परश्व(1) निरभ्र(2) स्थिति में देखा था, चंद्र को गुरु के निकट जाते हुये। कल नभ(3) स्थिति थी, नहीं दिखे किंतु पिछले प्रेक्षण से जान गया था कि बहुत निकट पहुँच चुके होंगे, ज्येष्ठा नक्षत्र(4) पर एक साथ, जिसके देवता ज्येष्ठराजा इंद्र हैं। वस्तुत: दोनों एक दूसरे से बहुत दूर हैं, भिन्न संसार के वासी, किंतु हमें आकाश में जैसा धरती से दिखता है, कहते हैं। नभ स्थिति पर मन में एक आशङ्का ने सिर उठाया जिसे मैंने झटक दिया।
घरनी सङ्गिनी ने पूछा कि आज तो चंद्रयान वहाँ उतरने वाला है, मैंने हूँ हाँ कर के बात टाली दी। प्रात: चंद्रतल से २.१ किलोमीटर ऊपर मृदु-अवतरण के चरण में 'विक्रम' घटक से सम्पर्क टूट जाने का दु:खद समाचार मिला।
मैंने लिखा है आकाश देखें, आसमान नहीं। इन शब्दों का अंतर बहुत महत्त्वपूर्ण है। आकाश हमारी जातीय परम्परा का शब्द है जिसमें प्र'काश' निविष्ट है। आसमान विदेशी स्रोत का शब्द है जिसकी सङ्गति अश्म से बैठती है - पत्थर, जड़, औंधे कटोरे सा ऊपर धरा। दृष्टि का अंतर है।
सीमाओं के होते हुये भी यह आत्मविश्वास से भरा भारत है जिसका ढेर सारा श्रेय उस 'पंतप्रधान' को जाता है जो अप्रतिहत ऊर्जा, कर्मठता, समर्पण एवं निश्चय का स्वामी है, जो गहराती रात में भी वैज्ञानिकों के साथ उनका उत्साह बढ़ाता वहाँ उपस्थित था। यह वह भारत है जो दुर्घटनाओं पर वक्षताड़न करता रुकता नहीं है, उपाय कर आगे बढ़ लेता है। आश्चर्य नहीं कि जनसामान्य भी कल रात जगा हुआ था। ऐसे अवसर एक कर देते हैं।
पुरी के शंकराचार्य की प्रक्षेपण पूर्व 'आशीर्वाद यात्रा' हो या प्रक्षेपित होते चंद्रयान को उत्सुकता के साथ निहारते सद्गुरु जग्गी वासुदेव; पुरी के प्रवक्ताओं की हास्यास्पद कथित वैदिक गणितीय बातों के होते हुये भी, धर्म व आध्यात्म से जुड़े गुरुओं का इस अभियान से जुड़ाव ध्यातव्य है। सामान्य घरनी से ले कर धर्मपीठ तक चंद्रयान अभियान ने समस्त भारत को जोड़ दिया। तब जब कि विघटनकारी शक्तियों का वैचारिक विषतंत्र अपने उच्च पर है, राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ता ऐसा कोई भी अभियान अभिनंदन योग्य है। लखनऊ से ले कर बंगलोर तक, पूरब से ले कर पश्चिम तक, समस्त भारतभू से आते वैज्ञानिक इस अभियान में लगे। त्वरित उद्गार एवं सामाजिक सञ्चार तंत्र के इस युग में यह वह समय भी है जब गोद में पल रही भारतद्वेषी एवं भारतद्रोही शक्तियाँ नग्न भी होंगी, कोई सूक्ष्मता से कलुष परोसेगा तो कोई स्थूल भौंड़े ढंग से, नंगे वे सब होंगे। ऐसे अवसरों का भरपूर उपयोग तो होना ही चाहिये, इन्हें भविष्य हेतु चिह्नित भी कर लिया जाना चाहिये।
एक प्रश्न उठता है कि इसरो को चंद्रयान प्रेषित करने हेतु इतने लम्बे समय एवं जटिल प्रक्रिया की आवश्यकता क्यों पड़ी? बहुत सरल ढंग से कहें तो इस कारण कि हमारे पास अभी भी उतनी शक्तिशाली प्रणोदयुक्ति नहीं है जो सीधे चंद्रमा पर उतार दे। वर्षों पहले क्रायोजेनिक इञ्जन का परीक्षण हुआ था किंतु आगामी वर्षों में जो उपलब्धि मिल जानी चाहिये थी, नहीं मिली। वास्तविकता यह है कि हार्डवेयर के क्षेत्र में हम अभी पीछे हैं। उस पर काम किया जाना चाहिये। आशा है कि इस घटना के पश्चात शक्तिशाली प्रणोद युक्ति के विकास पर ठोस काम किया जायेगा।
सीमित हार्डवेयर के होते हुये इस अभियान में जो प्रक्रिया अपनाई गई, उसके द्वारा चंद्र के इतना निकट पहुँचा देना अपने आप में महती उपलब्धि है तथा प्रतिद्वन्द्वी महाशक्तियाँ मन ही मन ईर्ष्या कर रही होंगी।
इस प्रक्रिया में गुरुत्वाकर्षण एवं प्रणोद का सम्मिलित उपयोग किया जाता है। यान को पहले धरती की परिक्रमा करते हुये संवेग प्राप्त कराया जाता है। मोटा मोटी प्रक्रिया को कुछ कुछ वनवासी गोफन से समझा जा सकता है, जिसमें वे अपने यंत्र में पत्थर रख कर घुमाते घुमाते उसे संवेग देते हैं तथा उपयुक्त समय पर, पर्याप्त गति प्राप्त कर लेने पर छोड़ देते हैं।
निश्चित संवेग की वह मात्रा हो जाने पर जब कि यान पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो कर चंद्र की कक्षा तक पहुँचने योग्य हो जाता है, उसे धक्का दे पृथ्वी के आकर्षण से मुक्त कर दिया जाता है तथा वह आगे चंद्र के गुरुत्व के आकर्षण में उसके 'उपग्रह' समान हो जाता है। परिक्रमा करते यान से प्रेक्षकयन्त्र युक्त घटक चन्द्र धरातल पर उतारा जाता है। यह प्रक्रिया भी चरणबद्ध होती है। पूरी प्रक्रिया बहुत ही जटिल, सूक्ष्म एवं परिशुद्ध गणना एवं कार्रवाई की माँग करती है। कोण में या समय में सेकेण्ड की विचलन या विलम्ब भी यान को सदा सदा के लिये अंतरिक्ष में व्यर्थ यायावर बना सकते हैं।
असफलता में भी ऐसा बहुत कुछ है जो भासमान है। हम सक्षम हैं, सीमित हार्डवेयर के होते हुये भी हमने पूर्णत: देसी तकनीक से वह कर दिखाया है जो हार्डवेयर सक्षम देश कर पाते हैं, असफलतायें तो लगी ही रहती हैं।
अमेरिका का अपोलो १३ न भूलें जब कि उससे पूर्व के सफल अभियान अनुभव होते हुये भी एक चूक ने असफलता के साथ साथ यात्रियों के प्राण भी संकट में डाल दिये थे तथा उन्हें जीवित लौटा लाने की प्रक्रिया में बहुत कुछ सीखने को मिला।
न भूलें वह घटना जब कि विण्डोज के नये संस्करण के लोकार्पण को मञ्च पर चढ़े बिल गेट्स को कुछ ही मिनटों में असफलता के कारण उतरना पड़ा था। माइक्रोसॉफ्ट रुका नहीं, आगे बढ़ गया।
इस अभियान को धन का नाश बताते हुये रोटी एवं निर्धनता को रोते जन को जानना चाहिये कि ऐसे अभियानों की ऐसी सैकड़ो पार्श्व उपलब्धियाँ होती हैं जो जन सामान्य के कल्याण में काम आती हैं। ये भविष्य में एक निवेश की भाँति भी होते हैं।
असफलता नहीं उपलब्धियाँ देखें। अंधकार नहीं, उस प्रकाश पर केंद्रित रहें जो भेद दर्शा रहा है। जड़ नहीं चैतन्यबुद्धि बनें। आसमान नहीं, आकाश देखें! उड़ाने आगे भी होंगी।
हमारा क्षितिज निहारिकाओं के पार तक पसरा है और हमारी गुलेलें, हमारे गोफन भी समर्थ हैं!
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शब्द :
(1) - परश्व - परसो
(2),(3),(4) - अभ्र कहते हैं बादल को, निरभ्र अर्थात जब बादल न हों, आकाश में नक्षत्र दिख रहे हों। भ को भासमान, प्रकाशित से समझें, चमकते नक्षत्र पिण्ड आदि। नभ अर्थात भ नहीं, जब बादल हों तथा नक्षत्र आदि न दिख रहे हों। जिस पथ पर सूर्य वर्ष भर चलता दिखाई देता है उसे क्रान्तिवृत, भचक्र नाम दिये गये हैं तथा उसका कोणीय विभाजन २७ भागों में किया गया है जिससे कि धरती से देखने पर ज्ञात होता है कि कौन से भाग 'नक्षत्र' में सौर मण्डल के सदस्य ग्रह, उपग्रहादि हैं। नक्षत्र का एक अर्थ न क्षरति जिसका क्षरण न होता हो, है अर्थात जो बने रहते हों। चंद्रमा धरती की परिक्रमा २७+ भू-दिनों में करता है। आकाशीय कैलेण्डर के सबसे चलबिद्धर पिण्ड चंद्र की दैनिक गति के प्रेक्षण हेतु ही २७ विभाग किये गये थे जिन्हें आलंकारिक रूप में कहा गया कि उसकी २७ पत्नियाँ हैं जिनके साथ वह एक एक रात बिताता है।