मछलियाँ - सम्भवत: एकमात्र जीव जिनके सान्निध्य में समूचे विश्व में मानव समाज की एक जाति ही बन गई - मछुआरे। दूर देश की यात्राओं में नदियों की भूमिका ने मछुआरों मल्लाहों को गरिमा दी। विश्व सभ्यता, इतिहास और साहित्य के विकास में मछलियों और मछुआरों का बड़ा योगदान रहा है।
आज के दौर में भी करीब रोज ही मन में आ ये पंक्तियाँ उसे जाने कैसा कर जाती हैं:
"एक बार फिर जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बन्धन की चाह हो !"
और फिर बर्मन दा का "ओ रे माझी... मेरे साजन हैं उस पार ..”
आज के दौर में भी करीब रोज ही मन में आ ये पंक्तियाँ उसे जाने कैसा कर जाती हैं:
"एक बार फिर जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बन्धन की चाह हो !"
और फिर बर्मन दा का "ओ रे माझी... मेरे साजन हैं उस पार ..”
... भारतीय सन्दर्भ देखें तो वर्ण और जाति व्यवस्था पर बड़ी रोचक बातें नज़र आती हैं। मत्स्यगन्धा धीवर कन्या के साथ नाव में पराशर का संयोग और जन्म कृष्ण काया, द्वीप के निवासी द्वैपायन का जो व्यास बना। ऋचाओं को संहिताबद्ध किया, अथर्वण परम्परा को त्रयी परम्परा में स्थान दिलाया और रच गया वह महाकाव्य जैसा फिर नहीं रचा जा सका - महाभारत।
... ब्राह्मण पिता और मछुआरिन माता के संयोग का सुफल द्वैपायन कुरुओं और भरतों की गर्वीली क्षत्रिय परम्परा के लिए नियोग द्वारा संतति देता है - पांडु और धृतराष्ट्र। अपने समय का सर्वश्रेष्ठ ऋषि बनता है - मछुआरिन का बेटा।
... ब्राह्मण पिता और मछुआरिन माता के संयोग का सुफल द्वैपायन कुरुओं और भरतों की गर्वीली क्षत्रिय परम्परा के लिए नियोग द्वारा संतति देता है - पांडु और धृतराष्ट्र। अपने समय का सर्वश्रेष्ठ ऋषि बनता है - मछुआरिन का बेटा।
कहाँ हो जाति और वर्ण शुद्धता के धुरन्धरों !
.. आज कृषि की वैश्य परम्परा अपनाए ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार ... सब एक जाति हो गए हैं - खेतिहर।
मिल गए हैं कोइरी, कुर्मी, आभीर परम्परा से - बन गए हैं किसान।
एक दु:ख दर्द, एक खुशी, कमोबेश एक सा जीवन .. लेकिन
.. आज कृषि की वैश्य परम्परा अपनाए ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार ... सब एक जाति हो गए हैं - खेतिहर।
मिल गए हैं कोइरी, कुर्मी, आभीर परम्परा से - बन गए हैं किसान।
एक दु:ख दर्द, एक खुशी, कमोबेश एक सा जीवन .. लेकिन
3,13 की माला जपते हैं पंडित मार्तण्ड शुक्ल 'शास्त्री' ; सूर्य और चन्द्र से नाता जोड़ते हैं ठाकुर जनार्दन सिंह; कृष्ण भगवान के डी एन ए खोजते रहते हैं कन्हैया सिंह यादव और वृषल चन्द्रगुप्त की जन्मपत्री लिए घूमते हैं ज्वाला प्रताप मौर्य...
धन्य भारत भू ! जय हो !!
... बंगाली लोग कहते हैं मछली खाने से दिमाग तेज होता है। उपर की बातें बड़के भैया के निमंत्रण पर उत्तर प्रदेश मीन महोत्सव में खाई गई मछली से उपजी दिमागी तेजी से आई हैं। हमार कउनो कसूर नाहीं । ... हम तो बंगाली दादाओं की बात के कायल हो गए हैं लेकिन दाल में सुम्हा मछली पका कर तो नहिंए खा पाएँगे।
कल डा. अरविन्द मिश्र जी के निमंत्रण पर मोतीमहल लॉन, लखनऊ में आयोजित मीन महोत्सव में मैं सपरिवार गया था। भव्यता, विविधता और व्यवसायिकता देख कर हम लोग दंग रह गए। माया मैम की लाठी का असर हो या साल में एक बार ही सही, जग जाने की परम्परा का पालन हो, लग गया कि राज्य सरकार के अधिकारियों में दम है। ये बात और है कि वहाँ से लौटने के बाद घटित दुर्घटना ने उन्हें गरियाने का मौका दे ही दिया और एक बार फिर मैं अपने पूर्वग्रह के किले में बन्द हो गया – ये सब बस वैसे ही हैं।
धन्य भारत भू ! जय हो !!
... बंगाली लोग कहते हैं मछली खाने से दिमाग तेज होता है। उपर की बातें बड़के भैया के निमंत्रण पर उत्तर प्रदेश मीन महोत्सव में खाई गई मछली से उपजी दिमागी तेजी से आई हैं। हमार कउनो कसूर नाहीं । ... हम तो बंगाली दादाओं की बात के कायल हो गए हैं लेकिन दाल में सुम्हा मछली पका कर तो नहिंए खा पाएँगे।
कल डा. अरविन्द मिश्र जी के निमंत्रण पर मोतीमहल लॉन, लखनऊ में आयोजित मीन महोत्सव में मैं सपरिवार गया था। भव्यता, विविधता और व्यवसायिकता देख कर हम लोग दंग रह गए। माया मैम की लाठी का असर हो या साल में एक बार ही सही, जग जाने की परम्परा का पालन हो, लग गया कि राज्य सरकार के अधिकारियों में दम है। ये बात और है कि वहाँ से लौटने के बाद घटित दुर्घटना ने उन्हें गरियाने का मौका दे ही दिया और एक बार फिर मैं अपने पूर्वग्रह के किले में बन्द हो गया – ये सब बस वैसे ही हैं।
- बस 'जोर लगा के हंइसो हंइसो' कहते रहते हैं जब कि असल में अपने दम को स्वयं और आका के दमदमी टकसाल में सिक्के जमा करने के लिए बचा रखते हैं।
पूर्वांश की अनुभूति बड़के भैया को मंच संचालन करते देख कर हुई। उत्तरांश की अनुभूति उस समय हुई जब हम फिश फ्राई और कबाब भकोस रहे थे। (दाईं ओर के चित्र को देखिए, भैया भी खड़े हैं। न, न... शाकाहारी हैं - कुछ ऐसा वैसा न सोच लीजिएगा। मंच छोड़ कर बीच बीच में यह देखने आ रहे थे कि हम लोग ठीक से काँटा निकाल कर खा रहे हैं कि नहीं ? :)
एक सज्जन टाई धारी ऑफिसर खुलेआम किसी ठीके की बावत दो लाख रुपयों की माँग एहसान जताते कर रहे थे।
मोबाइल पर दूसरी तरफ से क्या कहा जा रहा था, यह तो नहीं पता लेकिन जब उन्हों ने किसी मंत्री जी की बात कर आवाज धीमी की और पेंड़ के नीचे चले गए तो हलाल होते जाने कितनी जानों का खयाल कर मैं बाल्मीकि हो गया और उतर आया उत्तर अंश अनुष्टप।
.. तो आयोजन भव्य था। तरह तरह के स्टाल और शामियाने लगे थे। कृत्रिम लघु झरने, भाँति भाँति के अक़्वेरियम, मछलियों और झिंगों के संरक्षित शरीर, ग्लास, स्फटिक के बने हुए मत्स्य मॉडल, फिश फार्मिंग की जानकारी देते सरकारी और प्राइवेट स्टाल, मछली पालन के विविध आयामों की जानकारी देती हुई संगोष्ठी जिसमें इतर राज्यों से आए वैज्ञानिक भी थे और लखनऊ के आस पास से आए तमाम किसान, मछुआरे भी...पंडालों और तम्बुओं की भव्यता वी आइ पी विवाह सी छटा बिखेर रही थी।
दूर बैठे लोगों को वैज्ञानिकों द्वारा बताई जा रही काम की बातें दिखाई सुनाई दें, इसके लिए दो बड़े आकार के एल सी डी मॉनिटर तक लगे हुए थे मय ध्वनि विस्तारण यंत्र। राज्य सरकार की तरफ से लोगों को फिश फ्राई, फिश कबाब और अस्थिविहीन मत्स्य व्यंजनों का सुस्वादन कराने के लिए स्टाल भी लगा था जिसमें ताजा माल बनते हुए, देखते हुए आप रसास्वादन कर सकते थे।.. तो आयोजन भव्य था। तरह तरह के स्टाल और शामियाने लगे थे। कृत्रिम लघु झरने, भाँति भाँति के अक़्वेरियम, मछलियों और झिंगों के संरक्षित शरीर, ग्लास, स्फटिक के बने हुए मत्स्य मॉडल, फिश फार्मिंग की जानकारी देते सरकारी और प्राइवेट स्टाल, मछली पालन के विविध आयामों की जानकारी देती हुई संगोष्ठी जिसमें इतर राज्यों से आए वैज्ञानिक भी थे और लखनऊ के आस पास से आए तमाम किसान, मछुआरे भी...पंडालों और तम्बुओं की भव्यता वी आइ पी विवाह सी छटा बिखेर रही थी।
ब्लड प्रेशर नापने और मधुमेह की घरेलू मॉनिटरिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक यन्त्र बेंचती फर्म थी तो यूरोपियन स्टाइल की बंशी का प्रदर्शन करते गँवई उद्यमी भी थे। ओझवा को बताना है कि हमरे उसके ऊ पी में यह सब मिलता है। हैट लगा कर केवल फोटो न खिंचवाए बल्कि बलिया की गंगा किनारे बैठ थोड़ी मछली भी मार लिया करे। बहुत हुईं ये गणित और इंवेस्टमेंट बैंकिंग की बातें !
.. खेतिहर लोग अब मछुआरे बन रहे हैं। एक और खामोश क्रांति ? बाभन, ठाकुर, अहिर, चमार ...में मछुआपन भी जुड़ रहा है। .. मूँछ पर ताव देते ठाकुर साहब 5 किलो का रोहू उपजाए हैं। .. सामाजिक तनुता के बढ़ने की प्रक्रिया बहौत धीमी होती है।
हरे देसी टमाटर और आलुका के क्या कहने !
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अब आप जरा नीचे के इन फोटुओं को भी देख लें।
(1) | (2) | (3) |
(4) | (5) | (1) मेरे सुपुत्र महोत्सव स्थल पर (2) प्रदर्शनी में दिखाया गया दीवार पर लगाया जा सकने वाला एक झरना (3) इस जाल को आप ने चँवर खेतों में लगा देखा होगा! (4) झींगे ही झींगे (5) बाप रे ! इतनी बड़ी मछली ! |
कठपुतली नृत्य का भी आयोजन था लेकिन उसे छोड़ हम लोग वापस आ गए। कुछ अतिथि आने वाले थे। सम्भवत: किसी ईश्वर ने मेरे लिए यह देखना तय कर रखा था कि गड्ढे में भैंस कैसे गिरती है और तब आपदा से निपटने को मज़दूरों की तरफ से कैसे नेतृत्व सामने आता है !
मीन महोत्सव में प्रदर्शित बहुत सी वस्तुएँ हम गरीबों की जेब से बाहर थीं लेकिन एक छोटा फिश पॉट और चार छोटी गोल्ड फिश हमलोग खरीद लाए। कोई आवश्यक नहीं कि बड़ी खुशियों के लिए बड़े और महँगे आधार ही हों ...छोटी छोटी खुशियों को सहेजती ज़िन्दगी गुनगुनी हो जाती है - आज की खिली धूप की तरह।
मछलियों को अक़्वेरियम के पानी से एकदम घर के पानी में नहीं डाला जाता। तापमान के अंतर से मिनटों में वे मर जाती हैं। विधि यह है कि घर का पानी फिश पॉट में भर कर मछलियों को मय पुराने पानी और पॉलीथीन पॉट में रख दें। दो घंटों में धीरे धीरे जब दोनों ओर का तापमान समान हो जाता है तो मछलियाँ भी अनुकूल हो जाती हैं। फिर पॉलीथीन को निकाल कर उन्हें फिश पॉट में डाल दीजिए। देखिए कैसे तैर रही हैं !
हाँ, हम फिश फ्राई खाते हैं और मछली पालते भी हैं - घर के सदस्य की तरह। दोनों में अंतर है।
.. सोच रहा हूँ कि मन के भावुक अक़्वेरियम से अपने को निकाल कर इस दुनिया की धार में छोड़ दूँ तो तापमान के अंतर से कहीं मेरा वह सब कुछ मर तो नहीं जाएगा जिसकी बदौलत मैं इतना खुश रहता हूँ ?