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हे देश शंकर!
फागुन माह होलिका, भूत भयंकर -
प्रज्वलित, हों भस्म कुराग दूषण अरि सर -
मल खल दल बल। पोत भभूत बम बम हर हर ।
हे देश शंकर।
स्वर्ण कपूत सज कर
कर रहे अनर्थ, कार्यस्थल, पथ घर बिस्तर पर ।
लो लूट भ्रष्ट पुर, सजे दहन हर, हर चौराहे वीथि पर
जगे जोगीरा सरर सरर, हर गले कह कह गाली
से रुचिकर।
हे देश शंकर।
हर हर बह रहा रुधिर
है प्रगति क्षुधित बेकल हर गाँव शहर
खोल हिमालय जटा जूट, जूँ पीते शोणित
त्रस्त प्रकर
तांडव हुहकार, रँग उमंग धार, बह चले सुमति गंगा
निर्झर
हे देश शंकर।
पाक चीन उद्धत बर्बर
चीर देह शोणित भर खप्पर नृत्य प्रखर
डमरू डम घोष गहन, हिल उठें दुर्ग
अरि, छल कट्टर ।
शक्ति मिलन त्रिनेत्र दृष्टि, आतंक
धाम हों भस्म भूत, ढाह कहर
हे देश शंकर।
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गिरिजेश राव