एक महात्मा थे। साधना में एक ऐसा दौर आया कि दातून करना, नहाना सब छोड़ दिए क्यों कि उन्हें लगा कि इनसे जीवहत्या होती है।
जब पायरिया और खजुहट से त्रस्त हुए कुछ समय बीत गया तो एक दिन लगा कि दातून और नहाना छोड़ने से भी एक जीव को कष्ट हो रहा है, शायद मृत्यु भी हो जाय। खजुहट से कुत्ते मरते भी देखे थे और देह, मुँह से आती दुर्गन्ध से भक्त जनों के कष्ट भी।
ज्ञान अनुसन्धान की आगे की यात्रा उन्हों ने दातून और स्नान के बाद प्रारम्भ की लेकिन जीवन भर खजुआते रहे और बात करते गन्धाते रहे...
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पुरानी बोधकथाएँ:
(1) एक ज़ेन कथा
(2) एक देहाती बोध कथा
(3) एक ठो कुत्ता रहा
(4) गेट
आज कौन मिला था आपसे ...???
जवाब देंहटाएं'बोधकथा' के ज्ञानपक्ष पर ध्यान अपेक्षित है आर्य!
जवाब देंहटाएं'bodhkatha' bodhgamyam asti.....
जवाब देंहटाएंpranam acharya.
देर में समझ आई मुझे भी और उन महात्मा को भी...
जवाब देंहटाएंज्ञान यात्रा मेरी भी जारी है गिरिजेश भाई !
महात्मा - साधना
जवाब देंहटाएंदातून - नहाना
जीवहत्या - ......
पायरिया - खजुहत
कष्ट - म्रत्यु
दुर्गन्ध - बिछोह (भक्तों का)
दुबारा:
ज्ञान - अनुसंधान
दातून - स्नान
खजुआते - गंधाते
उसके बाद:
चार बोधकथाएँ
२ और ३ पहले आपकी पोस्ट में पढ़ ली थी.
१ और ४ अभी पढ़ कर सोच रहे हैं कि आचार्य क्या कहना चाहते हैं?
aaj kee post aap ke mansik dwand ko darsati hai ki aap ka apne dimagi man se kuch dwand chal raha hai .yeh kisi apne ko sanket kar likhi gyee hai .jo bahut hi azeej hai
जवाब देंहटाएंअत्यंत प्रेरणादाई इस बोध कथा में उल्लिखित , चरम साधना में लीन उस परम महात्मा तुल्य , कोई अधम ब्लॉगर तो नहीं मित्र ? :)
जवाब देंहटाएंदातून ,नहाना ,खजुआना ,गन्धाना आदि आदि के पठन मात्र से ही टंकियाना , छपियाना ,गरियाना ,टिपियाना ,झेलाना जैसे भाव प्रकट होते हैं बंधु !
हरी ओम तत्सत !
जवाब देंहटाएंइस पर गहन विचार करते हैं.
वैसे ठंड आने वाली हो तो ऐसे पोस्ट से परेशान नहीं करना चाहिए लोगों को. ऐसे ही करने दीजिए साधना ;)
शपथनामा:
जवाब देंहटाएंइस कथा का जीवित या मृत या अब तक अनवतरित किसी भी ब्लॉगर या मनुष्य विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है। :)
कम शब्दों में बडी बात!
जवाब देंहटाएंदुनियादारी, किताबी आदर्शवाद या यथासम्भव सत्यवाद?
फ़िलोसोफी, कागज़ी फल्सफा या सत्य-दर्शन?
सकल पदारथ हैं जग माहीं ...
इसे पढना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंक्या यह व्यंग्य है जीव-अहिंसा पर?
जवाब देंहटाएंमहात्मा,दातून और स्नान के बाद भी क्यों गंधाते रहे?
संदेश क्या है? देव कुछ स्पष्ठ करें।
शिक्षा :
जवाब देंहटाएंअज्ञानियों को ज्ञान की प्राप्ति हो तो समाज उन्नति करता है, किन्तु मूर्खो को ज्ञान की प्राप्ति हो तो अवनति :)
@ सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंप्रश्न: महात्मा,दातून और स्नान के बाद भी क्यों गंधाते रहे?
उत्तर: साधना पथ के कुछ काँटे ऐसे घाव दे जाते हैं जो जीवन भर साथ रहते हैं।
सब छोड़ियेगा तो यही होगा। त्याज्य को ही त्यागा जाये।
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंआभार!!
पूर्ण परिमार्जन,अथवा शुद्धिकरण सम्भव नहिं?
यह पोस्ट सर्दी के आगमन पर शिड्यूल कर रखी गई थी! :)
जवाब देंहटाएं@ सुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंपूर्णता, अनंत आदि मनुष्य़ की विराट सम्भावनाएँ हैं जिन्हें यथार्थ करने के लिए जिया जाता है लेकिन सम्भावनाएँ ही कैसी हो पूरी हो जायँ? मनुष्य़ की यात्रा थम नहीं जाएगी, यदि पूरी हो गईं? मनुष्य़ मनुष्य़ कहाँ रह जाएगा, अगर पूर्ण हो गया?
सार यह है कि सम्भावनाएं अनंत, किन्तु मनुष्य जीवन की सीमाएं हैं, सीमाओं का सामर्थ्य से अधिक अतिक्रमण असंगति पैदा करता है। यही बोध है न देव!
जवाब देंहटाएंअति चाहे किसी चीज कि क्यों ना हो ठीक नहीं होती. अभी कुछ समय पहले दिस्कोवेरी चेनेल पर एक प्रसारण देख रहा था जिसमे विश्व अलग अलग समाजों में प्रचलित विचित्र प्रथाएं दिखा रहे थे. इस में पहले पायदान थी हमारे जैनी समाज कि एक प्रथा जिसमे वो लोग अपने केश नोच कर निकलते हैं. स्त्रियों को अपनी eye brow नुचवाते हुए तो देखा है पर कोई अपने सिर के बाल या दाड़ी के बाल नोच नोच के निकले देख कर वास्तव में अजीब लगा. इसके पीछे कारण है कि कहीं सिर में पल रही जुए ना मर जाए. उसी वक्त मन में ख्याल आया कि अगर इन लोगों के पेट में कृमि हो जाए तो ये लोग क्या करेंगे . क्या तब भी जीव हत्या का पाप अपने सिर नहीं लेना चाहेंगे.
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी ठीक समझे हैं कि "मनुष्य जीवन की सीमाएं हैं, सीमाओं का सामर्थ्य से अधिक अतिक्रमण असंगति पैदा करता है"
॰इसके पीछे कारण है कि कहीं सिर में पल रही जुए ना मर जाए.
जवाब देंहटाएंदीपक पाण्डेय जी,
पर यह सच्चाई नहिं है, कारण बहुत है और गम्भीर भी।(कभी अवसर और समय देखकर चर्चा करेंगे)थोडी थाह लेनी पडती है।
लेकिन बोध स्पष्ठ हो गया, आभार
जितने भी महामानव हुए हैं, उनके जीवन को ध्यान से देखने पर उन 'घावों' का पता चलता है। जीवन की अजीब ट्रेजेडी है यह!
जवाब देंहटाएंबहुत विश्लेष्ण करना पड़ा इन बातों को समझने के लिए ...बहुत आभार
जवाब देंहटाएंचलते -चलते पर आपका स्वागत है
यह बोधकथा बड़ी चालू रही ! कोई टालू के अर्थ में ले तो का करे कोई ! लोग जडाये हैं न !
जवाब देंहटाएंकुछ और बोध-कथाएं लाइए ! द्रुत में !
गागर मे सागर। आभार।
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