शनिवार, 9 जून 2012

सबसे प्रिय ब्लॉग पुरस्कार -1 : चन्द्रहार के मोती


गत 7 जून को अट्ठारह दिनोंकी वह समय सीमा समाप्त हो गई जिसके दौरान आप सब से अपने प्रिय और अप्रिय तीन तीन ब्लॉगों के नाम कारण सहित बताने को कहा गया था। जिन जनों ने अपने मत व्यक्त किये उनका आभार। धन्यवाद।

कारणों को पढ़ना बहुत ही समृद्धकारी अनुभव रहा। फेसबुक और ट्विटर जैसे त्वरित साधनों के होते हुये भी, पुस्तकों के होते हुये भी ब्लॉग लिखने वाले और उन्हें पढ़ने वाले विविध जीवंतता बनाये हुये हैं। ‘सार्वजनिक व्यक्तिगत’ को समेटे अलग तरह का ब्लॉग प्लेटफॉर्म अपने आप में एक संसार है।

उन सबको एक बार पुन: धन्यवाद जिन्हों ने कारण बताये और क्या खूब बताये!

उस दौरान फेसबुक, गुगल प्लस, ब्लॉग लेख, इंडीब्लॉगर, ई मेल और चैट आदि का उपयोग इस आयोजन को प्रचारित करने के लिये किया।

अब कुछ जिज्ञासाओं पर अपनी बात कहूँगा।

एक प्रश्न आया था – हिन्दी ब्लॉगरी की छिछली कीच वाली प्रवृत्ति आप में भी? स्पष्टत: संकेत पुरस्कारी आयोजनों की ओर था।

ब्लॉगजगत में सक्रियता के गत तीन चार वर्षों में मैंने बहुत कुछ सीखा है। आप को विश्वास नहीं होगा कि कुछ ब्लॉग लेखों को पढ़ कर दिनों तक मन ही मन सराहता रहा हूँ – ये हुई न बात! कई बार तो इतना प्रभावित हुआ कि आलेखों या कविताओं को अपने ब्लॉग पर शेयर कर दिया – कभी भूमिका के साथ, कभी वैसे ही। क्यों किया?
इसे अनुनाद कहते हैं। जब आवृत्तियाँ मिल जाती हैं तो झंकार की पराश बढ़ जाना स्वाभाविक है। बढ़ी हुई पराश आप को उन अनजान आत्माओं से जोड़ती है जो आप की ही तरह हैं।
साझा करना संतृप्त करता है। ‘व्यक्ति’ को विस्तार दे ‘समष्टि’ से जोड़ता है। इससे हमें सुख मिलता है। यह हमारे शिव को शव होने से बचाता है। बहुत बार सोचा कि ऐसा कौन सा ब्लॉग होगा जिसकी पराश ऐसी होगी कि ढेर सारे विविध क्षेत्रों के लोग उससे जुड़ते हों? कैसे पता चले? यह बहुत ही सरल और ईमानदार उत्कंठा थी। यह भी मन में आया कि ऐसे कई होंगे जो अनजान ही रह गये/जाते होंगे।
मैंने यह भी पाया कि संख्या बहुत कम होने के कारण बातें ब्लॉग से ब्लॉगर और उसके बाद उसकी दुर्बलताओं तक कुछ अधिक ही लपकती थीं। व्यक्तिगत घर्षणों के परिणाम सृजन न हो ध्वंस होते थे – कई गम्भीर और गुणवत्ता वाले ब्लॉगों पर लेखन कम होने लगा। कुछ पर तो बन्द ही हो गया।
अन्धकार अधिक लगने लगे तो दिया जला बाहर आना और लोगों को जोड़ना भी एक विकल्प होता है। फंतासी विधान वाली लेंठड़ा शृंखला यही थी। मेरी सोच यह थी कि चन्द अच्छे लोगों के जुड़ने से कुछ ऐसा निकल कर आ सकता है जो एक ऊँची छलांग साबित हो!

ऐसा कुछ न हुआ और मैं असंतुष्ट रहा। बहुत सी सीमायें थीं। सबसे बड़ी सीमा यह कि सुकून से चन्द अक्षर यहाँ भी नहीं लिखने देते, चाहते क्या हो? मैं एकला चलने की सोचने लगा। लेखन भी चलता रहा लेकिन खुजली गई नहीं।

एक ऐसे ब्लॉगर हैं जिनके साथ बहुत खुला हुआ हूँ। उनसे चैट पर चुटीली बातों के दौरान ही अकेले नि:स्वार्थ कुछ सार्थक करने के उद्देश्य से ‘अर्गलाओं के चन्दहार’ शृंखला प्रस्तुत करने का निर्णय लिया लेकिन इसके लिये चुनाव का आधार क्या हो? केवल व्यक्तिगत प्रियता या कुछ और? मैं स्वयं से उलझता रहा।
अंतत: तय किया कि लोगों से अभिमत लिये जायँ कि उनके प्रिय ब्लॉग कौन से हैं? उपयुक्त अवसर भी दिख गया। मैंने सबसे प्रिय ब्लॉग पुरस्कार की चुटीली घोषणा कर डाली। कतिपय लोगों ने समसामयिक समाचार संकेत देती हल्की फुल्की लिखाई के कारण मेरे आयोजन को प्रतिक्रिया समझा लेकिन बहुतों ने तो सदाशयता को समझ ही लिया। परिणामत: बहुत ही उत्साहवर्धक ढंग से लोगों ने अपने मत व्यक्त किये। ब्लॉग पर मैंने उन्हें कुछ कम जाने जाते लेकिन गुणी ब्लॉगों के लिंक भी बताये ताकि उनका निर्णय क्षेत्र बढ़े।  
मैं उनकी सराहना करता हूँ। मेरी मान्यता यह है कि प्रकृति खाली स्थान या निर्वात को पसन्द नहीं करती। अगर अच्छे लोग उन्हें नहीं भरेंगे तो कूड़ा कचरा भरेगा। छिछली कीच के विरुद्ध है यह आयोजन जो बिना सम्मिलित हुये नहीं हो सकता। पग तो उठाने ही पड़ेंगे!

एक प्रश्न था ऋणात्मक मार्किंग क्यों? 
      
मैं आप के भीतर बैठे शिव पर विश्वास करता हूँ। सामान्यत: बुरा सोचना सबसे आसान होता है, कहना उससे कठिन, लिखना और कठिन और किसी को साक्ष्य रूप लिख कर दे देना महाकठिन। मेरा मानना यह था कि जब तक किसी को कोई ब्लॉग एकदम अवांछित नहीं लगेगा तब तक वह उसे ऋणात्मक प्रविष्टि नहीं देगा। यही कारण था कि ऋणात्मक मत को दुगुना वजन दिया गया।
लोगों ने मेरे इस विश्वास को पुख्ता किया। जिसे ऋणात्मक कहा है उसके लिये पुष्ट कारण भी गिनाये हैं। यह भी कि ऋणात्मक मतों की संख्या कम रही है हालाँकि पाने वालों की संख्या कम नहीं है। बड़ी बात यह है कि पढ़ने वालों में नैराश्य की मात्रा उतनी नहीं है जितनी ब्लॉग जगत लेख और टिप्पणियों में प्रक्षेपित करता रहता है।  
ऋणात्मक अंकों से संतुलन भी आया और यह समझ भी मिली कि जनदृष्टि में किसी ब्लॉग में अवांछित क्या क्या हो सकता है।

अपनी पसन्द के ब्लॉग को ही नापसन्द करने का विकल्प क्यों?

ऐसा उन परफेक्शनिस्टों के लिये किया गया जो हिन्दी ब्लॉगों को पढ़ते तो हैं लेकिन मानते हैं कि अभी ‘वो बात’ नहीं आ पाई। लिहाजा जिसे पसन्द करते हैं, उससे बहुत आशायें रखते हैं और उसकी खामियों को इतनी खुन्नुस के साथ सँभाल कर रखते हैं कि ब्लॉग कोई व्यक्ति हो तो सामने पड़ने पर मार बैठें, ब्लॉगर को तो चीर ही डालें कि तुममें इतनी सम्भावनायें हैं लेकिन तुम उस स्तर का लिखते क्यों नहीं?

ब्लॉगर क्यों नहीं?

इसका उत्तर आयोजन घोषणा वाली पोस्ट में है। पाठक ब्लॉग पढ़ता है, बहुत से ब्लॉगरों को तो जानता तक नहीं। एकाध अच्छे तो छ्द्मनामी भी हैं। तो नाम से क्या लेना देना, काम देखो यारों!
सबसे बड़ी बात यह कि ब्लॉग ‘पुरस्कार बवाल’ नहीं काट सकता और न इनकार कर सकता है। काटेगा या इनकार करेगा तो वह ब्लॉगर होगा जो अपनी ही भद्द करेगा ;) नहीं समझे? छोड़िये भी!...कारण तो बहुत हैं, लेंठड़े के प्रवचन ध्यान से सुनिये।
    
प्रक्रिया बहुत ही सरल थी।

-    (1) ब्लॉगों के नाम नहीं सुझाये गये थे, लोगों को स्वयं बताने थे।
-   (2) एक व्यक्ति पसन्दगी और नापसन्दगी प्रत्येक श्रेणी में तीन तीन ब्लॉग बता सकता था - प्रथम, द्वितीय और तृतीय।
-   (3) प्रथम की तुलना में द्वितीय को 67% और तृतीय को 33% गणितीय महत्त्व दिया गया। प्रियता/अप्रियता के कारण नहीं बताने पर मत का महत्त्व आधा कर दिया गया।
-   (4) इस तरह से प्राप्त सकल गुणित धनात्मक और ऋणात्मक अंकों को जोड़ दिया गया। इस योग से प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थानों पर प्रिय ब्लॉगों का निर्धारण किया गया।

उदाहरण:
मान लीजिये कि आलसी नाम के एक ब्लॉग को लोगों ने कुछ यूँ परखा है:

प्रियता: प्रथम स्थान कुल 36 मत, द्वितीय स्थान कुल 44 मत और तृतीय स्थान कुल 18 मत।
प्रियता के कुल गुणित अंक = 36+0.67x44+0.33x18 यानि 95.54
अप्रियता: प्रथम स्थान कुल 6 मत, द्वितीय स्थान कुल 5 मत और तृतीय स्थान कुल 2 मत।
अप्रियता के गुणित अंक = 2x (6+0.67x5+0.33x2) यानि  20.02
सकल योग = 95.54 – 20.02 यानि 75.52 अंक  

चूँकि सबसे अप्रिय ब्लॉग का चयन निर्धारित नहीं था, इसलिये अप्रियता की श्रेणी के ब्लॉग नहीं बताये जायेंगे। बहुतों के बारे में तो आप सहज ही अंनुमान लगा सकते हैं। J कुल एक तिहाई ब्लॉग ऐसे हैं जिन्हें किसी न किसी ने ऋणात्मक मत दिया।
अट्ठारह ब्लॉग ऐसे हैं जिन्हें एक भी धनात्मक मत नहीं मिला! पढ़ने वाले परखने में कंजूसी नहीं करते।

परिणाम:
लोगों ने पसन्द/नापसन्द के कुल 66 हिन्दी ब्लॉगों के नाम बताये। घोषणानुसार तीन विजेता नाम कल विश्लेषण के साथ बताये जायेंगे लेकिन पहले सातवें से चौथे तक स्थान पाये वे ब्लॉग जो उनसे कम नहीं और जिन्हें जनमत का सम्मान करते हुये पुरस्कार स्वरूप जून से दिसम्बर तक वर्ष के बचे सात महीनों में हर माह स्थानक्रम से ‘अर्गलाओं के चन्द्रहार’ शृंखला में प्रथम स्थान पाये तीन ब्लॉगों के अतिरिक्त प्रस्तुति के लिये चुना गया है।
सातवाँ स्थान: अज़दक
 15

छ्ठा स्थान: छीटें और बौछारें  
16.7 

पाँचवा स्थान: फुरसतिया
 18.3

चौथा स्थान: संयुक्त रूप से



20

(जारी)          
           

34 टिप्‍पणियां:

  1. सोचता हूँ, आचार्य वोट देते तो किसे देते। चिट्ठे के बारे में, मेरे अनुभव की (मन की नहीं - कॉग्निटिव डेसोनेन्स?) बात, आपकी पसन्द के एक ब्लॉग से:
    मेरे चिट्ठे को लौटा देती
    गुस्से से, बिन दिए जवाब
    पर आकर बैठती मेरे ही बगल
    दोनों सेक्शन की संयुक्त क्लास में
    ये हमारी समीपता है या समापन?

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  2. धन्य भाग्य!! हमारे सामुहिक ब्लॉग "निरामिष" को चौथा स्थान प्राप्त हुआ।
    संयुक्त हमारे भागीदार है भी तो……सच्चा शरणम, ……दिल की बात,…निरामिष!! कमाल का संयोग!!
    सभी प्रियता प्रस्तावको के स्नेह से गदगद है हम सभी, 'निरामिष परिवार' आप सभी के स्नेह के प्रति आभार व्यक्त करता है।
    इस सम्मान के सहयोगी बनने के लिए गिरिजेश जी आपका बहुत बहुत आभार!!

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    1. बधाई अनुराग जी आपको भी, आप 'निरामिष' के मजबूत स्तम्भ है।

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    2. सुज्ञ जी, अनुराग जी,

      बधाई हो आप दोनों को

      गिरिजेश जी,

      बहुत बहुत आभार !


      मैं मतदान करने से चूक गया, क्षमा चाहता हूँ

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    3. संग खड़े होकर गदगद हूँ! सबको बधाई!

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  3. ढोल तबला सुनेंगे रात में। अभी तो शब्दों की झंकार को ही महसूस करने दीजिए...

    .....ब्लॉग मंथन कर ही डाला आपने।..बहुत बधाई। अमृत घट सुरक्षित रहे यही दुआ है।

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  4. "निरामिष" पर अपार स्नेह वर्षा करने के लिए सभी हितचिंतक पाठको का हृदय से आभार!!
    इस आयोजन के लिए गिरिजेश जी आपका आभार!!

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  5. जब पढ़ते पढ़ते सातवें से छठे की ओर लिस्टिंग बढ़ने लगी तो टीवी पर वासेपुर का डेंजरस प्रोमो शुरू हो गया......

    हम हैं 'सिकारी' पाकेट में लंबी गन....... :)

    वासेपुर के 'टिढिन' ताक धिन 'टिढिन' म्यूजिक के साथ पोस्ट का आनंद जबरजंग रहा। कल का इंतजार है :)

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  6. मैं यह देखकर बहुत खुश हूँ कि प्राप्त मतों के आधार पर जिन ब्लौगों को शीर्ष में स्थान मिला है वे मेरे पसंदीदा ब्लौग हैं. मुझे लगता है कि सर्वप्रिय ब्लौग का चयन करने की यह पद्धति निर्दोष है.
    अब शीर्ष के अन्य ब्लौगों के अलावा यह जानने की उत्सुकता है कि उनके लिए किस प्रकार का पुरस्कार/पारितोषक चुना गया है. देखते हैं, कल.

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    1. हाँ निशांत, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।

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    2. निर्दोष कहने से डरें! स्नेही के प्रति वीरता की जितनी बातें कही जायेंगी भावाभास बनकर उपहास्य होने का डर रहेगा।

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  7. "जब आवृत्तियाँ मिल जाती हैं तो झंकार की पराश बढ़ जाना स्वाभाविक है। बढ़ी हुई पराश आप को उन अनजान आत्माओं से जोड़ती है जो आप की ही तरह हैं।

    साझा करना संतृप्त करता है। ‘व्यक्ति’ को विस्तार दे ‘समष्टि’ से जोड़ता है। इससे हमें सुख मिलता है। यह हमारे शिव को शव होने से बचाता है। "



    यह टुकडा सहेजकर रख लिया है अपने पास...

    प्रस्तावना ही अपने आप में इतनी बेजोड़ है कि बाँध लेती है, आगे क्या है जानने को उत्कंठित कर देती है..

    बहुत ही सटीक ,सुन्दर खंगाला है आपने ...यदि मुझे भी मार्किंग करना होता तो मत इससे भिन्न न होता...

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    1. "प्रस्तावना ही अपने आप में इतनी बेजोड़ है कि बाँध लेती है"..सहमत हूँ!

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  8. यह चन्द्रहार ब्लॉग जगत के सौन्दर्य का प्रेरक होगा..

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  9. गणित बड़ा कठिन है.
    .......
    उपर्युक्त सभी ब्लोग्स खरा सोना हैं .

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  10. इस जारी की तो :)

    परिणाम की प्रतीक्षा तो है ही, हमें विश्लेषण का ज्यादा बेसब्री से इन्तजार रहा| 'प्रकृति खाली स्थान या निर्वात को पसन्द नहीं करती। अगर अच्छे लोग उन्हें नहीं भरेंगे तो कूड़ा कचरा भरेगा' से बिलकुल सहमत और इसीलिये जब किसी ऐसे को जो कूडे कचरे का असर कम कर रहा हो, को यहाँ से खिन्न होकर जाते देखता हूँ तो अच्छा नहीं लगता| पानी में गंदगी हो जाए और अगर वो inseparable हो तो साफ़ पानी बढ़ाकर ही गंदगी को कुछ कम किया जा सकता है|

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    1. @ अगर अच्छे लोग उन्हें नहीं भरेंगे तो कूड़ा कचरा भरेगा'
      जिस ब्लॉग जगत में आप लोगों जैसे लोग हैं - वहां कूड़ा कचरा अपना आधिपत्य स्थापित कर ही नहीं सकता :) | प्रयासरत रहेगा - परन्तु प्रकाश पर तमस की विजय न कभी हुई, न होगी |

      @ "जारी" -
      अब देखिये न - कुछ पोस्ट्स ऐसी होती हैं की लगता है - हे भगवन - इतनी लम्बी पोस्ट - how boring :(
      और एक यह चिट्ठा है - जहाँ चिट्ठी के अंत में "जारी" का हथौड़ा, बने हुए ताराताम्य को तोड़ देता है - और लगता है जैसे मीठा नीम्बू पानी पीते हुए नीम्बू का बीज चबा लिया हो - मुंह में कडवाहट घुल गयी हो | कल का इंतजार है :)

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  11. बढि़या चयन. आप सीधे चुनें तो परिणाम और भी बेहतर हों.

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  12. लो अब गणित भी सीखो...........इत्ते बडे़ ब्लॉग पढ़्ने की तो हैसियत ही नहीं थी मेरी ...देखो पढ़ो भागो....और फ़िर समझो....फ़िर जाओ ..बार बार जाओ...बस पढ़्ते ही रहो....और जून से दिसम्बर तक जो मिलने वाला है सोचकर ही आनन्द आ गया...अहा!....आप ही ये कर सकते थे...आभार....

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  13. वाह! बहुत खूब! रोचक आयोजन!

    हम अपनी पसंन्द के तीन ब्लॉग बता न पाये और सात तारीख बीत गयी। तीसरे नाम के चुनाव में बहुत बवाल मचा और समय निकल गया। हालांकि ज्यादा अफ़सोस नहीं है।

    अगर अच्छे लोग उन्हें नहीं भरेंगे तो कूड़ा कचरा भरेगा।
    ये बात मार्के की है।

    मेरा ब्लॉग कुछ लोग पसंद यह जानकर अच्छा लगा। और तीन ब्लॉगों के बारे में जानने की उत्सुकता है। इसी बहाने दलदल में चुम्मा चाटी ब्लॉग से परिचय हुआ। बहुत अच्छा लगा उसे पढ़कर!


    इस मेहनती काम के लिये बधाई! शुभकामनायें।

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  14. "बहुत बार सोचा कि ऐसा कौन सा ब्लॉग होगा जिसकी पराश ऐसी होगी कि ढेर सारे विविध क्षेत्रों के लोग उससे जुड़ते हों? कैसे पता चले? यह बहुत ही सरल और ईमानदार उत्कंठा थी।"

    मैंने समझ लिया था इस उत्सुकता को, जिज्ञासा को! सुकराती जिज्ञासा(?)- उत्कंठा(जिज्ञासा)के माध्यम से असत्य का खण्डन और सत्य का साक्षात्कार!

    ब्लॉग चुनने की स्वतंत्रता भी ऐसी दे रखी थी आपने कि पूछिए नहीं..स्वतंत्रता की लम्बी रस्सी जिससे हम खुद ही लटक जाँय!
    ख़ैर... अपना चिट्ठा लिस्टेड देख मुदित हूँ! आभार। यह तो दायित्व बढ़ाने की चाल है ना!

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    1. अपना चिट्ठा लिस्टेड देख मुदित हूँ! आभार। यह तो दायित्व बढ़ाने की चाल है ना!...

      मेरी भी यही प्रतिक्रिया है.
      बहरहाल, पाठकों व गिरिजेश जी का दिली शुक्रिया.

      हटाएं
  15. अभी देखा मैंने- चिट्ठों की छवियाँ जो लगायी हैं आपने उनके नाम (कम्प्यूटर में जिस नाम से सेव किया है आपने!) भी क्या खूब लिखे हैं-
    १.दिकदिक(अज़दक)
    २.रब्बी(छींटे और बौछारें)
    ३.सुक्कुल (फुरसतिया)
    ४.माट् साब(सच्चा शरणम्)
    ५.रागार्य (दिल की बात)
    ६.घास-फूस(निरामिष)

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  16. इसे कहते हैं पुरस्कार!
    और पुरस्कार भी कैसा - जो सबमे वितरित हो रहा हो, समान स्नेह से। इतना सब कैसे कर पाते हैं आचार्य!! (ध्यान देवें प्रश्न नहीं पूछा है, विस्मय दिखाया है :))
    कुछ एक चुन के नहीं कहूँगा, पूरा विश्लेषण सहेजने योग्य ही है, और विजेता - क्या कहने!
    उहापोह से निकल कर चिट्ठे स्वयं आ गए।
    सभी विजेताओं को बहुत बधाई, कईओं को पढता रहा हूँ, एक-दो अनियमित हैं - यत्न करूँगा पकड़ने का।

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  17. डाटा पब्लिक किया जाये तो मजा आए। निगेटिव वाला भी :)
    खुद सब जान गए आप। पाठकों को भी जानने का हक़ है :)

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    1. :) नहीं भाई। नकार का उद्घाटन प्रोजेक्ट की प्रस्तावना में नहीं था। नकार की माँग तो केवल एक युक्ति भर थी, संतुलन बनाये रखने के लिये और यथार्थ के अंतरंग समावेश के लिये :)
      बस एकाध कड़ी बाकी है, हम तो अभिये से भूलने लगे हैं। एकाध सप्ताह बाद तो सम्भवत: कुछ न याद रहे और न एक्सेल शीट के गणित ग्राफ स्राफ की ओर ताकने का मन करे।
      संतुष्टि इस बात की है कि छोटा ही सही, एक दीपक तो जलाया!

      हटाएं

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