भैवा
देश की दुर्दशा देख स्वयं तो व्यथा में था ही, मुझे भी दुर्दांत प्रश्नों के चक्रव्यूह
में घेरे था। उनके उत्तर टंकाते टंकाते जब
अंगुलियों की पीर घणी हो गयी तो मैंने उससे पूछा – मोहनदास को जानते हो?
उसने
प्रतिप्रश्न किया - कौन मोहनदास?
मैंने
बताया – नोट छाप।
वह
समझ गया और भड़क भी गया। इससे पहले कि कोई आहत नाजिल टाइप करता, मैंने उसकी ‘टिप टिप
करती टाइपिंग जारी है’ वाली स्थिति के बीच में ही शब्द अड़ा दिये। उसे बताया कि
मोहन बाबू ताबीज देते थे बढ़िया बढ़िया, शब्दों की ताबीज, जैसे दंगे में तुम्हारे
बच्चे को कस्साई ने जिबह कर दिया है तो तुम किसी कसाई के अनाथ बच्चे को गोद ले ऐसे
पालो कि बड़ा हो कर वह सच्चा जिहादी बने।
मैं
भी तुम्हें एक शब्द-ताबीज देता हूँ।
क्या
है वह? –कीपैड पर उसकी क्रोध भरी टकटकाहट को
मैं अनुभव कर पा रहा था। लैपी की स्क्रीन लपलपाने जो लगी थी!
मैंने
डरते हुये एक स्माइली डाली और उधर से ब्लैंक देख साहस कर टंका दिया – तुम गाँव में
रहते हो या नगर में?
‘नगर
में’।
‘कॉलोनी
महल्ले में या अपार्टमेण्ट में?’
‘मुहल्ले
में... जल्दी से अपना टोटका बताओ।’
वह
देशोद्धार की जल्दी में था। मैंने विरमित किया – देखो, भदेस भारत में रहते हो तो
सूअरखाना होगा ही।
वह
भड़क गया और – ~!@#$ करने के पश्चात खटकाया
– इधर सूअर नहीं रहते।
मैंने
समझाया – भाया, विष्ठा कूड़े में रहने वाला हर व्यक्ति वही होता है। तुम्हारे
मुहल्ले न हो, हो ही नहीं सकता। टोटका यह है कि महीने के दूसरे शुक्रवार की साँझ को
गलीबहारू झाड़ू ले आ कर घर में ताला लगा दो। अगले दिन शनिवार को प्रात:काल उस स्थान
से झाड़ू लगाना प्रारम्भ करो जहाँ सूअरों के चिह्न अर्थात कूड़े के ढेर सबसे अधिक
हों। यह काम केवल पट्टे वाली जँघिया पहन के करना वरना काका बहुत पीटेंगे। जब सौ
मीटर जैसा इलाका साफ हो जाय तो घर आ कर हाथ मुँह धो कपड़े पहन सब के यहाँ जाओ, बताओ
और आह्वान करो कि कल पूरा मुहल्ला साफ करना है।
उसने
दाँत अवश्य किटकिटाये होंगे। कँपकँपाहट शब्दों के विन्यास से पता चल रही थी।
‘बन्द
करो बकवास!’
मैंने
कहा, सुन तो लो। तुम्हारी तरह ही बाकी जनता भी घुटन के कब्ज की मारी घर में कुढ़ती
रहती है। घुटन की गन्ध कभी बच्चों तो कभी घरवालों पर निकालती रहती है। जब तुम यह
आह्वान करोगे तो उनमें से कुछ को जब तब हाजत से मुक्ति की राह सूझेगी, वे बाहर
आयेंगे, लुंगी सँभालते, चश्मा पोंछते, खाँसते, थूकते, चाहे जैसे भी।
उस
समय उन्हें इकट्ठा कर अपनी की हुई सफाई दिखा देना। अगले दिन एक दो आ ही जायेंगे।
विश्वास
रखो, हममें से हर कोई घुटन से मुक्ति चाहता है। घुटन की कब्ज न हो तो मस्तिष्क तेज
चलता है, ठीक चलता है। तुम्हें एक से बढ़ कर एक नवोन्मेषी विचार और उपाय बताये जाने
लगेंगे। सफाई तो होगी ही, हो कर कोई मुद्दा ही नहीं रह जायेगी लेकिन जो बड़ी बात
होगी वह यह होगी कि चार लोग साथ साथ नि:स्वार्थ बैठने बतियाने लगेंगे। अपने आप ही
तुम सभी समस्याओं और उनके हल पर ध्यान दे विचार विमर्श करने लगोगे। पचास रुपये की
झाड़ू महीने भर में ही स्थानीय निकाय के ऑफिस तक अन्य समस्यायें ले चलने लगेगी और
तुम्हारे देश का एक बहुत बहुत नन्हा सा मुहल्ला मुक्त होने लगेगा। तुम्हें आगे बस
यह करना होगा कि अपनी सफलता को अन्य मुहल्लों को पहले दिखाना और आगे उन तक
पहुँचाना होगा।
उसने
तीन चार प्रकार के स्माइली और ROFL का सन्देश लगाया। उसके बाद इतराया – यही था तुम्हारा
टोटका? इससे क्या होगा?
मैंने ग़रम मिज़ाज इस्माइली लगा पूछा – घंटे भर से जो यह
बकवास चैट कर हम दोनों का समय खराब कर रहे हो, उससे देश का कल्याण हो रहा है?
वह बमक गया – बता तो ऐसे रहे हो जैसे स्वयं आजमाये हो?
मैंने कहा – इस मामले में मैं मोहनदास से आगे हूँ। जो
स्वयं नहीं आजमाया वह बताता नहीं हूँ। गुड़ चीनी वाले मिथ भी नहीं गढ़ता। करना हो तो
करो या फूटो, बात बहादुरों पर समय देना वृथा है। करोगे तो स्वयं पाओगे कि तुम्हारे
भीतर भी एक सफाई अभियान चल रहा है।
आगे यह काम करने के बाद ही मुझे चैट के लिये छेड़ना
अन्यथा किसी बालानाम धारी छौंड़े से मीठी मीठी बातें कर और सोना मोना टाइप चिंता विमर्श
कर टाइमपास कर लेना।
पार्क सफाई पराक्रम ध्यान आया :)
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