विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि होली के अवसर पर प्रति वर्ष काशी के अस्सी घाट पर होने वाले कवि सम्मेलन में श्रोतारूप में अगले साल जाने के लिए ब्लॉग जगत के कुछ लंठो ने प्रोग्राम बनाया है। एडवांस बुकिंग के लिये पुरुष ब्लॉगर (केवल अनाड़ीवादी) सम्पर्क करें (चेतावनी - नाड़ी का नाड़ा से कोई सम्बन्ध नहीं है।)
यह पाया गया है कि ब्लॉग जगत से कोई भी 'कवि' के रूप में क़्वालिफाई नहीं कर पाया है। क़्वालिफाई करने के लिये अंत में दी गई 'समस्या पूर्ति' हर हर महादेव! टेक के साथ करनी है।
तिरपाल और जाजिम की बेवस्था वैज्ञानिक मुखारविन्द के जिम्मे है। तिरपाल पर पड़े चूतड़ चिह्नों के निरीक्षण से उन्हें अपने 'नायक नायिका' नख शिख वर्णन में रह गई कसर पूरी करने में मदद मिलेगी।
सचाई की शरण वाले माट्साब सौन्दर्य लहरी की परम्परा में अस्सी के योगदान पर एक विशद लेख लिखेंगे।
कवि हृदय ऋजु प्रकृति कुँवारे बालक पूरे सम्मेलन की कविताओं को लिपिबद्ध करेंगे।
चूँकि सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व का है, इसलिये अंग्रेजी और जापानी भाषाओं में अनुवाद के लिये मूल रचनाओं को समझने हेतु चतुर भारतीय संत पिटासवर्ग से आयेंगे। उन्हों ने अश्लील शब्दों को निकाल कर सभ्य भाषा में उतने ही प्रभावकारी अनुवाद की बात कही है।
उनका यह कारनामा किसी चमत्कार से कम नहीं होगा, इसलिये नाड़ा नाम विख्यात देश से ऊड़न लाल भी पधार रहे हैं। उन्हें आज कल ऐसइच उपन्यासिका लिख लिख फोकट में बाँटने का शौक चर्राया है।
इस पर प्रथम आचार्य नाम विख्यात विवाहितादिललपकू कुमार ने कहा है कि न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। वैसे उन्हों ने उन दिव्य कवित्तों में लोक सम्वेदना के स्वर पाये जाने की बात कही है जिनके कारण कभी भी क्रांति हो सकती है।
पलटकुमार ने राधा और तेल के मेल का खेल देखने के लिये अभी से दालमंडी गली में कमरा ढूँढ़ लिया है।
आलसी नाम विख्यात ने आलस तजते हुये अगुवाई की जिम्मेदारी स्वीकार की है। झूठा ज्ञान बघार कर आतंक फैलाने वाले इस शख्स ने यह सिद्ध करने की ठान ली है कि अश्लीलता ही भाषा की प्राण है।
शातिर कली ने हामी भरते हुये 'बात में वजन' की अपनी अवधारणा की प्रस्तुति का प्रोग्राम बनाया है।
यह और बात है कि वहाँ संगठन, संघटन वालों की गठन ठन ठन कर देने का बन्दोबश्त एक भटकती आत्मा ने कर रखा है। आज कल उन्हें विश्वनाथ मन्दिर में हक्का बक्का मंत्र पढ़ते पाया जाता है। कुछ का कहना है कि असल में शकीरा का वक्का वक्का वो वो सुनने देखने के बाद से ही उनका दिमाग ठरक गया है।
हर सफेद दीवार में श्वेत प्रदर के चिह्न तलाशने वाले व्हाइट हाउस के मालिक बम-बई से सिर्फ इसलिये पहुँचने का पिरोगराम बनाये हैं कि चिलगोंजई के ओरिजिन को तलाशा जा सके। पलटकुमार दालमंडी से रोज उनसे बातें करते हैं और लत्ता बीनने के गुन सीखते हैं।
ग़लती से पच्छिम में पैदा हो गये दपक बाबा भी आ रहे हैं। खैनी खा खा कर उन्हें कुछ हो गया है और उनके दोस्त परबिये ने उन्हें यह झाँसा दिया है कि जब दिब्य कबित्त अवतरित होंगे तो उनकी आँच से उस कुछ की वो सिंकाई होगी कि वह कल को सर्व करने चला जायेगा।
आली भी आ रहे हैं। उन्हें उकसाने में अपून कुस्सुल का हाथ है। आली मुखारविन्द की दोस्ती और अपून की नूर दुश्मनी में दुरभिसन्धियों को समझने के लिये पधार रहे हैं। ये बात अलग है कि इसी बहाने दोनों उनके नाड़ी ज्ञान की ऐसी तैसी करने वाले हैं। आली ने कहा है कि अगर वे हार गये तो नाड़ी ब्लॉगों पर लम्बी अज्ञानी/अगमजानी/हैरानी टाइप की बड़ी बड़ी टिप्पणियाँ करना छोड़ देंगे।
कवि सम्मेलन से एकदम असम्बद्ध इस प्रस्ताव पर बलापाल ने एक नये ब्लॉग का शुभारंभ अगली होली के दिन से करने को कहा है। प्रथम आचार्य ने मेल कर उनसे पूछा है कि क्यों खाली पीली पादते रहते हैं? हाल लिखने तक दोनों नेट पर बज़बज़ाते हुये गुथ्थमगुत्था थे।
बात बात में झेलाऊ कार्टून बनाने वाले काजलमार ने 'ब्लॉग क्राइम्स' में एक कार्टून स्ट्रिप अभी से छापने की बात बताई है।
इस पर आत्ममुग्ध महजूफ कली का कहना है कि बात कुछ हजम नहीं हुई। मेरे जैसे स्मार्ट पर कार्टून क्यों नहीं बनाया जा रहा?
परम सभ्य सैनिक उभयराजारिसि ने जलजला लिख कर उन्हें समझाया है कि तुम ऐसे ही कार्टून हो, बनाने की क्या जरूरत? दोनों ने अस्सी कवि सम्मेलन में एक दूसरे को देख लेने की धमकी दी है।
घोषित अद्वितीय कुटिल-खल-कामी अपने नाम के तीसरे भाग को चरित्र में उतारने की सीख के लिये पधारेंगे। वैसे उन्हें सीख से नफरत है और बेफालतू फिल्मी गानों के बघार पोस्टों में देने की फितरत है। फिर भी देखी जायेगी।
शिवज्ञान लाहाबाद से बनारस पहुँचेंगे। बनारस से शिवगंगा एक्सप्रेस पकड़ कर दिल्ली जायेंगे और दिल्ली से जयझा जैसे नमूने ब्लॉगरों को इकठ्ठा कर लायेंगे। ऐसा सिर्फ इसलिये कि शिवज्ञान के रहते किसी को भी रेल टिकट नहीं लगेगा। खुद उन्हें तो कभी लगता ही नहीं है। वे इसे गंगा जी की कृपा बताते हैं और उनका बिरोधी खेमा रैंकिंग बढ़ाने की चाल कहता है।
कुदर्शन मिसिर ने किसी के चाल चलन पर सवाल उठाने से इनकार करते हुये कहा है कि वे कवि सम्मेलन में सिर्फ इसलिये श्रोतारूप भाग लेंगे कि कुछ और एनीमेशन के लायक कैरेक्टर मिलेंगे। उनका ब्लॉग अव्वल तो लोग पढ़ते ही नहीं, जो जाते भी हैं वे एनीमेशन के चक्कर में टिपियाना ही भूल जाते हैं। आलसी ने उन्हें एनीमेशन के बजाय असल चीज परोसने की सलाह दी है। दोनों इस मुद्दे पर भदैनी कुटी में डिछ्क्स करेंगे।
चारशून्य टाइप पोस्टें लिखने वाले ब्लॉगर ने बड़ा वाजिब सवाल उठाया है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा सोविधा का दुरुपयोग सिरफ भड़ैती सुनने सुनवाने के लिए क्यों किया जा रहा है?
इस पर भाऊ बैडनिक्कर ने ऑब्जेक्शन लिया है कि इस सन्दर्भ में 'भड़ैती' शब्द का प्रयोग ग़लत है। चारशून्य टाइपो ने उनसे चुप चाप रह कर कविता सुनने लायक दिमाग विकसित करने की नसीहत दी है। उनकी एक और सिखावन 'बिना वाक्य के शब्द देह नहीं कसाईखाने की बोटियाँ हैं' को समझने की कोशिश में वे कहीं एक और पुरस्कार न झटके लें!
सुना गया है कि इसी बात पर मलमल नन्द और कुकवि कास में जबरदस्त झगड़ा हो गयेला है। अब बैडनिक्कर उन्हें दस्त के अर्थ समझाने में लगे हैं। यह पक्का है कि कोई आये न आये ये चारो अस्सी जरूर पहुचेंगे।
बरधा के साँड़ों से घबरा कर धत्तार्थ प्रिताठी नखलौ आ धमके हैं और पुरस्कारी लाल के साथ अस्सी पहुँचने की योजना बना रहे हैं। दोनों इस गुंताड़ में लगे हैं कि कैसे वहाँ के कवियों को पुरस्कार दिया जाय? वैसे उन कवियों की हर चीज में बाँस कर देने की आदत के बारे में सुन सुन कर दोनों सहमे भी हैं। उनके निर्णय की उत्सुकता से प्रतीक्षा है।
हैट लगा कर काला पैसा इधर उधर करने वाले बोझा से कम ही बात हो पाई है। उनका मोबाइल डिस्चार्ज है और वलिया में डॉलर न चलने कारण जनरेटर नहीं खरीद पा रहे जिससे कि मोबाइल चार्ज हो सके। फिर भी उन्हों ने पहुँचने के लिये अभी से छुट्टी का ऐप्लीकेशन लगा दिया है। जिस समय उनसे बात हुई, वह आम के पेंड़ से सेम तोड़ने के बहाने ऊँचाई से लाइन मार रहे थे। आलसी ने उन्हें समझाया है कि बबुआ इतना जल्दी न भूलो, पेंड़ हवाई जहाज नहीं कि अव्वल तो टपकोगे नहीं और अगर टपक गये तो सीधे सू sssssss। पेंड़ से टपके तो इतनी पूजा होगी कि बस्स बरफ सेंकने से ही लगी आग बुझेगी। ....
अभी तक इतना ही।
समस्या पूर्ति की पंक्तियाँ:
लाँड़ उठे न गाँड़ में दम
हम बानी केसे कम?
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बोल जोगीरा, हर हर महादेव!
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नोट - इस लेख और ब्लॉग का अश्लीलता से दूर दूर तक नाता नहीं है। अश्लील या व्यक्तिपरक टिप्पणियाँ प्रकाशित नहीं की जायेंगी। कृपया अश्लील भाषा का प्रयोग न करें। लेख जैसी सभ्य भाषा का प्रयोग करें।
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बुरा न मानो होली है। लिहो लकारा लिहो लिहो ...होली है.. हर हर महादेव!