पौधा है : कनैल , वैज्ञानिक (Botanical) नाम: Thevetia neriifolia, अन्य नाम - अश्वमारक, कर्वीर (संस्कृत), करबी (बंगला)
कनैल एक बहुत ही सुन्दर और 'देसी प्रकार' का 'सर्वहारा' पौधा है। पत्तियाँ, फूल और बीज - सबकी छटा निराली है। इसके फूलों का रंग प्रमुखत: पीला होता है किन्तु इसके ललछौहें, श्वेत, रंगहीन फूल भी देखे गए हैं। पौधा बढ़ कर वृक्षाकार भी हो जाता है, वैसे हमारे विद्वान इसे झाड़ी श्रेणी में रखते हैं।
जन जन उपयोगी यह 'थेथर' श्रेणी का पौधा कहीं भी उग आता है। घूरा, कोला, बाँस के झुरमुट, काली माई वाले बरगद के नीचे, घर के आँगन, बाग बगइचा, गँवारू मन्दिर, नागर रोड डिवाइडर, अगाड़, पिछवाड़ कहीं भी लगा दो, बपुरा टनाटन्न हरा भरा रहता फूलों की वर्षा करता रहता है। निस्पृह इतना कि जोगी भी प्रेरणा लें!
हम अधम मानवों ने अपनी जाति या वर्ग व्यवस्था चारो तरफ थोप रखी है। पौधा जगत भी अपवाद नहीं है। सर्वसुलभ और सर्व-उपयोगी होने से इसे सर्वहारा की भाँति ही उपेक्षित रखा गया है। मेरी बात पर आपत्ति करने के पहले थोड़ा बताइए कि आप ने अपने प्रेमी या प्रेमिका को कभी कनैल का फूल भेंट किया है? नहीं। क्यों? क्या यह सुन्दर नहीं होता कि इसमें सुगन्धि नहीं होती?
उपेक्षा की स्थिति यह है कि :
- कभी इसे 'बुके' में स्थान नहीं मिलता।
- किसी लेखक ने इसके बारे में नहीं लिखा।
- दुष्ट कवियों ने जूही, मोगरा, गुलाब, कमल, चम्पा, चमेली, रजनीगन्धा आदि को लेकर तो बहुत उपमाएँ गढ़ीं परन्तु कनैल की कहीं चर्चा तक नहीं हुई।
- एक और सर्वहारा गेंदा फूल पर भी फिल्मी गाना रच दिया गया, पर बेचारा कनैल, आह!
- पौधारोपण करने जब महाजन आते हैं तो अशोक, अमलतास, गुलमोहर आदि ही लाए जाते हैं, कनैल नहीं।
- नारियों की वैयक्तिक प्रकार के पूजा पाठ में एकमात्र उपयोगी फूल होने पर भी वे इसे कभी जूड़े में स्थान नहीं देतीं।
बच्चे इसके सूखे बीजों से गोट्टी खेलते लक्ष्य साधने का अभ्यास करते हैं। है कोई माई का लाल पौधा जिसके बीजों में इतना बल हो? आखिर यह क्यों उपेक्षित है? गँवई होने के कारण न?
गाँवों में अभी एक पीढ़ी पहले तक इसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। पीले फूल किसी भी सात्त्विक प्रकार की पूजा के लिए सर्वोत्तम माने जाते थे। गुरुवार व्रत में तो इसके फूलों का आदर देखने योग्य होता था।
जन जन उपयोगी यह 'थेथर' श्रेणी का पौधा कहीं भी उग आता है। घूरा, कोला, बाँस के झुरमुट, काली माई वाले बरगद के नीचे, घर के आँगन, बाग बगइचा, गँवारू मन्दिर, नागर रोड डिवाइडर, अगाड़, पिछवाड़ कहीं भी लगा दो, बपुरा टनाटन्न हरा भरा रहता फूलों की वर्षा करता रहता है। निस्पृह इतना कि जोगी भी प्रेरणा लें!
हम अधम मानवों ने अपनी जाति या वर्ग व्यवस्था चारो तरफ थोप रखी है। पौधा जगत भी अपवाद नहीं है। सर्वसुलभ और सर्व-उपयोगी होने से इसे सर्वहारा की भाँति ही उपेक्षित रखा गया है। मेरी बात पर आपत्ति करने के पहले थोड़ा बताइए कि आप ने अपने प्रेमी या प्रेमिका को कभी कनैल का फूल भेंट किया है? नहीं। क्यों? क्या यह सुन्दर नहीं होता कि इसमें सुगन्धि नहीं होती?
उपेक्षा की स्थिति यह है कि :
- कभी इसे 'बुके' में स्थान नहीं मिलता।
- किसी लेखक ने इसके बारे में नहीं लिखा।
- दुष्ट कवियों ने जूही, मोगरा, गुलाब, कमल, चम्पा, चमेली, रजनीगन्धा आदि को लेकर तो बहुत उपमाएँ गढ़ीं परन्तु कनैल की कहीं चर्चा तक नहीं हुई।
- एक और सर्वहारा गेंदा फूल पर भी फिल्मी गाना रच दिया गया, पर बेचारा कनैल, आह!
- पौधारोपण करने जब महाजन आते हैं तो अशोक, अमलतास, गुलमोहर आदि ही लाए जाते हैं, कनैल नहीं।
- नारियों की वैयक्तिक प्रकार के पूजा पाठ में एकमात्र उपयोगी फूल होने पर भी वे इसे कभी जूड़े में स्थान नहीं देतीं।
बच्चे इसके सूखे बीजों से गोट्टी खेलते लक्ष्य साधने का अभ्यास करते हैं। है कोई माई का लाल पौधा जिसके बीजों में इतना बल हो? आखिर यह क्यों उपेक्षित है? गँवई होने के कारण न?
गाँवों में अभी एक पीढ़ी पहले तक इसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। पीले फूल किसी भी सात्त्विक प्रकार की पूजा के लिए सर्वोत्तम माने जाते थे। गुरुवार व्रत में तो इसके फूलों का आदर देखने योग्य होता था।
नई नवेली दुल्हनें नैहर सन्देशा देते समय बटोही को बाबा के घर की पहचान बताती थीं,"कुववाँ जगतिया कनइल बन फूले, दुवरे निबिया के गाछ हो.” ( मेरे पिता के घर के आगे कुआँ है, उससे लग कर कनैल का झुरमुट फूलता है और द्वार पर नीम का पेंड़ है)। इतना आदर कि कुएँ जैसे सार्वजनिक स्थान पर एक दो नहीं, कनैल के पूरे झुरमुट को स्थान दिया जाता था और इतना स्नेह कि बेटी को बाबा के घर का अभिज्ञान देते समय यह थेथर पौधा ही स्मृति में आता था, नीम से भी पहले!
परन्तु जिस प्रकार से मुए खम्भे अशोक ने आकर नीम के सम्मान का सत्तानाश कर दिया, वैसे ही दुष्ट पूँजीवादी समाज प्रिय गुलाब ने गाँवों में पदार्पण कर कनैल को उसके आसन से नीचे कर दिया।
कनैल इतना अत्याचार होते हुए भी फूल, पत्ती या डाल तोड़ने पर निस्पृह भाव से दूध स्रवित करता है मानो आशीर्वाद दे रहा हो फलो फूलो, हम तो ऐसे ही हैं। मुझे बड़ी करुणा होती है किन्तु कर भी क्या सकता हूँ, सिवाय इस एक लेख के?
परन्तु जिस प्रकार से मुए खम्भे अशोक ने आकर नीम के सम्मान का सत्तानाश कर दिया, वैसे ही दुष्ट पूँजीवादी समाज प्रिय गुलाब ने गाँवों में पदार्पण कर कनैल को उसके आसन से नीचे कर दिया।
कनैल इतना अत्याचार होते हुए भी फूल, पत्ती या डाल तोड़ने पर निस्पृह भाव से दूध स्रवित करता है मानो आशीर्वाद दे रहा हो फलो फूलो, हम तो ऐसे ही हैं। मुझे बड़ी करुणा होती है किन्तु कर भी क्या सकता हूँ, सिवाय इस एक लेख के?
लेख का अंतिम पहलू जहाँ आपने इसकी सौतनों के बारे में चर्चा की!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा!!
बहुत ही सुंदर आलेख। चलिए कवियों की उपेक्षा का आपने थोड़ा-बहुत परिहार कर दिया। चित्र की कमी रह गई, लेकिन आप तो ठहरे आलसी!
जवाब देंहटाएंअपने गांव के इन्दारा की याद आ गई। इन्दारा पर नहाते थे और वहीं कनैल के फूल ले कर शंकर जी को मन्त्र बुदबुदाते अर्पित!
जवाब देंहटाएंपता नहीं वह पेड़ होगा या नहीं। इन्दारा तो पाइप पानी की सप्लाई से डिसयूज में आ गया।
umda !
जवाब देंहटाएंbahut umda rachna !
कनइला के फूल. अच्छा याद दिलाया आपने अभी भी है हमारे घर के पिछवाडे में.
जवाब देंहटाएंकनैल को लेकर एक और बात प्रचलित है पता नहीं झूठ कि सच. बचपन में कहा जाता है इसका फल विषैला होता है भूल कर भी मत खाना. कनैल का फल चखने की हिम्मत आज तक नहीं जुटा पाया. लोगों को उपेक्षित लगता होगा लेकिन मुझे एक अजीब सा सुकून देती है इसकी सदाबहार हरियाली-निर्मल, निश्छल, निरपेक्ष. आपकी सेंस्टिविटी को सलाम.
जवाब देंहटाएंmera driver iske beejon ko le gaya, ki pagal kutte ko marne ke liye aate me daal kar khilane ko. sachmuch zahreela hota hai
हटाएंKutta mara ya nahi?
हटाएंमेरे गाँव में इसे कनइल कहा जाता है। साहित्यकार शायद इसे ही ‘कनेर’ कहते हैं। मुझे ठीक-ठीक नहीं पता।
जवाब देंहटाएंनवरात्र के समय गाँव में घर-घर फूलों की खपत बढ़ जाती है। लाल गुड़हल के बाद इसी फूल की माँग होती है। मेरे गाँव में सभी घरों के बच्चे और कुछ बुजुर्ग पुजारी टाइप लोग भोर होते ही इन फूलों के सिकार पर निकल पकड़ते थे। जो सबसे पहले जग गया वह गाँव के सभी पेड़ों के फूल समेट लेने का प्रयास करता। इसमें कम उम्र और हल्के वजन के बच्चे ज्यादा सफल होते थे क्योंकि इस पेड़ की नाजुक डालियों पर चढ़ना सबके वश का नहीं होता था। सुबह रोज चर्चा होती कि आज किसने बाजी मारी और किसके घर के देवता बिना फूलों के रह गये। :)
यह पोस्ट रही मजेदार और संवेदनशील, दोनो एक साथ।
टाइपिंग मिस्टेक:) अर्थात् टंकड़ की त्रुटि:- ‘सिकार’ को ‘शिकार’ पढ़ें।
जवाब देंहटाएंई त बिलकुल सही बात कहेन आप -कनईर क फूलवा केवल शंकरै जी का चढाई जाथ बस !
जवाब देंहटाएंयह पौधा सुगंधित एव सूंदर होते हुए भी उपेक्षा पात्र इसलिये होता है क्योकि यह पौधा विषैला होता है , कण मे इसके विष होता है , इसको आयुर्वेद शास्त्र मे अश्वमार भी कहा गयाहै , इसकी कई प्रजातियाँ होती है \
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जवाब देंहटाएं1
Helo sir good Information to your post
🖕🖕🖕🖕