रिसता आषाढ़ आतप स्वेद ग्रंथियों से, निहारता है अनिल ठिठक भीग चिपके वस्त्रों को। समय ठहरता है आँख सलवटें उभरती हैं, बादल उतरते हैं वदन पर बन आब बेचैन बारिशें हों कैसे जब धरा पर प्रेम विराम?
किरकिरी कुनकुनी डाह बात, कान छूती दाह सात, बहुत हो चुका सिरफिरी टिटिहरी को कोसना कि लोट धूल धाल करें आदिम टोटके उपाय। समझो कि लिपटना स्वेद भीगी देह का निज देह के अंश से, लजवाता है बादल हवा युग्म को और ठिठकन टूटती है। बह चलता है आर्द्र अनिल क्षमा माँगते मरमर सहलाते धीर तरुओं को, उमस बढ़ती है उफ्फ! हवा चलती है?
लाज भरती है चिपके वस्त्रों में करना क्या दिखावा अंतरंग जो मिला ही हुआ है रीत से? लोग राहत कहते हैं, बिसूरते हैं कि होगा पुन: विलम्ब बादर की गह गह में, बूँदों की झड़ियों में? नहीं जानते कि एक ने तोड़ा है मौसम की पटरी से सुख निषेध का मिलीमीटर!
जो उठती हैं हजारो मील लम्बी चादरें पनीली ढकती पोतती गर्वीले नीले के मुँह कालिख बदरी। आँखें मूँद लेता है वह पलकों में दूरियाँ घटती हैं। निचुड़ जाती है पहली बूँद गिरती धूल धाल पर धप्प से बरसने लगते हैं बादल पसीने पसीने खोल देती है हवा सीना धरा समोने को सृष्टि बीज के कण तत्क्षण!
करो विश्वास कि हर वर्ष वर्षा आरम्भ होता है ऐसे ही, वर्षा आती रहेगी तब तक जब तक रहेंगे किसी एक को याद वही आदिम टोटके उपाय। नहीं आई अब तक तो समझो कि इतने बड़े परिवेश में किसी ने नहीं किया नैसर्गिक वही, उपाय तोड़ने का जुड़ने का, नहीं किया अब तक।
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अब सुनिये राग मल्हार और बहार की सजावट
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बेहतरीन रचना, कभी टैम मिले तो हमारी गली आ जाना :)
केरा तबहिं न चेतिआ, जब ढिंग लागी बेर
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♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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वाह!
जवाब देंहटाएंअयं...
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