भाग 1, 2, 3, 4 और 5 से आगे...
पथ के दोनों ओर कभी यादृच्छ, कभी पंक्तियों में वनस्पति की उपस्थिति अंतहीन लगने लगी है। सूर्यमन्दिर को जाते पथिकों के स्वागत में प्रकृति ने पथ को अपनी सुषमा से अलंकृत कर रखा है। निर्माणकामी अवश्य प्रकृति और सौन्दर्य प्रेमी रहा होगा!
अर्क के दर्शन को जाते श्रद्धालुओं के स्वागत में अर्क नामधारी फूले मदार और ... संकेत करते हुये मैं चालक गुड्डू से पूछ बैठता हूँ – ये जो दिख रहे हैं, उन्हें क्या कहते हैं? वह नहीं समझ पाता। दुबारा पूछ्ता हूँ और परिचय की मुस्कान उभरती है ज्यों फूल खिल उठा हो – किया, कियाफूल ...उससे इतर निकालते हैं । बहुत तेज सेंट ...अभी सीजन नहीं है नहीं तो फूला दिखाता।
“किया, कया, क्या? ...केवड़ा?”
“हाँ, वही...इसकी खेती भी होती है।“
अपने अनुमान में मैं सही था – केवड़ा (Panadanus odoratissimus)।
“भगवान को चढ़ता है?”
“नहीं ...इतर निकालते हैं...मदार का फूल उधर चढ़ता है।” गुड्डू के लिये हिन्दी बोलना कठिन है। मैं उधर का अर्थ पुरी से लेता हूँ। प्रकट में कहता हूँ – गाड़ी रोक लो।
पिता पुत्री दोनों उतर जाते हैं। बेटी डिजिटल कैमरे से मदार के चित्र उतारने लगी है और मैं केवड़े के...
पुष्पित अर्क यानि मदार | पुष्पित मदार | |
सड़क किनारे केवड़ा | केवड़ा झुरमुट | केवड़ा (जड़, तना) |
pranam ji ..
जवाब देंहटाएं'एक अनूठा दिव्य गुण समस्त दोषों पर भारी पड़ता है।'
जवाब देंहटाएंरोचक!
शापित पुष्प, फिर भी गुणवान..
जवाब देंहटाएंअद्भुत ....
जवाब देंहटाएंप्रणाम.
rochak aur gyaanvardhak
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर इस तरह के रोचक, शोधपरक और ज्ञानवर्धक लेख हमें बार-बार खींच ले आते हैं। इसके अगले अंक की भी प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारीयुक्त बेहतरीन संस्मरण...
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी - आपकी यह शृंखला - हर पोस्ट - सहेजने जैसी है | हर एक पोस्ट कई कई बार पढ़ रही हूँ | और फिर फिर से चली आती हूँ पढने के लिए | फिर एक बार - आभार आपका |
जवाब देंहटाएंसोमरस के बारे में एक अच्छी जानकारी यह भी है कि जिस वनस्पति से सोमरस बनाया जाता है, वह कभी वर्तमान भारत में उगी ही नहीं थी। अफगानिस्तान (कभी अखण्ड भारतवर्ष का हिस्सा रहे) एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों में अभी वह वनस्पति उगती है जिससे सोमरस बनता है।
जवाब देंहटाएंपरिस्रुत नशामुक्त ‘सोम’ और नशायुक्त ‘सुरा’ के बीच का द्रव था।
सोम को नशायुक्त या नशामुक्त कहना शायद जल्दबाजी होगी। माइकल वूड की स्टोरी ऑफ इंडिया एक बार देख लें। टोरेंट पर उपलब्ध है। उसमें कहीं बीच में सोमरस के बारे में आया है। माइकल वूड खुद पीकर बताते हैं कि इसका असर कैसा महसूस होता है... :)
:) पता है होम सोम वनस्पति के बारे में और उसके ताजे अर्क के प्रभाव के बारे में भी लेकिन संहिताओं में ही ऐसे सुस्पष्ट संकेत उपलब्ध हैं जो सोम की इस 'पहचान' को खारिज कर देते हैं।
हटाएंकभी लिखूँगा सोम पर भी लेकिन भय लगता है। अनिवार्यत: मेरे ऐसे लेख लम्बे शृंखलाबद्ध हो जाते हैं :(
जैसा कि कोणार्क के साथ हो ही रहा है।
सिद्धार्थ जी - बे वनस्पतियाँ सोम नहीं हैं | अब यह नहीं पाया जाता | सोमलता के जो विवरण वेदों में मिलते हैं, वैसी बिलकुल नहीं हैं ये वनस्पतियाँ , जिनके बारे में सोम होने के दावे किये जाते हैं | कभी इस पर लिखूंगी, अभी इतना ही |
हटाएंशिल्पाजी, राव साहब तो हो सकता है शृंखला बनाने तक इंतजार कराए, आपकी पोस्ट का इंतजार रहेगा। जानकारी देने के लिए आभार। मेरा एक दोस्त इन दिनों अफगानिस्तान में है। मैं सोच रहा हूं कि उससे सोम के पादप मंगवा लूं। आप अगर पुख्ता जानकारी देंगी तो शायद मंगवाने में आसानी रहेगी।
हटाएंsiddhaarth ji - som ab nahi hota | rigved ke online versions me padhaa hai ...
हटाएंgirijesh ji - aapka fir ek bar aabhaar is shrunkhala ke liye
mad - madaar , manmad, kamdev, unki judwa bahan sandhya, chandrabhaaga,........in sab ka aasi sambandh avashya hoga n??
वाह! कितना शोध करते हैं आप!
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख.
जवाब देंहटाएंकितना बड़ा भ्रम शमन हुआ आज ...
जवाब देंहटाएंउड़ीसा में "मंदार" नाम "अड़हुल" केलिए प्रयुक्त देख मुझे मदार और मंदार एक ही लगता था और जिसे आपने चित्र में "मदार" नाम से संबोधित किया है ,उसे "आक"(जिससे शिव की पूजा होती है) के नाम से जानती थी ..
बाकी ,आलेख की तो क्या कहूँ ..