मंगलवार, 31 जुलाई 2012

एक परम्परा ऐसी भी

चित्राभार :  http://www.kamat.com/database/pictures/corel/515043.jpg  
रुक जाऊँगा एक दिन जब चलने को राह नहीं रहेगी और कहीं किसी लैब में कोई वैज्ञानिक पृथ्वी की परिधि  माप लेगी। 
इस युग की तमाम घिसी पिटी बातों से नुकीली तराश लिये एक बात - एकला चलो रे! मुझसे नहीं जुड़ती। 
मैं कभी अकेला नहीं होता, मेरे साथ होती हैं - कानों में ऊष्म फुसफुसाहटें, पैरों में तलवे काँटों से मढ़े  - मैं चलता हूँ।  

मुठ्ठियों में भिंचे काँटेदार शब्द राहत पाने को करवटें बदलते हैं, रक्त रिसता है - पैरों से नहीं, हाथों से - मैं लिखता हूँ।
चित्राभार: http://www.cse.iitk.ac.in/~amit/birds/good/0650sw_brahminy-chased-off-by-babbler_14.10.jpg
मैं चलता हूँ वह लीक पकड़ जिस पर हैं विशाल झंखाड़ बरगद, पाकड़ - अमरबेलों के बलियूप। 
कभी बोये थे रक्तबीज पथिकों ने, जिनके हाथ रिसते थे, जो लिखते भी थे। 

हाँ, मुझे पता है कि हैं कुछ उद्यान, सदियों से परिरक्षित ज्ञान, कहलाते जीवंत!  
जिनमें खेलती हैं नई पीढ़ियाँ, जिनकी बेंचों पर बैठ बूढ़े करते हैं लेखजोख सभ्यताओं की मृत्यु के! 
और युवा नशा पीते हैं, संसार को जीते हैं।
चित्राभार : http://previews.agefotostock.com/previewimage/bajaage/b44450dcfd457e8ef02516a1ed7f9720/IBR-591303.jpg
मैं नहीं वहाँ यायावर अक्सर, नहीं अच्छे लगते वे, साज सँभाल बनाती है शंकालु मुझे, मृत्यु की बातें बनाती हैं दयालु मुझे वहाँ बू आती है - षड़यंत्रों, दुरभिसन्धियों की, समझ सकता हूँ जिन्हें समझा नहीं सकता, सूँघ सकता हूँ सूत्रों में सँजो नहीं सकता -गन्ध सूत्रबद्ध न हुये कभी, न होंगे कभी। 
मैं बता नहीं सकता कि शब्द भिंचे छ्टपटाते छोड़ने पड़ेंगे, मुठ्ठियाँ खोलनी होंगी, होना होगा अकेला निपट - 
मैं अकेले चल नहीं सकता और रुकना मुझे स्वीकार नहीं। मैं हूँ वाहक घनचक्करों की परम्परा का - भाषा है, भाष्य नहीं।

7 टिप्‍पणियां:

  1. भयंकर टाइप माहौल बनाती कविता; यदि इसे कविता ही कहा जाए तो...

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  2. पथ में रथ के पहिये चाहे न घूमें,
    पर धरती फिर भी घूम रही है।

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  3. रक्तरंजित हाथों और घायल हृदय से ही होता है उत्कृष्ट लेखन!
    मुट्ठियाँ उतनी ही खोलिए जितनी समय की ज़रूरत और विवेक की अनुमति है..शब्दों का क्या है वे कसमसाते रहते हैं.

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  4. तीन-चार बार पढता हूँ तब जाकर कहीं कुछ-कुछ उतरती है आपकी बात :)

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  5. क्या लिखूँ, अपनी कोई टिप्पणी नहीं है, जब समझ में आयेगा तब टिप्पणी लिखेंगे ।

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  6. यहाँ भाषा और भाष्य दोनों है हे वाहक! गज़ब!

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