गुरुवार, 14 जून 2012


त्वदीयं वस्तु गोविन्दम् तुभ्यमेव समर्पये! 

6 टिप्‍पणियां:

  1. ताजा घटनाक्रम पर शुभेच्छुओं की बेचैनी समझ रहा हूँ कि मुझे कुछ करना चाहिये। मुझे इससे बेहतर कुछ नहीं सूझा :)

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    1. क्या हुआ? कोणार्क सूर्य-मंदिर की यात्रा जारी रखिए। अंधेरा भाग जाएगा।

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    2. आप साथ हैं तो क्या गड़बड़ हो सकता है? गुरुओं की छाँव तो वही होती है - चन्दन तरु हरि संत समीरा :)
      यात्रा जारी है, रहेगी। बस यायावर रुक रुक तसल्ली के साथ देखता दिखाता चलेगा।

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    3. रुके इसलिये हैं कि तोरू की विलक्षण कविता के अनुवाद का आनन्द बाँट कर आगे चलें। एक अद्बुत प्रतिभाशाली युवा भावानुवाद कर रहे हैं।

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    4. हम प्रतीक्षा कर रहे हैं उस भावानुवाद की!

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