सरदार का जैकेट/कोट। पहन कर देखिए! |
स्वतंत्रता उपरांत खंड खंड राज्यों को एक कर 'भारत' संघ की स्थापना में इस महामानव का योगदान प्रणम्य है। अरुन्धतियों और गिलानियों के पाखंडी शृगाल प्रलापों के बीच सरदार की स्मृति मुझे सम्बल देती है कि इस आत्मघाती प्रवृत्ति के विरुद्ध स्वर गूँजते रहने चाहिए।
खेलों और कथित राष्ट्रीय सम्मान की आड़ में 70000 करोड़ रुपयों के भारत के अब तक के सबसे बड़े घोटाले और उसे पचा कर डकारती व्यवस्था को देख जो घृणा उपजती है, उसकी आँच में 'सतर्कता अवधि' को 'मनाना' महज एक आयोजन या वार्षिक कर्मकाण्ड नहीं होकर रह जाना चाहिए। अपने भीतर कुछ ठोस परिवर्तन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध छोटे छोटे ही सही, कुछ पग चलने की शपथ हम सब को लेनी चाहिए, केवल 'सरकारी जन' को नहीं। हमारा जनतंत्र तभी और असरकारी होने की दिशा में अग्रसर होगा। प्रारम्भ आज से ही ...यह लौह दिवस हमारे भीतर लौहसंकल्प का जनक हो!
गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंलौह-पुरूष की याद दिलाने के लिये आभार।
"भारत' संघ की स्थापना में इस महामानव का योगदान प्रणम्य है।"
नमन महान दृष्टा सरदार को!!
आपके विचारों को मेरा दिल से समर्थन.
जवाब देंहटाएंऐसे ही लौह व्यक्तित्व की आवश्यकता है हम सबको।
जवाब देंहटाएंएक बार हमारे कर्यालय में समयबद्धता का परिपत्र आया जिसपर सबको हस्ताक्षर करना था और यह घोषणा करनी थी कि मैं कार्यालय के कार्यकाल का अनुपालन करूँगा. मैं अकेला व्यक्ति था जिसने हस्ताक्षर नहीं किया और विरोध जताया. मुझसे जवाब तलब किया गया तो मैंने कहा कि यह परिपत्र उन लोगों के लिए है जो समयबद्ध नहीं हैं, और जो इसपर हस्ताक्षर करके तथा शपथ लेकर भी वही करने वाले हैं जो ये करते आए हैं.
जवाब देंहटाएंशपथ, न तो राजघाट पर खाई जाती है, न गीता हाथ में उठाकर. कभी दर्पण के सम्मुख खड़े होकर अपने आप को और अपने हृदय को साक्षी मानकर कोई शपथ ले तो पता चले कि अंदर लौह है या पत्थर या शून्य!! हमारा नमन!!
कोई नहीं मना रहा है सरदार का जन्म दिवस.....
जवाब देंहटाएंहाँ कुछ समाचार चैनल "मेरे खून का आखिरी क़तरा" कई दिन से दिखा रहे हैं॥"
इस पोस्ट से ज्यादा असरदार लगा इस पोस्ट पर संवेदना के स्वर का कमेन्ट ...शानदार...
जवाब देंहटाएंवास्तव में किसी व्यक्ति की गारंटी उस व्यक्ति का खुद का जिन्दा जमीर और अंतरात्मा ही है ..लेकिन दुर्भाग्य से आज इस देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे पदों पर बैठे व्यक्ति की अंतरात्मा भी मर चुकी है इसलिए इस देश और समाज को बचाने का कोई भी इमानदरी भरा प्रयास कारगर नहीं हो पा रहा है ...
लौह दिवस पर लौह पुरुष को नमन
जवाब देंहटाएंमुद्दा तो यही है कि उन्हें कथित राष्ट्रवादी दलों ने भी हाशिये में डाल रखा है और कथित राष्ट्रवादियों ने भी :(
जवाब देंहटाएंलगता तो ये है कि केन्द्र और राज्यों की बहुरंगी सरकारें उन्हें साप्ताहिक आयोजनों पर चल पड़ने वाली नस्तियों का विषय मान चुकी हैं !
आज आपने उन पर पोस्ट डाल कर मुझे चौंका दिया ,आलेख की आख़िरी पंक्ति ,दोहरा रहा हूं ! आमीन !
गिरिजेश जी - आज तो पुरे आखबार "भारतमाता" से भरे पड़े हैं..... आपको कहाँ लौह पुरुष की सूझ गयी.
जवाब देंहटाएं“दीपक बाबा की बक बक”
क्रांति.......... हर क्षेत्र में.....
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काश एक और सरदार पटेल जन्म लें ! नमन !
जवाब देंहटाएंहम ने बचपन मे इन के बारे पढा हे, सुना हे इस कारण यह हमारी रग एअग मे बसे हे, काश हम इन का दिवस ना मना कर इन के बताये पथ पर चले तो कितना अच्छा हो, आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस शपथ में हम आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंलौह पुरुष ...सरदार पटेल को नमन ...
जवाब देंहटाएंआज के तोताचश्मी ज़माने में लौह-पुरूष की याद दिलाने का हार्दिक आभार! तब भले ही एक से काम चल गया हो, आज उनके अधूरे छोड़े कामों के लिए कई लौह पुरुषों की आवश्यकता है
जवाब देंहटाएंआप वाकई में धन्यवाद के काबिल हैं आज इस महापुरुष का जन्मदिन याद दिलाने के लिए ! बच्चों को हम भी याद दिलाते हैं उन्हें और उनकी लीडरशिप के बारे में ! सच्चे नेता थे वो बाकी सब तो लुटेरे हैं !
जवाब देंहटाएंआज के प्रगतिशील भारत को उनकी बहुत जरूरत हैं , हम तो यहाँ भूतों का त्यौहार हेलोवीन मनाने में व्यस्त थे , बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने याद दिलाया !!
हदय से प्रयास करेंगे। लौह पुरुष को हमारा नमन।
जवाब देंहटाएंunko yadon ke shradha suman....
जवाब देंहटाएंaur apko yad dilane ko
pranam.
आपके विचारों को मेरा दिल से समर्थन.
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