महीनों से मेहनत करते रहे लेकिन किसी अखबार ने नहीं पूछा । 'बरियार' और 'कनैल' पर लिखते ही दोनों ने जाने क्या गुल खिलाया कि 'अमर उजाला' ने अभी इस बच्चे से ब्लॉग के लेख को जगह दे डाली। स्कैन नीचे लगा हुआ है, यह 25/06/09 के अंक में छपा था।
जरा सोचिए, थोड़ी सी संवेदना दिखाने पर ऐसा हो सकता है तो इन पेंड़, पौधों और वनस्पतियों की अगर आप सही देखभाल और पोषण करेंगे तो परिणाम कितने सुखद होंगे!
तो चलिए एक पौधा रोपते हैं और उसे जिलाते हैं।
बधायी ! अभी तो इस उर्वर लेखनी से बहुत उम्मीदें हैं !
जवाब देंहटाएंआप तो नामी हईये हो जी!
जवाब देंहटाएंRao Sahab apne gyan chkshu kholye i next ne to aapko aalsi se karmath bana diya hai, aapke poore blog ko tamga pahna diya hai
जवाब देंहटाएंCongratulations !!
जवाब देंहटाएंबधाई !
जवाब देंहटाएंbadhaaI hamne to aam ka ped lagaa liyaa hai
जवाब देंहटाएंबधाई। पेड़-पौधे तो फलदायी होते ही हैं :)
जवाब देंहटाएंहां, आप सही कह रहे हैं, पेड़-पौधों वनस्पतियों की देखभाल से सबका भला होगा। और नाम हो या न हो, काम तो होगा ही। अच्छा लगा कि आपके ब्लॉग का जिक्र अखबार में हुआ। और ''सर्वहारा'' वनस्पतियों पर भी लिखते रहिए। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबधाई हो मित्र - अभी कई मुकाम आयेंगे!
जवाब देंहटाएंबधाई हो (२५ जून के पर्व की)
जवाब देंहटाएं....आगे-आगे देखिये होता है क्या! ;)