'तुमने क्यों पूछा?'
'बस ऐसे ही। अब्बू की याद आ गई।.... हरामी! तुम्हारी छुअन वैसी ही लगी मुझे। कहाँ थे अब तक?'
नीमजाड़ा था लेकिन वह फिर से पसीने पसीने हो गया। उसमें इतनी अक्ल नहीं थी कि थोड़ी देर पहले के पसीने से इस पसीने का फर्क कर पाता। बहुत ही कमजोर आवाज़ में उसने पूछा - गाली देनी ज़रूरी थी?
'साहेब! मेरे ग़म में अब्बू जरूर चल बसे होंगे...बिना गाली के पूछ नहीं पाती। ... आप ने बताया नहीं?'
'बेटी है एक।'
'क्या उमर होगी?'
'बारह ... क्यों?'
उसने नाक सुड़की और मुँह दूसरी ओर कर लिया - रंडीबाजी क्यों करते हो? एक बेटी के बाप हो...
उसका चेहरा लाल हो गया। वह चिल्लाया - औकात में रहो! हालाँकि भीतर कुछ जल उठा था जिसे उसने बची हुई दारू को गटक बुझाने की कोशिश की।
'हमारी औकात तो आप से है जान! ...बुरा मत मानो। चार बरस हो गये, बारह की ही थी तो यहाँ उठा लाई गई थी।... तुम्हारी जोरू ....' उसने बात अधूरी छोड़ दी।
'गुजर गई... इसीलिये तो यहाँ....' ग्राहक ने भी बात अधूरी छोड़ दी।
लेकिन दोनों पूरी तरह समझ गये।
उसने वेश्या के जिस्म को नई नज़र से निहारा और पूछ बैठा - तुम तो बहुत सयानी लगती हो, मेरा मतलब सोलह की नहीं...
घड़ी से ही पता चल रहा था कि शाम ढल चुकी थी। मेकअप पुता चेहरा बल्ब की पीली रोशनी में और पीला हो गया, उसने इशारे से गद्दे का एक कोना उठाने को कहा। ग्राहक के हाथ में गोलियों का एक पत्ता आ गया।
'क्या है यह?'
'वही...' वह सिसकी थी - वही गोली खा कर हम ऐसी हो जाती हैं। इसे किसान अपने जानवरों को मोटा करने के लिये खिलाते हैं। सोचो हम खायेंगी तो ....वेश्या ने उघाड़ दिया।
उसे लगा कि नज़रों में हाथ हैं जो लुंज पुंज हो गये हैं। पापा को चौंकाने को बेटी का आँख मूँद लेना कौंध गया। आँखें बन्द करते वह चिल्लाया - शर्म कर बेशरम!
दरवाजे पर ठकठक हुई। बाहर से किसी स्त्री ने पुकारा था - ओये! फारिग हो गई के? एक मोटा असामी आया है।
वेश्या ने दरवाजा खोला और फुफकारते हुये बोली - यह मेरी इबादत का वक़्त है। जबरी की तो ....
'गाहक तो अन्दर बैठ्ठा है!'
'गाहक नहीं, वह मेरा बापवाला है...अपने भँड़ुओं से कह दो आज का टैम खत्तम, कल आयें।'
'बारह ... क्यों?'
उसने नाक सुड़की और मुँह दूसरी ओर कर लिया - रंडीबाजी क्यों करते हो? एक बेटी के बाप हो...
उसका चेहरा लाल हो गया। वह चिल्लाया - औकात में रहो! हालाँकि भीतर कुछ जल उठा था जिसे उसने बची हुई दारू को गटक बुझाने की कोशिश की।
'हमारी औकात तो आप से है जान! ...बुरा मत मानो। चार बरस हो गये, बारह की ही थी तो यहाँ उठा लाई गई थी।... तुम्हारी जोरू ....' उसने बात अधूरी छोड़ दी।
'गुजर गई... इसीलिये तो यहाँ....' ग्राहक ने भी बात अधूरी छोड़ दी।
लेकिन दोनों पूरी तरह समझ गये।
उसने वेश्या के जिस्म को नई नज़र से निहारा और पूछ बैठा - तुम तो बहुत सयानी लगती हो, मेरा मतलब सोलह की नहीं...
घड़ी से ही पता चल रहा था कि शाम ढल चुकी थी। मेकअप पुता चेहरा बल्ब की पीली रोशनी में और पीला हो गया, उसने इशारे से गद्दे का एक कोना उठाने को कहा। ग्राहक के हाथ में गोलियों का एक पत्ता आ गया।
'क्या है यह?'
उसे लगा कि नज़रों में हाथ हैं जो लुंज पुंज हो गये हैं। पापा को चौंकाने को बेटी का आँख मूँद लेना कौंध गया। आँखें बन्द करते वह चिल्लाया - शर्म कर बेशरम!
दरवाजे पर ठकठक हुई। बाहर से किसी स्त्री ने पुकारा था - ओये! फारिग हो गई के? एक मोटा असामी आया है।
वेश्या ने दरवाजा खोला और फुफकारते हुये बोली - यह मेरी इबादत का वक़्त है। जबरी की तो ....
'गाहक तो अन्दर बैठ्ठा है!'
'गाहक नहीं, वह मेरा बापवाला है...अपने भँड़ुओं से कह दो आज का टैम खत्तम, कल आयें।'
कुटनी हैरान सी चली गई।
पढना मुश्किल हो जाता है! कैसे लिख पाते हैं आप!
जवाब देंहटाएंसहा नहीं जाता तो लिखते हैं। यह बात और है कि लिखा भी नहीं जाता ...फिर भी बात तो कहनी ही होती है, भले पन्ने सिकुड़ कर एक की संख्या भी पूरी न कर पायें।
हटाएं...भले ही सिकुड़ा हुआ पन्ना एक सैकड़ों का असर बिखरा जाये!
हटाएंकहाँ-कहाँ पहुँचते हो, क्या-क्या लिखते हो भैया! गज़ब!
फिर से एक तमाचा आचार्य जी!! सन्न हूँ!! अभी पिछले हफ्ते फिल्म "थैंक्स माँ" में और फिल्म "बोल" को देखकर सन्नाटे में था.. आपने एक तमाचा और जड़ दिया!!
जवाब देंहटाएंउफ़.. बहुत जोर की लगी है. इतनी कि जो अपराध हमने कभी नहीं किये उनपर सिर्फ पुरुष होने को लेकर शर्मिंदा हो रहा हूँ!
जवाब देंहटाएंकहीं सुना और देखा भी है अभी अभी कोई 'पाकिस्तानी मंटो; लेखिका है ,सुन्दर भी है ....
जवाब देंहटाएंजोड़ी भिड़ाई लो गिरिजेश बाबू .... :)
आपने कैसे लिखा जाता है यह गुर बता दिया नाहक ही, अब लोग नक़ल कर लेगें तो ?:)
3 दिन लगे मुझे यह निर्णय लेने में कि इसे ऐसी कहानी के रूप में प्रस्तुत करूँ जो स्याह को जर्रा जर्रा तार तार कर सामने रख दे! इसे 'बी' इतनी लम्बी कहानी होना था लेकिन साहस डोल गया इसलिये अति लघु कथा, फिर भी जो संकेत हैं, पर्याप्त हैं... मन की गुहा में जाने कितने सर्प सोये पड़े हैं! उन्हें छेड़ कर फुफकार सुन लेना, सुना देना अलग बात है और उन संग खेल लेना अलग। मैं आग से गुजरना नहीं चाहता था तब जब कि कोई और बीड़ा उठाये हूँ... कभी कभी सोचता हूँ कि नेट का त्याग ही कर दूँ... यह सच सामने लाना था, ले आया।
हटाएंपता था कि कहानी के रूप और ट्रीटमेंट पर मंटो का नाम सामने आयेगा। वह बहुत महान थे, इतने कि इन गलियों में स्वयं गये और नंगे सच को देखा, दुनिया को सिहरा सिहरा कर दिखाया; मैं उनके आगे कहीं नहीं ठहरता। नये युग की कौन हैं, नहीं पता...करने दीजिये नकल! इश्क़ वालों को कौन रोक पाया है?
'तुमने क्यों पूछा?'
जवाब देंहटाएं'बस ऐसे ही। अब्बू की याद आ गई।....
म्हाराज जी ! मेरे तो विसरा इतने में ही बाहर आ गये।
इस गोली के बारे में पहली बार सुन रहा हूँ ...कुछ और बतायेंगे क्या? हम इसके साइड इफेक्ट्स जानना चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंOradexon. बंगलादेश मे लाइसेंस प्राप्त रेड लाइट क्षेत्रों में अवयस्क लड़कियों को मोटी ताजी दिखाने के लिये प्रयुक्त corticosteroid drug. करुण कहानी है यह!
हटाएंलिंक ये हैं:
http://goo.gl/J18PT
http://goo.gl/H0kPk
मेरा अनुमान सच निकला। कॉर्टिकोस्टेरोइड्स के घातक परिणाम कई बार देख चुका हूँ। इन लड़कियों की ज़िन्दगी नर्क से भी बदतर बनाये दे रहे है लोग। मुझे सिहरन हो रही है लड़कियाँ बुरी मौत मारी जायेंगीं।
हटाएंदरकते सत्य हैं, यह समाज के। न लिखने का भार कहीं अधिक होता। लिख देने से यदि कड़ुवाहट आ भी गयी तो वह समाज को समझनी होगी।
जवाब देंहटाएंठीक से समझने के लिए २ बार कहानी पढ़ी, स्तब्ध हूँ. सच में मंटो याद आ गए
जवाब देंहटाएंअद्भुत संयोग यह आज ही कल में यहाँ भी रहा है -
जवाब देंहटाएंhttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
bangaladesh ki ek rapat ek do din pahale paper main padhi thee...
जवाब देंहटाएंuske baad aap ki ...
jai baba banaras....
स्तब्ध हूँ...
जवाब देंहटाएंसच्चाई कडवी होती है पर सच्चाई को कहानियों का रूप देने में जो आपकी महारत है उसकी मैं कायल हूँ ... बी मेरी पसंदीदा कहानी है, वेश्या आपके मुह पर एक नहीं कई चांटे मारती है तब तक जब तक आप बेहोश ना हो जाए ..मन ग्लानी और क्षोभ से भर गया
जवाब देंहटाएंnihshabd
जवाब देंहटाएं:(
चलते चलते
जवाब देंहटाएंवेश्या या वैश्या
ह्म्म्…… कहानी के माध्यम से समाज का घिनौना पक्ष उजागर किया आपने।
जवाब देंहटाएंअन्तर है बहुत!
जवाब देंहटाएंहम जैसे पढ़ के हूक धरे, जीभ का कसैलापन घुलाये चले आत़े हैं।
एक रात रोटी नहीं टूटती, बस!
आप लिख ले जाते हैं।
इस सिकुड़े पन्ने में ढेर है गिरिजेश जी!
. !
जवाब देंहटाएंकंसैप्ट बहुत ही ज्वलंत है सच को सुनना वाकई में कठिन होता है यह समाज की सच्चाई है
जवाब देंहटाएंआज निगाह गयी इसपर ... सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ ...
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
जो बच्चियां कोठों पर लाई जाती हैं उनके हाल सोचकर मन खराब हो जाता है। कितने रूप हैं समाज के।
जवाब देंहटाएंयह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है |
जवाब देंहटाएंजला दो इसे, फूँक डालो यह दुनिया |
निरुत्तर समाज की कडवी सच्चाई जिसकी बेटी होगी वो इसको पढ़ कर एक बार जरूर सिहर जाएगा
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 26/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...