...कन्धे पर सवार बैताल ने पूछा - बोलो विक्रम! अभिनेताओं और नेताओं में बदतमीजियाँ एक जैसी पाई जाती हैं। फिर भी अभिनेताओं की हलकटई पर कई गुना हल्ला क्यों मचता है? अगर इस प्रश्न का उत्तर जानते हुये भी तुमने नहीं बताया तो तुम्हारे सिर के हजार टुकड़े हो जायेंगे।
विक्रम ठिठका और बैताल को जमीन पर पटक कर उस पर बैठ गया। उसने उत्तर दिया - सदियों से तुम्हारी बकवास सुन रहा हूँ। नहीं ढोना मुझे तुम्हारा बोझ!
तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में मेरा यह प्रश्न है - इन दोनों जमातों से बड़ी हलकट जमात स्वयं जनता है। वह खुद पर हो हल्ला क्यों नहीं मचाती? अगर उत्तर जानते हुये भी तुमने नहीं बताया तो मैं इस मृत शरीर का दाह संस्कार कर दूँगा जिसमें तुम्हारा वास है।
चूँकि उत्तर देने की कोई समय सीमा तय नहीं है, बैताल जानते हुये भी चुप है। उत्तर की प्रतीक्षा में विक्रम दुर्गन्धित शव पर सवार है।
पॉकेट वीटो के दौर में वे कहानियाँ और गल्प भी मौन ओढ़ चुके हैं जिनमें उत्तर हुआ करते थे।
:)
जवाब देंहटाएंहुम्म...वैसे, वस्तुतः बेताल को ये पूछना चाहिए -
ये गिरिजेश राव इतना क्लिष्ट पोस्ट क्यों लिखता है कि उसके पढ़ने के उपरान्त उसके पाठकों को मस्तिष्काघात जैसा होने लगता है, दिमाग सुन्न होने लगता है और लगता है कि उनके दिमाग के टुकड़े टुकड़े हो गए हैं...
:) इतना आसान तो लिखा हूँ सर जी!
हटाएंओह, मेरा कहना था कि समझने में आसान, मगर विषय-वस्तु की क्लिष्टता जो आपके मन मस्तिष्क को झकझोर कर रख दे!
हटाएंपर, इस स्पष्टीकरण से भी बेताल का प्रश्न वहीं अटका रहेगा, यह मान लीजिए!
आप मनायें और हम ना मानें! ऐसा कभी हुआ है? :)
हटाएंउत्तर की प्रतीक्षा में हम भी हैं.
जवाब देंहटाएंईमानदारी से कहें तो कुछ पोस्ट क्लिष्ट अवश्य होती हैं परंतु सबसे अधिक आनंद हिंदी को पढ़ने में इसी ब्लॉग पर आता है...कई बार तो' झनकती -खनकती' हुई हिंदी में लिखते हैं कि वह पोस्ट बार -बार पढ़ी जाती हैं .खासकर कुछ कविताएँ.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी!
हटाएंइससे इतना अधिक सहमत जितना सहमत शब्द भी न होगा :)
हटाएंdimag ke uper boja mat le shri man ....yeh sab publicity ka fanda hai...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras....
बाबा! हम तो कन्धे पर ले कर चलते थे, अब वह भी उतार पटका है। :)
हटाएंवैसे ये जो विक्रम बेताल हैं न, मुझे बहुत ही खींचते हैं अपनी ओर। अद्भुत कल्पनाशीलता थी भारतीयों में, अद्भुत!
उत्तर हैं भी, नहीं भी..सब ऊपर वाले पर निर्भर है...
जवाब देंहटाएंहम समझ रहे थे कि नीचे वालों पर निर्भर है।
हटाएंउनकी ऊपर वाली उन्हें सद्बुद्धि दें।
उनके ऊपर वाले उन्हें सद्बुद्धि दें। अपन तो दोनों से मरहूम हैं :)
समय बीतने के साथ साथ विक्रम को शव से आती दुर्गन्ध की आदत हो जायेगी , वैसे ही जैसे जनता को दुर्गन्ध आनी बंद हो चुकी है|
जवाब देंहटाएंविक्रम बोझा पटकने के बाद भी बहुत परेशाँ है।
हटाएंबोझे की आदत हो चुकी है न इसलिए| वो क्या बोलते हैं उसे शायद कंडीशनिंग :)
हटाएंहा, हा, हा!
हटाएंमौन ही है अभी तो उत्तर!
जवाब देंहटाएंएक मात्रा के अंतर से मन मौन हो जाता है और मौन मन। क्या कीजै?
हटाएंअभि"नेता" में "नेता" शामिल है। जनता बेचारी क्या क्या करे? रोटी कमाये, हल्ला मचाये या क्रांति करे? चचा ग़ालिब कह गये हैं:
जवाब देंहटाएंहुआ जब ग़म से यूँ बेहिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो शानों पर धरा होता ॥
नेता नेताइन तो हर जगह पाये जाते हैं। इनकी संरचनाओं के जोड़ निराले से होते हैं।
हटाएंबेताल उत्तर नहीं देगा, क्योंकि उत्तर मिल जाते ही (वो कुछ भी हो ) जनता का विक्रम बेताल से मोह भंग हो जाएगा और वो कोई और IPL/serial फलाना चिलाना में सर झोंक देगी।
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