिट्ठे पर ऐसे आले्ख पढ़ने की आदत कम ही है । आभार ।
BAHUT ACHCHHA AALEKH. DHANYAWAAD.
जवाब देंहटाएंमनुष्य गलतियों का पुतला है !!!!!!(कुछ गलतियाँ हो जाती हैं और कुछ जानबूझ कर की जाती हैं |)
जवाब देंहटाएंइसके अलावा और क्या कह सकते हैं!
आपकी इस जानकारी पर आपको हमारा आभार !
ज्ञानवर्धक पोस्ट !!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी है आपने।
जवाब देंहटाएंतकनीकी बारिकियों की अपेक्षा न रखें....अब इससे ज्यादा तकनीकी में बात होती तो हम समझ ही नहीं पाते!
Rochak Jankari.
जवाब देंहटाएंइस लेख की एक उपयुक्त जगह और है साईंस ब्लॉगर असोशिएसन -जाकिर को कहता हूँ की वे इसे वहां भी लें साभार -अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो !
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