मंगलवार, 1 मई 2012

बंगलुरू में गीतांजलि

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puhup

I shall ever try to keep my body pure,

Knowing that thy living touch is upon all my limbs

(Geetanjali)

 

जानता हूँ तुम्हारा जीवंत स्पर्श,

सब अंगों पर मेरे।

प्रयास करूँगा हरदम कि,

देह मेरी शुद्ध रहे। ...

(गीतांजलि)

13 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति अंग सब मिल कर अपना अर्थ दिखाते हैं,
    खिल जाने की इच्छा, रह रह, छिप छिप जाते हैं।

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  2. उस धन्य चित्रकार का नाम भी तो बताते! गीतांजलि और यह सौंदर्य -दुगुन सिनर्जी रस है भाई! निष्कलंकित स्निग्ध सौन्दर्य!

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    1. चित्रकार - अडल्फ विलियम वूगो
      वर्ष - 1881
      शीर्षक - पहली किरण

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  3. श्रृष्टि को जो अनावृत हो प्राण देती है और आवरण में स्वयं को ढांप लेने को आतुर हो जाती है, उसे वही वैसे ही स्थिर हो रस विस्तार को लोग बाध्य करते हैं..

    कला का यह अभीष्ट अबूझ है...

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    1. अबूझ ही है रंजना जी! लालबाग में फुलाये वृक्ष के सामने जिन अनुभूतियों को कुछ क्षण जिया, बयाँ नहीं कर सकता। किसी को आज लिखा कि बहुत लम्बा लिखने चला था और रवि बाबू से दो पंक्तियाँ उधार ले काम चलाना पड़ा!
      बीस वर्ष पहले यह कलाकृति देखी थी - लाइब्रेरी में एक अकेले का अकेला दिन। उस दौरान गीतांजलि पहली बार पढ़ रहा था। देखा और कुछ हुआ। उसी दिन कवि गोपाल की यह पंक्ति भी पढ़ी थी - मनुष्य ईश्वर का विधाता है। सब अबूझ! अस्पष्ट किंतु आनन्दमयी पवित्र सी अनुभूतियाँ... इतने दिनों बाद इन फूलों के आगे बहुत कुछ समझ में आया। नेट पर पैस्टोरल सिम्फनी ढूँढ़ते लिंक दर लिंक इस कलाकृति पर पहुँचा, वह भी पोस्ट लिखने के पाँच मिनट पहले!... ऐसे जाने कितने क्षण अभी भी जीवित हैं। ये कुछ अभिव्यक्त हो गये या सम्भवत: अभी भी नहीं!...पता नहीं क्या क्या बके जा रहा हूँ।...इतना कहूँगा कि ऐसी कला मेरी सूझ से बहुत आगे जाती है। एक क्षण को थिर किया है चित्रकार ने! पानी में पैर की परछाई देखिए, पवित्रता स्नान को चली है - अनिल के साथ उछ्लते कूदते, त्रिभंगी हो एक पुहुप का गन्धस्पर्श करते - सुबह की पहली किरण!

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    2. जो कुछ भी ह्रदय तक सात्विकता पहुंचाए , पवित्र, वन्दनीय, ग्रहणीय है..

      कला का महत उद्देश्य यह प्राप्त करा पूर्ण होता है...फिर कुछ कहने सुनने की स्थिति नहीं बचती...स्थान नहीं बचता...

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  4. एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ जिगर
    एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूं मैं !

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  5. रंजना जी को दिए प्रत्युत्तर से बाग-बाग हूँ!
    "तन निर्मलता का यत्न सदा सर्वदा करूँगा जीवन धन
    जानता हमारे अंगो पर प्रियतम तेरा जीवित स्पंदन।"
    तेरा जीवित स्पंदन...

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  6. टीप और प्रतिटीपो ने पोस्ट की सर्थिकता सिद्ध कर दी... सभी का आभार.

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