शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

सुंदरकाण्ड में अग्निपरीक्षा


हनुमान जी के लांगूल में आग लगा दी गई है। हिंसक आनंद से भर राक्षसियां सीता जी को समाचार देती हैं - तुम्हारे उस ललमुंहे की पूंछ में आग लगा घुमाया जा रहा है - ताम्र मुखः कपिः ... लांगूलेन प्रदीप्तेन स एष परिणीयते!
सीता जी व्यग्र हो उठती हैं। कवि कैसे समझाये उस पीड़ा की तीव्रता को? अभिधा, लक्षणा, व्यंजना सब व्यर्थ हैं। माता की पीड़ा को उस उपमा का सहारा देते हैं जो रामायण में संभवत: एक बार ही प्रयुक्त हुई है:
श्रुत्वा तत् वचनम् क्रूरम् आत्म अपहरण उपमम्।
सूचना देने वाले शब्द क्रूर हैं और उनसे जो पीड़ा हुई है वह वैसी ही है जैसी रावण द्वारा अपहरण के समय उन्हें हुई थी।
सीता देवी के हाथ हुताशन अग्नि से प्रार्थना में जुड़ जाते हैं - कपि के लिए शीतल हो जाओ। 'कच्चित्' शब्द को ले अद्भुत करने वाले कवि कुल श्रेष्ठ 'यदि' शब्द का साथ ले एक तुलनीय प्रसंग रचते हैं।
माँ अपने समस्त पुण्य दाँव पर लगा देती है! सीता जी अपनी उस विशिष्टता को दाँव पर लगा देती हैं जिसके लिए आगे उन्हें युगों युगों तक आदर्श मान पूजा जाने वाला है। वाल्मीकि कहते हैं - मङ्गलाभिमुखी!
वैदेही शोकसंतप्ता हुताशनमुपागमत्
मङ्गलाभिमुखी तस्य सा तदासीन्महाकपेः
उपतस्थे विशालाक्षी प्रयता हव्यवाहनम्
यद्यस्ति पतिशुश्रूषा यद्यस्ति चरितं तपः
यदि चास्त्येकपत्नीत्वं शीतो भव हनूमतः
यदि कश्चिदनुक्रोशस्तस्य मय्यस्ति धीमतः
यदि वा भाग्यशेषं मे शीतो भव हनूमतः
यदि मां वृत्तसंपन्नां तत्समागमलालसाम्
स विजानाति धर्मात्मा शीतो भव हनूमतः
यदि मां तारयत्यार्यः सुग्रीवः सत्यसंगरः
अस्माद्दुःखान्महाबाहुः शीतो भव हनूमतः

यदि मैं पति के प्रति एकनिष्ठ हूं, यदि पति की शुश्रूषा की है, यदि मैं तपस्विनी चरित्र की हूँ ...यदि श्रीराम के मन में मेरे लिए थोड़ी भी दयालुता शेष है, यदि मेरे भाग्य में थोड़ा भी कुछ शुभ शेष है ... यदि श्रीराम मुझे उदात्त नैतिक चरित्र की मानते हैं जिसके भीतर उनसे मिलन की लालसा है.... यदि सत्यशील सुग्रीव के नेतृत्व वाली सेना मुझे मुक्त कराने वाली है ... 
तो हनुमत के लिए शीतल हो जाओ।

अग्नि कहाँ ऐसी के सामने ठहर सकते हैं? शिखाओं द्वारा प्रदक्षिण हो सीता को मान रखने की सूचना देते हैं। पवन देव भी शीतल वायु हो हनुमान को लपेट लेते हैं और हनुमान को आश्चर्य हो रहा है, चिन्ता हो रही है कि लांगूल दहक रहा है, आग चारो ओर इतनी प्रदीप्त है लेकिन मुझे जला क्यों नहीं रही?
तस्तीक्ष्णार्चिरव्यग्रः प्रदक्षिणशिखोऽनलः
जज्वाल मृगशावाक्ष्याः शंसन्निव शिवं कपेः
हनुमज्जनकश्चापि पुच्छानलयुतोऽनिलः
ववौ स्वास्थ्यकरो देव्याः प्रालेयानिलशीतलः
दह्यमाने च लाङ्गूले चिन्तयामास वानरः
प्रदीप्तोऽग्निरयं कस्मान्न मां दहति सर्वतः 
पूँछ आग में है लेकिन इतनी शीतल जैसे कि उस पर शिशिर ऋतु का संपात हुआ हो!
शिशिरस्य इव सम्पातो लाङ्गूल अग्ने प्रतिष्ठितः 
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जो सीता हैं न, हम सबकी आदर्श, उनकी अग्निपरीक्षा यह है। 

https://www.valmiki.iitk.ac.in/sloka?field_kanda_tid=5&language=dv&field_sarga_value=53

4 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय , पढ़कर बहुत अच्छा लगा . संभव है इसी 'अग्निपरीक्षा' को मुक्त होने के बाद राम द्वारा ली गई सीता की अग्निपरीक्षा के रूप में वर्णित कर दिया गया हो क्योंकि विश्वास नही होता राम जैसे युगपुरष द्वारा ऐसा अशोभनीय कार्य किया गया हो .

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  2. क्षेपक है, interpolation. रावण के अनुयाइयों द्वारा।

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  3. बहुत सुंदर , भक्ति जागृत करने वाला ।। नमन _/\_

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