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पुरानी बोधकथाएँ:
(1) एक ज़ेन कथा
(2) एक देहाती बोध कथा
(3) एक ठो कुत्ता रहा
(4) गेट
'U adore someone; U marry someone else. The one u marry becomes ur wife or husband And the one u adored sometimes becomes the password of ur email id!' | प्यार किसी से और शादी किसी और से। जिससे शादी वह पति या पत्नी। जिससे कभी प्यार किया था, वह ई मेल का पासवर्ड। |
There's only one perfect child in the world & every mother has it. There's only one perfect wife in the world & every neighbour has it. | संसार में एक ही परफेक्ट बच्चा होता है और वह हर माँ के पास होता है। परफेक्ट पत्नी भी एक ही होती है जो हर पड़ोसी के पास होती है। |
Husband & wife are like liver and kidney. Husband is the liver & wife the kidney. If the liver fails, the kidney fails. If the kidney fails, the liver manages with other kidney. | पति-पत्नी - लीवर और किडनी जैसे होते हैं। पति - लीवर और पत्नी - किडनी। अगर लीवर फेल होता है तो किडनी फेल हो जाती है। अगर किडनी फेल होती है तो लीवर दूसरी किडनी से काम चला लेता है। |
Generation Next Motto: Na hum shaadi karenge, na apne bachchon ko karne denge. | अगली पीढ़ी का आदर्श वाक्य: न हम शादी करेंगे और न अपने बच्चों को करने देंगे। |
What's the diff between Dava & Daru? Dava is like a girlfriend, that comes with an expiry date and Daru is like a wife, Jitni purani hogi utna sir chad ke bolegi. | दवा और दारू में क्या अंतर है? दवा गर्लफ्रेंड की तरह होती है जिसकी एक 'एक्सपायरी डेट' होती है। दारू पत्नी की तरह होती है, जितनी पुरानी होगी उतना सिर चढ़ कर बोलेगी। |
The Japanese have allegedly produced a camera that has such a fast shutter speed, it can take a picture of a woman with her mouth shut! | सुनने में आया है कि जापानियों ने एक इतनी फास्ट शटर स्पीड वाला कैमरा बनाया है कि उससे किसी औरत का फोटो तब लिया जा सकता है जब उसका मुँह बन्द हो। |
Three dreams of a man: To be as handsome as his mother thinks. To be as rich as his child believes. To have as many women as his wife suspects... | पुरुष के तीन स्वप्न: उतना हैंडसम होना जितना उसकी माँ सोचती है। उतना धनी होना जितना उसका बच्चा समझता है। उतनी औरतों से सम्बन्ध होना जितना उसकी पत्नी शक करती है ... |
पुरानी कड़ियाँ केंकड़ा : लंठ महाचर्चा, · हवा, बड़ा और लेंठड़ा -1: लण्ठ महाचर्चा, · लेंठड़े का भोर का सपना : लण्ठ महाचर्चा, · लंठ महाचर्चा: अलविदा शब्द, साहित्य और ब्लॉगरी तुम ..., · दूसरा भाग: अलविदा शब्द, साहित्य और ब्लॉगरी तुम से ..., · तीसरा भाग पूर्वार्द्ध : अलविदा शब्द, साहित्य और ब्... ,· तीसरा भाग ,उत्तरार्द्ध: अलविदा शब्द, साहित्य और ब्......पुस्तकालय के बाहर मज़मा लगा कर वैज्ञानिक को अपना लेक्चर पिलाते पिलाते लेंठड़ा सो गया। जब जागा तो क्या हुआ? |
सुतक्कड़ लेंठड़ा बड़ी लंबी निद्रा से जागा। इसे शीतस्वापन ना सही, ग्रीष्मस्वापन समझ लीजिए। मानव के अंतिम अभीष्ट की खोजपूर्ण यात्रा तो एक तिलस्मी यात्रा निकली। लेकिन इस विचित्र केंकड़े का स्वभाव उसे अपने ही सामने निरीह बना देता है। खुली हवा का आस्वाद ले लिया, तो फिर बर्तन में क्यों जाए? शब्द और साहित्य, विज्ञान और गणित के पन्ने तो उलटे जा चुके थे। लेकिन अब भी मानव सभ्यता के कई ऐसे पन्ने थे जो उलटे जाने थे! यहीं, इसी पुस्तकालय से यात्रा दुबारा प्रारंभ करनी था। हो भी क्यों ना! सच नहीं कि यहीं मानव अपनी मेधा को निखारने-संवारने का काम करता है?
...सर्वज्ञानी होते हुए भी उसे उत्कंठा सी होने लगी इतने महीनों में जाने क्या-क्या हो गया होगा इस नश्वर धरती पर! जाने कहां से मिलेंगे गुज़रे ज़माने की ख़बर, आनेवाली तारीख़ का पता, आज का ताज़ा समाचार। समाचार! सबकी ख़बर लेनी होगी। केंकड़ा बस्ती का आख़िर क्या हाल है? उस प्रेम-पत्र का हश्र क्या हुआ, जाने अवतार पूर्ण हुआ या नहीं? ...
...पुस्तकालय में गहरा सन्नाटा था। पुस्तकों के पन्ने पलटते तो किसी की उपस्थिति का आभास होता। लेकिन कोने में बैठा एक मनुष्य परेशान-सा दिखा। बार-बार अपने मोबाइल को बाहर निकालता, जैसे किसी अत्यंत आवश्यक संदेश की प्रतीक्षा में हो। टांग अड़ाने की आदत से लाचार लेंठड़ा आख़िर उस मनुष्य के पास जा ही धमका। "चिंतित हो भाई? मैं सहायता कर सकता हूं क्या?"
मनुष्य ने लेंठड़े को ऐसी हिकारत भरी निगाहों से देखा कि लेंठड़ा बिचारा अपने ही पंजों में सिमट गया। "सहायता? कहो तो मैं तुम्हारी कुछ मदद करूं। आख़िर हो किस खेत की मूली तुम?" लेंठड़ा सोचता रहा, गुज़रे महीनों में वाकई मानव सभ्यता बहुत बदल गई है शायद। कहां तो सत्य के दर्शन कराता वैज्ञानिक, कहां शब्दों के संसार सजाता साहित्यकार, कहां निराकार और अमूर्त की बात करनेवाला गणितज्ञ! ये कैसा अहंकारी मानव है रे!
"अच्छा, तो तुम्हीं वो केंकड़े हो जो यहां-वहां कोने में घुसकर ज्ञान बघार रहा है। तुम्हें ढूंढने ही तो भेजा गया है मुझे। पत्रकार हूं मैं लेंठड़ा बाबा, और आज के दिन आप हमारे चैनल पर विशिष्ट अतिथि होंगे।" अचानक पत्रकार की बोली में शहद कैसे घुल गया? 'तुम' से 'आप' पर उतरने में तनिक भी देर नहीं लगी!
लेंठड़ा घबराकर दो कदम पीछे हटा ही था कि पत्रकार ने सीधे उसपर हमला कर दिया, उसके पंजों की परवाह किए बगैर! एक हाथ में कसमसाता लेंठड़ा और दूसरे में मोबाइल फोन। "मिल गया बॉस वो ज्ञानी लेंठड़ा। हां, हां। ब्रेकिंग न्यूज़ चला दीजिए अभी के अभी। आज प्राइमटाइम में हम अपने चैनल पर इंट्रॉड्यूस करेंगे इसे। हां, प्रोमो भी चलवा दीजिएगा सर।"
बर्तन से निकलकर दुनिया देखने के लिए केंकड़ा निकल भागा था लेंठड़ा, पर आज उसे वापस बर्तन में डाल दिया गया। पूरी दुनिया को दिखाने के लिए। कैसी विडंबना है! शुक्र है कि बर्तन शीशे का था। चिकना सही, लेकिन लेंठड़े को वहां से बाहर की दुनिया तो दिखाई देती थी!
लेंठड़े को न्यूज़रूम पहुंचा दिया गया। राजनीति के खेल, खेल की राजनीति, पर्दे के पीछे का सच, सच पर डाला गया पर्दा... न्यूज़ रूम के ठीक बीचों-बीच कांच की मोटी तह के पीछे संपादक बैठा था। कांच के आर-पार सब दिखता था, मोटी चमड़ी के आर-पार शायद ही कुछ गुज़रता हो। इस कमरे में मौजूद हर बंदे की सांसों पर हर हफ्ते आनेवाली टीआरपी (टेलीविज़न रेटिंग प्वाइंट) का पहरा था। टीआरपी ऊपर, सांसों की जुंबिश में राहत। टीआरपी नीचे तो सांस चलना-ना चलना बराबर। किसी ने कहा कि यही टीआरपी चैनल पर विज्ञापन लेकर आती है, विज्ञापन माने महीने के आख़िर में चैनल के मुलाज़िमों की जेब में तनख़्वाह।
न्यूज़रूम में कोने-कोने से ख़बरें ही ख़बरें बीम हो रही थीं। कितने तो टीवी स्क्रीन थे। छप्पन के बाद गिनना छोड़ दिया था उसने। देश-विदेश के चैनलों से प्रेरणा ली जा रही थी - देसी चैनलों से ब्रेकिंग न्यूज़ की। विदेशी चैनलों से सेट डिज़ाईन, प्रोडक्शन, प्रोमो और कई बार तो पूरे के पूरे कॉन्सेप्ट की। वैसे टीआरपी के लिहाज़ से जो चैनल नंबर वन है, वही प्रेरणा-स्रोत है फिलहाल।
चैनल पर कोई बड़ी ख़बर चल रही थी। सुर्ख़ लाल रंग से लिखा हुआ ब्रेकिंग न्यूज़। अरे! ये तो ओसामा के मरने की ख़बर है। चैनल के पास पुख़्ता ख़बर है - "ओसामा मारा गया"। साढ़े तीन मिनट तक लेंठड़ा ये तीन शब्द स्क्रीन पर आते-जाते देखता रहा। अंतरराष्ट्रीय अहमियत वाली इस ख़बर के बारे में वो और जानना ही चाहता था कि अगला ग्राफिक्स आया - "ओसामा मारा गया। हाथी ओसामा मारा गया।" जब युधिष्ठिर ने कुरुक्षेत्र में जीतने के लिए झूठ का सहारा लिया तो टीआरपी के इस रणक्षेत्र में चैनलों ने झूठा-सा सच बोलकर क्या गुनाह कर डाला? टीआरपी की इस जंग में सब जायज़ है।
जंग के सिपाहसलार अपने-अपने मोर्चे पर तैनात दिखे। रिपोर्टर ख़बरें जुटाने में, लेकिन उससे ज्यादा तीस सेकेंड का एयरटाईम जुटाने में। ख़बर जितनी बड़ी एयरटाइम उतना बड़ा। फील्ड में जाकर रिपोर्टिंग करने से अच्छा है छत पर से खड़े होकर एयरटाइम हासिल करना। उसे न्यूज़रूम तक पहुंचाने वाला पत्रकार भी लेंठड़ा बाबा से रूबरू होने के अपने अनुभव पूरे देश से बांटने के लिए छत पर आउटसाइड ब्रॉडकास्टिंग के लिए तैनात था।
लेंठड़ा के बारे में किसिम-किसिम की बातें न्यूज़रूम के आउटपुट डेस्क पर रची जा रही थीं। उपमा में माहिर आउटपुट एडिटर ने इन्फोर्मेशन सुपर लिखा - लालबुझक्कड़ लेंठड़ा हमारे स्टूडियो में। अतिशयोक्ति के दिग्गज एडिटर ने लिखा - "पाताल से ढूंढ लाए आपके लिए ख़ास, पॉल ऑक्टोपस का हिंदुस्तानी जवाब। केंकड़ा जो प्रवचन देता है, गणित, विज्ञान, साहित्य पढ़ाता है!" अनुप्रास एडिटर ने तो लेंठड़े को नया नाम दे डाला और लिखा - क्रैपी क्रैब के क्या कहने।
कोने में बैठी सुंदर कन्या को तो लेंठड़ा पहचानता था। इस बर्तन से निकलने में शायद वोही मदद करे! केंकड़ा बस्ती के पब्लिक टीवी पर इसके आते ही कितनी बार सीटी-ताली मारते केंकड़ों को झिड़का उसने। लेकिन यहां तो इनके और ही नखरे थे। आउटपुट एडिटर इनको कुछ लिख-लिखकर दे रहे थे और ये बांचने की तैयारी कर रही थीं। "प्रतिशोध? आई डोन्ट लाइक दैट वर्ड। "बदला" में बदलें इसको? इज़ी रहेगा। और ये टंगट्विस्टर क्या है? बरलहाल? बहरबाल? बहरहाल? ओह प्लीज़। लेट्स कीप इट सिंपल। हम यहां लिंग्विस्टिक्स एक्रैबैटिक्स के लिए नहीं आए हैं सर।" "अंग्रेज़ी बोले तो टंगट्विस्टर नहीं। हिंदी में सब कठिन?"
पीसीआर में एक प्रोड्यूसर लगातार फोन ...आउटपुट एडिटर से बात। "गेट दैट स्पेलिंग करेक्ट सर जी। पैरिस है, पेरिस नहीं।" ..."हिंदी में पेरिस ही लिखते हैं।" "नॉनसेन्स। पी-ए-आर-आई-एस। क्या हुआ - पैरिस? पेरिस के लिए अंग्रेज़ी पी-ई-आर-आई-एस होती ना?" आउटपुट एडिटर के भीतर का साहित्यकार - रूदन। झल्लाहट में फोन बंद!
लेंठड़ा का मन ज़ार-ज़ार रो उठा। कहाँ तो लेंठड़ा ज्ञानवर्द्धन के लिए यहाँ पहुंचा था, कहाँ और दिग्भ्रमित हो गया। ये कैसी विचित्र दुनिया है! कहाँ तो गणितज्ञ को प्रवचन दिया था, कहाँ यहाँ प्रहसन का पात्र बना बैठा! क्रैपी क्रैब के साथ स्पेशल बुलेटिन की तैयारी करते संपादक का तो कुछ और ही इरादा था। "क्रैपी क्रैब बिहार विधानसभा के नतीजों की भविष्यवाणी करेगा। आईपीएल, बीपीएल, आरपीएल, सबके नतीजे पहले से बताएगा। हमारी टीआरपी को सबसे ऊपर आने से कोई ऑक्टोपस नहीं रोक सकता अब।"
स्टूडियो तैयार था, एंकर भी। ब्रेकिंग न्यूज़ चल पड़ा था। क्रैपी क्रैब को लाइट और कैमरे के ठीक बीचों-बीच छोड़ दिया गया। शीशे के बर्तन से निकलने की नाकाम कोशिश करते-करते लेंठड़ा अपनी नियति के आगे हार मान चुका था। टॉप एंगल शॉट। लेंठड़े को स्टूडियो की टेबल पर डाल दिया गया है। पूरी मेज़ पर रंग-बिरंगे चार्ट और ग्राफ है। जिधर रेंग कर गया लेंठड़ा, उधर का समझो भारी पलड़ा। समझ में आई बात?
पुनश्च - यदि आपका अपना प्रिय लेंठड़ा कुछ दिनों तक ना लौटे तो उसे काम के बोझ का मारा समझ लीजिएगा। टीवी पर आकर क्रैपी क्रैब बन जाना, भविष्यवाणियां करना अब कोई बच्चों का खेल तो है नहीं...
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लेखिका: अनु सिंह चौधरी, ब्लॉग : मैं घुमंतू