शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

बड़ी होती स्कॉलर बेटी

आज बिटिया को स्कॉलर बैज मिला। कुल प्रतिशत 85%, किसी विषय में 60% से कम नहीं और उपस्थिति 90% - इन तीन प्रतिमानों पर खरे उतरने वाले छात्र छात्राओं को यह बैज दिया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, शिक्षा अधिकारी और माता-पिता समुच्चय को जुटा कर जो माहौल बनाया गया था, उसमें विजयी स्कॉलर बहुत उत्साहित दिखे।
गला काटू प्रतिस्पर्धा के जमाने में प्रतिभाएँ संकुचित न हों, दूसरे प्रोत्साहित हों और ध्यान केवल सकल प्रतिशत मार्क्स पर आधारित पहले तीन स्थानों पर ही न हो -यह आयोजन इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता दिखा। अच्छा लगा। अच्छी बात यह लगी कि ग्रेडिंग सिस्टम लागू हो जाने पर भी यह व्यवस्था जारी रह सकती है।
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कार्यक्रम के पहले जो प्रार्थना बच्चों ने गाई, उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:
    1

हम को मन की शक्ति देना ,मन विजय करें
दूसरो की जय से पहले, ख़ुद को जय करें..
झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें..
ख़ुद पर हौसला रहें बदी से न डरें.
लगा कि प्रार्थनाएँ ऐसी होने के लिए अभिशप्त हैं। मन विजय, खुद पर जय, सच, हौसला, बदी से न डरना - हम जो स्कूलों में सिखाते हैं क्या उसका पालन करते हैं? ये आदर्श बस बच्चों के लिए ही हैं क्या? हम वयस्क कहीं डरे हुए हैं शायद कि हमारी हरकतों को बच्चे अपना कर हमारे लिए सिरदर्द न हो जाँय। बाद में वे असफल भी हो सकते हैं।
क्या सफल होने के लिए अच्छी और बुरी बातों का प्रयोग, समन्वय और संतुलन आवश्यक नहीं है?
हम उन्हें समय पड़ने पर बदी से डरने, झूठ बोलने, कायरता और कमजोरी दिखाने जैसी निवेदन वाली प्रार्थनाएँ क्यों नहीं सिखाते? तब जब कि वास्तविक जीवन में हम हमेशा यही होता देखते हैं। दुनिया चलती रहती है, झूठ बोलने या बदी से डरने या कायरता दिखाने से कहीं कोई प्रलय भी नहीं आता। समाज गतिशील बना रहता है। फिर ये और ऐसी प्रार्थनाएँ क्यों?
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एक दूसरे समवेत गायन की ये पंक्तियाँ चौंका गईं:
राम और मुहम्मद की धरती 

किसी से भेदभाव नहीं करती।

ये धरती मुहम्मद की कब से हो गई? अगर इस्लाम की ही बात करनी थी तो मुहम्मद ही मिले थे? राम और मुहम्मद को इकठ्ठा कर क्या कहना चाहता है रचयिता? दोनों की संगति कहाँ बैठती है? राम ने आदर्शों को जिया, मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। मुहम्मद ने एक मजहब चलाया और अपने जीवन काल में ही उसका बाइ हुक या क्रुक प्रचार प्रसार किया। मुहम्मद के चलाए मजहब में तो इंसानों को बाँट कर भेदभाव को क़ोडिफाई तक कर दिया गया है। फिर ये भेदभाव न होने के सन्दर्भ में वह कहाँ से संगत हो जाते हैं? सेकुलरी साधारणीकरण के जोश में हम जाने कितना कूड़ा करकट बच्चों के जेहन में भरते जा रहे हैं! उनके मन मस्तिष्क में एक निहायत ही अवास्तविक दुनिया बिठा रहे हैं। सचाई ठीक उलट है। ये बच्चे जब वास्तविकता का सामना करेंगे तो उन्हें अपने प्रतिमानों को बदलने और दुहराने में कितनी मानसिक यातना भुगतनी होगी - हम यह क्यों नहीं सोच पाते? हम उन्हें सही क्यों नहीं बताते? सच से कैसे नुकसान के होने से हमें डर है? हम इतने कमजोर हैं कि अपनी संतति को सच बता भी नहीं सकते और प्रार्थना सच का दम भरने की गवाते हैं ! हम किसे धोखा दे रहे हैं ?
     
जैसा कि होता है शिक्षा अधिकारी और प्रधानाचार्या जी आधे घण्टे विलम्ब से आईं - तब जब कि दोनों कार्यालय में ही विराजमान थीं। अभिभावक तो समय से आ ही गए थे - कुछेक विशिष्टों को छोड़ कर। अच्छा लगा कि इस एक हरकत से उन्हों ने बच्चों को जीवन की एक महत्त्वपूर्ण सीख दे दी - यदि समय वग़ैरह की पाबन्दी न माननी हो और फिर भी जलवे बनाए रखने हों तो विशिष्ट बनो। फिर अशिष्टता, झूठ वगैरह मायने नहीं रखते। उनके लिए प्रार्थनाएँ तो वाकई बेमानी हो जाती हैं।
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स्कॉलर बेटी जोर देती है
मम्मी अपनी बेस्ट ड्रेस में आना
पापा को कहना कि दाढ़ी बना लेंगे।
आज मुझे स्कॉलर बैज मिलेगा।



स्कॉलर बेटी पापा को टोकती है
आप की 'डबल चिन' हो रही है
च्युंगम चबाया कीजिए।



स्कॉलर बेटी बिना कहे
होम वर्क पूरा कर लेती है
निकाल लेती है समय
'फाइव प्वाइंट सम वन'
पढ़ने के लिए। 



जब कि मैं सोचता ही रह जाता हूँ कि उसे 'मुझे चाँद चाहिए' पढ़नी चाहिए कि नहीं?

जब भी पापा ऑफिस से आते हैं,
स्कॉलर बेटी चुपचाप
मेज पर पानी का गिलास और
किसमिस के दाने रख जाती है।






स्कॉलर बेटी मम्मी से लड़ती है 
भाई को इतना दुलार ? 
श्रीमती जी घबराती हैं - 
आज कल की ये लड़कियाँ 
भाइयों से इतनी जलन क्यों? 
बेटा तो कभी नहीं टोकता !


स्कॉलर बेटी सतर्क है
उसे श्रीमती जी नहीं
व्यक्ति बनना है
उसे सहचर भी शायद
श्रीमान नहीं
व्यक्ति ही चाहिए होगा !
 ...

2


बड़ी होती बेटियाँ
शंकालु बनाती हैं !
 ....
मैं समझाऊँगा - श्रीमान/मती भी व्यक्ति होते हैं।

36 टिप्‍पणियां:

  1. जियो मेरी लाल(लल्ली नहीं)!!!!


    तुम पर गर्व है.......

    ईश्वर तुम्हे उर्जावान बनाये रखे.......



    और ये ड्बल चिन का क्या चक्कर है?
    (बिटिया अब बडी हो रही है....)

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  2. पहले तो बिटिया को स्नेहाशीष -पापा से बड़ी बनकर दिखाए ! फिर आपकी व्यथाकथा और सत्य कथन ! क्या कहें ? दुर्भाग्य से स्थितियां ऐसी ही हैं -मुहम्मद को मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ रख दिया गया ? वोट की राजनीति की टुच्चई है यह सब !
    बच्चों को कंडीशन किया जा रहा है धर्मांध राज्य के लिए ! दुनियावी समझ आते आते आ जायेगी ! हम तो अभिशप्त हुए मगर हमारी संतति कही उससे भी अधिक अभिशप्त न हो जाय -आपकी व्यथाकथा हमारी ही समवेत विभीषिका है !

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  3. अब ध्यान मार्क्स पर आधारित हो या माओ पर... गलाकाटू प्रतियोगिता तो अब जीवन का हिस्सा बन गयी है.

    प्रार्थना का हम पालन करें ना करें पर घर में दिखे व्यवहार तो बहुत प्रभावित करते हैं... हमारे खुद के व्यवहार पर घर के परिवेश का बड़ा व्यापक असर होता है.

    'राम और मुहम्मद' की धरती में कुछ त्रुटी है भाई. 'मुहम्मद और राम' की धरती होनी चाहिए... शायद जब मैं आपकी उम्र का हो जाऊं तब तक ये सुधार हो जाए.

    बिटिया को आर्शीवाद :) ये लिखते हुए अजीब लगता है हम भी आर्शीवाद देने वालों की श्रेणी में आ गए ! आप समझा लेंगे इसपर कोई डाउट नहीं. वर्ना कुछ कहते... वैसे व्यक्ति बनने में कोई बुराई तो नहीं.

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  4. बहुत बधाई बिटिया को और आपको।
    बाकी राम और मुहम्मद की धरती; किसी से भेदभाव नहीं करती वाले गायन को मैं इस भाव में लेता हूं कि भारत का प्रभुत्व इतना बढ़े कि अरेबिया उसकी जद में आ जाये।
    वैसे बच्चे इतनी जबादस्त प्रतिभा वाले हो रहे हैं कि यह असंभव नहीं।

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  5. मुहम्मद का तो पता नहीं पर सारी धरती राम की अवश्य है।
    बेटियाँ ऐसी ही होनी चाहिए। मुझे तो ऐसी बेटी होने पर गर्व है। बेटी को बधाई! वह जीवन के सर्वोच्च प्रतिमान प्राप्त करे।

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  6. मेरे यहां तो स्थिति यूं बनती है कि बेटी स्कूल जाते समय चोटी बनाने लगे और थोडी देर भर हो जाय तो छोटा बेटा टोक देता है कि तुझे लडका होना चाहिये था। टाईम बच जाता था।
    घरों में भाई बहन के बीच इस तरह की चिल्ल पौं का भी अपना ही एक आनंद है :)

    बिटिया को शुभाशीर्वाद।

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  7. बिटिया रानी को बधाई और आशीष ! पिता को और भी गर्वित होने का अवसर मिले .

    स्कूली प्रार्थनाओं का एक धांसू विवेचन प्रो. कृष्ण कुमार ने अपनी पुस्तक ’राज,समाज और शिक्षा’ में किया है . आपके अनुभव और विस्तार वहां मिलेगा और नीर-क्षीर विवेचन भी .

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  8. * आपके अनुभव को वहां और विस्तार मिलेगा,साथ ही नीर-क्षीर विवेचन भी .

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  9. स्कूली प्रार्थनाओं को एक रिचुअल के तौर पर ही बच्चे लेते है,सदा से.हाँ इससे विवेचन की निरर्थकता सिद्ध नहीं होती.
    बिटिया को खूब बधाई.
    डबल चिन बहुत घातक बीमारी है,आने के बाद इससे कैसे पार पाया है इसे मैं भी ढूंढ रहा हूँ.

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  10. हमारी बधाईयाँ और शुभकामनाएं. बिटिया खूब पढ़े लिखे और अपने माता पिता का नाम रोशन करे. वैसे हम तो केवल पिता कहना चाह रहे थे परन्तु भूल सुधार लिया.

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  11. शुभकामनाएं

    मेरी बिटिया कहती है "वैसे दीदी पढ़ने वाली दीखती है चश्मे में..."

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  12. अरे वाह, आपने बिटिया के लिए समय निकाला यह देखकर बहुत अच्छा लगा। उसे मेरा स्नेह और आशीर्वाद दीजिएगा। आपको बधाई।

    आज ही मैं भी वागीशा के साथ स्कूल में रिपोर्ट कार्ड लेने गया था। वहाँ ग्रेडिंग सिस्टम लागू हो गयी है है- कक्षा चार में है अभी। उसकी मम्मी नहीं जा सकीं, बेटे को सम्हाल रही थीं।

    बच्चों के साथ गुजारे पल ब्लॉगरी से कई गुना आनन्द देते हैं, फिर भी हम उधरिच उलझे हुए हैं..।

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  13. चिंता ना करें भाई,
    आपके बच्चें खुशकिस्मत हैं, जिनके पास आप जैसा सुधि पिता है।
    सफल होने के लिए, आवश्यक संतुलन और इस ठीक उलट सच्चाई को सिखाने और व्याख्यायित करने के लिए आपका अनुभवी साया उनके सिर पर है।
    आप उन्हें धर्मांध राज्य के लिए की जा रही कंड़ीशनिंग से जरूर बचा पाएंगे, और अभिशेक जी के आपकी उम्र का होने से पहले ही हमारे बच्चे भारत के प्रभुत्व की जद में अरेबिया को ले ही लेंगे।

    बिटिया को, और आपको, अच्छा महसूस हो पाने के लिए बधाई।

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  14. सबसे पहले तो बिटिया को बधाई और आपको व भाभीजी को भी ।
    प्रार्थनाओं के बारे मे क्या कहूँ सारी प्रार्थनायें बच्चों को बिगाड़ती है । मेरा बस चलता तो इन्हे बन्द करवा देता । गनीमत कि बच्चे प्रार्थना के समय मस्ती करते रहते है और शब्दो पर ध्यान नही देते । हाँ यह मुहम्म्द की धरती वाला कवि कौन है उसका पता लगाया जाये ( और महफूज़ को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी जाये)
    अंतिम बात बिटिया को " मुझे चांद चाहिये " पढने के लिये बिलकुल मत देना ।बच्चों को अच्छा साहित्य ही देना चाहिये । मै बहुत दिनो से इसके लेखक सुरेन्द्र वर्मा का पता खोज रहा हू लेकिन यह लापता है । खैर .. इतनी लम्बी पोस्ट न लिखे और अपना चिन ( यह ठुड्डी है ना?) सिंगल करें ।

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  15. बिटिया को बधाई और स्नेह। गिफ्ट जो मांगे, सो देंगे। मांगेगी नहीं, पता है।
    जल्दी ही मिलते हैं।
    इलाहाबाद की कसर तो पूरी करनी है न...

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  16. बिटिया को, उसके प्राउड डैड को और लगे हाथ गर्वीली माँ और प्रसन्नचित्त भैया को भी बधाइयां! कवी का पता कहाँ ढूंढ रहे हो भाई. सरकारी अधिकारी होगा और साथ ही किसी तथाकथित "आधुनिक", "प्रगतिशील", "विचारशील" या "स्वच्छ" नामक गैंग का मानद सदस्य भी होगा.

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  17. सबसे पहले बिटिया को बहुत बधाई ...
    विद्यालय में की गयी प्रार्थनाएं एक अप्चारिकता भर रह गयी हैं... प्रार्थनाओं के अर्थ तक तो शिक्षक भी नहीं जाते ...इसलिए फिक्र की कोई बात नहीं है..
    कुछ समय के लिए एक विद्यालय में पढाने का मौका मिला ..बच्चे प्रार्थना में गा रहे थे ...
    तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो
    जो खिल सके ना वो फूल हम है .तुम्हारे चरणों की धुल हम है ..
    मुझे समझ नहीं आया ...जो खिल नहीं सके वो फूल हम है ....बच्चे कह रहे थे हम सालों से यही गा रहे हैं !!

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  18. बेटी को स्नेहाशीष, आपको बधाई. बेटी की सफलता के लिए भी और एक पिता द्वारा बेटी पर इतना ध्यान देने के लिए भी.(कुछ लोगों को तो अपने बच्चों के क्लास तक याद नही रहते.)

    प्रार्थना वाली बात पर पहले ग़ुस्सा आई थी पर जैसे ही टिप्पणी लिखने का मन बनाया कि ज्ञानदत्त जी की टिप्पणी पर ध्यान गया. काश ऐसा सच हो जाए. पर शर्मनिरपेक्षता के चलते क्या ऐसा सम्भव हो पाएगा? देश ही बचा रह जाए वही बहुत है.

    प्रभावी लेखन से प्रभावित हुई मैं.

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  19. मुबारक हो अलका ! हम शुरु से साथ पढ रहे हैं, मैं जानती हूँ कि तुम इंटेलीजेंट हो.

    एक बात और, आजकल पेरेंटस बडे परेशान हैं, ग्रेडिंग सिस्टम शुरु हो रहा है, अब बच्चों को डांटेंगे कैसे? उन्हें औरों से कम्पेयर कैसे करेंगे?

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  20. पप्पा ब्लागर बिटिया स्कालर...
    जे बात ..ई हुई असली लंठई...बहुते आशीष है जी बिटिया की...एकरे तो कहते हैं ..आनुवांशिक गुण ...मुबारक हो स्कालर बिटिया के पप्पा बनने पर

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  21. कुछ दिन पूर्व एक कविता का सूत्रपात किया था,
    वह कुछ इस तरह थी,

    चाहूँ अगर मैं,
    रुक जाये समय
    तो रुकेगा तो नहीं.
    दर्पण में देखा करता हूँ तो
    काले कम और सफेद ज्यादा हैं बाल
    उठाता हूँ कूँची रंगने को,
    तभी आती है संभव दौडी दौडी
    कुछ बीजगणित का सूत्र पूछ्ती
    तो कहता हूँ उससे
    अरे छोटे बच्चे
    पढते हो ये सब क्यूं
    तो कहती वो,
    मैं छोटी नहीं,
    जानते हो पापा!
    अगले चुनाव में वोट दुंगी.
    मैं फिर सोचता हूँ,
    चाहूँ अगर मैं,
    रुक जाये समय
    तो रुकेगा तो नहीं.

    गिरिजेश बच्चे बडे हो रहे हैं, कंधे को छूने लगे हैं. उनकी बातें, उनकी चिंतायें सब बडी हो रही हैं. अब समय आ गया जब तुम (और हाँ, मैं भी ) बडे हो जायें.

    अलका को शुभकामनायें. कैसा संयोग है कि कल ही उसकी दोस्त का वार्षिक उत्सव भी था और उसे भी एवार्ड्स, स्कॉलरशिप्स और तालियाँ मिल रहीं थी.

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  22. बड़ी होती बेटी के बहाने एक पूरी पीढ़ी की नब्ज पे हाथ रख दिया है आपने..बेहतरीन कविता के लिये आभार

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  23. बधाई हो बधाई। किसी भी पिता को ऐसी संतान पर गर्व होगा॥

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  24. गिरिजेश जी आपसे असहमत होना असंभव है .आपकी साफगोई और साहस दोनों ही अतुलनीय हैं .
    मैं तो ज्ञानदत्त जी और दिनेश द्विवेदी की राय को ही प्रार्थना बनाना चाहूँगा .बाकी इस सन्दर्भ में कयिओं ने भी बड़ा सार्थक कहा है.
    मेरी पिछली पोस्ट की टिप्पणी में आपने मुझसे पूछा था " आप नेता हैं ? " .उस सिलसिले में कुछ लिखा है नयी पोस्ट पर. मौका लगे तो पढ़ लें ,अनुग्रह होगा .

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  25. गिरिजेस जी भूल सुधार ली है .आपके स्नेह से पगी टिप्पणी को सम्मान देता हूँ . शायद आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूं .प्रयास को आपने प्रेरित ही किया है.
    यदा कदा व्यंग भी लिखता हूँ .आपको पढ़ कुछ और भी सीख रहा हूँ . खास कर कथ्य और शैली.एक ही अंचल के होने से शायद सम्प्रेसण की सम्पूर्णता बन जाती है. खास भाषा और मुहावरों की जमीनी सुगंध.

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  26. अरे वाह!!

    बिटिया को ढेर आशीष और बधाई.

    बधाई के पात्र आप भी हैं. :)

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  27. भाई ये बात दिमाग से निकल नहीं पायी... आज फिर भटकते हुए आ गया... बुद्ध और महावीर तक ना याद आये इन्हें ?! बिना राम के ही प्रार्थना लिख देते... गाँधी लगाकर. वैसे भी आजकल ये वाला अच्छा चलता है बाजार में.

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  28. इसका जिम्मेदार कौन है ? ? ? जिस बेटी की बात की जा रही है वह दिन के महज छह या सात घण्टे ही बाहर …….स्कूल इत्यादि में बिताती है बाकी समय तो घर पर ही व्यतीत करती है ……..”शिक्षित” व “जागरूक” अभिभावकों के सानिध्य में ही व्यतीत करती है ……..फिर ? ……..वह कैसे हो गया जो नहीं होना चाहिये था …..वह कैसे सीख लिया गया जिसे नहीं सीखा जाना चाहिये था ………कैसे ?
    बात लम्बी है …..बस बर्टेन रसेल की एक बात याद दिलाना चाहूगां …….सबको पिता बनने पर रोक लगायी जानी चाहिये ! सब जरूरी नहीं कि इसके योग्य हो हीं । इसके लिये मानसिक योग्यताओं का परीक्षण होना चाहिये , फिर एक नियमित पाठ्यक्रम द्वारा पितृत्व का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये …..तब पिता बनने का लाईसेन्स ग्रान्ट होना चाहिये ………स्वस्थ्य मानवता के विकास के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है

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  29. @ स्कॉलर बेटी बिना कहे
    होम वर्क पूरा कर लेती है
    निकाल लेती है समय
    'फाइव प्वाइंट सम वन'
    पढ़ने के लिए। जब कि मैं
    सोचता ही रह जाता हूँ कि उसे
    'मुझे चाँद चाहिए' पढ़नी चाहिए कि नहीं


    दद्दा, अब चिंता त्यागिये, जेन-एक्स का आई-क्यू इतना तेज है कि खुशवंत सिंह के लिखे से भी अपने काम की बात उठा सकते हैं। मुझे न तो ‘फाइव प्वाइंट सम वन’ अश्लील लगा न ही 'मुझे चाँद चाहिए'। यह तो इंडिविजुअल सेलेक्टिविटी की बात है कि उन्हें वर्षा वशिष्ठ का अपनी शर्तों पे जीने का अंदाज भाता है या उसकी विद्रोही उच्छृंखलताएं। और यकीन मानिये दोनों सूरतों में आप कुछ नहीं कर पाने की स्थिति में होंगे। अपने दिये संस्कारों पे भरोसा रखिये, और बिटिया के नीर-क्षीर स्कॉलरी विवेक पर...स्वस्ति।

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  30. दो चार बातें कहनी-पूछनी हैं। पहले ये बताएं कि बिटिया को स्कॉलर बताया तो बेटे पर कुछ लिखा कि नहीं? बेटे ने शिकायत की या नहीं?
    फिर बताएं कि बिटिया स्कॉलर बनी कैसे? बस, अपनी बिटिया को उसी नक्शेकदम पर चलाने के मकसद से ये पूछ रही हूं। :)
    तीसरा, डबल चिन का कुछ हुआ क्या? अब तो साल लगने को चला है।

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  31. देखिये - श्रीमती जी का बर्थडे मना - तो रीलेटेड लिंक्स में यह पोस्ट भी ऊपर आई - और पढने मिली .... यह तो पढ़ी ही नहीं थी | मैं तो अभी दिसंबर से ही इस ब्लोगिंग की दुनिया में आई हूँ - अब तो आर्किव्स में जाकर पुरानी पोस्टें ढूंढनी पड़ेंगी |
    और गिरिजेश जी - प्रार्थना में यह कहना कि " बदी से ना डरें " यह दर्शाता है कि हम डरते हैं - और शक्तिमान से यह शक्ति मांग रहे हैं कि ना डरें .... ये हेडिंग "मेह" से "मेघा" बरसे सात दिन - हो गयी क्या ?

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