गुरुवार, 24 मई 2012

शक, शर्म और आलस छोड़िये...

... सबसे प्रिय ब्लॉग की खोज के अभियान में लोगों से सम्पर्क करने पर कुछ बातें पता चली हैं। उन पर अपनी बात रख रहा हूँ:



(1) मुझे राजनीति में नहीं पड़ना। ऐसे ही ठीक हूँ एवं और भी ऐसी कई बातें  -
स्पष्टत: ब्लॉग पुरस्कारों के चल रहे एक और आयोजन के समांतर इस व्यक्तिगत प्रयास को देखा जा रहा है। दोनों में तुलना न करें। वैसा आयोजन अपने से नहीं हो सकता। पहचान ब्लॉग की करनी है, ब्लॉगर की नहीं। ब्लॉग को पुरस्कृत किया जायेगा न कि ब्लॉगर को, स्पष्ट है कि प्रमाण पत्र, धन, समारोह, अंगवस्त्रम आदि आदि नहीं होंगे।  

(2) तीन ही बताने हैं? अधिक क्यों नहीं या तीन  तीन!  मुझे तो केवल दो ही... या नापसन्दगी भी? किसलिये?...आदि आदि 
मैं आप को नाम दे कर वोट नहीं माँग रहा, बस आप से आप की पसन्द और नापसन्द पूछ रहा हूँ। यदि आप को तीन नहीं मिल रहे तो कम ही बताइये। यदि आप किसी को नापसन्द नहीं करते तो न बताइये। यदि आप चाहते हैं कि आप का नाम गोपनीय रहे तो रहेगा।
ऐसे समझिये कि किसी शोध में निकला कोई छात्र आप से आप की राय माँग रहा है।

(3) कारण भी बताने पड़ेंगे? इतनी फुरसत किसे है? आप भी न! ... 
आप को कारण इसलिये बताने हैं कि सबसे प्रिय ब्लॉग के विश्लेषण में आप की राय महत्त्वपूर्ण और आवश्यक होगी। यदि अब तक आप ने केवल ब्लॉग नाम बताये हैं तो कारण भी लिख भेजिये। इतना आलस ठीक नहीं, मुझे देखिये - आलसी होने के बावजूद कितना श्रम करता हूँ! :)

मैंने मेल से भी अनुरोध भेजे हैं। उन ब्लॉग पाठकों के लिये जिन्हें मेल नहीं भेज पाया, अनुरोध सार्वजनिक कर रहा हूँ: 

साथियों!
प्रौद्योगिकी के विकास के साथ कम्प्यूटर पर लिखने की क्षमता/प्रयोग/उद्योग करने वाले जन के लिये ब्लॉग प्लेटफॉर्म एक वरदान की तरह सामने आया। लोगों को एक मुक्त मंच मिला जहाँ वे बेझिझक अपने को अभिव्यक्त करने लगे। असीम सम्भावनाओं के द्वार खुले, साथ ही प्रश्न भी कि पत्र पत्रिकाओं, सिनेमा, टी वी सीरियल, नाटक आदि के रहते ऐसा क्या है ब्लॉग मंच में कि लिखने वालों की बाढ़ सी आ गई! पारम्परिक लेखन भी स्थान पाने लगा। लोगों को तोष सा होने लगा कि हम भी लिख सकते हैं! हिन्दी में भी यह सब हुआ लेकिन अभी किशोरावस्था और युवावस्था की असमंजस भरी बातें चल ही रही थीं कि फेसबुक और ट्विटर आँधी की त्वरा से उस यौवन की उछाल ले सामने आ धमके जिससे सरकारें तक सहमने लगीं! ब्लॉग मंच अब कहाँ ठहरता है?

इतना सुकून क्यों मिलता है अपनी निजी सी अभिव्यक्ति को सार्वजनिक करके? क्या है वह सुकून? - पलायन? आत्मनिरीक्षण? या बस ‘कुछ नहीं, बस यूँ ही’ जो कि तनाव भरे जीवन को थोड़ी ढील दे देता है या यह भाव कि मैंने भी कुछ सार्थक किया, अपनी छोटी सी सीमा में कुछ कर दिखाया?

हिन्दी सिनेमा ने भी नये व्याकरण, नये गीत, नये विषयों, नई प्रस्तुतियों और नये तरीकों  के साथ अपनी धमक गुँजाई है तो स्वाभाविक सा प्रश्न उठता है ऐसे दौर में निहायत ही अल्पसंख्यक टाइप के हिन्दी ब्लॉग मंच के किसी ब्लॉग में ऐसा क्या है जो उसे अनूठा बनाता है, उसे किसी का पसन्दीदा बनाता है?

एक प्रिय ब्लॉग के कथ्य, रूप और विन्यास आदि में क्या कुछ विशिष्ट होते हैं? उनकी पहचान के लिये बहुत ही लघु स्तर पर एक लीक की खोज सा प्रयास है यह आयोजन! एक सामान्य व्यक्ति तो इतना ही कर सकता है – एकदम एक सामान्य हिन्दी ब्लॉग की ही तरह!
  
मैंने अपने ब्लॉग http://girijeshrao.blogspot.in पर आप से स्वयं आप के पसन्दीदा और नापसन्दगी वाले अधिकतम तीन तीन ब्लॉगों के नाम, कारण के साथ बताने का अनुरोध किया है। आप मुझे ई मेल से भेज सकते/ती हैं, टिप्पणियों के माध्यम से भेज सकते/ती हैं। यदि आप चाहेंगे/गी तो आप का नाम गोपनीय भी रखा जायेगा।
विशिष्ट ब्लॉगीय हल्केपन और हास्य के साथ लिखी सम्बन्धित पोस्ट का लिंक यह है जिसमें विस्तृत नियमों आदि के साथ चुटकियाँ चिकोटियाँ भी हैं तो कुछ अनदेखे से ब्लॉगों के कुछ लेखों के लिंक भी:

आप से अनुरोध है कि आप पहुँचे और अपनी पसन्द/नापसन्द के ब्लॉग कारण सहित बतायें। आप चाहें तो इस मेल के उत्तर में भी बता सकते हैं।   स्मरण रहे कि आप को ब्लॉग नाम बताने हैं, ब्लॉगर नहीं।

सधन्यवाद और साभार
आप का
एक आलसी जो चिट्ठा यानि ब्लॉग भी लिखता है J  

19 टिप्‍पणियां:

  1. एक ठो सट्टोरी हमरे सर्किल में हैं , उनको भेजते हैं ई लिंक । ससुरे सब चीज़ में सट्टा को फ़िट कर देते हैं ऊ , निगम चुनाव में के हारेगा के जीतेगा इस पर भी फ़िटिंग बैठा दिए थे । इहां खूबे स्कोप दिख रहा है कहेंगे बटोर लो बेट्टा आ लगाओ , इहां तो रुझानो है । पसंद त लास्टे में बताएंगे अभी त रुझान देख के मजा ले रहे हैं

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    1. :) आलसी ऐसों को पहचान लेगा। ऋणात्मक मार्किंग ऐसे ही थोड़े रखा गया है!

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  2. एक मैं भी ऐस्यीच आयोजन की सोच रहा हूँ ,कम से कम मेरा अपना मूल्यांकन न होने से इज्ज़त तो बची रहेगी ! :)

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    1. :) आयोजन तो कर ही डालिये। एकदम बिन्दास होगा आप का आयोजन!
      आप बार बार कंफ्यूज हो जा रहे हैं। लगता है लेख भी ध्यान से नहीं पढ़े। यहाँ नाम दे किसी का मूल्यांकन नहीं पूछा जा रहा। आप लोगों से ब्लॉग की पसन्दगी नापसन्दगी कारण सहित पूछी जा रही है। ब्लॉगर की तो बात ही नहीं हो रही, इज़्ज़त बेइज्जत तो दूर ही रहेंगे।
      रही बात अपने ब्लॉग की तो मुझे पता है कि यह अच्छा तो है लेकिन बहुमत का सबसे प्रिय वाला स्थान नहीं ले सकता।
      सारे अच्छे ब्लॉग अपने आप में अलग से होते हैं, कोई किसी को पसन्द आता है तो कोई किसी को। सबका अपना अपना महत्त्व है - ओ एस चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो, लिनुक्स आधारित हो, ऐपल मैक हो या बी एस डी की तरह लेकिन इन सबमें भी कुछ ऐसे समान से गुण होते हैं जो प्रिय या अप्रिय का निर्धारण करते हैं।
      एक बहुत ही सामान्य सी आवश्यकता होती है कि इस तरह के किसी भी आयोजन में आयोजक निज के व्यक्तिगत को स्पर्धा से अलग रखे ताकि स्वयं को प्रक्षेपित करने का अभियान होने की शंका न हो। मैंने उसी का पालन किया है।
      आप अपनी पसन्द नापसन्द कारण सहित टिप्पणी या ई मेल से लिख भेजें। :)

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  3. अच्छा गृह कार्य दे दिये हैं ..हम भी तनक आलसी हैं .....समय का पाबन्दी मत लगाइयेगा ....तना मंथन करके बतायेंगे।

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    1. अवश्य समय लीजिये लेकिन 7 जून की समय सीमा का ध्यान रखियेगा।
      आप की पसन्द और नापसन्दगी की प्रतीक्षा रहेगी। :)

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  4. गिरिजेश जी मैं भी बार बार आपसे कह रहा हूँ ये हास्यास्पद प्रयास हैं -प्रबुद्ध जनों को इसमें भाग नहीं लेना चाहिए ..
    और खुद इससे दूर रहकर मैं इस बात को प्रमाणित करना चाहता हूँ:) ०मुझे तो बख्श ही दें आप!

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    1. ...तो यह आप को हास्यास्पद लग रहा है, बहुत खूब! दूरी नजदीकी तो देख ही रहा हूँ :)
      आप प्रबुद्ध हैं, इस आयोजन से दूर रहना चाहते हैं तो कौन जबरी निकट ला सकता है? जाइये, बख्श दिया आप को।

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  5. है कहूँ तो है नहीं, नहीं कहूँ तो है
    इन दोनों के बीच में, जो कुछ है सो है
    - बनारसी बाबा कबीर मगहरी)

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    1. :) बहुत दिन हो गया खस्ता शेर पढ़े हुये, समसामयिकी पर कुछ हो जाय तो मजा आ जाय!

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    1. मेरे गीत
      उल्टी रीत।

      बाअदब अजब गजब ही सही, पसन्द के ब्लॉग और कारण बता दीजिये।

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  7. इण्टरनेट पर उपस्थिति को गणितीय तरीके से ज्यादा प्रमाणिकता से नापा जा सकता है - उसमें ब्लॉग की सक्रियता/प्रियता भी सम्मिलित है। चिठ्ठाजगत पहले किया करता था। फेसबुक/ट्विटर/लिंक्ड-इन आदि के लिये कई साइट्स यह कर रही हैं।

    मेरे विचार से इम-पर्सनल तरीके से यह करा जाये, वही सही परिणाम देगा। अन्यथा हिन्दी की जोड़-तोड़/गुटबन्दी से परिणाम में जबरदस्त घालमेल हो सकता है!

    पर चूंकि वह व्यक्ति के लिये सम्भव नहीं, सो मस्त रहा जाये!

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    1. गणित केवल बड़े कॉर्पोरेशनों के लिये क्यों छोड़ दी जाय? :)
      वैसे उधर तो और भी जोड़ तोड़/गुटबन्दी चलती है जब कि यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है...

      एक बहुत ही सीधी सी बात है कि भई अपनी पसन्द बताइये कारण सहित। नापसन्द हो तो उसे भी बताइये। जितना मेहनत लोग विश्लेषण और समझाइस में कर रहे हैं उतने में तो बता ही देते! एक शोधार्थी का भला हो जाता।

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  8. अपनी पसन्द का ब्लॉग चुनना अभिव्यक्ति के उत्सव जैसा ही है। हमारी तो होली और दीवाली, दोनों ही दूर है।

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    1. मेरे महबूब! सीधे कह कि नहीं आना तेरी गली
      -
      ये जो नई आँच उभरे है तेरे इश्क़ में, डराती है।

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