किसी की प्रतीक्षा है - ट्रांजिट हाउस के कमरे में सुबह सुबह।
आलमारी खोल हैंगर गिनता हूँ - उन्हें ठीक करता हूँ ऐसे ही।
चहलकदमी करता हूँ फिर आइने में केश संवारता हूँ। जाने इम्प्रेशन कैसा पड़े!
कोई आने वाला है - जरूर आएगा।
चादर सिकुड़ गई है। ठीक करता हूँ ।
समय इतना स्लो क्यों हो गया है?
अरे! टेबल क्लॉक में बैटरी शायद खत्म हो गई है।
खिड़की पर वेनीसन ब्लाइण्ड को ऐडजस्ट करता हूँ
बाहर का लैण्डस्केप - लगता है जैसे शीशे में मढ़ दिया गया हो।
लेकिन आने वाला यहाँ क्यों आएगा?
वह आदमी बहुत तेज है - शायद आ ही जाए तो खिड़की पिक्चर परफेक्ट दिखनी चाहिए।
नीचे जूते बिखरे पड़े हैं - दुरुस्त करता हूँ ।
नई साज सज्जा वाले कमरे में दीवार पर एल सी डी टीवी लगा है - सेट टॉप बॉक्स कनेक्सन के साथ ।
लेकिन पाँच सौ चैनलों में कोई काम का क्यों नहीं दिखता ?
..वह कब आएगा?
नहा लूँ - ताजा दिखूँगा।
कुर्ता ही पहने रहूँ या पैण्ट शर्ट ?
पहले नहा तो लूँ!
नहा कर कुर्ता पहन ही रहा हूँ कि फोन ..
आने वाला भटक गया है..
"अरे भाई 9 नम्बर कमरे में आओ, 9 नम्बर बंगले में मत जाओ।"
..अबे , आलमारी तो बन्द कर दे। जाँघिया लटकाए हुए हो।
इतने आतंकित क्यों हो ?
..टिंग टांग
घण्टी बजती है ।
पल्ला खोलता हूँ।
सामने मुस्कुराता पूरे शरीर से हास बिखेरता
जूते उतार कर कमरे में घुसने की भंगिमा बनाते..
आने वाला खड़ा है ... अरे, इसी से इतना घबराए हुए थे !
ये तो सही में गँवई आदमी निकला - सॉफ्टवेयर वाला जान आतंकित थे !
....
....
मुम्बई। 25/11/2009
आने वाले व्यक्ति थे -मन हिलोर बतियाने वाले सतीश पंचम , सफेद घर वाले बिलागर।
गाँव की बारात का सबसे जीवंत वर्णन करने वाले।
यमराज की खोज खबर लेने वाले ग़जब के विटी अपने सतीश भाई।
पहले से ही मेल कर अपने आने और मिलने की चाहत की सूचना दे दी थी । 24 को मुम्बई एयरपोर्ट से ट्रांजिट हाउस तक की यात्रा का ट्रैफिक जाम नारकीय था। लेकिन कम अखरा - इनके उत्तर की आशा में मोबाइल पर मेल चेक करता जा रहा था। न तो मेरे पास इनका मोबाइल नम्बर न इनके पास मेरा । बेवकूफी - अरे मेल में मोबाइल नम्बर तो दे दिए होते!
..
रात में 8:21 का इनका भेजा उत्तर पढ़ता हूँ 10:30 के आस पास। मोबाइल नम्बर भी है। इतनी खुशी होती है जैसे किसान की बिलाई भैंस मिल गई हो !
सम्पर्क करने की ज़द्दोजहद शुरू होती है। ज़द्दोजहद क्यों? भाई साहब मतलब BSNL जी डॉल्फिन की पीठ पर सवार तो हैं लेकिन कह सुन नहीं पाते। एक समय में एक काम - कहो तो सुनाई न पड़े , सुन कर कहो तो कहा दूसरे को न सुनाई पड़े। बिस्तर पर ही मोबाइल एक खास जगह पर फुल सिगनल दिखाता है तो 2 फीट भी हटाए नहीं कि emergency call only स्क्रीन पर छप जाता है। मुम्बई से तो नखलौ ही अच्छा है! कुल 8 प्रयासों के बाद भी काम लायक बात नहीं हो पाती ।
सो जाता हूँ - निश्चिन्त अब तो ढूढ़ ही लूँगा . . ।
25 की सुबह । एस एम एस आया हुआ है। सुबह ही आएँगे। ..हँ चलो बात बनी। जय BSNL ।
______________________________________________ सतीश जी से मिलने तक मैं आतंकित रहा। सूक्ष्म दृष्टि और ग़जब की सम्प्रेषणीय शक्ति वाली लेखनी ! कुछ चैट सेसनों के बाद तो और भी हैरान परेशान हो गया। एक नमूना नीचे दिया है :
10:17 PM me: नमस्कार । पकौड़ी को वहीं छोड़ थोड़ा बाउ के दु:ख की खबर लीजिए।
10:18 PM satish: पकौडी को छोड दूंगा तो तेल में डूब जायेगी :)
इसलिये रस्सी बांध कर तल रहा हूँ
10:19 PM me: और चैट भी कर रहे हैं ! कितने हाथ हैं तेरे ठाकुर !
satish: हा हा
आप लखनउ से हैं न ?
10:20 PM me: हाँ
satish: लेकिन बोली या शैली आपकी बलिया की तरफ की लग रही है
10:21 PM me: पकौड़ी से कोई सम्बन्ध है क्या?
10:22 PM satish: अरे नहीं, वो तो ऐसे ही fun message लिखते रहता हूँ.....
कभी रेल के आगे बीन बजाता हूँ तो कभी चाय में केला डुबो कर खाता हूँ :)
10:23 PM just for fun ,
me: क्यों राज ठाकरे को चुनौती दे रहे हैं?
10:24 PM satish: हां ये बात तो है....फन्नी activity आजकल कुछ ज्यादा ही कर रहा है
10:25 PM मन में तो यही आता है कभी कभी कि यदि हमारे पैतृक गांव या देहात में रोटी पानी का बंदोबस्त हो जाता तो क्यूं आते यहां
10:26 PM C E N S O R E D
10:28 PM me: आप तो centi हो गए!
10:30 PM satish: कभी कभी centi हो कर ही संतोष करना पडता है।
10:31 PM me: सेंटीसंतोष ' अच्छा शब्द निकल आया
satish: :)
10:33 PM me: संतोसेंटी और बेहतर होगा
satish: hmm...
10:34 PM me: अब सोते हैं। मैं जल्दी सो कर जल्दी उठता हूँ। सर्वहारा क्लास की एकमात्र यही आदत बची रह गई है।
नम्स्कार।
10:35 PM satish: नमस्कार
लेकिन मिलने के कुछ सेकण्डों के भीतर ही ढींठ हो गया। सतीश जी में आत्मीयता इतनी सहज है कि आप आतंकित रह ही नहीं सकते। नाश्ते की टेबल पर खींच ले गया। बातें शुरू हुईं। जाने क्या क्या! संयोग से हमारी कम्पनी इनकी कम्पनी की क्लाइंट निकल आई। मैंने अपने दु:ख गिनाए जिन्हें इन्हों ने एक प्रोफेशनल की तरह निर्विकार हो नहीं सुना बल्कि हँस कर उड़ा दिया।
फिर आई ब्लॉगरी की बातें - मैंने शिकायत की कि आप कम लिखने पढ़ने लगे हैं। एक जिम्मेदार ब्लॉगर की तरह इन्हों ने सुना और बताया कि मेरी बात सही थी। बेचारे हिन्दी ब्लॉगरी में चल रही आपसी टाँग खिंचाई से दु:खी थे। कुछ समयाभाव और कुछ अरुचि जैसी बात भी कह गए। मैंने अपनी अक्ल भर समझाया। चाय पिलाई। फोटो खिंचाया
और फिर विदा किया - यह तसल्ली हो जाने के बाद कि चाहे रस्सी से बाँध कर पकौड़ी छाननी पड़े, सतीश जी पकौड़ी छानते रहेंगे और अपने ब्लॉग पर हम लोगों का स्वादरंजन करते रहेंगे।