कृपया इस आलेख को पढ़ने के पहले ये दो भाग अवश्य पढ़ें: भाग -1, भाग -2
________________________
आ गई एक और गैय्या गार में !
________________________
राग सारंग
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥
~38
आत्मालोचन के चरम पर पहुँची सूरदास की उपर्युक्त रचना की ‘प्रथम पंक्ति (-) कामी’ शीर्षकधारी ब्लॉग दो नम्बरी पाया गया है। J यू ट्यूब हिन्दी में ढूँढ़ने पर ‘मो सम कौन’ को संशोधित कर सलमान खान कर देता है ;) विचित्र बात है! इस ब्लॉग के अभिवादन में है ऊपर का राग बृन्दाबनी सारंग आयोजन।
ऐसा क्या है इस ब्लॉग में जो इतना अधिक लोकप्रिय है?
गम्भीर हास्य के साथ जीवन के विधेयात्मक पहलुओं को सम्मान और उभार। साथ ही विसंगतियों पर बेबाक टिप्पणियाँ – सब कुछ बेहद हल्केपन के साथ। मार ऐसी कि भेद जाय लेकिन छ्टपटाते शर्म आये!
विद्वता झाड़ने का कोई रोग नहीं – सब बेहद सादगी से।
पढ़ते हुये लगता है कि किसी बहुत ही सुलझे हुये मित्र के साथ बातचीत हो रही है।
मध्यवर्गपन को लेकर कोई हीन भाव नहीं, उल्टे आत्मविश्वासी हास्य के साथ मजबूती से अपने अस्तित्त्व की स्थापना – यह सब कारण हैं कि यह ब्लॉग इतना लोकप्रिय है।
पढ़िये दिसम्बर 2009 की पहली पोस्ट की खनक!
आ गई एक और गैय्या गार में !
हम मध्यमवर्गीय लोगो ने कम्प्युटर का शुरुआती जलवा या कहें तो सार्वजनिक प्रयोग रेल रिजर्वेशन केन्द्र पर ही देखा था और यही से ललक लगी थी कि हम भले ही इस जादू के पिटारे पर कुछ न कर सके पर बच्चो को कम्प्युटर जरूर ले कर देन्गे ! परमात्मा की क्रपा से अपना ही वास्ता इस से पड गया लेकिन असली खेला तो इन्टरनेट ने शुरु करवाया और हमारा नाम भी राशन कार्ड, हाजिरी पुस्तिका के अलावा कहीं और छप सका ! और फ़िर हमारा तो स्वभाव ही ऐसा है कि किसी का आभार व्यक्त करना हो तो ऐसे करें कि अगला किसी का भला करे तो सोच समझ करे ना कि मन किया और कर दिया किसी को भी प्रेरित । खैर, ईश्वर अर्थात रचनाकार, उसकी सर्वोत्तम रचना अर्थात मानव व इस रचना द्वारा रची गई सभी रचनाओ का धन्यवाद करते इस नाचीज ने यह प्रयास किया है, आशा है महाजनस्य पंथे गिरतम संभलतम हम भी घुट्नों पर चलना सीख लेंगे ।
देखिये एक आम सी बस यात्रा के दौरान जीवन के एक विधायी पक्ष को कैसे उभारता है! हास्य और यथार्थ यथावत ... पानीपत पार कर गई लेकिन फ़ोन काल्स चैन स्मोकिंग की तर्ज पर चैन कालिंग के रूप में जारी रहे। जुमला वही एक, “हां जी, सत श्री अकाल, ठीक-ठाक है जी। खुशखबरी है, किट्टी दे घर एक और किट्टी आ गई है जी। मैं नाना बन गया हां। त्वानूं वी मुबारकां जी, सत श्री अकाल।” मेरी नींद ऐसे भागी जैसे गधे के सर से सींग। मेरा मूड कई शेड्स से होकर गुजर रहा था। पहले झल्लाहट, खीझ, गुस्सा और फ़िर कुछ सहज होते हुये मजा सा आने लगा। इधर सरदार जी नया नंबर मिलाते, बातचीत शुरू करते और मैं भी उनके डायलाग साथ ही साथ बुदबुदाने लगा…
मौका मिलते ही मैने पूछ डाला कि दोहता होता तो शायद आप और ज्यादा खुश होते। सरदारजी बोले, “पुत्तर, मेरी बेटी दी शादी नूं कई साल हो गये सी ते उसदी कोइ औलाद नहीं होई सी। जे उसदे व्याह दे फ़ौरन बाद दोहती पैदा हुंदी ते शायद तेरी गल सच हुंदी …..असी वाहेगुरू अगे एही अरदास करदे सी कि देर नाल सही देवीं पर स्वस्थ गुड्डी देवीं। अज दे टाईम विच धीयां दी जरूरत होर वी वध रही है। ऐ जो खून खराबा, नफ़रत दा महौल चल रया है, कल्ली कुढी ढंग नाल पढ-लिख के तीन घरां नूं सुधार सकदी है।” धीरे-धीरे मेरे मन में उन सज्जन के प्रति श्रद्धा सी होने लगी।...
फत्तू की लाइट में दिवाली देखिये:
खैर, बहरहाल. anyway जो भी हो अपनी तो पहली सरकारी दिल्ली वाली दिवाली है, उम्मीद से हैं :)) जुटे हैं उस्ताद जी के कहे अनुसार ’द वैरी बैस्ट कस्टमर सर्विस’ करने में, जो होगा सिर माथे पर। आगे कभी हो सकता है अपने भी किस्से कोई सुनाकर अपना और दूसरों का टाईम खोटी करें।
:) फ़त्तू पशु मेले से भैंस लेकर आया। घर तक पहुँचते पहुँचते जिस किसी से आमना सामना हुआ, खरीद मूल्य बताते बताते दुखी हो गया। दुखी भी ऐसा कि भैंस बांधते ही कुँए में छलाँग लगा दी। सारा गाँव इकट्ठा होकर फ़त्तू को कुँए से निकलने की पुकार करने लगा, जैसे ब्लॉग जगत में……...। फ़त्तू ने आवाज लगाई और पूछा, “सारे गाम आले आ लिये अक कोई सा रै रया है?” जब कन्फ़र्म हो गया कि सब आ लिये तो वो भी बाहर निकल आया और फ़िर अपना सवाल दोहराया, “सारे गाम आले आ लिये अक कोई सा रै रया है?” फ़िर से कन्फ़र्मेशन मिल गई तो जोर से बोला, “भैंस आई सै चालीस हजार की, अबके किसी ने पूछ लिया तो उसने इसी कुँए में गेर दूँगा।”
नब्ज़ पर पकड़ रखने वाले इस ब्लॉग की प्रशंसा में पाठक कहते हैं:
- छोटी-२ घटनाओं से जोडकर और हास्य के पुट में गंभीर बातें
- टू द पांईंट पोस्ट,कम और सरल शब्दों का इस्तेमाल पर सटीक ....सही समय पर सही पोस्ट...जिन्दगी के अनुभवों का सार ....
- कुछ भी पढो, कभी भी पढो हमेशा नया ही लगता है...
_____________
(अगले अंक में प्रथम सर्वप्रिय और अन्य बातें)
आपकी पिछली पोस्ट पर अभी-अभी टिप्पणी की है, जस की तस यहां री-पोस्ट (पेपर आउट टाइप मामला हो रहा है)
जवाब देंहटाएंमैंने अपनी पसंद में इन आठ का नाम पहले से ही रखा है-
मल्हार
ओझा-उवाच
मैं घुमन्तू
मनोज पर देसिल बयना
न दैन्यं न पलायनम्
मो सम कौन कुटिल खल......?
लहरें
सफ़ेद घर
'ओझा उवाच' और 'सफ़ेद घर' यहां शामिल हो गए हैं, दि्वतीय और प्रथम स्थान पर इनमें से कोई अवश्य शामिल होगा.
अन्य संभव नामों में फुरसतिया, मानसिक हलचल और ...आलसी तो है ही.
arey vaah - yah bhi meri idol list me ek blog hai | to hamaare fan-dom ke ek aur bog ko priy chuna gayaa :) :)
जवाब देंहटाएंshilpa mehta
लो जी ये लिस्ट भी आ गई अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंबस यही समझ नहीं आ रहा कि पोस्टों में बाएं कुछ मोटा सा नंबर लिखे दे रहे हैं आप, वो क्या है ? जैसे इसमें भी स्क्रीनशॉट से पहले ~38 लिखा हुआ है...
प्रगणित भारित अंक हैं। :) पहली पोस्ट में संकेत दिया तो था!
हटाएंपता नहीं, जो 'मो सम कौन..' है, वह खुश भी होगें कि नहीं इस परिणाम से।:) खुश हैं तो हमारी बधाई स्वीकार करें। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंअरे वा....मतलब करीब करीब मेरी पसंद भी औरों से मिलती रही.....अब तो प्रथम कौन की जिज्ञासा है....वैसे कुछ कुछ अंदाजा लग रहा है....लेकिन अगली पोस्ट में ही शायद कन्फर्म हो :)
जवाब देंहटाएंअब तो प्रथम सर्वप्रिय की ही प्रतीक्षा है.
जवाब देंहटाएंमो सम कौन ... संजय जी को बधाई!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंहिमांशु जी, हमें भी उसी की प्रतीक्षा है।
हटाएंसंजय अनेजा जी का ब्लौग बहुत पसंद है. उन्हें बहुत-बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंअब केवल प्रथम सर्वप्रिय और 'अन्य बातों' का इंतज़ार है. कुछ-कुछ अंदाज़ा तो लग रहा है.
परिकल्पना के थोक के भाव चिरकुटिया चुनाव से बहुत बेहतर रहा यह प्रयास. खोजने पर कमी तो इसमें भी निकल ही जायेगी लेकिन उससे तो कई दर्जे बेहतर. कोई शक!?
क्या 'सूचना के अधिकार' के तहत आपको सुझाये गए सभी ब्लौगों की लिस्ट मिल सकती है? अकारादि क्रम में भी चलेगी.
'सूचना के अधिकार' के तहत आपको सुझाये गए सभी ब्लौगों की लिस्ट मिल सकती है?
हटाएं... :)
sahmat hoon :)
हाँ, इस सुझाव को मेरा भी अनुमोदन है।
हटाएंये रहे वे ब्लॉग। ध्यान रहे कि इनमें वे 18 ब्लॉग भी सम्मिलित हैं जिन्हें केवल ऋणात्मक मतों के साथ नामित किया गया:
हटाएंdkspoet.in (ब्लॉग हिन्दी में है, पहले खुलता था। कल परसो नहीं मैंटीनेंस में दिखा रहा था)
life is beautiful (ब्लॉग हिन्दी में है)
Steam Engine (ब्लॉग हिन्दी में है)
अंतर सोहिल
अंतरिक्ष
अजदक
अनिल का हिन्दी ब्लॉग
अहसास की परतें
उड़नतश्तरी
उन्मुक्त
उम्मतें
ओझा उवाच
कविता (kavyana.blogspot)
कस्बा
काव्य मंजूषा
किशोर चौधरी
क्वचिदन्यतोपि
घुघूती बासुती
चर्चामंच
चलते-चलते
छीटें और बौछारें
जगदीश्वर चतुर्वेदी
ज़िन्दगी की राहें
ज़ील
जो न कह सके
ज्योतिष दर्शन
डा. हरिओम पंवार की कवितायें
डीहवारा
ताऊ
दिल की बात
देशनामा
न दैन्यं न पलायनं
नास्तिकों का ब्लॉग
निरामिष
निर्मल आनन्द
नुक्कड़
परिकल्पना
पाल ले एक रोग
फुरसतिया
बर्ग वार्ता
बिखरे सितारे
ब्लॉग की खबरें
भारत भारती वैभवम
मनोज देसिल बयना
मल्हार
मानसिक हलचल
मेरी कलम से
मेरी भी सुनो
मेरे अंचल की कहावतें
मेरे गीत
मो सम कौन
रचना का ब्लॉग
लखनऊ ब्लॉगर असोसि.
लेखनी (महफूज़)
लोकसंघर्ष
वैतागवाणी
शिप्रा की लहरें
शिव-ज्ञान
संकलन
सच्चा शरणम
सफेद घर
समय के साये में
साई ब्लॉग
हथकढ़
हारमोनियम
हिन्दी ज़ेन
अपने प्रिय ब्लॉग का नाम देने का सरल सा आयोजन इतने सुन्दर और उल्लासमय समारोह के रूप में निखरकर सामने आयेगा, इसका अन्दाज़ भी नहीं था। सर्वप्रिय ब्लॉग्स के नाम एक-एक करके सामने आ रहे हैं, रहस्य जितना खुलता जा रहा है, आत्मविश्वास भी बढता जा रहा है। "मो सम कौन" के बारे में गिरिजेश की निम्न टिप्पणी से पूर्णतया सहमत हूँ:
जवाब देंहटाएंऐसा क्या है इस ब्लॉग में जो इतना अधिक लोकप्रिय है?
गम्भीर हास्य के साथ जीवन के विधेयात्मक पहलुओं को सम्मान और उभार। साथ ही विसंगतियों पर बेबाक टिप्पणियाँ – सब कुछ बेहद हल्केपन के साथ। मार ऐसी कि भेद जाय लेकिन छ्टपटाते शर्म आये!
विद्वता झाड़ने का कोई रोग नहीं – सब बेहद सादगी से।
पढ़ते हुये लगता है कि किसी बहुत ही सुलझे हुये मित्र के साथ बातचीत हो रही है।
मध्यवर्गपन को लेकर कोई हीन भाव नहीं, उल्टे आत्मविश्वासी हास्य के साथ मजबूती से अपने अस्तित्त्व की स्थापना – यह सब कारण हैं कि यह ब्लॉग इतना लोकप्रिय है।
प्रिय वाकई सर्वप्रिय ही होते है। अन्देशे परिणाम में बदलना परिणामों की सटीक सत्यापन है। संजय अनेजा जी को बधाई!! वे कह सकते है मो सम कौन प्रिय?
जवाब देंहटाएंसभी के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं!!
खांटी अनुभव से निकलती हैं इस ब्लॉग की पोस्टें।
जवाब देंहटाएंबधाई अंतिम में दूँगा, पहले मुझे कुछ कहना है।
जवाब देंहटाएंयह ब्लॉग कहीं अधिक सजीव है, मतलब ब्लॉग खुद ही ब्लॉगर है, इसके उलट भी कह सकते हैं।
आप ऐसे ही आचार्य नहीं हैं, क्या सटीक कहते हैं - "पढ़ते हुये लगता है कि किसी बहुत ही सुलझे हुये मित्र के साथ बातचीत हो रही है"
हाँ! ऐसा ही लगता है, शत-प्रतिशत!
मैं जब तक ब्लॉग-ब्लॉगर को अलग रखने की उहापोह में रहूँगा तब तक संभवतः सोचूँ विचारूँ पर जैसे ही दोनों एक ही खाके में फिट हो जाते हैं - "तुम सम कौन...":) :)
शाहरुख़- आमिर की हीलहवाली के बीच कुछ सोच कर ही youtube समझदार हुआ जाता होगा। :)
मैं बड़ा खुश हूँ, बधाइयाँ खुद को ही - संजय जी को बहुत मिलेंगी।
क्या 'सूचना के अधिकार' के तहत आपको सुझाये गए सभी 18 ब्लॉग जिन्हें केवल ऋणात्मक मतों के साथ नामित किया गया: की लिस्ट मिल सकती है?
जवाब देंहटाएंनहीं जी, नकार का उद्घाटन प्रस्तावित नहीं था। ग
हटाएंणना में यथार्थ के समावेश के लिये ये मत लिये गये थे।
ई तो होना ही था, हमरी पसंद ही गज़ब की पसंद है :)
जवाब देंहटाएंई तो होना ही था, हमरी पसंद ही गज़ब है :)
जवाब देंहटाएंबुझाता है अदबदा कर टिपिया दिए हम...
दोबारा से कर रहे हैं टिपण्णी...भूल-चूक माफ़ कीजियेगा.. :)
:)
हटाएं@देवेन्द्र पाण्डेय -
जवाब देंहटाएं*इस* वाली सूची में सिर्फ नाम आने से ही\भी खुशी मिल जाती|
गिरिजेश जी और सभी मित्रों का बहुत बहुत आभार|
भूल सुधर 'टिप्पणी; :)
जवाब देंहटाएंआज आपकी तारीफ करने को मन किया है राव साहेब...वर्ना मन कुछ अशांत होने लगा था..
जवाब देंहटाएंयहाँ जितने भी लोगों का चयन हुआ है, सभी योग्य हैं...और उनका नाम यहाँ देख कर लगा कि दुनिया उतनी बुरी नहीं है..
सच कहूँ तो जब आपने इस कॉम्पिटिशन की शुरुआत की तो मन में आया था, कहीं आप कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं, कहीं इस आयोजन का छीछालेदर तो नहीं होने वाला है..लेकिन एक विश्वास था कहीं कि शायद सब ठीक ही होगा...दूसरी जगह की सूची जबतक नहीं आई थी, एक उम्मीद थी की सबकुछ ठीक होगा...लेकिन सूची देखने के बाद विश्वास दरक गया था..इतने अच्छे-अच्छे ब्लॉग हैं यहाँ, लेकिन उनका कहीं ना-ओ-निशान नहीं मिला...इसतरह के आयोजनों से वैसे तो, किसी भी व्यक्ति या ब्लॉग का कुछ भी नहीं होने वाला है, लेकिन आपके आयोजन में योग्यता का सही आकलन ईमानदारी से हुआ है, यह देख कर बहुत ख़ुशी हुई है...
आगे भी आप इसका आयोजन करते रहे...किसी भी तरह से अगर मैं काम आ सकूँ तो मुझे ख़ुशी होगी...
एक और आईडिया आया है दिमाग में, अगर हम ब्लोग्गर्स के मेधावी बच्चों के लिए किसी भी तरह का प्रोत्साहन देने का उपक्रम कर सकते हैं तो वो भी अच्छी बात रहेगी...सोचियेगा इस बारे में भी...
आप सचमुच बधाई के पात्र हैं...
सादर..
'अदा'
@ अगर हम ब्लोग्गर्स के मेधावी बच्चों के लिए किसी भी तरह का प्रोत्साहन देने का उपक्रम कर सकते हैं तो वो भी अच्छी बात रहेगी...सोचियेगा इस बारे में भी...
हटाएंdi ke prastav pe mahri samrthan hai.......
pranam.
संजय जी को हार्दिक बधाइयां !!! उनका ब्लॉग हमेशा नहीं पर कुछेक बार पढ़ा है ...सलिल जी के सुझाने पर...हमेशा अच्छा लगा है...एक ब्लॉग ने तो उनकी पोस्टों की चोरी ही कर डाली थी...इतना सुंदर लिखते हैं कि भई चोरी के लिए दिल ललचा जाता है...
जवाब देंहटाएंका कहें बुढ़ापा आ गया है..!!
जवाब देंहटाएंग़लती पर ग़लती
भूल 'सुधार' भी ग़लत हो गया राव साहेब...इतने दिनों बाद जो कमेन्ट कर रहे हैं...
क्षमाप्रार्थी हैं .. :)
अरे, कोई बात नहीं। इतना उत्साह है आप में! कौन कमबख्त बुढ़ापे की बात करता है? :)
हटाएंआभार और धन्यवाद कि आप ने इतने उत्साह से आयोजन में भाग लिया।
बाँसुरी बहुत सुरमयी लगी, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! संजय जी का ब्लॉग बहुत अच्छा है। देर से पढ़ना शुरू किया मैंने इसे। पुरानी पोस्टों का पारायण करना है। बधाई संजय जी को!
जवाब देंहटाएं'दो नम्बरी' बहुत सही टाइटल है :) एक दम सही।
जवाब देंहटाएंफत्तू पर मेरी नजर 2010 के शुरूआत में पहले पहल पड़ी थी तभी मुझे लगा था कि ये फत्तू तो बड़ा आगे जाने वाला है -
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.in/2010/05/blog-post_30.html
अभी तो फत्तू ने समझो कि शुरूआत ही की है.
क्या दिन याद दिला दिया रवि साहब, वो संडे की दुपहरिया थी(हमारे यहाँ), जब अचानक नजर पड़ी थी इस चर्चा पर| क्या दिन याद दिला दिया आपने..:)
हटाएंशुक्रिया सरजी|
संजय बाऊ को बहुत बहुत बधाई ....
जवाब देंहटाएंसंजय जी कों बहुत बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंतो मेरी पसन्द-नापसन्द विद्वजनों की पसन्द-नापसन्द से मेल खा रही है।
इसका मतलब सीरियस पाठकों की श्रेणी में रख सकता हूं खुद को :)
संजय जी को हार्दिक शुभकामनायें और आपको धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें