"... मुझे गुरुदक्षिणा का आदेश दें। करबद्ध प्रार्थना है कि दीक्षांत समारोह में स्नातक दीक्षा के लिए मेरा नाम प्रस्तावित करें।"
नालन्दा विश्वविद्यालय की एक कोठरी में गुरु के चरणों में झुका शिष्य निवेदन कर रहा था। गुरु के प्रशांत मुखमंडल पर स्मित आभा पसर गई। कृपापूर्ण स्वर में उन्हों ने आदेश दिया,
" नालन्दा के वन प्रांतर से वह वनस्पति ढूँढ़ कर लाओ वत्स, जिसमें औषधीय गुण न हों।"
शिष्य को आश्चर्य हुआ - यह कैसी दक्षिणा !
"जाओ वत्स। प्रात:बेला शुभ है। कार्यारम्भ में शीघ्रता करो।"
"जो आज्ञा गुरुदेव !"
...
शिष्य ढूँढ़ता रहा। ऋतुएँ बीतती गईं। सूर्यदेव जाने कितनी बार नभ के चक्कर लगा गए। वह वनस्पति नहीं मिली । अश्रु भरे नेत्र लिए थका हारा वापस गुरु के चरणों पर आ गिरा।
"मैं असफल हुआ देव ! क्षमा करें । मुझे ऐसी कोई वनस्पति नहीं मिली जिसमें औषधीय गुण न हों। कोई और गुरुदक्षिणा बताइए।"
आचार्य ने शिष्य को उठा कर गले लगा लिया।
"नालन्दा के वन प्रांतर ही नहीं, पूरे ज्ञात संसार में कोई ऐसी वनस्पति नहीं है जिसमें औषधीय गुण न हों। तुम कसौटी पर खरे उतरे हो। तुम्हारी स्नातक दीक्षा के लिए मैं कुलपति से विशेष सत्र आयोजन का अनुरोध करूँगा। "
...
आज पर्यावरण दिवस पर इस कथा का स्मरण हो आया। हममें से जाने कितने वनस्पति जगत के विविध रूपों को देखने के लिए पर्यटन करते हैं या डिस्कवरी चैनल पर अमेज़न के जंगलों पर प्रोग्राम देखते हैं। क्या आप ने अपने आस पास के वनस्पति संसार पर कभी परखन दृष्टि दौड़ाई है ? आप सोचते होंगे ऐसा क्या विशेष है ?
विशेष है। अपने घर के सामने के पार्क से कुछ अज्ञात पौधों के चित्र पोस्ट कर रहा हूँ। विविधता को सराहिए।
ये बस 'घास पात' नहीं हैं। इनके नाम बताइए। गुण बताइए। मुझे मालूम नही हैं।
मेरा मानना है कि रत्नगर्भा धरती अपने भीतर बहुत कुछ छिपाए रखती है। उचित अवसर और पर्यावरण मिलते ही रत्नप्रसूता बन जाती है। ये वनस्पतियाँ प्रमाण हैं।
नालन्दा विश्वविद्यालय की एक कोठरी में गुरु के चरणों में झुका शिष्य निवेदन कर रहा था। गुरु के प्रशांत मुखमंडल पर स्मित आभा पसर गई। कृपापूर्ण स्वर में उन्हों ने आदेश दिया,
" नालन्दा के वन प्रांतर से वह वनस्पति ढूँढ़ कर लाओ वत्स, जिसमें औषधीय गुण न हों।"
शिष्य को आश्चर्य हुआ - यह कैसी दक्षिणा !
"जाओ वत्स। प्रात:बेला शुभ है। कार्यारम्भ में शीघ्रता करो।"
"जो आज्ञा गुरुदेव !"
...
शिष्य ढूँढ़ता रहा। ऋतुएँ बीतती गईं। सूर्यदेव जाने कितनी बार नभ के चक्कर लगा गए। वह वनस्पति नहीं मिली । अश्रु भरे नेत्र लिए थका हारा वापस गुरु के चरणों पर आ गिरा।
"मैं असफल हुआ देव ! क्षमा करें । मुझे ऐसी कोई वनस्पति नहीं मिली जिसमें औषधीय गुण न हों। कोई और गुरुदक्षिणा बताइए।"
आचार्य ने शिष्य को उठा कर गले लगा लिया।
"नालन्दा के वन प्रांतर ही नहीं, पूरे ज्ञात संसार में कोई ऐसी वनस्पति नहीं है जिसमें औषधीय गुण न हों। तुम कसौटी पर खरे उतरे हो। तुम्हारी स्नातक दीक्षा के लिए मैं कुलपति से विशेष सत्र आयोजन का अनुरोध करूँगा। "
...
आज पर्यावरण दिवस पर इस कथा का स्मरण हो आया। हममें से जाने कितने वनस्पति जगत के विविध रूपों को देखने के लिए पर्यटन करते हैं या डिस्कवरी चैनल पर अमेज़न के जंगलों पर प्रोग्राम देखते हैं। क्या आप ने अपने आस पास के वनस्पति संसार पर कभी परखन दृष्टि दौड़ाई है ? आप सोचते होंगे ऐसा क्या विशेष है ?
विशेष है। अपने घर के सामने के पार्क से कुछ अज्ञात पौधों के चित्र पोस्ट कर रहा हूँ। विविधता को सराहिए।
ये बस 'घास पात' नहीं हैं। इनके नाम बताइए। गुण बताइए। मुझे मालूम नही हैं।
मेरा मानना है कि रत्नगर्भा धरती अपने भीतर बहुत कुछ छिपाए रखती है। उचित अवसर और पर्यावरण मिलते ही रत्नप्रसूता बन जाती है। ये वनस्पतियाँ प्रमाण हैं।
ये वनस्पतियाँ यूँ ही उग आई हैं। सारे फोटो मैंने मोबाइल से लिए हैं। |
वाह क्या बात है
जवाब देंहटाएंवनस्पतियो के गुण अपरिमित हैं
आपके मोबाईल कैमरे से लिये चित्र जीवंत हैं
मुझे ऐसी कोई वनस्पति नहीं मिली जिसमें औषधीय गुण न हों
जवाब देंहटाएंकाश हम इसके महत्व को समझ पाते !!
सच है, वनस्पतियाँ सब ही उपयोगी हैं ।
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी इनमें से कई ने हमारी नाक में दम कर रखा है कई बार कोशिश की , कि अपनी बगिया से बेदखल करदें पर थक हार के चुप्पी साध ली है अब आप गुण / नाम बताओ तो हम भी काम चलायें :)
जवाब देंहटाएं"वह वनस्पति ढूँढ़ कर लाओ वत्स ..."
जवाब देंहटाएंसच है, हर वनस्पति में औषधीय गुण और हर मनुष्य में असीमित संभावनाएं छिपी हैं.
पहला चित्र कटेया और आखिरी बथुआ हो सकता है.
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
जवाब देंहटाएंपहला तो कटेया ही है लेकिन दूसरा बथुआ नहीं है।
मनुष्य में असीमित सम्भावनाएँ कह कर आप ने कथा को अलग आयाम दे दिया।
धन्यवाद भैया।
प्रकृति के प्रति आपके संवेदनशीलता के हम कायल हुए.डा. अरविन्द मिश्र जी लगता है बता पायेंगे.
जवाब देंहटाएंमुझे तो सिर्फ भटकहीया ही समझ आ रही है, बाकी तो देखे सब हैं लेकिन नाम नहीं पता।
जवाब देंहटाएंकथा तो बेहतरीन है ही...
जवाब देंहटाएंबाकि अपुन के बस की बात नहीं...
उचित अवसर और पर्यावरण मिलते ही रत्नप्रसूता बन जाती है
जवाब देंहटाएं-यही समझने की जरुरत है. काश!! हम सब इस महत्व को समझें.
वह वनस्पति ढूँढ़ कर लाओ वत्स ...
जवाब देंहटाएंहम तो सोचे कि शायद आपने पोस्ट हमारा नाम लेकर लिखी है...कारण कि हम भी आजकल "सोम" वनस्पति पर कुछ लिख रहे हैं :)
Sir,
हटाएंIf you are working on Soma than contact with me as I have already done and found something special . My M. No. is 09992550082. and E-mail ID - sunil_bhardwaj_18091969@yahoo.com Thanks.
ये बात सही ही होगी कि हर वनस्पति की अपनी गुणवत्ता होती है ....परन्तु सोचने वाली बात ये है कि क्या वो गुणवत्ता हम मनुष्यों को माफ़िक आती है....
जवाब देंहटाएंपीले फूल वाला पौधा यहाँ भी धूम धाम से पाया जाता है ...उसे भी यहाँ हम खर-पतवार ही कहते हैं...नाम है Dandelion. Botanical: Taraxacum officinale (शेर के दांत ) जब तक ये खिला होता है पीला होता सूख कर भूरे रंग का हो जाता है...और दाँतों की तरह ही तेज़ हो जाता है ....इससे बचने कि हम भी सारे उपाय करते हैं...इसकी गुणवत्ता क्या है ये तो मुझे नहीं मालूम लेकिन लोगों को खाते हुए देखा है....
वनस्पतियाँ उपयोगी और नुकसानदेह भी होती है ...
जवाब देंहटाएंअडेनियम बहुत अच्छा पौधा है ...रेगिस्तान के लिए ...मगर पता चला कि इसका गूदा आदिवासी लोग जहर बुझे तीरों के तौर पर इस्तेमाल करते हैं ...
इनमे से एक के नाम का भी पता नहीं है ...
@ सतीश जी,
जवाब देंहटाएंभटकहीया या भटकुइयाँ क्या एक ही हैं ? जरा बताएँ तो सही कौन सा पौधा भटकहीया है?
@ वत्स जी - :) आप की लेखमाला पढ़ रहा हूँ।
@ अदा जी,
गुणवत्ता हम मनुष्यों को माफ़िक - गुणवत्ता मनुष्य सापेक्ष ही होती है।
आप ने तो कमाल कर दिया। आप ने एक को तो पहचान ही लिया, वह भी वैज्ञानिक नाम के साथ ! चकित हूँ मैं । नालन्दा के प्रांत का प्रभाव है ;)
@ वाणी जी,
विषैले पौधों के औषधीय प्रयोग हैं। विषस्य विषमौषधम् । होमियोपैथी भी इसी सिद्धान्त पर काम करती है।
पहला पीले फूल वाला चित्र भटकटहीया लग रहा है, और भटकुईया आदि एक ही है या अलग अलग इस बारे में नहीं पता :)
जवाब देंहटाएं..जैसे रोग होई जाय तो डाक्टर के पास जाते हैं.ई ब्लॉग जगत में ई विषय के जानकार ब्लागर से संपर्क साधा जाय....http://www.merasamast.com/
जवाब देंहटाएं१५ मिनट से निहार रहे हैं एक्को पहिचान नहीं पाए..
गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंअपने लैपटॉप में पुरानी तस्वीरें देख रहा था तब कहीं से क्लिक हुआ कि पीले फूल वाले को कुछ और ही कहा जाता है...ठीक ठीक नाम याद नहीं आ रहा ....
लेकिन इतना जरूर याद आया कि जब मैं उम्र में बहुत छोटा था तब गाँव में एक महिला भटकहीया के जरिए दाँत में लगे कीडे आदि झाडने का काम करती थी। जिस किसी के दांत में दर्द होता तो शायद भटकहीया के धुंए आदि से मुँह में झाडन आदि का कार्य होता था और लार के साथ कीडे बाहर आ जाते थे....
वैसे एक ही बार इस किस्म के इलाज को गाँव में बचपन में देखा है....अब तो वह महिला है कि नहीं यह भी पता नहीं।
इन वनस्पतियों के मनभावन चित्रों के साथ ही अगर इनका कुछ ’बायो-डाटा’ भी दे दिया होता..तो इन्हे ’घूरने’ मे और आनंद आता..! :-)
जवाब देंहटाएंमैं जंतु शास्त्री हूँ -सारी ! हाँ लोक वानस्पतिकी में थोड़ी रूचि के कारण बता सकता हूँ पहला तो भडभड़ा(भट्कैया) ,एक ब्राह्मी है -देखी तो सब है बाकी के नाम याद नहीं आ रहे ... पर्यावरण दिवस पर अच्छी पोस्ट !
जवाब देंहटाएंअरे भाई हमका लाल बुझक्कड़ समझे हैं का ?????? - :)
जवाब देंहटाएंएक बार एक लेख लिखा था, वृक्ष तो शिव हैं क्योंकि वातावरण की दूषित गैस खींच जीवन वायु छोड़ते हैं. लेकिन आपके लेख के बाद कह सकते हैं कि वृक्ष तो विष्णु भी हैं.
जवाब देंहटाएंनमस्कार, इनमे से कुछ औषधियों को तो मे पह्चान्ता हु ,परंतु कुछ असपष्ट फ़ोटो के कारण पहचान नही पा रहा हु/
जवाब देंहटाएंपीले फ़ुलो वाली, प्रथम-- स्वर्ण क्षीरी, या सत्यानाशी उत्तम रक्त शोधक, एवं व्र्ण शोधन,
सफ़ेद फ़ुलों वाली-- शंखपुष्पी उत्तम ब्रेन टोनिक
दो फ़ोटो हजारदानी के हो सकते है हालाकि इसे साफ़ तोर पर देखा नही जा रहा है -- यह बवासीर और पीलिया की बेहतरीन औषधि है
दो फ़ोटो कंटकारी के है , यह उत्तम कासहर एवं रक्त शोधक है
एक फ़ोटॊ पीले फ़ूल वाला गोजिवहा की एक प्रजाति है हालाकि यह असली गोजिह्वा नही है
एक फ़ोटो ब्र्हमी का हो सकता है ।
धन्यवाद , अधिक जानकारी के लिये आप मेरे ब्लोग पर ले सकते है
www.singleherbs.blogspot.com
कंटाया और बन मरीचि दो के नाम तो पता हाँ बाकी देखे हुए तो कई हैं लेकिन नाम नहीं याद आ रहा.
जवाब देंहटाएं