गुरुवार, 12 मई 2011

बेल का रस

अभी अभी दो गिलास बेल का रस गटके हैं। 
चम्मच से ककोर ककोर गूदा खाये हैं (देखिये कितना साफ कर दिये हैं खपड़ोई को!)।

 बहुत दिनों बाद आज श्रीमती जी को हृदय से धन्यवाद दिये हैं(संडे को पार्टी पक्की - बेल के नाम!)...
बहुत दिनों बाद ईश्वर को याद कर धन्यवाद दिये हैं कि यूरोप जा बसने का प्लान ठंड से डरा कर कैंसिल करा दिया ... वहाँ बेल कहाँ मिलते? गर्मी में भारत कहाँ आ पाते? ;) ...
तृप्त हो गया आज तो! 
तृप्त होकर आदमी आँय बाँय भी बकता है। NRI साथी बुरा न मानें प्लीज!

11 टिप्‍पणियां:

  1. जय हो, हम भी ढूढ़ते हैं बेल, बंगलोर में।

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  2. सारी गर्मी पापा सुबह सुबह ये अमृत पिलाते थे ..गुडगाँव में तो बेल देखे भी नहीं

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  3. गर्मी बढ़ी गयी है ..इस कुल बेल वेल का रस पि के तनी आनंद आ जाता है..
    प्यास जग गएल बेल के रस पिने के ...

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  4. बधाई ! :-)
    बड़ा मेहनत का काम है...अपने बस का नहीं इसे खा पाना !

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  5. अजी हमारे यहां भी थोडी थोडी गर्मी पडने लगी हे,करीब २०c. के करीब, आ जाओ युरोप मै साथ मे एक अटेची बेल का फ़ल एक अटेची आम लेते आना, ओर हां बडी वाली आटॆची लाना दोनो जिस मे ५० ५० किलो बेल ओर आम आ सके, हम बुरा क्यो मानेगे, जहां हम बेठे हे आप भी आ जाओ

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  6. हम तो अभागे भारत में रहकर भी बेल का शरबत सालों से नहीं पिए हैं.

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  7. सफाचट खपड़ोयी देख मुझे डेजी की बेल प्रियता याद आयी -इस सीजन में अभी उसे इस नायाब फल का इंतज़ार है

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  8. देखना कहीं जमालघोटे वाला असर ना हो जाये। कभी कभी बेल का मूड बिगड जाता है। जिस तरह आपने इसके खोपडे (खपडोई) को सफाचट किया है, यह बदला भी ले लिया करता है।

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  9. भयंकर सफाचट!
    शुक्र है बेल से भेंट हो गई, कहीं मानुष होता तो....!

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  10. एकदम साफ़ खपटे तो दो बेलों के लग रहे हैं - शर्बत बस दो ही गिलास बना ?
    बहुत सुगंधित-स्वादिष्ट होता है न -तृप्ति देनेवाला !

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