आज उधारी की लंठई :)
इंटरनेट पर उपलब्ध हिन्दी के सर्वोत्कृष्ट स्थलों में कविताकोश एक है। लोकगीतों पर अपनी शृंखला के लिये सामग्री ढूँढ़ते मुझे यह संस्कृत लोकगीत [ ;) वहाँ यही बताया गया है।] दिखा। शास्त्री नित्यगोपाल कटारे की लंठई के हम मुरीद हो गये। आप भी आनन्द लीजिये। मूल गीत यहाँ है।
वैभवं कामये न धनं कामये
केवलं कामिनी दर्शनं कामये
सृष्टि कार्येण तुष्टोस्म्यहं यद्यपि
चापि सौन्दर्य संवर्धनं कामये।
रेलयाने स्थिता उच्च शयनासने
मुक्त केशांगना अस्त व्यस्तासने
शोभिता तत्र सर्वांग आन्दोलिता
अनवरत यान परिचालनं कामये।
सैव मिलिता सड़क परिवहन वाहने
पंक्ति बद्धाः वयं यात्रि संमर्दने
मम समक्षे स्थिता श्रोणि वक्षोन्नता
अप्रयासांग स्पर्शनं कामये।
सैव दृष्टा मया अद्य नद्यास्तटे
सा जलान्निर्गता भाति क्लेदित पटे
दृशयते यादृशा शाटिकालिंगिता
तादृशम् एव आलिंगनं कामये।
एकदा मध्य नगरे स्थिते उपवने
अर्धकेशामपश्यम् लता मण्डपे
आंग्ल शवानेन सह खेलयन्ती तदा
अहमपि श्वानवत् क्रीडनं कामये।
नित्य पश्याम्यहं हाटके परिभ्रमन्
तां लिपिष्टकाधरोष्ठी कटाक्ष चालयन्
अतिमनोहारिणीं मारुति गामिनीम्
अंग प्रत्यंग आघातनं कामये।
स्कूटी यानेन गच्छति स्वकार्यालयं
अस्ति मार्गे वृहद् गत्यवरोधकम्
दृश्यते कूर्दयन् वक्ष पक्षी द्वयं
पथिषु सर्वत्र अवरोधकम् कामये।
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अर्थ पूछ कर खुद को 'बोका' न सिद्ध करें।
श्रम करें। श्रमजनित काव्यानन्द की अनुभूति होगी। स्वस्ति! ;)
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डिस्क्लेमर:
इहलोक, परलोक, द्युलोक, ऊ लोक, ई लोक, लोकालोक आदि; वर्तमान, भूत, भविष्यादि और भी आदि आदि जोड़ते हुये समझ लें - किसी को भी ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से यह 'लोकगीत' प्रस्तुत नहीं किया गया है। किसी भी तरह के स्पष्टीकरण के लिये शास्त्री नित्यगोपाल कटारे से सम्पर्क करें।
चेतावनी:
अगर विवाद की स्थिति आई तो इस पोस्ट को हटा दिया जायेगा। इसलिये शीघ्रातिशीघ्र पारायण कर आनन्द प्राप्ति कर लेवें ;) ब्लॉग लेखक टिप्पणियों का भूखा नहीं है इसलिये वाह, अद्भुत आदि आदि टाइप की टिप्पणियाँ न करें। मौन रसास्वादन करें।
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अगर यह लंठई है तो विद्वता क्या है ?
जवाब देंहटाएंबाकी तो हम अपनी लंगोट ओह सारी टिप्पणी तो कहीं और छोड़ आये ...
जी लाता हूँ तनिक सबुर करें :)
अद्भुत! कितनी प्रांजल और सहज गम्य संस्कृत -हास्य विनोद भाव सभी कुछ समाहित मगर भाषायी गरिमा से ओतप्रोत भी ...वह अभागा ही होगा जिसे यह समझ न आये ....श्रृंगारिकता का तो क्या कहने ? गीत गोविन्द भी फेल:)
विद्वता और लंठई में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है।
हटाएंपुनः पुनः पठनीयं कामये।
जवाब देंहटाएंरेल और श्रंगार पर कोई पुस्तक लिखी तो इसका कविता को निश्चय ही उद्धृत करूँगा।
बड़ी है सहज और संस्कृत कामना।
@ मौन रसास्वादन करें।
जवाब देंहटाएंएक तो लोक-गीत और तुर्रा यह कि संस्कृत में, पढ़ते हुए जीभ वैसे ही टेढ़ी-मेढ़ी हो रही और भावावेश में नजरें धुमिल हुए जा रही। चलो साहब 'बोका' ही सही अर्थ बता दीजिए :)
"अर्थ पूछ कर खुद को 'बोका' न सिद्ध करें। "
जवाब देंहटाएंयह पढ़कर ऐसा लगा कि किसी पुणेकर (पुणे वासी) का ब्लाग पढ रहा हूं। पुणे प्रसिद्ध है ऐसी चेतावनीयों के लिये!
shringar ras ka rasaswadan to sanskrit main hi hai.hindi main likhen to tarah tarah ke aakshep,tippani aur wakra drishti ka saamna karna padta hai. iske aage ab maun hoon.
जवाब देंहटाएंHam Gaon ke gawar hi theek hai ....
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
लोक भाषा संस्कृत.
जवाब देंहटाएंविद्वान ही लंठ हो सकता है इसका उदाहरण है यह रचना.. भाषा इतनी सहज और हास्य इतना प्रगाढ़... अद्भुत!! यदि गौतम बुद्धत्व प्राप्त कर सकते हैं तो किसी साहित्यकार के लिए यह लंठत्व प्राप्ति की स्थिति है!!
जवाब देंहटाएंबरियार लंठई! कविता-कोश से भी ढूँढ़ लायें!
जवाब देंहटाएंकहाँ बिलाये हैं आप? सुज्ञ जी के अनुरोध पर इस काव्य का ललितानुवाद करने के लिये आप को ढूँढ़ा लेकिन आप मिले ही नहीं!
हटाएंहिन्दी छन्दानुवाद कर दीजिये न!
ग़दर! :)
जवाब देंहटाएंमौन रसास्वाद
जवाब देंहटाएं:)
एक लघु कथा अथवा कहानी लिखी थी आपने , उसका संस्कृत रूपांतरण लग
जवाब देंहटाएंहै .
बोका मतलब क्या होता है :):)
अरे नहीं, उस लघु कथा का इससे सम्बन्ध नहीं। 'बोका' मानसिक रूप से मन्द व्यक्ति को कहते हैं। इसका चलन बंगाल से लेकर उत्तरप्रदेश के पूर्वी क्षेत्र तक है।
हटाएंराजस्थान गुजरात की तरफ आते आते यह शब्द 'बोगा' बन गया है.
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